देवर्षि नारद जयंती पर सम्मानित किए गए पत्रकार
“राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में मीडिया को संयमित और राष्ट्रहितकारी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए : हितेश शंकर
नारद जी
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: सुभाष
जी
सुरेश गांधी
वाराणसी। देवर्षि नारद जयंती के अवसर पर विश्व संवाद केंद्र काशी एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ, बीएचयू के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को सामाजिक विज्ञान संकाय स्थित समता भवन में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा में मीडिया की भूमिका’ विषयक संगोष्ठी एवं पत्रकार सम्मान समारोह का आयोजन हुआ।
इस मौके पर मुख्य अतिथि हितेश शंकर (प्रधान संपादक, पांचजन्य), विशिष्ट अतिथि सुभाष जी (क्षेत्र प्रचार प्रमुख, आर.एस.एस.) व डॉ. हेमंत गुप्ता (कार्यवाहक अध्यक्ष, विश्व संवाद केंद्र काशी) द्वारा पत्रकारिता में विशिष्ट योगदान हेतु सात पत्रकारों को सम्मानित किया गया, जिनमें डॉ. अत्रि भारद्वाज (अध्यक्ष, काशी पत्रकार संघ), सुरेश गांधी (स्वतंत्र पत्रकार), देवेश सिंह (राष्ट्रीय सहारा), डॉ. अमलेन्दु त्रिपाठी (दैनिक जागरण, प्रयागराज), रोहित सोनकर (फोटो पत्रकार, अमर उजाला), कविता उपाध्याय (लाइव वीएनएस) और गोपाल मिश्र (ईटीवी भारत) शामिल है। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता, देवर्षि नारद, पं. मदन मोहन मालवीय एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय के चित्रों पर पुष्पांजलि व दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। छात्राओं ने विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत किया। इसके बाद पत्रकारों, संघ सदस्यों एवं समाजसेवियों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि हितेश शंकर ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय सेना की स्पष्टता, सटीकता और सजगता प्रेरणादायी है। उन्होंने मीडिया को चेताया कि किसी अपराधी के प्रति अनावश्यक सहानुभूति उत्पन्न करने वाली रिपोर्टिंग से बचना चाहिए।उन्होंने कहा कि युद्ध जैसी संवेदनशील परिस्थितियों में मीडिया की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में मीडिया को अति-संवेदनशील, संयमित और राष्ट्रहितकारी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। गलत या अधूरी सूचनाएं दुश्मन के दुष्प्रचार को बल दे सकती हैं।“
उन्होंने कहा कि भारत के साइबर योद्धाओं ने युद्धकाल में जिस सूझबूझ से काम किया, वह सराहनीय है। मीडिया को तथ्यों की पुष्टि कर ही धारणा बनानी चाहिए। उन्होंने कहा कि नारद मुनि जब पत्रकार थे तो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं बल्कि मौखिक मीडिया था। और मौखिक पब्लिसिटी की अपनी महत्ता है। उन्होंने कहा कि इस समय देश में हो रही खोजों पर पत्रकारिता कम हो गई है। वर्तमान में केंद्र सरकार शोधों को बढ़ावा दे रही है और आर्थिक प्रोत्साहन भी दे रही है। विशिष्ट अतिथि सुभाष जी (क्षेत्र प्रचार प्रमुख, आर.एस.एस.) ने “शील ही संदेश है“ के भाव को केंद्र में रखते हुए कहा, “देवर्षि नारद जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि पत्रकारिता केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि चरित्र और विश्वास का दायित्व है। उनकी वाणी और व्यवहार स्वयं समाज के लिए प्रमाण थे।“ उन्होंने रामचरितमानस की चौपाई “नारद वचन मृषा नहीं होई” का उदाहरण देते हुए कहा कि नारद जी के वचन सदैव सत्य, सार्थक और लोकमंगलकारी होते थे।उन्होंने कहा कि भारतीय पत्रकारिता का मूल स्वभाव राष्ट्ररक्षा और समाज कल्याण रहा है। डॉ ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि नारद भक्ति, ज्ञान, गीत, कविता, संवाद, के साथ साथ लोकमंगल के पर्याय हैं। वे विश्व के प्रथम पत्रकार हैं। नारद के चरित्र में लोकमंगल प्रेम, न्याय और सद्भाव के रूप में दिखाई देता है। तीनों लोकों में लोग उनकी प्रतीक्षा करते थे। ऐसी ही पत्रकारिता लोकमंगल के लिए आज हमें चाहिए। राष्ट्र को सुदृृढ़ बनाने के लिए संवाद किया जाना चाहिए। महाभारत, रामायण काल के प्रसंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने वर्तमान पत्रकारिता के परिदृश्य पर विस्तार से चर्चा की. आपरेशन सिंदूर के दौरान कई ऐसे समाचार प्रसारित किए गए, जिनसे नुकसान हो सकता था। ऐसे संवादों को विस्तार देने से हमें बचना चाहिए। वर्तमान समय संचार और संवाद का है। गहन विचारों के बाद ही संवादों को प्रसारित किया जाना चाहिए।
उपस्थित
गणमान्यजनों में रामाशीष जी
(प्रज्ञा प्रवाह), डॉ. वीरेंद्र जायसवाल
(क्षेत्र कार्यवाह, आरएसएस), रमेश जी (प्रांत
प्रचारक), अजय जी (पर्यावरण
संयोजक), नागेंद्र जी (जागरण पत्रिका)
एवं प्रो. तेज प्रताप सिंह
सहित बड़ी संख्या में
पत्रकार, छात्र एवं नागरिक उपस्थित
रहे। अंत में कार्यक्रम
का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
डॉ. कुमकुम पाठक
ने कहा कि नारद जी
की पत्रकारिता पर देव-दानव
एवं मानव सभी को
इतना विश्वास था कि रनिवास
तक उनके आने-जाने
पर कोई रोक नहीं
थी। उन्होंने कहा कि ‘गंगा-जमुनी तहजीब’भारत की परंपरा
नहीं है, क्योंकि यमुना
भी गंगा में मिल
जाती है और अंत
में केवल गंगा ही
सागर मेमिलती है। अत: भारत
की संस्कृति गंगा है। पत्रकारों
के उत्तम गुणों पर उन्होंने कहा
कि जनमानस में सही सूचना
पहुंचाना तथा हर सूचना
की प्रामाणिकता तय करना उत्तम
संवाददाता का कार्य है।
पत्रकारिता देशहित में होनी चाहिए और पत्रकारों को लोकनीति के पक्ष में लिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम सभी को बोलने का समान संवैधानिक अधिकार है लेकिन हम वह न बोलें जिससे देश की अक्षुण्णता भंग हो। मीडिया सहित समाज के सभी क्षेत्रों में स्व (भारतीयता) के भाव को जाग्रत करना होगा।
मीडिया को सनसनी के लिए झूठ फैलाने की बजाय सकारात्मक बातों को समाज के सामने लाना चाहिए। पत्रकार भी एक सामाजिक कार्यकर्ता होता है, ऐसे में उसके प्रोफेशन में देशहित व समाजहित भी होना चाहिए। समाज में विवाद पैदा करने वाले विषयों के बचना चाहिए, लेकिन तुष्टिकरण के मुद्दे जो पर्दे के पीछे दबाए जाते हैं उनके बारे में भी समाज को सच्चाई पता चलनी चाहिए। उन्होंने कहा प्रजा जागरूक हो और नई पीढ़ी को नेतृत्व के लिए आगे बढ़ना चाहिए। उस वक्त पूरे समाज को सतत रूप से जागरूक करने का काम नारदजी ने किया था, ऐसे में जीवन के हर क्षेत्र में लीडरशीप मिलनी चाहिए। समाज को दिशा देने में मीडिया की सकारात्मक भूमिका होनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्रााजी ने नारद जी से सृष्टि के कामों में हिस्सा लेने और विवाह करने के लिए कहा, लेकिन नारद जी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया। तब क्रोध में ब्रह्रााजी ने देवर्षि नारद को आजीवन अविवाहित रहने का श्राप दे डाला। मान्याताओं के अनुसार देवर्षि नारद सृष्टि पहले ऐसे संदेश वाहक यानी पत्रकार थे जो एक लोक से दूसरे लोक की परिक्रमा करते हुए सूचनाओं का आदान-प्रदान किया करते थे। वह हमेशा तीनों लोकों में इधर-उधर भटकते ही रहते थे। उनकी इस आदत के पीछे भी कथा है।
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