Monday, 12 May 2025

नारद जयंती : पत्रकारिता के आदर्शों की पुनर्स्थापना का पर्व

नारद जयंती : पत्रकारिता के आदर्शों की पुनर्स्थापना का पर्व 

हर वर्ष मनाई जाने वाली नारद जयंती केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि पत्रकारिता जगत के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है। देवर्षि नारद को भारतीय परंपरा में प्रथम संवाददाता के रूप में जाना जाता है। वे ज्ञान, सूचना और संवाद के वाहक थे, जो तीनों लोकों में भ्रमण कर सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। नारद मुनि की विशेषता थी कि वे कभी भी अपने संवादों में पक्षपात नहीं करते थे। वे जो देखते, वही कहते और समाज के कल्याण के उद्देश्य से संवाद करते। उनका उद्देश्य कभी अफवाह फैलाना नहीं था, बल्कि समाज को जागरूक करना, सोई हुई चेतना को जगाना और विचारों में गति पैदा करना था. आज जब पत्रकारिता कई बार व्यावसायिकता, टीआरपी की दौड़ और राजनीतिक दबावों से जूझ रही है, तब नारद मुनि की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा अत्यंत प्रासंगिक हो जाती है। पत्रकारों को चाहिए कि वे देवर्षि नारद की तरह निर्भीक होकर संवाद करें, जहां सत्य सर्वोपरि हो 

सुरेश गांधी

हाथों में वीणा लिए जब कोई नारायण-नारायण के शब्द निकालता है तो तुरंत ही देवर्षि नारद की छवि लोगों के मन में उभर आती है. वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए एक लोक के समाचार दूसरे लोक में पहुंचाते थे, इसीलिए नारद जी को आदि पत्रकार भी कहा जाता है. प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा के दिन 14 मई को उनकी जयंती मनाई जायेगी। शास्त्रों की मानें तो देवर्षि नारद जी को ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है। वह जगत के पालनहार भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उनको तीनों लोकों में वायु मार्ग के द्वारा आने जाने का वरदान मिला हुआ था। इसलिए वह विष्णु जी की महिमा का बखान तीन लोकों में किया करते थे। इसी कारण उन्हें तीनों लोकों को खबर रहती थी। यही वजह है कि उन्हें सृष्टि का पहला पत्रकार भी माना जाता है। उन्होंने कठिन तपस्या के द्वारा ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया था। 

वे केवल देवताओं और असुरों के बीच संवाद स्थापित करते थे, बल्कि तीनों लोकों में घूमकर सूचना के आदान-प्रदान का कार्य करते थे। इसीलिए उन्हें ब्रह्मांड का संदेशवाहक भी कहा जाता है. उनका उद्देश्य केवल समाचार देना नहीं था, बल्कि सत्य को उजागर कर समाज में संतुलन और चेतना बनाए रखना था। नारद जयंती केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि पत्रकारिता के धर्म की स्मृति है। अगर पत्रकार नारद मुनि के आदर्शों को अपनाएं, तो वे समाज को केवल सूचित करेंगे, बल्कि जागृत और सशक्त भी बनाएंगे। कहते है इस दिन आप अगर दान-पुण्य करते हैं तो आपको इसका विशेष लाभ आपको प्राप्त होगा. माना जाता है इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना फलदायी होता है. साथ ही इस दिन जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा भी करना चाहिए, इसे इससे जीवन में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है. मान्यता है कि नारद जयंती के दिन देवर्षि नारद जी आराधना करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है और जीवन सदैव सुखमय रहता है। मान्यता है कि नारद जयंती पर भगवान नारद की पूजा करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है.

राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं चेतना प्रवाहके प्रबंध संपादक एवंप्रांत जागरण पत्रिका, प्रमुखनागेन्द्र द्विवेदी ने नारद जयंजी की पूर्व संध्या पर सीनियर पत्रकार सुरेश गांधी से बातचीत के दौरान वर्तमान पत्रकारिता के परिप्रेक्ष्य में कहा कि पत्रकार का काम केवल समाचार देना नहीं, बल्कि लोकमत का निर्माण भी करना है। सत्ता से सवाल पूछना और जनता की समस्याओं को उजागर करना पत्रकारों की नैतिक जिम्मेदारी है। जब समाज में अज्ञान, अराजकता और अन्याय फैलता है, तब पत्रकार की कलम मशाल बनकर सच्चाई का रास्ता दिखाती है। 
नारद
जयंती हमें यह अवसर देती है कि हम पत्रकारिता के मूल मूल्यों पर विचार करें - सत्य, निष्पक्षता, संवेदनशीलता और सामाजिक उत्तरदायित्व पर गहन मंत्रणा करें। इस दिन पत्रकारों को केवल अपने कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए, बल्कि यह भी संकल्प लेना चाहिए कि वे सूचना को एक सशक्त औजार के रूप में समाज के कल्याण के लिए प्रयोग करेंगे। उन्होंने कहा कि आज जब सूचना का संसार चौबीसों घंटे सक्रिय है, तब पत्रकारों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।

आज के संदर्भ में यदि हम पत्रकारों की भूमिका की बात करें, तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण हो गई है। पत्रकार केवल समाचार देने वाला नहीं, बल्कि समाज का दिशा निर्देशक, जनता की आवाज, और लोकतंत्र का प्रहरी होता है। पत्रकार का कार्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि जागरूकता फैलाना और सत्य की खोज करना भी है। सही अर्थों में पत्रकार ही वह सेतु है, जो जनता और सत्ता के बीच संवाद स्थापित करता है। परंतु साथ ही यह भी स्वीकार करना होगा कि आज पत्रकारिता कई चुनौतियों से घिरी हुई है. फेक न्यूज़, पेड न्यूज़, टीआरपी की होड़, और कई बार सच्चाई को दबाने का दबाव। ऐसे में देवर्षि नारद का आदर्श हमें यह सिखाता है कि संवाद का आधार सत्य, निष्पक्षता और लोकहित होना चाहिए। 

नागेन्द्रजी ने कहा, आज नारद जयंती के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम पत्रकारिता को केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि धर्म, सेवा और सत्य के प्रचार का माध्यम बनाएंगे। हम बिना भय के, बिना पक्षपात के, समाज को सच्चाई से अवगत कराते रहेंगे। पत्रकारिता का धर्म वही है, जो नारद मुनि का था. निडर संवाद, सत्य का संचार और समाज का जागरण। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी देवर्षि नारद को। उनकी संवाद शैली में तथ्य, स्पष्टता, और उद्देश्यपरकता प्रमुख थी। नारद जयंती पत्रकारों को रचनात्मक आलोचना और समाज के कल्याण हेतु संवाद करने की प्रेरणा मिलती है। नारद जयंती पर इन चुनौतियों पर मंथन कर पत्रकारिता को सत्य, सेवा और समाज के मूल्यों से जोड़ने की आवश्यकता है। पत्रकारों को चाहिए कि वे बिना किसी भय या पक्षपात के, निर्भीक और सत्य पर आधारित पत्रकारिता करें। नागेन्द्रजी ने कहा, देवर्षि नारद जी आद्य पत्रकार थे, नारायण- नारायण का जाप करते थे, लेकिन उन्होंने कभी अपशब्द का इस्तेमाल नहीं किया,. देवर्षि नारद जी वैश्विक पत्रकार थे। नारायण नारायण उनकी टेग लाइन थी। 

हमे संचार का निर्वहन और वाणी का संयम नारद जी ने सीखना चाहिए। नारद भक्ति सूत्र से सीखने की जरूरत है। अफसोस है कि आज के पत्रकार खबरों में खुद पार्टी बन जाते हैं। इससे पत्रकारिता दूषित हो गई है। जबकि नारद ने कभी सत्य से समझौता नहीं किया। पत्रकारों की ताकत पाठकों का भरोसा है।

नागेन्द्रजी ने कहा, देश-काल-परिस्थिति और समाज के प्रति सकारात्मक भाव रखते हुए सत्यनिष्ठ उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता आज कह की जरूरत है। देवर्षि नारद मूलतः त्रिलोक के पत्रकार थे। वे लोकहित में कार्य करते थे। मौजूदा दौर की अनेक चुनौतियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दृढ़ संकल्प शक्ति से इस पेशे में हम राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर जुटे रहें, यही आज की आवश्यकता है। तटस्थ होकर सत्य के साथ खड़े रहना ही पत्रकारिता का मूल मंत्र है। पत्रकार बनना आसान है पर बने रहना मुश्किल हैं। 

एक उदाहरण देकर उन्होंने कहाकि, ‘जूते के अंदर का कंकड़ही पत्रकारों की चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से डॉक्टर व्यक्ति के जीवन की रक्षा करता है, उसी तरह से पत्रकार समाज को नया रूप देता है। उन्होंने पत्रकारों से देश को सही दिशा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पत्रकार समाज की अनेक समस्याओं के निराकरण के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपने काम को करते हुए पत्रकारों के सामने कई कठिन परिस्थितियां आती हैं, लेकिन कलम के सिपाही अपने कर्तव्य पथ से कभी विमुख नहीं होते। 

विश्व के प्रथम पत्रकार नारद जी रहे। वह लोक मंगल की कामना को लेकर चले थे। आज के दौर में भी पत्रकारों को लोक मंगल की कामना को लेकर चलना चाहिए। समाज मे जब कोई चुनौती होती है तो सबसे पहले निगाह मीडिया की तरफ जाती है। सनातन संस्कृति के उतार चढ़ाव पर उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति पर कई हमले हुए है। फिर भी हमारी संस्कृति अनूठी है। बहुत विराट है। ये सिर्फ मनुष्यों की नही सभी प्राणियों की है। ये भारत की नही, पूरे विश्व की संस्कृति है। हमारी भारतीय संस्कृति का आधार वसुदेव कुटुम्बकम ही है।

शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त 04 बजकर 04 मिनट एएम से 04 बजकर 46 मिनट एएम तक रहेगा

प्रातः सन्ध्या 04 बजकर 25 एएम से 05 बजकर 28 मिनट एएम तक रहेगा

अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 46 मिनट एएम से 12 बजकर 40 मिनट पीएम तक रहेगा

विजय मुहूर्त  02 बजकर 29 मिनट पीएम से 03 बजकर 23 मिनट पीएम तक रहेगा

गोधूलि मुहूर्त  06 बजकर 58 मिनट पीएम से 07 बजकर 19 मिनट पीएम तक रहेगा

सायाह्न सन्ध्या 06 बजकर 59 मिनट पीएम से 08 बजकर 02 मिनट पीएम तक रहेगा

अमृत काल  12 बजकर 14 एएम, मई 14 से 02 बजकर 01 मिनट  एएम 14 मई तक रहेगा

निशिता मुहूर्त 11 बजकर 52 मिनट पीएम से 12 बजकर 34 मिनट एएम 14 मई तक रहेगा

पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें फिर साफ कपड़े धारण करें. इसके बाद नारद मुनि का ध्यान करके आप व्रत का संकल्प लीजिए. फिर आप घर के मंदिर की सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें. अब आप अपने इष्ट देवी-देवता का ध्यान करिए. अब आप पूजा चौकी पर कपड़ा बिछाकर उनकी मूर्ति स्थापित कर दीजिए. इसके बाद धूप-बत्ती जलाकर विधि-विधान से पूजा करिए. फिर नारद जी को फल और मिठाई का भोग लगाइए. अंत में परिवार की सुख-शांति की कामना करें और प्रसाद सभी में वितरित कर दीजिए. 

मिला था ये श्राप

पूरे संसार में दुखियों की चिंता कर उन्हें भक्तिमार्ग बताने वाले आदि पत्रकार नारद जी प्रजापति ब्रह्मा जी की गोद से उत्पन्न होने के कारण यूं तो उनके मानस पुत्र कहलाते हैं किंतु उनके जन्म की कथा बहुत ही रोचक है. ब्रह्मा जी ने नारद जी को सृष्टि विस्तार की आज्ञा दी तो नारद जी ने आज्ञा मानने से इनकार करते हुए साफ कहा, ’अमृत से भी अधिक प्रिय श्री कृष्ण की सेवा छोड़ कर कौन मूर्ख विषय रूपी विष का पान करेगा’. बस इतना सुनते ही ब्रह्मा जी रोष से आग बबूला हो गए और नारद जी को श्राप दे दिया. उन्होंने श्राप दिया, ’तुम्हारे ज्ञान का लोप हो जाएगा.’ इसी के प्रभाव से नारद जी पहले उपबर्हण नाम के गंधर्व हुए और चित्ररथ गंधर्व की 50 पुत्रियों ने उन्हें पति के रूप में वर्णन किया. रंभा अप्सरा का नृत्य देख काममोहित होने पर ब्रह्मा जी ने उन्हें शूद्र योनि में जाने का श्राप दे दिया. उपबर्हण ने तुरंत योग क्रिया से शरीर को छोड़ दिया और बाद में द्रुमिल गोप की पत्नी कलावती के पुत्र के रूप में जन्म लेकर दासी पुत्र बने. दासी पुत्र के रूप में चातुर्मास में साधुओं की सेवा करने पर संतों ने उन्हें भगवान के रूप ध्यान और नाम जप का उपदेश दिया. इसी बीच उनकी मां की मृत्यु हो गई तो वे जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करने लगे. तभी प्रभु उनके हृदय में प्रकट हुए किंतु वह झांकी बिजली की गति से गायब हो गई. दर्शन के लिए व्याकुल होने पर आकाशवाणी हुई कि अब तुम मेरे दर्शन अगले जन्म में ही कर सकोगे. इसके बाद आयु पूरी होने पर उस दासी पुत्र की मृत्यु हो गई और फिर ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में जन्म हुआ, तब से वे वीणा बजा कर प्रभु का गुणगान कर रहे हैं, वे जब सच्चे मन से प्रभु को पुकारते हैं तो चित्त में तुरंत ही भगवान प्रकट हो जाते हैं.

पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक पुराने समय में रत्नाकर नाम का डाकू था। रत्नाकर लूट में मिले धन से परिवार के लोगों की जरूरतें पूरी करता था। एक दिन रत्नाकर नारद मुनि से मिला। नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा कि तुम ये लूटमार करते हो तो जब इसका दंड मिलने का समय आएगा तो क्या तुम्हारे घर के लोग भी उस दंड में हिस्सेदार रहेंगे या नहीं? रत्नाकर ने कहा कि मैं मेरे घर के लिए ही लूटमार करता हूं तो वे लोग भी मेरे दंड में भागीदार रहेंगे। नारद जी ने कहा कि तुम्हें एक बार अपने घर के लोगों से ये बात पूछ लेनी चाहिए। 
रत्नाकर
नारद मुनि की बात मानकर अपने घर पहुंचा और सभी से पूछा कि क्या आप लोग मेरे दंड में मेरे साथ भागीदार बनेंगे? घर के सभी लोगों ने रत्नाकर डाकू का भागीदार बनने से मना कर दिया। सभी ने कहा कि परिवार का पालन करना तुम्हारी जिम्मेदारी है, तुम हमारा ध्यान भी रखते हो, लेकिन हम तुम्हारे दंड में भागीदार नहीं बनेंगे। परिवार के लोगों की ये बातें सुनकर रत्नाकर को समझ गया कि किसी के लिए भी गलत काम नहीं करना चाहिए। इसके बाद रत्नाकर ने गलत काम करना छोड़ दिए। ब्रह्माजी के श्राप के चलते उपबहर्ण को अगले जन्म में एक शूद्र दासी ने जन्म दिया। उनका नाम नंद रखा गया। नंद को बचपन से ब्राह्मणों की सेवा में लगा दिया गया था। वे तन-मन से ब्राह्मणों की सेवा में लीन हो गए।

संगीत और भक्ति के आचार्य हैं देवर्षि नारद

नारद जी देवर्षि हैं, वे वेदान्त, योग, ज्योतिष, वैद्यक, संगीत और भक्ति के मुख्य आचार्य हैं. पृथ्वी पर भक्ति का प्रचार करने का श्रेय उन्हीं को है. भक्ति देवी तथा ज्ञान वैराग्य का कष्ट दूर करते हुए वृंदावन में उन्होंने प्रतिज्ञा की, ’हे भक्तिदेवी! कलियुग के समान दूसरा युग नहीं है, अत कलियुग में भक्ति विषयक महोत्सवों को आगे करके जन-जन तक आपकी स्थापना करूं तो मैं हरिदास कहलाऊं.’

 


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