नारद जयंती : पत्रकारिता के आदर्शों की पुनर्स्थापना का पर्व
हर वर्ष मनाई जाने वाली नारद जयंती न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि पत्रकारिता जगत के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है। देवर्षि नारद को भारतीय परंपरा में प्रथम संवाददाता के रूप में जाना जाता है। वे ज्ञान, सूचना और संवाद के वाहक थे, जो तीनों लोकों में भ्रमण कर सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। नारद मुनि की विशेषता थी कि वे कभी भी अपने संवादों में पक्षपात नहीं करते थे। वे जो देखते, वही कहते और समाज के कल्याण के उद्देश्य से संवाद करते। उनका उद्देश्य कभी अफवाह फैलाना नहीं था, बल्कि समाज को जागरूक करना, सोई हुई चेतना को जगाना और विचारों में गति पैदा करना था. आज जब पत्रकारिता कई बार व्यावसायिकता, टीआरपी की दौड़ और राजनीतिक दबावों से जूझ रही है, तब नारद मुनि की निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा अत्यंत प्रासंगिक हो जाती है। पत्रकारों को चाहिए कि वे देवर्षि नारद की तरह निर्भीक होकर संवाद करें, जहां सत्य सर्वोपरि हो
सुरेश गांधी
हाथों में वीणा लिए जब कोई नारायण-नारायण के शब्द निकालता है तो तुरंत ही देवर्षि नारद की छवि लोगों के मन में उभर आती है. वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए एक लोक के समाचार दूसरे लोक में पहुंचाते थे, इसीलिए नारद जी को आदि पत्रकार भी कहा जाता है. प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा के दिन 14 मई को उनकी जयंती मनाई जायेगी। शास्त्रों की मानें तो देवर्षि नारद जी को ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है। वह जगत के पालनहार भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उनको तीनों लोकों में वायु मार्ग के द्वारा आने जाने का वरदान मिला हुआ था। इसलिए वह विष्णु जी की महिमा का बखान तीन लोकों में किया करते थे। इसी कारण उन्हें तीनों लोकों को खबर रहती थी। यही वजह है कि उन्हें सृष्टि का पहला पत्रकार भी माना जाता है। उन्होंने कठिन तपस्या के द्वारा ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया था।
आज के संदर्भ
में यदि हम पत्रकारों
की भूमिका की बात करें,
तो यह अत्यंत महत्वपूर्ण
और चुनौतीपूर्ण हो गई है।
पत्रकार केवल समाचार देने
वाला नहीं, बल्कि समाज का दिशा
निर्देशक, जनता की आवाज,
और लोकतंत्र का प्रहरी होता
है। पत्रकार का कार्य केवल
सूचना देना नहीं, बल्कि
जागरूकता फैलाना और सत्य की
खोज करना भी है।
सही अर्थों में पत्रकार ही
वह सेतु है, जो
जनता और सत्ता के
बीच संवाद स्थापित करता है। परंतु
साथ ही यह भी
स्वीकार करना होगा कि
आज पत्रकारिता कई चुनौतियों से
घिरी हुई है. फेक
न्यूज़, पेड न्यूज़, टीआरपी
की होड़, और कई
बार सच्चाई को दबाने का
दबाव। ऐसे में देवर्षि
नारद का आदर्श हमें
यह सिखाता है कि संवाद
का आधार सत्य, निष्पक्षता
और लोकहित होना चाहिए।
नागेन्द्रजी ने कहा, आज नारद जयंती के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम पत्रकारिता को केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि धर्म, सेवा और सत्य के प्रचार का माध्यम बनाएंगे। हम बिना भय के, बिना पक्षपात के, समाज को सच्चाई से अवगत कराते रहेंगे। पत्रकारिता का धर्म वही है, जो नारद मुनि का था. निडर संवाद, सत्य का संचार और समाज का जागरण। यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी देवर्षि नारद को। उनकी संवाद शैली में तथ्य, स्पष्टता, और उद्देश्यपरकता प्रमुख थी। नारद जयंती पत्रकारों को रचनात्मक आलोचना और समाज के कल्याण हेतु संवाद करने की प्रेरणा मिलती है। नारद जयंती पर इन चुनौतियों पर मंथन कर पत्रकारिता को सत्य, सेवा और समाज के मूल्यों से जोड़ने की आवश्यकता है। पत्रकारों को चाहिए कि वे बिना किसी भय या पक्षपात के, निर्भीक और सत्य पर आधारित पत्रकारिता करें। नागेन्द्रजी ने कहा, देवर्षि नारद जी आद्य पत्रकार थे, नारायण- नारायण का जाप करते थे, लेकिन उन्होंने कभी अपशब्द का इस्तेमाल नहीं किया,. देवर्षि नारद जी वैश्विक पत्रकार थे। नारायण नारायण उनकी टेग लाइन थी।
हमे संचार का
निर्वहन और वाणी का
संयम नारद जी ने
सीखना चाहिए। नारद भक्ति सूत्र
से सीखने की जरूरत है।
अफसोस है कि आज
के पत्रकार खबरों में खुद पार्टी
बन जाते हैं। इससे
पत्रकारिता दूषित हो गई है।
जबकि नारद ने कभी
सत्य से समझौता नहीं
किया। पत्रकारों की ताकत पाठकों
का भरोसा है।
नागेन्द्रजी ने कहा, देश-काल-परिस्थिति और समाज के प्रति सकारात्मक भाव रखते हुए सत्यनिष्ठ उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता आज कह की जरूरत है। देवर्षि नारद मूलतः त्रिलोक के पत्रकार थे। वे लोकहित में कार्य करते थे। मौजूदा दौर की अनेक चुनौतियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दृढ़ संकल्प शक्ति से इस पेशे में हम राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानकर जुटे रहें, यही आज की आवश्यकता है। तटस्थ होकर सत्य के साथ खड़े रहना ही पत्रकारिता का मूल मंत्र है। पत्रकार बनना आसान है पर बने रहना मुश्किल हैं।
एक उदाहरण देकर उन्होंने कहाकि, ‘जूते के अंदर का कंकड़’ ही पत्रकारों की चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से डॉक्टर व्यक्ति के जीवन की रक्षा करता है, उसी तरह से पत्रकार समाज को नया रूप देता है। उन्होंने पत्रकारों से देश को सही दिशा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पत्रकार समाज की अनेक समस्याओं के निराकरण के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपने काम को करते हुए पत्रकारों के सामने कई कठिन परिस्थितियां आती हैं, लेकिन कलम के सिपाही अपने कर्तव्य पथ से कभी विमुख नहीं होते।
विश्व के प्रथम पत्रकार
नारद जी रहे। वह
लोक मंगल की कामना
को लेकर चले थे।
आज के दौर में
भी पत्रकारों को लोक मंगल
की कामना को लेकर चलना
चाहिए। समाज मे जब
कोई चुनौती होती है तो
सबसे पहले निगाह मीडिया
की तरफ जाती है।
सनातन संस्कृति के उतार चढ़ाव
पर उन्होंने कहा कि हमारी
संस्कृति पर कई हमले
हुए है। फिर भी
हमारी संस्कृति अनूठी है। बहुत विराट
है। ये सिर्फ मनुष्यों
की नही सभी प्राणियों
की है। ये भारत
की नही, पूरे विश्व
की संस्कृति है। हमारी भारतीय
संस्कृति का आधार वसुदेव
कुटुम्बकम ही है।
शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त 04 बजकर 04 मिनट एएम से
04 बजकर 46 मिनट एएम तक
रहेगा
प्रातः सन्ध्या 04 बजकर 25 एएम से 05 बजकर
28 मिनट एएम तक रहेगा
अभिजित मुहूर्त 11 बजकर 46 मिनट एएम से
12 बजकर 40 मिनट पीएम तक
रहेगा
विजय मुहूर्त
02 बजकर 29 मिनट पीएम से
03 बजकर 23 मिनट पीएम तक
रहेगा
गोधूलि मुहूर्त 06 बजकर
58 मिनट पीएम से 07 बजकर
19 मिनट पीएम तक रहेगा
सायाह्न सन्ध्या 06 बजकर 59 मिनट पीएम से
08 बजकर 02 मिनट पीएम तक
रहेगा
अमृत काल 12 बजकर 14 एएम, मई 14 से
02 बजकर 01 मिनट एएम
14 मई तक रहेगा
निशिता मुहूर्त 11 बजकर 52 मिनट पीएम से
12 बजकर 34 मिनट एएम 14 मई
तक रहेगा
पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान
करें फिर साफ कपड़े
धारण करें. इसके बाद नारद
मुनि का ध्यान करके
आप व्रत का संकल्प
लीजिए. फिर आप घर
के मंदिर की सफाई करें
और गंगाजल का छिड़काव करें.
अब आप अपने इष्ट
देवी-देवता का ध्यान करिए.
अब आप पूजा चौकी
पर कपड़ा बिछाकर उनकी
मूर्ति स्थापित कर दीजिए. इसके
बाद धूप-बत्ती जलाकर
विधि-विधान से पूजा करिए.
फिर नारद जी को
फल और मिठाई का
भोग लगाइए. अंत में परिवार
की सुख-शांति की
कामना करें और प्रसाद
सभी में वितरित कर
दीजिए.
मिला था ये श्राप
पौराणिक मान्यताएं
संगीत और भक्ति के आचार्य हैं देवर्षि नारद
नारद जी देवर्षि
हैं, वे वेदान्त, योग,
ज्योतिष, वैद्यक, संगीत और भक्ति के
मुख्य आचार्य हैं. पृथ्वी पर
भक्ति का प्रचार करने
का श्रेय उन्हीं को है. भक्ति
देवी तथा ज्ञान वैराग्य
का कष्ट दूर करते
हुए वृंदावन में उन्होंने प्रतिज्ञा
की, ’हे भक्तिदेवी! कलियुग
के समान दूसरा युग
नहीं है, अत कलियुग
में भक्ति विषयक महोत्सवों को आगे करके
जन-जन तक आपकी
स्थापना न करूं तो
मैं हरिदास न कहलाऊं.’
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