दंगों की स्क्रिप्ट : जब वक्फ बन जाए हिंसा का बहाना
वक्फ बोर्ड संशोधन पर पूरे देश में बहस छिड़ गई है. एक तरफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार की बात हो रही है, तो दूसरी ओर हिंसा का विरोध किया जा रहा है. लेकिन मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा से पता चलता है कि वक्फ बोर्ड के विरोध की आड़ में किसी बड़ी साजिश का षडयंत्र रचा जा रहा है। इस षडयंत्र में विपक्ष के साथ-साथ सीमा पर कुछ आतंकी संगठने भी अपना रंग दिखा रही है। वैसे भी भारत के खिलाफ पाकिस्तान ने बांग्लादेश से मोर्चा खोल रखा है. अब तो वक्फ बिल के विरोध के लिए एक पार्टी को भी हुकम जारी किया जा चुका है. खबर है कि बांग्लादेश खिलाफत मजलिस ने वक्फ के विरोध में भारतीय उच्चायोग के घेराव के लिए बाकायदा 23 अप्रैल की तारीख मुकर्रर की है. इसी पार्टी ने शेख हसीना सरकार के खिलाफ जमात के साथ मिलकर ढाका की सकड़ों पर गदर मचाया था. मुर्सीदाबाद सहित बंगाल में जगह-जगह फैली हिंसा को इन्हीं साजिशों से जोड़कर देखा जा रहा है। आरोप है कि बंगाल में ममता सरकार इस साजिश का हिस्सा है। अलग बात है कि वक्फ बिल पर मुसलमानों में ही छिड़ गई तगड़ी ’जंग’! मतलब साफ है वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में भड़काई गई सुनियोजित हिंसा से यदि सरकार या या यूं कहे प्रशासन समय रहते ही नहीं चेता तो आने वाले दिनों में अंजाम और भी बुरे होने से इनकार नहीं किया जा सकता
सुरेश गांधी
वक्फ बिल अब कानून का रूप ले चुका है. संसद में देश के सामने यह कानून बना. कानून से किसी को आपत्ति है तो सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. कई याचिकाएं गई भी हैं. सुप्रीम कोर्ट इसकी वैधता पर सुनवाई करेगा और अपना फैसला लेगा. ऐसे में किसी को भी हक नहीं कि वक्फ कानून की आड़ में देश के माहौल को खराब करे. मगर पश्चिम बंगाल में माहौल बिगड़ चुका है. खास यह है कि मुर्शिदाबाद के एक इलाके से फैली हिंसा की आग अब धीरे-धीरे फैलती जा रही है. पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में हिंसक प्रदर्शन जारी हैं. वक्फ कानून के खिलाफ मुसलमान सड़कों पर हैं. उन्हें बरगलाया जा रहा है. इसकी वजह से सैकड़ों हिंदुओं का पलायन हो चुका है. तीन लोगों की जान भी जा चुकी है. अब सवाल है कि क्या पश्चिम बंगाल में ही सबसे अधिक मुसलमान हैं? क्या अन्य राज्यों के मुसलमानों को वक्फ कानून से कोई लेना-देना नहीं? आखिर यूपी-बिहार और महाराष्ट्र के मुसलमान क्यों बेफिक्र हैं? पश्चिम बंगाल में आखिर कौन दंगे की बार-बार साजिश रच रहा है?
जबकि सरकार का दावा है कि इससे ग़रीब मुस्लिमों को फायदा होगा. अगर कुछ लोगों को वक्फ एक्ट पर गुस्सा है तो गरीबों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है? बावजूद इसके विपक्ष और मुस्लिम संगठन पुराने वक्फ बोर्ड के नियमों को लेकर अड़े हुए हैं.
वक्फ कानून को
लेकर बंगाल की सियासत ने
इस हिंसा को और हवा
दी है. इसकी वजह
से ही बंगाल में
अब मार-काट मच
चुका है. आरोप है
कि टीएमसी वाले ही इस
कानून के खिलाफ लोगों
को भड़का रहे हैं.
मुर्शिदाबाद में हिंसा, आगजनी
और पत्थरबाजी ने यह साबित
कर दिया है कि
बगैर सियासी घी के यह
हिंसा नहीं हो सकती
थी. मुर्शिदाबाद हिंसा का टूलकिट भी
सामने आया है, जिसमें
टेलीग्राम, व्हाट्सऐप और सिग्नल ऐप
जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
से टूलकिट जारी किया जा
रहा है. कहां-कैसे
प्रदर्शन करना है, सब
प्लानिंग हो रही है.
खुफिया एजेंसियों की मानें तो
बंगाल में वक्फ कानून
के विरोध में फैली हिंसा
का पैटर्न साल 2019 में सीए के
खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शनों
की तरह है. मुर्शिदाबाद
में हिंसा फैलाने के लिए उसी
टूलकिट का इस्तेमाल किया
जा रहा है, जिसका
प्रयोग सीएए के खिलाफ
हुए विरोध-प्रदर्शनों में किया गया
था. आरोप यह भी
है ममता सरकार के
लोग ही दंगा
करने वालों को उकसा रहे
है। वह नहीं चाहती
कि जिन लोगों ने
वक्त की आड़ में
जमीनों को कब्जा किया
है, वह उजागर हो।
इसीलिए साजिश के तहत दंगा
करवाया जा रहा है।
ये वहीं लोग है,
जो कभी दलित-मुस्लिम
समीकरण तैयार करवाते हैं तो कभी
मुस्लिम-ओबीसी समीकरण को फंडिंग करवाते
हैं। इसी की आड़
में अभिजात्य मुसलमान विदेशों से हवाला के
जरिए फंडिंग लेकर देश में
पाकिस्तान-बांग्लादेश के ही नहीं
बल्कि अरब देशों के
हमदर्द पैदा करते हैं।
जबकि हकीकत तो
यह है कि नये
वक्फ कानून से गरीब मुसलमानों
को फायदा होगा, वक्फ की लाखों
हेक्टेयर जमीन और बेशकीमती
प्रॉपर्टी से मुस्लिम महिलाओं,
बेवाओं, नौजवानों और पसमंदा मुसलमानों
का भला होगा। मतलब
साफ है अब वक्फ
बोर्ड की मनमानी नहीं
चलेगी, वक्फ बोर्ड कुछ
कट्टरपंथी मौलानाओं की जागीर नहीं
बनेगा। कांग्रेस की तुष्टिकरण की
नीति से मुसलमानों की
हुए नुकसान की भरपाई होगी।
वक्फ की आड़ में
कब्जा करने वाले लैंड
माफियाओं का बैंड बजेगा।
कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों के झांसे में
आकर पंचर बनाते रहने
वाले गरीब मुसमानों का
भला होगा। लेकिन यह सब तभी
संभव हो पायेगा जब
तुष्टिकरण की राजनीति करने
वालों को उन दलों
को सबक सिखाना होगा,
जो उन्हेकं वोट बैंक के
रुप में उनका इस्तेमाल
करते है। उन्हें समझना
होगा आखिर क्या वजह
है वो अपनी मेहनत
के दम पर डॉक्टर,
इंजीनियर, अफसर, वैज्ञानिक क्यों नहीं सके। उन्हें
देखना होगा कि आखिर
वजहों से गरीब पिछड़े
मुसलमानों की तादाद ज्यादा
है। मजहब को तरजीह
देकर उन्हें क्यों पढ़ाई लिखाई में
पीछे रखा गया। उन्हें
जानना होगा कि जब
राशन, मकान, बिजली, इलाज जैसी सुविधाओं
में भेदभाव नहीं हो रहा
है कैसे मोदी सरकार
मुसलमान विरोधी हो सकती है।
बंगाल के मुसलमान जिस
दिन समझ जायेगा ममता
के लिए वो 30 प्रतिशत
मुस्लिम एक बड़ा वोट
बैंक के सिवाय कुछ
नहीं है, उसी दिन
से उनका भला होने
लगेगा।
दरअसल, नए वक्फ संशोधन
कानून अनुसूचित जनजाति के लोगों की
जमीन को वक्फ की
संपत्ति घोषित करने पर रोक
लगाती है. आदिवासी संगठन
इसे अपने समुदाय के
हितों की रक्षा के
लिए एक जरूरी प्रावधान
मान रहे हैं. उनका
कहना है कि संविधान
निर्माताओं ने आदिवासियों की
जमीनों को लेकर विशेष
रूप से चिंतित रहे.
इसका परिणाम है तमाम राज्यों
के ऐसे कानून जो
अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों
की जमीनों का ट्रांसफर गैर-आदिवासी को करने पर
प्रतिबंध लगाते हैं. वक्फ कानून,
1995 में वक्फ बोर्ड को
अनियंत्रित शक्ति दे दी गई
थी. ऐसे तमाम उदाहरण
हैं, जहां वक्फ बोर्ड
ने आदिवासियों की जमीन को
वक्फ बताकर उस पर कब्जा
कर लिया. संसद से बना
नया वक्फ संशोधन कानून
आदिवासी समाज के हितों
के प्रति केंद्र सरकार की वचनबद्धता को
दिखाता है. लंबे समय
से ऐसे कानून की
जरूरत महसूस की जा रही
थी. तो दुसरी तरफ
नए वक्फ कानून के
विरोध में कांग्रेस, आरजेडी,
सपा, टीएमसी, डीएमके, लेफ्ट जैसे राजनीतिक दलों
के नेताओं के अलावा ऑल
इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत
उलेमा-ए-हिंद के
अध्यक्ष अरशद मदनी समेत
कई संगठनों और लोगों ने
याचिकाएं दाखिल की हैं. उन्होंने
नए कानून को मुस्लिमों से
भेदभाव करने वाला बताया
है. इस तरह की
20 से ज़्यादा याचिकाएं दाखिल हुई हैं.
बता दें, वक्फ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है “रोक देना” या “समर्पित कर देना”। इस्लाम में वक्फ का मतलब किसी संपत्ति को धार्मिक या परोपकारी उद्देश्य के लिए स्थायी रूप से दान देना, ताकि उसका लाभ आम गरीब जनता या धार्मिक संस्थाओं को मिलता रहे। खास यह है कि एक बार संपत्ति वक्फ हो गई तो उसे न बेचा जा सकता है, न विरासत में दिया जा सकता है। वक्फ का उद्देश्य किसी धार्मिक, शैक्षिक, या सामाजिक कार्य को समर्थन देना होता है। वक्फ संपत्ति की देखरेख और प्रबंधन के लिए एक व्यक्ति को मुतवल्ली नियुक्त किया जाता है। वक्फ एक कानूनी संस्था होती है जिसे किसी कोर्ट या कानून के अंतर्गत मान्यता प्राप्त होती है।
भारत में वक्फ की शुरुआत मुगल काल (1526 से 1857) से है। मुगलों के शासनकाल में कई अमीर, नवाबों और राजाओं ने मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों व सरायों आदि के निर्माण हेतु जमीनें वक्फ की थीं। ये संपत्तियां आमतौर पर धार्मिक या परोपकारी गतिविधियों के लिए होती थीं। ब्रिटिश काल (1858 से 1947) तक वक्फ संपत्तियों को लेकर कई कानूनी विवाद उत्पन्न हुए। इन्हें स्पष्ट करने के लिए 1913 में एक्ट बनाया गया, जिससे वक्फ को कानूनी मान्यता मिली। राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना इसी के तहत की गई। 1995 इस कानून ने वक्फ बोर्डों को कांग्रेस द्वारा वोटबैंक खातिर अधिक शक्तियां दे दी गई थीं। 2013 में वक्फ संपत्तियों को अतिक्रमण से बचाने के लिए कड़े नियम बनाए गए। वक्फ संपत्ति के विवाद निपटाने के लिए वक्फ ट्रिब्यूनल बनाए गए। आंकड़ो के मुताबिक कुल 5 लाख से अधिक वक्फ संपत्तियां है, जिसका दायरा कुल क्षेत्रफल 6 लाख एकड़ से अधिक है। खास यह है कि सबसे अधिक वक्फ संपत्ति वाला राज्य उत्तर प्रदेश है।
सरकारी दावों की मानें तो रेल और रक्षा के बाद वक्फ के पास देश में सर्वाधिक संपत्ति है। आरोप है कि इसमें अधिकांश जमीने जबरन हड़पी गयी है। उसी कड़ी में इस एक्ट में परिवर्तन किया गया है। हालांकि धार्मिक संस्थाओं में समय-समय पर व्यवस्थाओं में परिवर्तन होता रहता है। देखा जाएं तो बहुत सारी धार्मिक संस्थाओं में कोर्ट के हस्तक्षेप से काफी सुधार हुए हैं और होते रहते हैं। सबरीमाला से लेकर अन्य तमाम व्यवस्थाओं में भी बहुत सारे परिवर्तन हुए हैं। निश्चित रूप से इन परिवर्तनों को राजनीतिज्ञ अपने चश्मे से देखते हैं और समाज में उससे संबंधित लोगों का अपना नजरिया है।
परंतु राजनीतिक चुनौतियों के बीच हमें देश के आम नागरिक के रूप में इसे लेना चाहिए। निश्चित रूप से राजनीतिक दलों, न्यायालयों और एक जिम्मेदार नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह इस संशोधन बिल को किसी समुदाय या राजनीतिक दल की हार-जीत के साथ जोड़कर न देखें। वक्फ की इतनी बड़ी संपत्ति विशेष करके, जिसमें उनके मालिक, जिन्हें मुतवल्ली कहा जाता है, उनके द्वारा समय-समय पर भ्रष्टाचार के बहुत सारे मामले सामने आते रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी दुर्दशा उन तलाकशुदा, विधवा महिलाओं की रही, जिन्हें वसीयत के आधार पर वंचित करके रखा गया, जबकि वही वास्तव में उसकी उत्तराधिकारी होतीं। लेकिन महिलाओं को अधिकार न देने के कारण निश्चित रूप से जो लैंगिक आधार पर समता-समानता की बात है, वह पुराने वक्फ कानून में नहीं थी।यहां सरकार की
तरफ से स्पष्ट कहा
गया है कि इसका
कदापि गैर इस्लामिक प्रयोग
नहीं होगा। नए वक्फ बिल
में कुछ ऐसी चीज
हैं जिनका आज के दौर
में होना बहुत आवश्यक
है जैसे टेक्नोलॉजी को
जोडऩा, ट्रिब्यूनल को अधिकार देना,
ट्रिब्यूनल से संतुष्टि न
होने पर शीर्ष कोर्ट
जाने का विकल्प, तलाकशुदा
महिलाओं-विधवाओं के अधिकारों की
सुरक्षा करना प्रमुख है।
जहां तक मुर्शीदाबाद के
दंगे का सवाल है
तो वहां मुस्लिमों की
आबादी अधिक है. कुल
आबादी के सापेक्ष 66.3 फीसदी
मुस्लिम हैं. जबकि यूपी,
बिहार और महाराष्ट्र में
भी मुस्लिम 18 से 22 फीसदी हैं. फिर यहां
के मुसलमान इतने बेफिक्र क्यों
हैं? क्या इन राज्यों
में मुसलमान नहीं रहते? दरअसल,
सारा खेल सियासी है.
2011 की जनगणना की मानें तो
भारत में सबसे अधिक
मुस्लिम आबादी वाले पांच राज्य
हैं- यूपी, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और असम. उत्तर
प्रदेश में 3.84 करोड़ मुस्लिम यानी
19.26 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 2.46 करोड़ मुस्लिम यानी
27.01 फीसदी, बिहार में 1.75 करोड़ मुस्लिम यानी 16.87 फीसदी महाराष्ट्र
में 1.29 करोड़ मुस्लिम यानी 11.54 फीसदी, असम में 1.06 करोड़
मुस्लिम यानी 34.22 फीसदी मुस्लिम है। और इन्हीं
मुस्लिम वोटों को अपने पाले
में लाने की कवायद
सियासी दलों द्वारा चला
जा रहा है।
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