Wednesday, 16 July 2025

राहत शिविरों में उम्मीद की लौ, प्रशासन की तत्परता से राहत की सांस

राहत शिविरों में उम्मीद की लौ, प्रशासन की तत्परता से राहत की सांस  

डीएम का औचक निरीक्षण : शिविरों में पहुंचे तो दिखी व्यवस्था, पर जिम्मेदारों को स्पष्ट संदेश, लापरवाही नहीं सहेंगे

सुरेश गांधी

वाराणसी. बरसात के इस मौसम में जब गंगा और वरुणा की धाराएं उफान पर हैं, तब काशी के निचले और तटवर्ती इलाकों में बाढ़ का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। संकट की इस घड़ी में ज़िला प्रशासन ने राहत पुनर्वास कार्यों को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। बुधवार को जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने अपर पुलिस आयुक्त शिवहरी मीना के साथ चिरईगांव विधानसभा क्षेत्र के सलारपुर स्थित प्राथमिक विद्यालय में संचालित राहत शिविर एवं बाढ़ चौकी का औचक निरीक्षण किया। इस दौरान जिलाधिकारी ने केवल मौके पर मौजूद अधिकारियों से आवश्यक जानकारियां प्राप्त कीं, बल्कि शिविर में शरण लिए हुए लोगों से भी सीधे संवाद किया। उनकी आवश्यकताओं, समस्याओं और अनुभवों को ध्यानपूर्वक सुना और समाधान का भरोसा दिलाया। 

शिविरों में हर व्यवस्था रहे मुकम्मल

निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी ने हाईजेनिक किचन, शौचालय, एलपीजी गैस कनेक्शन, नियमानुसार भोजन, टेंट, बिजली की सुरक्षा, सफाई व्यवस्था, चिकित्सकों की नियमित तैनाती और बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने का निर्देश नायब तहसीलदार को दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “बाढ़ प्रभावितों की सेवा केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि मानवीय दायित्व भी है। शिविरों में रह रहे किसी भी व्यक्ति को भोजन, स्वास्थ्य, स्वच्छता या सुरक्षा से जुड़ी कोई कमी महसूस हो, यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

फॉगिंग, चूना छिड़काव और निगरानी के भी निर्देश

संक्रमण और बीमारियों की रोकथाम के लिए जिलाधिकारी ने फॉगिंग और चूने के नियमित छिड़काव के आदेश भी दिए। उन्होंने मौके पर मौजूद एसडीएम, तहसीलदार और संबंधित थाना प्रभारियों को हर स्थिति में चौकसी बरतने को कहा।

पूरे जिले में संचालित हैं 46 राहत शिविर

एसडीएम सदर अमित कुमार ने जिलाधिकारी को जानकारी दी कि जनपद में वर्तमान समय में कुल 46 राहत शिविर संचालित किए गए हैं : 27 शिविर नगरीय क्षेत्र में, 10 शिविर ग्रामीण क्षेत्रों में, 06 शिविर राजातालाब तहसील में, 03 शिविर पिंडरा तहसील में. इस दौरान जिलाधिकारी ने वरुणा नदी के किनारे स्थित बस्तियों को सबसे संवेदनशील क्षेत्र बताते हुए विशेष निगरानी और अलर्ट मोड में रहने के निर्देश भी दिए।

संवेदनशील क्षेत्रों पर विशेष ध्यान

जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने स्पष्ट किया कि सदर और राजातालाब तहसीलें बाढ़ के लिहाज से अति संवेदनशील हैं, ऐसे में यहां किसी भी स्थिति के लिए पूरी तैयारियों के साथ चौकसी जरूरी है। उन्होंने जलकल, स्वास्थ्य, नगर निगम, विद्युत, आपदा प्रबंधन, पुलिस और राजस्व सहित सभी विभागों को 24 घंटे फील्ड में मौजूद रहने का निर्देश दिया।

मानवीय संवेदना ही बने प्रशासनिक जवाबदेही का केंद्र      

बाढ़ राहत शिविर केवल छत और भोजन की व्यवस्था नहीं होते, बल्कि वहां विस्थापित लोगों की उम्मीदें, बच्चों की मुस्कान और बुजुर्गों की दुआएं भी आश्रय पाती हैं। जिलाधिकारी का यह दौरा प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि पीड़ितों की पीड़ा को समझने और उन्हें राहत देने की एक गंभीर पहल थी।

पैनिक होने की अपील

बाढ़ की विभीषिका केवल जलभराव नहीं, वह सामाजिक, आर्थिक और मानसिक संकट भी लाती है। काशी जैसे ऐतिहासिक और धार्मिक नगर में जब घाट जलमग्न होते हैं, तो तीर्थ, पर्यटन और जनजीवन सब कुछ प्रभावित होता है। ऐसे में यह जरूरी है कि प्रशासनिक व्यवस्था सिर्फ निर्देशों और फाइलों तक सीमित रहे, बल्कि हर राहत शिविर और बाढ़ प्रभावित गली में उसका वास्तविक असर दिखाई दे। जिलाधिकारी का निरीक्षण इस दिशा में एक सकारात्मक पहल है, लेकिन इसकी निरंतरता ही असली परीक्षा होगी। राहत शिविरों में व्यवस्था हो या विस्थापितों की मदद, शासन और समाज दोनों को इस आपदा को सहयोग और सहानुभूति से ही हराना होगा।

राहत शिविरों से ज़मीनी हकीकत : पीड़ितों की जुबानी 

सलारपुर राहत शिविर में रह रहे 70 वर्षीय रामऔतार यादव कहते हैं, “पिछले तीन दिनों से गंगा का पानी खेत और घर में भर गया। प्रशासन ने हमें समय से यहाँ लाकर छाया दी, लेकिन अब भी बच्चों के लिए दूध और दवाइयों की जरूरत है। अधिकारी आते हैं, सुनते हैं, पर जल्द कार्रवाई हो यही आस है।शिविर में मौजूद रेखा देवी, जिनका घर पूरी तरह डूब गया है, ने कहाहम औरतों के लिए शौचालय की व्यवस्था थोड़ी कमजोर है, लेकिन सफाईकर्मी अब रोज रहे हैं। खाने में आज खिचड़ी मिली थी, कल पूड़ी-सब्जी थी।इन बयानों से स्पष्ट होता है कि प्रशासन प्रयासरत है, पर कुछ स्थानों पर सुधार की गुंजाइश अभी भी शेष है।

जिलाधिकारी की घोषणा

निरीक्षण के बाद मीडिया से बात करते हुए जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार ने कहा : “हमने सभी तहसीलों में कंट्रोल रूम को सक्रिय किया है। राहत सामग्री की आपूर्ति नियमित रहे इसके लिए फील्ड अधिकारियों को ज़िम्मेदारी दी गई है। किसी भी शिकायत पर 24 घंटे में कार्रवाई का आश्वासन है।साथ ही जिलाधिकारी ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नावों की संख्या बढ़ाने, डूब क्षेत्र में पशुओं के लिए चारा और वैक्सीनेशन की व्यवस्था बच्चों के लिए अस्थायी स्कूलों के संचालन की दिशा में भी कार्य प्रारंभ होने की जानकारी दी।

स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में एनडीआरएफ की टीमें बचाव कार्य में जुटी हैं। बीएचयू मेडिकल स्टाफ, काशी सेवा दल, लायंस क्लब और भारत सेवाश्रम संघ जैसे संगठनों ने स्वेच्छा से राहत सामग्री वितरण और चिकित्सा शिविर चलाने की जिम्मेदारी ली है। कई जगह छात्र संगठन भी पानी में डूबे घरों से बुजुर्गों को निकालकर राहत शिविर तक पहुंचा रहे हैं।

प्रशासनिक संवेदना की परीक्षा

काशी की यह बाढ़ सिर्फ जल संकट नहीं, बल्कि प्रशासन की तत्परता, सामाजिक एकता और मानवीय संवेदना की कसौटी है। प्रशासन ने जो शुरुआती सक्रियता दिखाई है, यदि वह स्थायी अनुशासन और मानवीय जुड़ाव के साथ जारी रही, तो यह संकट भी संघर्ष से सीख और सेवा का उदाहरण बन सकता है। अब समय है कि हम सब मिलकर इन बाढ़ पीड़ितों की तरफ सिर्फ देखना नहीं, बल्कि उनके साथ खड़े होना सीखें।

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