Saturday, 26 July 2025

बिहार में पत्रकारों को पेंशन, यूपी के कलमकार क्यों रहें उपेक्षित?

बिहार में पत्रकारों को पेंशन, यूपी के कलमकार क्यों रहें उपेक्षित

नीतीश सरकार ने पत्रकारों की सुध ली, 15 हजार की पेंशन का ऐलान, लेकिन सवाल ये कि काशी और यूपी के कलमकार कब तक इंतजार करें?

हाशिए पर खड़े पत्रकारों को मुख्यधारा में लाना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूरी है

सुरेश गांधी

वाराणसी. बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने पत्रकारों के लिए बड़ा ऐलान किया है। अब तक 6 हजार रुपये की मिलने वाली पत्रकार सम्मान पेंशन को बढ़ाकर 15 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है। इसके साथ ही मृतक पत्रकार के आश्रित पति पत्नी को 3 हजार की जगह अब 10 हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन देने के निर्देश जारी किए गए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद इस फैसले की जानकारी ट्वीट कर सार्वजनिक की।

इस निर्णय से बिहार के वरिष्ठ और वयोवृद्ध पत्रकारों को राहत मिलेगी, साथ ही पत्रकारिता को सामाजिक सुरक्षा का भाव भी मिलेगा। लेकिन यूपी में आज तक कोई ऐसी सुनियोजित राज्य स्तरीय पत्रकार पेंशन योजना नहीं बन पाई जो बिहार या हरियाणा की तरह राहत दे सके। ऐसे में एक बड़ा सवाल उत्तर प्रदेश, खासकर पूर्वांचल के पत्रकारों के मन में उठ रहा है, क्या काशी, गोरखपुर, प्रयागराज, लखनऊ जैसे पत्रकारिता के तीर्थस्थलों पर कार्यरत पत्रकारों को यह सम्मान और सुविधा कब मिलेगी? उत्तर प्रदेश में पत्रकारों की सुध कब ली जाएगी? जबकि बिहार सरकार ने पत्रकारों के सम्मान और सामाजिक सुरक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक और स्वागत योग्य फैसला लिया है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह घोषणा केवल पत्रकारों के मनोबल को बढ़ाने वाली है, बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल है। खासकर वाराणसी, प्रयागराज, गोरखपुर जैसे पत्रकारिता के ऐतिहासिक केंद्रों में वर्षों से सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार, जो आज वृद्धावस्था, बीमारी और आर्थिक असुरक्षा से जूझ रहे हैं, उन्हें अब तक ऐसी कोई ठोस सुविधा या पेंशन योजना नहीं मिल सकी है। बिहार का यह कदम केवल पेंशन नहीं, एक नैतिक जिम्मेदारी के निर्वहन का संकेत है। उत्तर प्रदेश में पत्रकारों ने हर संकट में जनपक्षीय भूमिका निभाई है। अब समय है कि सरकार भी कलमकारों की पीड़ा को सुने, समझे और उन्हें वह सामाजिक सुरक्षा दे जिसकी वे वर्षों से हक़दार हैं। हाशिए पर खड़े पत्रकारों को मुख्यधारा में लाना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूरी है।

पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी, लेकिन स्वयं असुरक्षित

पत्रकारों को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। खासकर उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता परंपरा देश में सबसे सशक्त मानी जाती है। वे सत्ता, व्यवस्था और समाज के बीच सेतु बनकर केवल सूचनाएं देते हैं, बल्कि जनहित के लिए जोखिम उठाते हैं, दबाव सहते हैं और कभी-कभी जान भी गंवाते हैं। बावजूद इसके, बुज़ुर्ग हो चुके या दिवंगत पत्रकारों के परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा है, कोई सुनिश्चित पेंशन योजना। वाराणसी जैसे शहर में अनेक वरिष्ठ पत्रकार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पत्रकार, ग्रामीण संवाददाता और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रतिनिधि हैं, जो वृद्धावस्था में आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। जब हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और अब बिहार जैसे राज्य पत्रकारों के लिए पेंशन, आवास, और चिकित्सा योजनाएं संचालित कर सकते हैं, तो उत्तर प्रदेश क्यों पीछे?

काशी के पत्रकारों का दर्द कौन सुनेगा?

वाराणसी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेभारत की आत्माकहा है, वहां के पत्रकारों की स्थिति विडंबना से भरी है। यहां शहर से लेकर ग्रामीण अंचल तक कई ऐसे पत्रकार हैं जिन्होंने दशकों तक अपनी सेवा दी, लेकिन आज पेंशन है, चिकित्सा सुविधा, ही कोई सरकारी सहारा। काशी पत्रकार संघ, गोरखपुर प्रेस क्लब, बलिया-बस्ती के वरिष्ठ पत्रकारों ने बार-बार सरकार से आग्रह किया, लेकिन अब तक नीतिगत निर्णय का इंतजार है।

अब निर्णय की घड़ी है

उत्तर प्रदेश सरकार नेएक जिला एक उत्पाद’, ’मिशन शक्ति’, ‘नया नगर विकासजैसे कई नवाचार किए हैं। क्या अब वक्त नहीं है किएक पत्रकार एक सम्मानयोजना पर भी विचार किया जाए? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यह अपेक्षा की जाती है कि वे भी अपने गृहक्षेत्र गोरखपुर और काशी जैसे सांस्कृतिक-राजनीतिक केंद्रों में वरिष्ठ पत्रकारों के लिए सम्मान पेंशन योजना, पत्रकार आवास, निःशुल्क चिकित्सा बीमा योजना और आकस्मिक सहायता कोष की घोषणा करें।

ये हैं बिहार सरकार की नई घोषणाएं :

वरिष्ठ पत्रकारों को अब ₹15,000 प्रति माह की सम्मान पेंशन

मृतक पत्रकार के आश्रित को ₹10,000 प्रति माह पेंशन

पति/पत्नी को ₹3,000 की जगह ₹10,000 प्रति माह

योजना के तहत स्वास्थ्य सुरक्षा सामाजिक संरक्षण पर भी काम जारी

क्या कहते हैं वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार

वरिष्ठ पत्रकार पदमपति शर्मा केपीएस के पूर्व अध्यक्ष योगेश गुप्ता प्रेस क्लब के अध्यक्ष चंदन रुपानी आदि का कहना है, बिहार सरकार ने सराहनीय कदम उठाया है। उत्तर प्रदेश में भी योगी सरकार को पत्रकारों के लिए विशेष पेंशन और स्वास्थ्य बीमा योजना पर ध्यान देना चाहिए। काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष अत्री भारद्वाज ने कहा, हम कई बार ज्ञापन दे चुके हैं। अब जरूरत है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सीधे संज्ञान लेने की। सीनियर पत्रकार सुरेश गांधी का कहना है कि बिहार की यह पहल केवल सराहनीय है, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार के लिए एक प्रेरणा भी है। जिस राज्य में पत्रकारों ने आजादी से लेकर आज तक सबसे सशक्त भूमिका निभाई, वहीं वे सम्मान और सुरक्षा के मोर्चे पर उपेक्षित क्यों रहें? अब वक्त है कि काशी से लखनऊ तक कलम के सिपाही भी सामाजिक सुरक्षा के हकदार बनें।

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