श्रावण के स्वागत में काशी में पुष्पवर्षा
तीन शिखरों
से
बरसे
फूल,
हरि-हर
परंपरा
के
संग
गूंजा
बाबा
का
धाम
✦ श्री काशी
विश्वनाथ
धाम
में
पहली
बार
हुआ
त्रिशिखर
पुष्पवर्षा
नवाचार
✦ माँ अन्नपूर्णा को
अर्पित
पुष्प
थाल,
भक्तों
को
मिला
स्वागत
भेंट
प्रसाद
✦ मंडलायुक्त एस.
राजलिंगम
की
पहल
पर
मंदिर
न्यास
का
अभिनव
प्रयोग
सुरेश गांधी
वाराणसी. श्रावण मास के प्रथम
दिन काशी विश्वनाथ धाम
में आस्था की ऐसी अनुपम
छटा बिखरी कि श्रद्धालु अभिभूत
हो उठे। मंगला आरती
के पश्चात श्री काशी विश्वनाथ
मंदिर न्यास की ओर से
इस वर्ष नवाचार के
रूप में त्रि-चरणीय
पुष्पवर्षा अनुष्ठान आयोजित किया गया, जो
पूरी तरह शिव दर्शन
की त्रैतीय अवधारणा पर आधारित था।
मंदिर के तीन शिखरों—भगवान विश्वनाथ, भगवान दंडपाणि और भगवान वैकुण्ठेश्वर—के सम्मुख श्रद्धालुओं
पर पुष्पवर्षा कर शिखर पूजन
के रूप में यह
अनुष्ठान प्रारंभ हुआ। इसके साथ
ही काशी की परंपरागत
हरि-हर साधना को
भी नई अभिव्यक्ति मिली,
जब गर्भगृह से बद्रीनारायण मंदिर
तक भक्तों पर पुष्पों की
वर्षा की गई।
श्रद्धा, सौंदर्य और सेवा का संगम
इस नवाचार का
तीसरा और अंतिम चरण
माँ अन्नपूर्णा को समर्पित रहा,
जिनके मंदिर में तीन पुष्प
थाल अर्पित किए गए। इन
थालों के पुष्पों को
दिनभर श्रद्धालुओं को अक्षत प्रसाद
के साथ "श्रावण स्वागत भेंट" के रूप में
वितरित किया गया। इस
अभिनव आयोजन की अगुवाई मंडलायुक्त
एवं मंदिर न्यास के पदेन अध्यक्ष
एस. राजलिंगम ने की। उनके
साथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यपालक
अधिकारी विश्व भूषण, डिप्टी कलेक्टर श्री शंभु शरण
तथा तहसीलदार श्रीमती मिनी एल. शेखर
भी श्रद्धालुओं के स्वागत में
शामिल रहे।
तीन में समाहित शिव तत्व
मंदिर के सीईओ विश्व
भूषण मिश्रा ने बताया कि
यह आयोजन शिव परंपरा में
निहित त्रैतीय महत्व को समर्पित था—त्रिदेव, त्रिशूल, त्रिदल बेलपत्र, त्रिपुण्ड और त्रिलोक की
अवधारणा इस आयोजन के
प्रत्येक चरण में स्पष्ट
रूप से परिलक्षित हुई।
यह काशी की उस
जीवंत परंपरा का प्रतीक है
जो नवीनता में भी सनातन
को सहेजती है।
श्रद्धालुओं में उत्साह, हर-हर महादेव के जयघोष से गूंज उठा धाम
पुष्पवर्षा से सजे तीन
शिखरों के दर्शन करते
श्रद्धालु भावविभोर हो उठे। “हर-हर महादेव” और
“जय काशी विश्वनाथ” के
नारों से संपूर्ण धाम
गुंजायमान हो उठा। अनेक
श्रद्धालुओं ने इसे अभूतपूर्व
अनुभव बताया और मांग की
कि इस परंपरा को
हर श्रावण के प्रथम दिवस
पर अपनाया जाए।
काशी फिर बनी धर्म और नवाचार की धुरी
श्रावण मास के स्वागत
में यह अभिनव प्रयोग
यह दर्शाता है कि काशी
केवल आस्था की राजधानी नहीं,
बल्कि धार्मिक नवाचारों की प्रयोगभूमि भी
है। मंदिर न्यास द्वारा किया गया यह
नव प्रयोग श्रद्धा को नई ऊंचाइयों
पर ले गया है।
“सनातन
परंपरा तभी जीवित रह
सकती है जब उसमें
समयानुकूल प्रस्तुति और पवित्र नवीनता
जुड़ी हो। काशी इस
दिशा में आदर्श है।”
- स्वामी विष्णु तीर्थ, दशाश्वमेध पीठ
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