72.23 पर अटकी काशी की सांसें, गलियों तक
पहुंची गंगा, मंडलायुक्त ने संभाली कमान
श्रद्धालुओं को
घाटों
से
दूर
रखने
के
लिए
बैरिकेडिंग
धार्मिक आयोजनों
पर
प्रशासन
की
सख्त
निगरानी
नाव संचालन
पर
पूरी
तरह
प्रतिबंध,
पुलिस
चौकस
घाटों पर
पुलिस
का
पहरा,
पसरा
सन्नाटा
मणिकर्णिका व
हरिश्चंद
घाट
पर
शवों
की
कतार,
पहली
बार
नमो
घाट
बंद
गंगा जलस्तर 72.23 मीटर पर स्थिर, पर राहत अब भी दूर
सुरेश गांधीवाराणसी। श्रावण मास की शिवभक्ति
में डूबी काशी इन
दिनों गंगा के उफान
से विचलित हो उठी है।
इस बार गंगा का
रौद्र रूप श्रद्धा में
भय घोल रहा है।
राजघाट स्थित केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी)
के अनुसार, मंगलवार रात 8ः00 बजे
गंगा का जलस्तर 72.23 मीटर
दर्ज किया गया, जो
कि खतरे के निशान
71.262 मीटर से लगभग एक
मीटर अधिक है। फिलहाल
नदी का प्रवाह स्थिर
बना हुआ है, यानी
जलस्तर में न बढ़ोतरी
हो रही है, न
गिरावट। बावजूद इसके, हालात पूरी तरह सामान्य
नहीं कहे जा सकते।
घाटों से लेकर निचले
मोहल्लों तक पानी का
दबाव लगातार बना हुआ है।
ऐसे में अगर बढ़ने
का रफ्तार बढ़ा तो काशी
को एक बार फिर
1978 की विनाशलीला की यादें सता
सकती हैं। जो न
केवल चिंता का विषय है,
बल्कि 1978 की विनाशकारी बाढ़
की भयावह यादों को भी ताजा
करती है, जब गंगा
का जलस्तर रिकॉर्ड 73.901 मीटर तक जा
पहुंचा था।
गंगा की चढ़ान
अभी थमी नहीं है।
हर घंटे लगभग 1 सेंटीमीटर
की दर से जलस्तर
बढ़ रहा है। चेतावनी
स्तर 70.262 मीटर को पार
करते हुए अब स्थिति
नियंत्रण के बाहर जाती
प्रतीत हो रही है।
मणिकर्णिका, हरिश्चंद्र और दशाश्वमेध जैसे
प्रमुख घाटों पर पुलिस और
जल पुलिस की सक्रियता तेज
कर दी गई है।
गंगा आरती का आयोजन
भी सीमित स्थान पर किया जा
रहा है। घाटों की
सीढ़ियां लगभग डूब चुकी
हैं, जिससे आमजन का घाटों
तक पहुंचना मुश्किल हो गया है।
काशी के घाटों पर बचे हुए
सीढ़ियां भी पूरी तरह
गंगा में समा चुकी
हैं, और पंचगंगा, अस्सी,
कर्णघंटा, आदिकेशव जैसे घाटों पर
जलप्रवाह खतरनाक ढंग से चढ़
चुका है। पहली बार
नमो घाट बंद किया
गया है। घाट पर
बना आकर्षक नमस्ते संरचना अब पूरी तरह
से डूबने की कगार पर
है इसलिए पर्यटकों और श्रद्धालुओं की
आवाजाही रोक दी गई
है। इससे पहले नमो
घाट पर बाढ़ का
पानी इतना नहीं आया
था। शीतला घाट की सड़क
तक पानी आ गया
है।
बाढ़ का पानी
बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर
से महज 800 मीटर दूर है।
सामनेघाट की सड़क तक
गंगा का पानी पहुंच
गया है। वहीं, मणिकर्णिका
घाट पर शवों की
कतार लगी है। मणिकर्णिका
की गलियों में नावें चल
रही हैं। नाव से
शव ले जाने के
लिए शव यात्रियों से
200 से 500 रुपये अतिरिक्त वसूले जा रहे हैं।
शवों की कतार लगी
है। अंतिम संस्कार के लिए पांच
से छह घंटे तक
इंतजार करना पड़ रहा
है। छत पर ही
अंतिम संस्कार कराया जा रहा है।
लकड़ी के दाम भी
ज्यादा वसूले जा रहे हैं।
लकड़ी का रेट प्रति
मन 600-700 रुपये से बढ़ाकर 1000 से
1200 रुपये तक वसूला जा
रहा है। हरिश्चंद्र घाट
पर जलस्तर बढ़ने के बाद
गलियों में शवदाह किया
जा रहा है। शवदाह
के लिए लोगों को
2 से 3 घंटे लग रहे
हैं। हरिश्चंद्र घाट पर बाढ़
के पहले 20-25 शवों का दाह
संस्कार होता था तो
अब 5-8 शवों का दाह
संस्कार हो रहा है।
दशाश्वमेध घाट पर शीतला
मंदिर को पूरी तरह
से डुबोने के बाद बाढ़
का पानी अब सब्जी
मंडी की सड़क तक
पहुंच चुका है। राजेंद्र
प्रसाद घाट की सभी
सीढ़ियां डूब चुकी है।
बता दें, काशी
की गंगा सिर्फ एक
नदी नहीं, जीवन की आत्मा
है। पर जब यही
गंगा उफनती है, तो जीवन
को संकट में भी
डाल सकती है। प्रशासन,
नागरिक समाज और साधारण
जनता सभी को मिलकर
गंगा की इस चेतावनी
को गंभीरता से लेना होगा।
धार्मिक उत्सव अपनी जगह हैं,
लेकिन जीवन रक्षा सर्वोपरि
है। वैसे भी श्रावण
में लाखों श्रद्धालु काशी आते हैं
- कांवड़िए, शिवभक्त, स्नानार्थी। पर जब गंगा
की लहरें सीढ़ियों के ऊपर चढ़ने
लगती हैं, तो यह
आस्था और आपदा दोनों
का संगम बन जाता
है। इस बार श्रावण
पूर्णिमा (रक्षाबंधन) और पंचक्रोशी यात्रा
जैसे आयोजनों के दौरान भी
प्रशासन को भीड़ प्रबंधन
के साथ-साथ जल
सुरक्षा का गंभीर मसला
हल करना होगा। गंगा
मां जब कल्याणी रूप
में होती हैं, तो
वह जीवनदायिनी बनती हैं। लेकिन
जब वह रौद्र रूप
धरती हैं, तो हर
घाट, हर गली उनका
प्रवाह रोक नहीं पाता।
इस समय जनता को
चाहिए कि अफवाहों से
बचे, सरकारी निर्देशों का पालन करें
और जरूरत पड़ने पर तुरंत
सुरक्षित स्थानों पर जाएं।
नमो घाट से डोमरी तक दौड़े अफसर
मंडलायुक्त एस राजलिंगम द्वारा जिले में आयी बाढ़ का लगातार निरीक्षण किया जा रहा है, उक्त क्रम में ही मंडलायुक्त द्वारा नमो घाट, सुजाबाद, डोमरी तथा पड़ाव क्षेत्र का निरीक्षण किया गया तथा प्रभावितों से संवाद स्थापित करते हुए उनसे मिल रही राहत सामाग्री तथा अन्य सुविधाओं की जानकारियां ली गयीं। उन्होंने बाढ़ से प्रभावित लोगों को सभी सुविधाएं मुहैया कराने को निर्देशित किया। मंडलायुक्त द्वारा प्राथमिक विद्यालय डोमरी पहुंचकर राहत शिविर का निरीक्षण किया गया तथा मिल रही व्यवस्थाओं को देखा गया। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित संचारी रोग नियंत्रण अभियान हेल्प डेस्क पर व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी ली गयी।
तटवर्ती इलाकों में बढ़ी बेचैनी, प्रशासन अलर्ट
गंगा के बढ़ते जलस्तर ने तटीय इलाकों में दहशत बढ़ा दी है। राजघाट, नागवा, आदमपुर, रामनगर, सरैया और मारुति नगर जैसे तटीय इलाकों में लोगों की रातें अब चैन से नहीं कट रहीं। कई घरों में पानी घुसने लगा है। निचले इलाकों में पानी भराव और तटवर्ती बस्तियों में पलायन की स्थिति बन सकती है। हैं। हजारों की आबादी के साथ स्कूलें भी प्रभावित हुई हैं। जिले के करीब 46 स्कूलों में बाढ़ का पानी घुस गया है। इससे इससे 11 हजार से ज्यादा छात्र-छात्राओं की पढ़ाई ठप हो गई है। अब ऑनलाइन कक्षाएं चलाने की तैयारी है। जिला विद्यालय निरीक्षक भोलेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि बाढ़ से प्रभावित 46 विद्यालयों में से 21 ग्रामीण और 25 शहरी क्षेत्रों से हैं। ढेलवरियां, सलारपुर और हुकुलगंज के प्राथमिक विद्यालयों में वरुणा नदी के बाढ़ का पानी घुस गया है। 10 विद्यालय ऐसे हैं जिनके क्लास रूम तक बाढ़ का पानी पहुंच गया है। विद्यालयों की कक्षाएं ऑनलाइन चलाई जाएंगी। गंगा के कटाव वाले क्षेत्रों में स्थानीय प्रशासन ने निगरानी बढ़ा दी है, और आपदा प्रबंधन दलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। नाविकों को सतर्क कर दिया गया है और श्रावणी भीड़ को घाटों से दूर रहने की सलाह दी गई है।
धार्मिक आस्था बनाम प्रशासनिक चुनौती
श्रावण का चौथा सोमवार अभी गुज़रा है, और हजारों शिवभक्तों ने गंगा स्नान किया। अब श्रावण पूर्णिमा और रक्षाबंधन के अवसर पर भीड़ और बढ़ने की संभावना है, जिससे भीड़ प्रबंधन और जन-सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। गंगा आरती, नाव संचालन, घाट पूजन जैसी तमाम गतिविधियों पर अब प्रशासन को सख्त निगरानी रखनी होगी। डीएम सत्येन्द्र कुमार ने बताया, “गंगा का जलस्तर लगातार मॉनिटर किया जा रहा है। संवेदनशील इलाकों की सूची तैयार है और आपदा प्रबंधन टीमों को तैनात कर दिया गया है।” नगर आयुक्त ने भी जलभराव वाले इलाकों में नाव और एम्बुलेंस की व्यवस्था सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
क्या 1978 जैसे हालात दोहराएगी गंगा?
1978 की भीषण बाढ़
में काशी की एक
तिहाई से अधिक आबादी
प्रभावित हुई थी। जो
आज भी काशी के
इतिहास की सबसे भयावह
बाढ़ मानी जाती है।
रामनगर से लेकर चेतगंज
तक, शहर के बड़े
हिस्से डूब गए थे।
लोगों ने छतों पर
शरण ली थी, नावें
गलियों में चल रही
थीं। अब जब गंगा
उस ऐतिहासिक उच्चतम बिंदु (एचएफएल) 73.901 मीटर की ओर
बढ़ रही है, ऐसी
ही आपदा की पुनरावृत्ति
की आशंका गहराने लगी है। डर
अब फिर से सिर
उठाने लगा है। जल
आयोग के आंकड़ों के
अनुसार, यदि अगले 24-48 घंटे
में पानी की रफ्तार
नहीं थमी, तो नीचले
इलाकों से सुरक्षित स्थानों
पर तत्काल स्थानांतरण की आवश्यकता पड़
सकती है।
अब ज़रूरत है समन्वित आपदा प्रबंधन की
यह समय सतर्कता,
जागरूकता और प्रशासनिक सक्रियता
का है। नगर निगम,
आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जल आयोग और
स्वास्थ्य विभाग को समन्वय के
साथ कार्य करना होगा। राहत
शिविरों की स्थापना, चिकित्सा
सुविधा, पीने के पानी
और सूखा राशन की
उपलब्धता जैसी व्यवस्थाओं को
तत्काल क्रियान्वित करना ज़रूरी है।
रात-भर जागकर पानी चढ़ता देख रहे हैं...
सरैया के निवासी रामलाल
गुप्ता बताते हैं, “1978 में हमारे दादा
जान बचाकर निकले थे। अब वही
हालात दिख रहे हैं।
रात-भर हम पानी
की रेखा दीवार पर
चिन्हित करते हैं।” राजघाट
की रेखा देवी कहती
हैं, “अब घाट दिखना
बंद हो गए हैं।
बच्चे डरे हुए हैं
और बुजुर्ग कह रहे हैं
दृ गंगा माँ फिर
नाराज़ हैं।” गंगा का जल
स्तर बढ़ने के बाद
नगवां नाले से पानी
प्रवेश करने के बाद
रामेश्वर मठ, भागवत महाविद्यालय
से लेकर संगम पुरी
कॉलोनी में पानी पहुंचने
से लोग परेशान हैं।
नगवां नाले से बाढ़
का पानी संकट मोचन
मंदिर के पीछे तक
पहुंच गया है। इससे
लोगों का आना-जाना
बंद हो गया है।
वहीं, नक्खी घाट क्षेत्र में
बाढ़ प्रभावित ज्यादा इहैं। पीड़ितों का कहना है
कि नावें बढ़ाई जाएं। अब
भी 150 लोग फंसे हैं।
नालों के जरिये गंगा
की ओर जाने वाला
सीवर अब उल्टा आ
रहा है। इसके चलते
गोदौलिया में घोड़ा नाला,
रोपवे समेत कई निर्माण
कार्य फिलहाल रोक दिए गए
हैं। वहीं, अपना घर आश्रम
में भी पानी चला
गया है। जलकल के
सचिव राम औतार ने
बताया कि गंगा में
लगातार बढ़ाव जारी है।
कई नाले बैक फ्लो
कर रहे हैं। जब
जलस्तर नीचे होगा तभी
व्यवस्था सामान्य होगी। नगवां सोनकर बस्ती, हरिजन बस्ती में मिलाकर 70 परिवारों
को गोपी राधा विद्यालय
में बने राहत शिविर
में भेजा गया है।
दक्षिणी छोर के गांवों
में बाढ़ का पानी
घुसना शुरू हो गया
है। राजातालाब क्षेत्र का अंतिम गांव
शाहंशाहपुर इसकी चपेट में
आ गया है। यहां
गंगा का पानी गांव
के सिवान (खेतों के बाहरी किनारे)
तक पहुंच चुका है। किसानों
की चिंताएं बढ़ गई हैं।
उधर, टिकरी में भी स्थिति
विकट है। गंगा का
पानी टिकरी में बने बांध
को पार कर ऊपर
चढ़ गया है और
मलहिया बस्ती तक पहुंच गया
है। किसानों की फसल यहां
भी पूरी तरह से
डूब गई है। इन
मोहल्लों में रहने वाले
6376 लोगों को घर छोड़ना
पड़ा है। सड़कों पर
पानी भर गया है।
इससे आना-जाना बंद
हो गया है। सबको
बाढ़ राहत शिविर में
जगह लेनी पड़ी है।
नगवां सोनकर बस्ती, हरिजन बस्ती में मिलाकर 70 परिवारों
को गोपी राधा विद्यालय
में बने राहत शिविर
में भेजा गया है।
नगवां गंगोत्री विहार कॉलोनी और नगवां नाले
के किनारे रहने वाले 12 परिवारों
को निकालकर प्राथमिक विद्यालय में भेजा गया
है। इसमें करीब 43 सदस्य हैं। एनडीआरएफ की
टीम ने रामेश्वर मठ
के पीछे एक होटल
संचालक और उनके परिवार
को रेस्क्यू करके बाहर निकाला।
महेश नगर कॉलोनी से
पानी ऊपर चढ़ गया
है। सामने घाट तिराहे से
गंगा का पानी ऊपर
होकर मुख्य मार्ग पर पहुंच गया
है। सीवर लाइन जाम
होने से कॉलोनी में
पानी घुसने का खतरा बढ़
गया है।
संवेदनशील बस्तियां
सरैया, आदमपुर, रामनगर (गंगा पार), नगवा,
चौकाघाट, मल्लाह टोली, राजघाट, रामरेखा घाट क्षेत्र अतिसंवेदनशील
इलाके हैं। जिले के
20 बाढ़ राहत शिविरों में
605 परिवारों के 2877 लोगों ने शरण लिया
है। 577 परिवार ऐसे हैं जो
अन्य जगहों पर डेरा डाले
हैं। सरैयां, सराय मोहाना, पुराने
पुल, सलारपुर, शैलपुत्री, कोनिया, नक्खी घाट, सामने घाट,
ढेलवरिया, सुजाबाद, डोमरी, अस्सी, दशाश्वमेध, लोहता, चिरईगांव समेत कई क्षेत्रों
में तेजी से पलायन
हो रहा है। प्रशासन
की तरफ से रोस्टर
के हिसाब से लंच पैकेट,
फल, दूध पैकेट आदि
लोगों को दिए जा
रहे हैं। पशुपालन विभाग
ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों
में 46 चौकियां बनाई गई हैं।
इसके जरिये क्षेत्र के पशुओं के
इलाज और टीकाकरण हो
रहा है। जिला प्रशासन
के मुताबिक, वाराणसी के 44 गांव बाढ़ की
चपेट में आ गए
हैं। इस कारण 1410 परिवारों
को घर छोड़ना पड़ा
है। 6244 किसानों की 1721 एकड़ फसल डूब
गई है। इसी तरह
शहरी क्षेत्र के 24 मोहल्ले भी बाढ़ से
प्रभावित हैं। प्रशासन की
तरफ से रोस्टर के
हिसाब से लंच पैकेट,
फल, दूध पैकेट आदि
लोगों को दिए जा
रहे हैं।
घीमी चल रहीं ट्रेनें
खतरे के निशान
को पार कर चुकी
गंगा के जलस्तर को
देखते हुए उत्तर रेलवे
के मालवीय ब्रिज पर ट्रेनों को
कॉशन पर चलाया जा
रहा है। 10 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार
से ट्रेनें संचालित हो रही हैं।
आरपीएफ, जीआरपी की पेट्रोलिंग बढ़ा
दी गई है। एसएस
व टीआई व अन्य
कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई
गई है। रेल अधिकारियों
के अनुसार मालवीय ब्रिज (राजघाट पुल) पर गंगा
को वाटर लेवल से
नहीं बल्कि शीट से बढ़ोतरी
मापी जाती है। मालवीय
ब्रिज पर 234 शीट चेतावनी बिंदु
है, वर्तमान में यह शीट
बिंदु पार कर चुकी
हैं। अब 237 शीट तक गंगा
का पानी आ गया
है, जिसके चलते ट्रेनों को
कॉशन पर संचालित किया
जा रहा है।
2500 कारखानों में घुसा पानी, 1500 लूम बंद
बाढ़ के कारण
काशी के पारंपरिक कुटीर
एवं हस्तशिल्प उद्योगों को काफी नुकसान
झेलना पड़ रहा है।
जिले के सरैयां, पुराना
पुल, सलारपुर, शैलपुत्री, कोनिया, नक्खी घाट, ढेलवरिया, सुजाबाद,
डोमरी, लोहता, चिरईगांव समेत कई क्षेत्रों
में जलस्तर बढ़ने के कारण
लोग सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर
चुके हैं। इन क्षेत्रों
में बड़ी संख्या में
बुनकर, कारीगर, रंगाई-छपाई, ठेले खोमचे और
सिलाई से जुड़े छोटे
कारोबारी काम करते हैं।
गंगा और वरुणा के
बाढ़ के पानी से
जहां उनके तैयार माल
डूब गए हैं, वहीं
मशीनों में भी जंग
लगना शुरू हो गया
है।
गंगा जलस्तर की स्थिति एक नजर में
आज
का
जलस्तर
रात
8 बजे
72.23 मीटर
खतरे
का
स्तर
71.262 मीटर
चेतावनी
स्तर
70.262 मीटर
अब
तक
का
उच्चतम
स्तर
73.901 मीटर (1978)
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