मुर्शिदाबाद के बाद अब कश्मीर में मौतें, कब जागेगी मोदी सरकार?
कश्मीर में सुरक्षा एवं विश्वास के वातावरण की बहाली से हताश पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने पहलगाम के बैसरन घाटी, जिसे मिनी स्विट्जरलैंड कहा जाता है, के पहाड़ों में सुकून के पल बिताने आए पर्यटकों पर बड़ा हमला बोला। इस दुर्दांत आतंकी हमले में 28 पर्यटकों की मौत हो गयी, तो वहीं 20 से अधिक घायल हुए हैं. इस हमले में आतंकियों ने पर्यटकों से कहा कि ’तुम लोगों ने मोदी को सिर चढ़ा रखा है. चश्मदीदों के मुताबिक हथियारों से लैस आतंकियों ने लोगों से नाम पूछा, कलमा पढ़ने को कहा और न बोल पाने वालों को गोली मार दी. घाटी में परिवार के साथ घूमने गए। सैलानियों ने सपनों में भी नहीं सोचा था कि वह रोते बिलखते घर लौटेंगे। आतंकियों ने पर्यटकों का धर्म पूछकर, खासकर हिंदुओं को निशाना बनाया. उनका मकसद भारत में धर्मवाद के नाम पर अलगावा को बढ़ावा देना है. देखा जाएं तो मुर्शिदाबाद की दुखद घटनाओं के बाद अब कश्मीर में हुई मौतों ने पूरे देश को झकझोर दिया है
सुरेश गांधी
22 अप्रैल 2025 की सुबह, जब
देश भर में लोग
सामान्य जीवन जी रहे
थे, तब कश्मीर के
शांत, सुंदर पहलगाम घाटी में गोलियों
और धमाकों की आवाज़ गूंज
रही थी। यह सब
कुछ तब हुआ जब
घाटी में अमन पटरी
पर लौट रहा था,
लेकिन आतंकियों की नापाक हरकत
ने फिर से घाटी
को लहूलुहान कर दिया। पिछले
कई वर्षों बाद नागरिकों पर
किया गया यह सबसे
जघन्य हमला था। आतंकियों
ने लोगों को चुन चुन
कर मारा, लोग जान बचाने
के लिए इधर-उधर
दौड़ते नजर आए। इस
हमले में 28 निर्दोष लोग मारे गए,
जिनमें विदेशी पर्यटक, स्थानीय लोग और एक
भारतीय नौसेना अधिकारी भी शामिल थे।
इस हमले की ज़िम्मेदारी
“द रेज़िस्टेंस फ्रंट” (टीआरएफ) नामक आतंकी संगठन
ने ली है। यह
एक ऐसा नाम जो
शायद ज़्यादा लोगों के लिए नया
हो, लेकिन इसके पीछे की
सोच, रणनीति और उद्देश्य पुराने
हैं। “द रेज़िस्टेंस फ्रंट”
दरअसल लश्कर-ए-तैयबा (एलइटी)
का ही एक छद्म
संगठन है। 2019 में जम्मू-कश्मीर
से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के
बाद, पाकिस्तान ने आतंकवाद को
’लोकल विद्रोह’ की शक्ल देने
के लिए टीआरएफ जैसे
संगठनों को गढ़ा। इससे
उनका उद्देश्य था कि दुनिया
को यह दिखाया जाए
कि कश्मीर में जो हो
रहा है, वह बाहरी
आतंक नहीं, बल्कि स्थानीय ‘आंदोलन’ है। लेकिन ज़मीनी
सच्चाई इससे कोसों दूर
है।
टीआरएफ की फंडिंग, हथियारों
की सप्लाई और प्रशिक्षण सब
पाकिस्तान से होता है।
इसका असली चेहरा अब
भारत ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय
मंचों पर भी उजागर
हो चुका है। ऐसे
हमलों का मकसद केवल
जान लेना नहीं होता।
इनका असली उद्देश्य होता
है, अमरनाथ यात्रा से पहले डर
का माहौल बनाना ताकि लोग कश्मीर
आने से डरें। स्थानीय
पर्यटन को नुकसान पहुँचाना,
जिससे आम कश्मीरी की
आजीविका प्रभावित हो। भारत सरकार
और सुरक्षा बलों पर मनोवैज्ञानिक
दबाव डालना। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर
को ’संवेदनशील’ क्षेत्र के रूप में
पेश करना। लेकिन बड़ा सवाल तो
यही है क्या पहलगाम
जैसे क्षेत्र में, जहां आम
तौर पर सुरक्षा व्यवस्था
कड़ी रहती है, इस
प्रकार का सुनियोजित हमला
आखिर कैसे हो गया?
क्या खुफिया एजेंसियों को इस हमले
की भनक नहीं लगी?
यदि लगी, तो समय
पर कार्रवाई क्यों नहीं हो पाई?
क्या सुरक्षा बलों को पर्याप्त
संसाधन और सहयोग मिल
रहा है? भारत की
प्रतिक्रियाः क्या सिर्फ बयानबाज़ी
काफ़ी है? मतलब साफ
है आतंकी संगठनों की रणनीति अब
पहले से कहीं ज्यादा
शातिर हो चुकी है.
वे ड्रोन, साइबर नेटवर्क, और सोशल मीडिया
के ज़रिये अपनी मौजूदगी छुपाने
और फैलाने में सफल हो
रहे हैं।
कश्मीर में पर्यटन उद्योग
लाखों लोगों के जीवनयापन का
आधार है। पिछले कुछ
वर्षों में, धीरे-धीरे
हालात बेहतर हो रहे थे,
और पर्यटक वापस लौटने लगे
थे। लेकिन इस एक हमले
ने फिर से सबकुछ
पीछे धकेल दिया है।
आतंकवादी जानते हैं कि अगर
आम कश्मीरी बेरोजगार हो गया, तो
उसे भड़काना और कट्टरपंथ की
ओर मोड़ना आसान हो जाएगा।
इसीलिए ऐसे हमले सीधे-सीधे आर्थिक और
मानसिक युद्ध के तौर पर
देखे जाने चाहिए। हालांकि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले
को “कायराना और अमानवीय“ करार
देते हुए कार्रवाई का
वादा किया है। लेकिन
आम जनता यह जानना
चाहती है, क्या इस
बार जवाब सिर्फ शब्दों
में सीमित रहेगा? या नीति और
ज़मीनी स्तर पर परिवर्तन
देखने को मिलेगा? मोदी
को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर टीआरएफ और
पाकिस्तान को उजागर करना
होगा। एलओसी पार आतंकी ठिकानों
पर सर्जिकल या एयर स्ट्राइक
जैसे कदम उठाने होंगे।
क्योंकि यह आतंकी हमला
चिंताजनक है। यह हमला
ऐसे समय हुआ है
जब अमेरिका के राष्ट्रपति जेडी
वेंस भारत दौरे पर
हैं। आतंकी सेना और पुलिस
जैसी वर्दी में थे। सभी
के पास एके-47 और
अन्य हथियार थे। एक के
बाद सामने आ रहे वीडियो
इस बात की पुष्टि
करते है कि हथियारबंद
हमलावरों ने न सिर्फ
पर्यटकों को गोली मारी,
बल्कि कश्मीरियों के रोजगार पर
भी हमला किया। उन
कश्मीरियों पर हमला किया,
जिनकी आजीविका पर्यटक पर निर्भर है।
सरकार की सत्तारूढ़ होने
के बाद इनमें विश्वास
होने लगा था कि
घाटी में धीरे-धीरे
स्थिति सामान्य हो रही है।
लेकिन बीच बीच में
हुई छिटपुट आतंकी वारदातों से इस बात
का संकेत मिल रहा था
कि आतंकी मौके की तलाश
में है। हाल ही
पाकिस्तान सेना के प्रमुख
जनरल असीम मुनीर की
बयानबाजी ने आतंकियों के
हौसले को बढ़ाया है।
उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान के
गले की नस बताया
था। उन्होंने टू नेशन थ्योरी
का जिक्र करते हुए हिंदुओं
खिलाफ बयान देते हुए
कहा था कि पाकिस्तानियों
को नहीं भूलना चाहिए
कि हम उनसे अलग
है।
बदहाली और कई स्थानों
पर विद्रोह से जूझ रहे
पाकिस्तान को एकजुट रखने
के लिए शायद जनरल
मुनीर को नफरती भाषण
की जरूरत महसूस हुई हो। हो
सकता है उनकी बातों
से पाकिस्तान का भी बड़ा
तबका सहमत नहीं हो,
लेकिन कट्टरपंथियों को जनरल मुनीर
की बातों से ताकत मिली
होगी और उन्हें जनरल
मुशर्रफ की याद आ
गई होगी, जो भारत के
खिलाफ छद्म युद्ध तेज
करने के लिए जाने
जाते हैं। जनरल मुनीर
के बयानों से आतंकियों का
मनोबल निश्चित रूप से बढ़ा
है। इसका प्रमाण कश्मीर
में हुआ आतंकी हमला
है। दरअसल, बांग्लादेश में तख्तापलट और
भारत विरोधी भावनाओं के उभार के
बाद पाकिस्तान की शैतानी आंखों
में चमक दिखने लगी
है। उसे लगता है
कि उसे बांग्लादेश का
साथ भी मिल जाएगा।
चीन के साथ संबंध
मजबूत करके पाकिस्तान अमेरिका
की कमी पूरा करने
में पहले से ही
लगा हुआ है। मतलब
साफ है भारत से
बदला लेने के लिए
वह यहां अशांति फैलाने
की नए सिरे से
कोशिश कर सकता है।
पाकिस्तान भारत में आतंकी
हमले के जरिए धार्मिक
अलगाववाद को बढ़ावा देना
चाहता है। ऐसे में
पाकिस्तान की कूटनीतिक चाल
को समझते हुए देश में
अमन चैन बनाए रखना
पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। सभी
समुदायों की यह जिम्मेदारी
है कि देश का
माहौल नहीं बिगड़े। सरकार
को आतंकियों के खिलाफ हरहाल
में कड़ी कार्रवाई करनी
होगी, सुरक्षा एजेंसियां चौकस करना होगा
और आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब
देने के लिए हर
संभव प्रयास किए जाने चाहिए।
इस संवेदनशील मौके पर राजनीतिक
दलों को एकजुटता दिखानी
होगी। पाकिस्तान के मंसूबों को
विफल करने और उसे
कड़ा जवाब देने की
रणनीति पर काम करना
होगा। क्योंकि यह वक्त केवल
शब्दों का नहीं, ठोस
कार्रवाई का है।
भारत को कूटनीतिक मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने के साथ-साथ, एलओसी पार आतंकी ठिकानों पर सटीक जवाबी कार्रवाई करनी होगी। साथ ही, स्थानीय युवाओं को कट्टरपंथ से बचाने के लिए शिक्षा, रोज़गार और संवाद की नीतियाँ अपनानी होंगी। इसे रोकने के लिए स्थानीय युवाओं के लिए शिक्षा, रोजगार और काउंसलिंग प्रोग्राम को बढ़ावा देना होगा। साइबर निगरानी और सोशल मीडिया पर कट्टरपंथी प्रचार की सख्त रोकथाम के लिए कड़े प्राविधान करने होंगे। मेरा मानना है कि कश्मीर की लड़ाई अब सिर्फ बंदूक़ों से नहीं, बल्कि प्रचार, डर, और मनोवैज्ञानिक युद्ध से भी लड़ी जा रही है। आतंकवाद अब नाम बदल चुका है, पर उसका एजेंडा वही है अस्थिरता, अलगाव, और हिंसा। भारत को अब बहुस्तरीय रणनीति की ज़रूरत है, जिसमें कूटनीति, सुरक्षा, मनोवैज्ञानिक लड़ाई और विकास आल इन वन हो, वरना, टीआरएफ के बाद कोई नया नाम आएगा, और हम फिर से एक और “कायराना हमला” देखेंगे। यह आतंकी हमला न केवल मानवता के खिलाफ एक घिनौना अपराध था, बल्कि यह भारत की सुरक्षा नीति, खुफिया तंत्र और आतंकवाद के प्रति रणनीति पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
टीआरएफ जैसे संगठनों को
पाकिस्तान की धरती से
न केवल वैचारिक समर्थन
मिलता है, बल्कि तकनीकी,
आर्थिक और सामरिक सहायता
भी मिलती रही है। भले
ही पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद से
दूरी बनाकर दिखाने का प्रयास करता
है, लेकिन हकीकत में वह इन
संगठनों को ‘स्ट्रैटजिक ऐसेट्स’
की तरह उपयोग करता
है। पहलगाम जैसे पर्यटन क्षेत्र
में इतने बड़े स्तर
पर हमला होना यह
दिखाता है कि खुफिया
एजेंसियां या तो कमजोर
पड़ी हैं या फिर
उन्हें सही समय पर
सूचना नहीं मिली। इसके
पीछे लोकल स्तर पर
कट्टरपंथी विचारधारा का पुनरुत्थान भी
हो सकता है। कश्मीर
की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का
अहम योगदान है। ऐसे हमलों
से पर्यटकों में डर पैदा
होता है और इससे
स्थानीय लोगों का रोजगार प्रभावित
होता है।
यह
आतंकियों की रणनीति का
हिस्सा भी है. स्थानीय
जनता को सरकार के
खिलाफ भड़काना। यह हमला एक
चेतावनी है कि आतंकवाद
अब नए नामों, नए
चेहरों और नई रणनीतियों
के साथ सामने आ
रहा है। भारत को
इस चुनौती का सामना पारंपरिक
और आधुनिक, दोनों तरह के उपायों
से करना होगा। वरना
हर बार एक नया
टीआरएफ आएगा, और हम शोक
में डूबे रहेंगे। पहलगाम
जैसे संवेदनशील और पर्यटक-प्रिय
क्षेत्र में ऐसा हमला
होना यह दर्शाता है
कि स्थानीय स्तर पर खुफिया
तंत्र में कुछ कमजोरी
रही। यह भी सवाल
उठता है कि इतने
बड़े हमले की योजना
कैसे बनाई गई, और
सुरक्षा बलों को इसकी
भनक क्यों नहीं लगी. भले
ही पाकिस्तान सीधे ज़िम्मेदारी से
इनकार करता रहा हो,
लेकिन टीआरएफ जैसे संगठनों को
लॉजिस्टिक और वैचारिक समर्थन
पाकिस्तान से ही मिलता
है। ऐसे हमले भारत-पाक संबंधों को
और अधिक तनावपूर्ण बनाते
हैं।
3 जुलाई से है अमरनाथ यात्रा
अमरनाथ यात्रा के लिए पहलगाम रूट बेहद महत्वपूर्ण है। इस रूट से गुफा तक पहुंचने में तीन दिन लगते हैं, मगर रास्ता आसान है। यात्रा में खड़ी चढ़ाई नहीं पड़ती है। पहलगाम से पहला पड़ाव चंदनवाड़ी है, जहां से चढ़ाई शुरू होती है। यह बेस कैंप से 16 किमी दूर है। तीन किमी चढ़ाई के बाद यात्रा पिस्सू टॉप पर पहुंचती है, जहां से पैदल चलते शाम तक यात्रा शेषनाग पहुंचती है। यह सफर करीब नौ किमी का है। अगले दिन यात्री शेषनाग से 14 किमी दूर पंचतरणी जाते हैं। पंचतरणी से गुफा की दूरी सिर्फ छह किमी है। अमरनाथ यात्रा तीन जुलाई से शुरू होनी है, जो नौ अगस्त तक चलेगी। पहलगाम से बैसरन लगभग छह किमी दूर है। यह क्षेत्र घने देवदार के जंगल और पहाड़ों से घिरा घास का बड़ा मैदान है। यह पर्यटकों और ट्रैकर्स का पसंदीदा स्थान है। बैसरन तक केवल पैदल या घोड़ों से ही पहुंचा जा सकता है। इसलिए घायलों को निकालने के लिए हेलीकाप्टर लगाए गए। कुछ को हेलकॉप्टर से पहलगाम में प्राथमिक उपचार के बाद अनंतनाग और शेरे कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान श्रीनगर ले जाया गया। जिस जगह यह हमला हुआ, वहां पहुंचना आसान नहीं है।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मिनी स्विटजरलैड कहे जाने वाले पहलगाम के पहाड़ी क्षेत्र बैसरन में मंगलवार को बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचे थे। कुछ वहां बने रिसोर्ट के ओपन रेस्तरां में भोजन कर रहे थे और कुछ आसपास घूम रहे थे। ऐसे में वर्दी में पांच आतंकी पहुंचे। एक दरवाजे पर ठहर गया और चार ने अंदर घुसते गोलियां बरसानी आरंभ कर दी। अचानक गोलियों की आवाज से वहां अफरा-तफरी फैल गई। गोलियां चलाने वाले घूम-घूमकर पर्यटकों के करीब जाते और उन्हें पास से ही गोली मार देते। घोड़े वाले और स्थानीय दुकानदार भी वहां से भाग निकले। उधर, गोली चलते पर्यटक यहां-वहां भागने लगे और छिपने का प्रयास करने लगे, पर दूर-दूर तक खुला मैदान होने से उनके छिपने की जगह नहीं मिली। यह क्षेत्र चारों ओर से जंगल से घिरा हुआ है और सुरक्षाबल का शिविर भी आसपास नहीं है।
घाटी में हुए प्रमुख आतंकवादी हमले
o
21 मार्च
2000- अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपोरा
गांव में आतंकवादियों ने
सिख समुदाय को निशाना बनाया,
जिसमें 36 लोग मारे गए।
o
दो
अगस्त 2000- नुनवान बेस कैंप पर
हुए आतंकी हमले में दो
दर्जन अमरनाथ तीर्थयात्रियों सहित 32 लोग मारे गए।
o
20 जुलाई
2001- अनंतनाग के शेषनाग बेस
कैंप पर अमरनाथ यात्रियों
को फिर से निशाना
बनाया गया, जिसमें 13 लोग
मारे गए।
o
एक
अक्टूबर 2001- श्रीनगर में जम्मू और
कश्मीर राज्य विधानमंडल परिसर पर आत्मघाती (फिदायीन)
आतंकवादी हमले में 36 लोग
मारे गए।
o
छह
अगस्त 2002- चंदनवारी बेस कैंप पर
आतंकी हमला हुआ और
11 अमरनाथ यात्री मारे गए।
o
23 नवंबर
2002- दक्षिण कश्मीर के लोअर मुंडा
में जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक आइईडी
विस्फोट में नौ सुरक्षा
बल कर्मियों, तीन महिलाओं और
दो बच्चों सहित 19 लोगों की जान चली
गई।
o
23 मार्च
2003- आतंकवादियों ने पुलवामा जिले
के नंदीमार्ग गांव में 11 महिलाओं
और दो बच्चों सहित
24 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर
दी।
o
13 जून
2005- पुलवामा में एक सरकारी
स्कूल के सामने भीड़भाड़
वाले बाजार में विस्फोटकों से
लदी एक कार में
विस्फोट होने से दो
स्कूली बच्चों और तीन सीआरपीएफ
अधिकारियों सहित 13 नागरिक मारे गए और
100 से अधिक लोग घायल
हो गए।
o
26 मई
2006- श्रीनगर के जकूरा इलाके
में आतंकी हमले में गुजरात
के चार पर्यटकों की
मौत।
o
12 जून
2006- कुलगाम में नौ नेपाली
और बिहारी मजदूर मारे गए।
o
नौ
जून 2024- रियासी में शिवखोड़ी के
श्रद्धालुओं की बस पर
आतंकियों ने गोलियां बरसाई।
नौ यात्रियों की मौत और
41 घायल
o
10 जुलाई,
2017- कुलगाम में अमरनाथ यात्रा
बस पर हमले में
आठ की मौत।
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