Wednesday, 23 July 2025

अब नारी शक्ति को रजिस्ट्री में मिलेगा हक, बढ़ेगा आत्मबल, बदलेगी सामाजिक सोच

अब नारी शक्ति को रजिस्ट्री में मिलेगा हक, बढ़ेगा आत्मबल, बदलेगी सामाजिक सोच 

जी हां, यूपी सरकार जमीन पर महिला के नाम की एक इबारत लिखने का प्रसास किया है. इस नई पहल से नारी शक्ति और भी सशक्त होगी. उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं के नाम पर ज़मीन की रजिस्ट्री पर 1 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी में छूट की जो घोषणा की है, वह केवल कर राहत नहीं बल्कि सामाजिक संरचना में बदलाव का शंखनाद है। यह नीति महिला सशक्तिकरण की दिशा में ऐसा कदम है, जो मालिकाना हक के जरिए आत्मसम्मान, आर्थिक स्वतंत्रता और पीढ़ियों तक सुरक्षित भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी। मतलब साफ है उत्तर प्रदेश सरकार की यह पहल केवल एक वित्तीय राहत है, बल्कि एक नवाचारपूर्ण नीतिगत बदलाव है, जिससे महिला सशक्तिकरण को आधारशिला मिलने वाली है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाए, तो अगले कुछ वर्षों में हम देखेंगे कि गांव की चौपाल हो या शहर की कॉलोनी, महिलाएं मालिक की हैसियत में खड़ी मिलेंगी और यही एक बदलते भारत की असली तस्वीर होगी 

सुरेश गांधी

उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं के लिए एक और बड़ी पहल करते हुए जमीन की रजिस्ट्री पर स्टांप ड्यूटी में 1 प्रतिशत की छूट देने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। यह व्यवस्था पूरे प्रदेश के ग्रामीण और शहरी दृ दोनों क्षेत्रों में तत्काल प्रभाव से लागू होगी। राज्य के स्टांप एवं न्यायालय शुल्क राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविंद्र जायसवाल ने एक विशेष भेंट में बताया कि सरकार के इस निर्णय से महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने का रास्ता खुलेगा। उन्होंने कहा कि यदि किसी महिला के नाम एक करोड़ रुपये की संपत्ति खरीदी जाती है, तो उसे ₹1 लाख की स्टांप ड्यूटी में सीधी छूट मिलेगी। यह सिर्फ राहत है, बल्कि महिला के सम्मान और हक का प्रतीक है. या यूं कहें सरकार की इस नीति से महिलाओं को अनुमानित बचत : ₹50 लाख की प्रॉपर्टी पर ₹50,000 की छूट मिलेगी, जबकि ₹1 करोड़ की प्रॉपर्टी पर ₹1 लाख की छूट मिलेगी। इस निर्णय से अब महिला के नाम संपत्ति रजिस्ट्री करवाने वाले परिवारों को सीधा आर्थिक लाभ मिलेगा।

यहां जिक्र करना जरुरी है कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएच-5) के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिलाओं के नाम पर संपत्ति रखने वालों की संख्या मात्र 14 प्रतिशत के आसपास है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा और भी कम है। ऐसे में यह नई नीति आने वाले वर्षों में कम से कम 20 से 25 प्रतिशत तक महिला स्वामित्व वाली संपत्तियों की वृद्धि का आधार बन सकती है।

कैसे मिलेगी छूट : एक नजर

विवरण   पहले      अब (महिला नाम पर)

स्टांप ड्यूटी (सामान्य)         7þ                           6þ

एक करोड़ की प्रॉपर्टी पर ड्यूटी       ₹7 लाख ₹6 लाख

कुल बचत              ₹1 लाख

यह छूट ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागू है। महिला यदि अकेली स्वामी है या सह-स्वामी के रूप में नाम दर्ज कराती है, दोनों ही स्थितियों में लाभ मिलेगा। सुमन देवी के मुताबिक रजिस्ट्री से आत्मनिर्भरता की ओर यह एक बड़ा कदम है। वह पिछले 38 वर्षों से खेतों में मजदूरी करती रही हैं। हाल ही में उनके पति ने 5 डिसमिल ज़मीन उनके नाम रजिस्टर्ड करवाई। पहले जहां परिवार में वहघरेलू स्त्रीसमझी जाती थीं, अब गांव में उनकी पहचानमालकिनके रूप में होती है। वह कहती हैं, अब जमीन मेरे नाम है, बैंक वाले खुद संपर्क करते हैं। एक महिला होने के नाते पहली बार लगा कि मेरी भी कोई पहचान है। ऐसी अनेक महिलाएं हैं जो इस निर्णय से आर्थिक निर्णयों में हिस्सेदार बनेंगी, और यह सोच ही समाज की नींव बदल देगी।

बता दें, राजस्थान, मध्यप्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में पूर्व में स्टांप ड्यूटी में आंशिक छूट दी गई थी, लेकिन उत्तर प्रदेश ने संख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से इसे सबसे बड़े स्तर पर लागू किया है। इससे हर वर्ग की महिला, विशेषकर ग्रामीण इलाकों की महिलाएं, लाभान्वित होंगी। यह अलग बात है कि इस नीति का दुरुपयोग तब हो सकता है जब पुरुष परिवारजन केवल छूट पाने के लिए महिला के नाम पर रजिस्ट्री कराएं लेकिन असली नियंत्रण उन्हीं के पास रहे। इसलिए सरकार को भू-अधिकार कानूनों, बैंक प्रक्रिया और स्थानीय स्तर की निगरानी समितियों को सशक्त बनाकर सुनिश्चित करना होगा कि महिला का स्वामित्व केवल कागज पर नहीं, व्यवहार में भी हो। महिलाओं के नाम पर रजिस्ट्री को प्रोत्साहित करना केवल सरकार की लोकप्रियता या वोट बैंक से जुड़ा फैसला नहीं है, बल्कि यह निर्णय समाज में महिला की वास्तविक भूमिका को मान्यता देने की दिशा में है। यह कदम एक संदेश है कि अब नारी केवल गृहस्थ जीवन तक सीमित नहीं, संपत्ति, शक्ति और स्वामित्व की हकदार भी है। जहां तक उत्तर प्रदेश में महिला स्वामित्व का हाल का सवाल है तो उनके अभी तक मात्र 14 फीसदी ही है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिला मालिकाना हक 10 फीसदी से भी कम है। जबकि पुरुष नाम पर संपत्ति 80 फीसदी से अधिक है।यह आंकड़े बताते हैं कि अब तक महिलाओं की हिस्सेदारी ज़मीन पर बेहद कम रही है। लेकिन इस नीति से अब तस्वीर बदलने की उम्मीद है। खास यह है कि इससे महिला रजिस्ट्री में 25-30 फीसदी तक की संभावित वृद्धि हो सकती है। ग्रामीण रजिस्ट्री में महिला नाम की हिस्सेदारी 5 साल में दोगुनी हो सकती है. स्टांप विभाग को रेवेन्यू में कमी नहीं, बल्कि वॉल्यूम ग्रोथ से संतुलन की उम्मीद है। सरकार को भरोसा है कि इस नीति से रेवेन्यू पर असर नहीं पड़ेगा क्योंकि रजिस्ट्री की संख्या बढ़ेगी। हालांकि इसकी सार्थकता तभी संभव है, जब इस सुविधा का दुरुपयोग हो, केवल छूट के लिए महिला के नाम पर कागजी रजिस्ट्री करवाई जाए।

एक नीति जब जमीन से जुड़ती है, तो वो केवल नियम नहीं रह जाती, वो बनती है बदलाव की बुनियाद। उत्तर प्रदेश में महिला के नाम पर रजिस्ट्री की यह छूट सिर्फ स्टांप ड्यूटी में राहत नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और बराबरी का नया अध्याय है। ये ज़मीन अब उसके नाम है, जिसकी मुट्ठियों में ताकत है, वो हे उत्तर प्रदेश की नारी। हक की ज़मीन अब होगीउसकेनाम होगी। इस फैसले से महिलाओं के नाम पर संपत्ति खरीद में तेज़ी आएगी। अब तक प्रदेश में महिला नाम पर संपत्ति की हिस्सेदारी 14 फीसदी से कम रही है, लेकिन इस छूट से आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा 25 फीसदी के करीब पहुँच सकता है। वाराणसी समेत पूर्वांचल के कई जिलों में रजिस्ट्री दफ्तरों में महिला लाभार्थियों की पूछताछ बढ़ गई है। रजिस्ट्रार कार्यालय के एक अधिकारी के अनुसार, पहले महिलाओं के नाम पर रजिस्ट्री के मामले कम थे, लेकिन सरकार की इस घोषणा के बाद अब महिलाएं स्वयं आकर जानकारी ले रही हैं। गौरतलब है कि राज्य सरकार पहले ही मिशन शक्ति, कन्या सुमंगला, और मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से महिला और बालिकाओं को सशक्त बनाने में लगी हुई है। अब संपत्ति अधिकार को लेकर यह नया कदम लैंगिक समानता और आर्थिक स्वतंत्रता के प्रयासों में मील का पत्थर माना जा रहा है. सरकार की इस पहल से अब महिलाओं को ज़मीन पर सिर्फ अधिकार ही नहीं, पहचान भी मिलेगी। यह छूट जहां परिवारों के आर्थिक बोझ को कम करेगी, वहीं समाज में महिलाओं की भागीदारी को और भी मजबूत बनाएगी। यह छूट, केवल एक वित्तीय प्रावधान नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से क्रांतिकारी कदम है, जो महिलाओं को संपत्ति में भागीदारी और अधिकार का सशक्त संदेश देता है। वर्षों से भारतीय समाज में संपत्ति के नाम और स्वामित्व की बात आई तो महिलाओं का नाम या तो गौण रहा या अनुपस्थित। विशेषकर ग्रामीण भारत में महिलाओं के नाम पर जमीन होना अपवाद माना जाता रहा है। लेकिन यह निर्णय अब इस मानसिकता को बदलने का आधार बन सकता है।

संपत्ति में अधिकार, सम्मान की ओर बढ़ता कदम

एक महिला जब अपने नाम पर ज़मीन रजिस्ट्री कराती है, तो वह केवल एक कागज पर हस्ताक्षर करती है, बल्कि सदियों पुराने पुरुष प्रधान स्वामित्व ढांचे को चुनौती देती है। यह निर्णय उस सोच को बढ़ावा देता है जिसमें महिला केवल परिवार कीकर्मठ देखभालकर्तानहीं, बल्कि संपत्ति की सह-स्वामिनी भी मानी जाए। 

आर्थिक सशक्तिकरण के द्वार खुलेंगे

आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो यह छूट महिलाओं के लिए एक प्रोत्साहन है कि वे संपत्ति खरीददारी में आगे आएं। जब किसी महिला के नाम ज़मीन होती है, तो बैंक से लोन लेने में आसानी होती है, उसका क्रेडिट स्कोर और वित्तीय पहचान बनती है। यह छूट गरीब और मध्यम वर्ग की महिलाओं को भी पहली बार मालिक बनने की ओर प्रेरित करेगी।

नारी सशक्तिकरण की नीतिगत दिशा

यह निर्णय योगी सरकार कीमिशन शक्तिजैसी योजनाओं के क्रम में एक और सशक्त कड़ी है। राज्य सरकार का यह दृष्टिकोण स्पष्ट है कि महिलाओं की भूमिका केवल घरेलू दायरे तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें निर्णय लेने, स्वामित्व और नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समान भागीदार बनाया जाना चाहिए।

सामाजिक बदलाव का संकेत

राज्य सरकार ने अनुमान लगाया है कि इस नीति से महिलाओं के नाम पर रजिस्ट्री की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। यह बदलाव कागजी नहीं, बल्कि समाज की बुनियाद में हलचल लाने वाला है। आज अगर बेटी के नाम पर ज़मीन होती है, तो वह केवल भविष्य के प्रति आश्वस्त होती है, बल्कि समाज में उसका स्थान भी मज़बूत होता है। 

आशंका और सावधानी

यह भी जरूरी है कि इस छूट का दुरुपयोग हो। कहीं महज छूट के नाम पर परिवार पुरुष के स्वामित्व को छिपाकर महिला के नाम कागजी रजिस्ट्री करवा लें। ऐसी स्थिति में महिला के नाम का उपयोग केवल टैक्स लाभ के लिए हो जाएगा, अधिकार के लिए नहीं। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि रजिस्ट्री के बाद महिला के नाम पर संपत्ति का वास्तविक स्वामित्व और नियंत्रण भी रहे। मतलब साफ है उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला महिला स्वामित्व और अधिकारिता के लिए एक नीतिगत मॉडल बन सकता है। यदि इसे पूरी पारदर्शिता और सामाजिक जागरूकता के साथ लागू किया जाए, तो यह केवल महिलाओं के जीवन में बदलाव लाएगा, बल्कि संपत्ति के स्वरूप में लैंगिक समानता की एक नई शुरुआत भी करेगा। ज़मीन पर महिला के नाम की रजिस्ट्री एक कागज़ से कहीं अधिक है दृ यह आत्मनिर्भरता, सम्मान और समान अधिकारों की वो नींव है, जिस पर सशक्त भारत की असली तस्वीर उकेरी जा सकती है।

महिलाओं ने कहा, यह छूट नहीं, सम्मान है

महिलाओं का कहना है कि हमारे समाज में औरत के नाम कुछ नहीं होता। सरकार ने जो फैसला लिया है, उससे अब मैं अपने बच्चों के लिए कुछ सोच सकती हूं। अब हर महिला को अपनी पहचान मिलनी चाहिए। हमने तो सपना भी नहीं देखा था कि हमारे नाम जमीन होगी। पहले रजिस्ट्री ऑफिस में महिलाएं बहुत कम दिखती थीं। अब जो छूट मिलेगी, उससे कई औरतें आगे आएंगी। मैं अपनी मेहनत से थोड़ा-थोड़ा पैसा जोड़ रही हूं। अब सरकार की ये स्कीम मेरी हिम्मत बढ़ा रही है। बैंक लोन लेने में भी आसानी होगी अगर जमीन मेरे नाम हो। इस फैसले से सिर्फ आज की महिलाओं को नहीं, आने वाली बेटियों को हक़दारी का अधिकार मिलेगा। जमीन पर नाम होना औरत की सबसे बड़ी सुरक्षा है। हमारी पंचायत में अब कई लोग पूछ रहे हैं कि रजिस्ट्री कैसे कराएं। पहले सिर्फ पुरूषों के नाम होती थी, अब महिलाएं भी निर्णय में आएंगी। ये सिर्फ छूट नहीं, बराबरी की शुरुआत है। यह सराहनीय निर्णय है, लेकिन सरकार को देखना होगा कि पुरुष सिर्फ टैक्स बचत के लिए महिला के नाम कागजी रजिस्ट्री कराएं। ज़मीन तो महिला की हो, लेकिन हक़ भी उसका ही हो, ये ज़रूरी है। 

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