Tuesday, 12 August 2025

भारत का वैश्विक विजय रथ और ट्रंप टैरिफ वार : बदलते आर्थिक समीकरणों में उभरती महाशक्ति

भारत का वैश्विक विजय रथ और ट्रंप टैरिफ वार : बदलते आर्थिक समीकरणों में उभरती महाशक्ति 

भारत आजविश्व विकास के इंजनकी भूमिका निभा रहा है। ट्रंप की संभावित टैरिफ नीति वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल ला सकती है, लेकिन सही रणनीति से भारत इस संकट को अवसर में बदल सकता है। यह समय है जब भारत केवल अपने घरेलू बाजार को मजबूत करे, बल्कि वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के अपने लक्ष्य की ओर निर्णायक कदम बढ़ाए। अगर नीति-निर्माण, कूटनीति और औद्योगिक सुधार एक साथ चलते रहे, तोशून्य से शिखरकी यह यात्रा आने वाले दशक में भारत को केवल एशिया, बल्कि पूरे विश्व का आर्थिक नेतृत्व सौंप सकती है 

सुरेश गांधी

अमेरिकी टैरिफ नीति ने जहां कई देशों की अर्थव्यवस्था को झटका दिया, वहीं भारत ने चुनौतियों को अवसर में बदलते हुए वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक ताकत का परचम लहराया।  पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक अर्थव्यवस्था कई भू-राजनीतिक घटनाओं, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों और व्यापार युद्धों से गुजरी है। विशेषकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में शुरू हुई "टैरिफ वार" ने पूरी दुनिया के व्यापार समीकरण बदल दिए। जब अमेरिका ने चीन समेत कई देशों पर भारी आयात शुल्क लगाया, तो वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था हिल गई। कई देशों के लिए यह संकट का समय था, लेकिन भारत ने इसे रणनीतिक अवसर में बदला।

विश्व अर्थव्यवस्था के मौजूदा परिदृश्य में भारत ने एक नई पहचान गढ़ी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की हालिया रिपोर्ट और वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के अनुमानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत केवल एशिया बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक वृद्धि का सबसे बड़ा इंजन बन चुका है। इस बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित नई टैरिफ नीतियों ने वैश्विक व्यापार समीकरणों में हलचल मचा दी है। यह बदलाव भारत के लिए अवसर और चुनौती दोनों लेकर आया है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने साफ शब्दों में कहा है कि 2025 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि में भारत का योगदान 15 प्रतिशत रहेगा, जो किसी भी अन्य बड़े देश से कहीं अधिक है। तुलना में चीन और अन्य अर्थव्यवस्थाएं: चीन, जो लंबे समय तकविश्व की फैक्ट्रीरहा, अब विकास दर में सुस्ती झेल रहा है। यूरोप और जापान भी मंदी जैसी स्थिति से गुजर रहे हैं। ऐसे में भारत का तेज विकास एक आशा की किरण है। आंतरिक मजबूती का योगदान: 140 करोड़ की आबादी, बढ़ता मध्यम वर्ग, डिजिटल क्रांति, और मजबूत घरेलू मांग ने भारत को एक आत्मनिर्भर आर्थिक ढांचे की ओर अग्रसर किया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी वादों में एक बार फिर उच्च आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने का ऐलान किया है, जिसमें भारत सहित सभी देशों से आने वाले उत्पादों पर औसतन 10% और चीन पर 60% तक शुल्क की बात है। वैश्विक प्रतिक्रिया : यह कदम वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) के नियमों पर सवाल खड़ा कर सकता है और व्यापार युद्ध (Trade War) की नई शुरुआत कर सकता है। भारत के लिए अवसर: अमेरिका में चीन पर लगाए जाने वाले भारी शुल्क से भारत के निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिल सकती है, खासकर टेक्सटाइल, जेम्स एंड ज्वेलरी, आईटी सर्विसेज और फार्मा सेक्टर में। अगर ट्रंप भारत पर भी आयात शुल्क बढ़ाते हैं, तो यह हमारे स्टील, एल्युमिनियम और इंजीनियरिंग सामान के निर्यात को प्रभावित कर सकता है।

एक समय था जब वैश्विक विकास दर में भारत का योगदान लगभग शून्य था। लेकिन पिछले एक दशक में : सुधारवादी नीतियां : GST, IBC (Insolvency & Bankruptcy Code), और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं ने औद्योगिक माहौल सुधारा। डिजिटल पावर : UPI, डिजिटल पहचान (आधार), और सरकारी सेवाओं की ऑनलाइन उपलब्धता ने कारोबारी लागत घटाई और पारदर्शिता बढ़ाई। विदेश नीति : भारत नेएक्ट ईस्ट’, ‘लुक वेस्टऔरग्लोबल साउथ लीडरशिपजैसी नीतियों से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी भूमिका मजबूत की।

 टैरिफ वार का भारतीय निर्यात पर संभावित असर

लाभ वाले सेक्टर : टेक्सटाइल और हैंडीक्राफ्ट: चीन पर प्रतिबंध से अमेरिका और यूरोप भारत से अधिक खरीद सकते हैं।

फार्मा इंडस्ट्री : जेनेरिक दवाओं में भारत पहले से ही अमेरिकी बाजार का बड़ा आपूर्तिकर्ता है।

आईटी और सर्विस सेक्टर : अमेरिका में लागत दबाव के कारण आउटसोर्सिंग की मांग बढ़ सकती है।

नुकसान वाले सेक्टर

स्टील और एल्युमिनियम : ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत को इन पर टैरिफ का सामना करना पड़ा था।

ऑटोमोबाइल कंपोनेंट्स : अमेरिकी प्रोटेक्शनिज्म से आपूर्ति शृंखला बाधित हो सकती है। 

भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया

भारत के सामने यह समय केवलदेखनेका नहीं बल्किकार्यवाहीका है : -

1. निर्यात विविधीकरण: किसी एक बाजार पर निर्भरता घटानी होगी। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ASEAN देशों में नए बाजार तलाशने होंगे.

2. द्विपक्षीय समझौते: अमेरिका, यूरोप और मध्य एशिया के साथ FTA (Free Trade Agreement) वार्ता को तेज करना।

3. उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाना: लॉजिस्टिक लागत कम करना, बिजली और परिवहन ढांचे को सुधारना।

4. मेक इन इंडिया + मेक फॉर वर्ल्ड: घरेलू उत्पादन को अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के अनुरूप बनाना।

वैश्विक साख और निवेश का बढ़ता प्रवाह

FDI में उछाल: इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और नवीकरणीय ऊर्जा में बड़े निवेशक भारत की ओर रुख कर रहे हैं। स्टार्टअप इकोसिस्टम: यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या में भारत अब दुनिया में तीसरे स्थान पर है। वैश्विक मंचों पर नेतृत्व: जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत नेग्लोबल साउथकी आवाज बुलंद की।

 भविष्य की दिशा: अवसर और जोखिम

भारत के लिए यह समय स्वर्णिम है, लेकिन सावधानी जरूरी है :-

अवसर : वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन की जगह लेने की क्षमता।

जोखिम : भू-राजनीतिक तनाव, तेल की बढ़ती कीमतें और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियां।

ट्रंप टैरिफ वार

2018-19 में डोनाल्ड ट्रंप नेअमेरिका फर्स्टनीति के तहत स्टील, एल्यूमीनियम और अन्य उत्पादों पर 25% से 50% तक आयात शुल्क लगा दिया। इसका उद्देश्य अमेरिकी उद्योग को बढ़ावा देना था, लेकिन परिणामस्वरूप : चीन के साथ ट्रेड वॉर तेज हुआ। यूरोप, कनाडा, मैक्सिको और जापान जैसे सहयोगी भी प्रभावित हुए। वैश्विक व्यापार संगठनों में तनाव बढ़ा। भारत पर भी असर पड़ा, लेकिन हमने निर्यात रणनीति में त्वरित बदलाव कर नए बाजार तलाशे। इसी दौरान अमेरिका को भारतीय इंजीनियरिंग, दवा, वस्त्र और आईटी सेवाओं पर अधिक भरोसा हुआ।

भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया

भारत ने इस टैरिफ संकट के बीच तीन मोर्चों पर काम किया : - 1. निर्यात विविधीकरणअमेरिका के अलावा यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका में बाजार बढ़ाए।  2. आत्मनिर्भर भारत पहलघरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन, उत्पादन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजनाएं, और स्टार्टअप्स को बढ़ावा।  3. डिजिटल तकनीकी ताकत का इस्तेमालआईटी, फिनटेक और फार्मा सेक्टर में विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण। इस रणनीति ने केवल झटका कम किया, बल्कि भारत को ग्लोबल ग्रोथ इंजन बनने की दिशा में आगे बढ़ा दिया।

भारत की उभरती ताकत

एक दशक पहले भारत का योगदान वैश्विक ग्रोथ में लगभग शून्य था। अब भारत दूसरी सबसे बड़ी योगदानकर्ता अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो रहा है। भारत ने अपने निर्यात पोर्टफोलियो में कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं :- फार्मास्युटिकल्सजेनेरिक दवाओं में विश्व का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता। आईटी सेवाएं – TCS, इंफोसिस, विप्रो जैसी कंपनियों का वैश्विक नेटवर्क। टेक्सटाइल और हैंडलूमकालीन, सिल्क और हस्तशिल्प का बढ़ता निर्यात। एग्रो प्रोडक्ट्सचावल, मसाले और शक्कर की रिकॉर्ड सप्लाई। अमेरिकी टैरिफ के बावजूद, भारत ने अपनी प्रतिस्पर्धी लागत, गुणवत्ता और भरोसे के कारण बाजार बनाए रखे।

चीन से अवसर की खिड़की

ट्रंप टैरिफ वॉर का सबसे बड़ा असर चीन पर हुआ। जब अमेरिकी कंपनियों ने चीन से सप्लाई कम की, तब उन्होंने भारत, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे विकल्प तलाशे। भारत को इस स्थिति से दो बड़े लाभ हुए : 1. मैन्युफैक्चरिंग निवेशएप्पल, सैमसंग, फॉक्सकॉन जैसी कंपनियों ने भारत में उत्पादन इकाइयां बढ़ाईं। 2. जॉब क्रिएशनलाखों युवाओं को रोजगार मिला और स्किल डेवलपमेंट पर जोर बढ़ा।

भारत का आर्थिक कूटनीति मॉडल

भारत ने संकट से निपटने के लिए केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि कूटनीतिक दृष्टिकोण भी अपनाया : अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया। QUAD, IPEF और G20 जैसे मंचों पर सक्रिय भागीदारी। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए सस्ता कच्चा तेल आयात। इस बहुआयामी नीति ने भारत को आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा दृष्टि से संतुलन साधने वाला देश बना दिया।

घरेलू सुधार और निवेश आकर्षण

भारत सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाए : जीएसटी सुधारटैक्स प्रणाली को सरल और पारदर्शी बनाया। इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेशहाईवे, रेल, पोर्ट और डिजिटल नेटवर्क पर बड़े प्रोजेक्ट। स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडियानवाचार और उत्पादन को बढ़ावा। इससे केवल विदेशी निवेश बढ़ा, बल्कि घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धा क्षमता भी मजबूत हुई।

चुनौतियां अब भी बरकरार

हालांकि उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं : वैश्विक मंदी का खतरा। ऊर्जा कीमतों में अस्थिरता। व्यापार घाटा और मुद्रा विनिमय दर में उतार-चढ़ाव। चीन और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ता तनाव। इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को निरंतर नीति सुधार और तकनीकी नवाचार की राह पर चलते रहना होगा।  अमेरिकी टैरिफ वार की शुरुआत एक आर्थिक संकट के रूप में हुई, लेकिन भारत ने इसे अपनी आर्थिक कूटनीति और व्यापारिक कुशलता से अवसर में बदल दिया। यदि यही रफ्तार जारी रही तो आने वाले दशक में भारत आर्थिक महाशक्ति बनने के अपने लक्ष्य के और करीब पहुंच जाएगा।

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