गणेश चतुर्थी : श्रद्धा, भक्ति और संस्कारों का जीवंत उत्सव
गणेश
चतुर्थी
का
पर्व
श्रद्धा,
भक्ति,
आनंद
और
सामाजिक
एकता
का
अद्वितीय
संगम
है।
27 अगस्त
से
6 सितंबर
तक
चलने
वाला
यह
उत्सव
न
केवल
धार्मिक
दृष्टि
से,
बल्कि
सांस्कृतिक
और
ज्योतिषीय
दृष्टि
से
भी
महत्वपूर्ण
है।
गणपति
की
उपासना
से
जीवन
के
विघ्न
दूर
होते
हैं,
बुद्धि
और
विवेक
की
प्राप्ति
होती
है,
और
समाज
में
समरसता
और
ऊर्जा
का
संचार
होता
है।
यही
कारण
है
कि
यह
पर्व
हर
वर्ष
भक्तों
के
लिए
एक
नए
उत्साह
और
नई
आध्यात्मिक
शक्ति
का
संचार
करता
है।
मतलब
साफ
है
गणेश
चतुर्थी
केवल
धार्मिक
अनुष्ठान
नहीं,
बल्कि
यह
भक्त
और
भगवान
के
बीच
आत्मिक
संबंध
को
प्रगाढ़
करने
का
माध्यम
है।
गजानन
की
उपस्थिति
से
घर
और
समाज
का
वातावरण
पवित्र
हो
उठता
है।
यह
पर्व
हमें
सिखाता
है
कि
अहंकार
का
स्थान
त्याग
और
विनम्रता
से
ही
जीवन
में
सच्ची
समृद्धि
आती
है।
गणेशजी
की
मूर्ति
का
विसर्जन
इस
सत्य
का
प्रतीक
है
कि
संसार
का
हर
रूप
अस्थायी
है,
किंतु
भक्ति
और
श्रद्धा
शाश्वत
है.
कहते
है
घर
में
जब
हो
गणपति
का
वास,
हर
मुश्किल
हो
जाती
है
आसान।
मोदक
प्रिय
बप्पा,
भक्तों
की
हर
मनोकामना
पूरी
करते
हैं।
सच्चे
मन
से
की
गई
पूजा
से
जीवन
के
सभी
विघ्न
दूर
होते
हैं
सुरेश गांधी
गणेश चतुर्थी का
पर्व केवल पूजा या
व्रत तक सीमित नहीं
है। यह समाज को
एक सूत्र में पिरोने वाला
पर्व है। सार्वजनिक गणेश
उत्सव का आरंभ लोकमान्य
बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता
संग्राम के दौरान किया
था। उनके प्रयासों से
यह पर्व महाराष्ट्र ही
नहीं, पूरे भारत में
सामाजिक एकता और सांस्कृतिक
चेतना का प्रतीक बन
गया। आज भी गणेश
चतुर्थी का पर्व गांव-गांव और शहर-शहर में सामूहिक
उत्सव का रूप ले
चुका है। इसमें समाज
का हर वर्ग, गरीब
से अमीर तक, बच्चे
से वृद्ध तक, समान भाव
से सम्मिलित होता है। इस
वर्ष गणेश चतुर्थी 27 अगस्त,
बुधवार को मनाई जाएगी.
पंचांग के अनुसार गणेश
स्थापना और मध्यान्ह पूजन
का शुभ मुहूर्त सुबह
11ः05 से दोपहर 01ः40
बजे तक रहेगा। इस
काल को मध्याह्न वेला
कहा जाता है, जिसे
गणपति प्रतिष्ठा के लिए सर्वश्रेष्ठ
माना गया है। मान्यता
है कि इसी समय
भगवान गणेश धरती पर
अवतरित होकर अपने भक्तों
की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
दस दिनों तक चलने वाले
इस महापर्व का समापन 6 सितंबर,
अनंत चतुर्दशी के दिन भव्य
शोभायात्राओं और विसर्जन के
साथ होगा। इस वर्ष के
विशेष योग के चलते
गणेश चतुर्थी खास मानी जा
रही है। इस बार
पर्व पर ब्रह्म योग,
इन्द्र योग, रवि योग
और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग
बन रहा है। साथ
ही चित्रा नक्षत्र का मेल इस
दिन को और भी
शुभ बना रहा है।
ज्योतिषाचार्यों का मानना है
कि इस योग में
गणपति की स्थापना करने
से घर-परिवार पर
दीर्घकालीन सुख-समृद्धि का
आशीर्वाद मिलता है।
सनातन धर्म के पंचांग
में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी
का विशेष महत्व है। मान्यता है
कि इसी दिन पृथ्वी
पर प्रथम पूज्य गणपति का अवतरण हुआ
था। विघ्नहर्ता, बुद्धि और विवेक के
दाता, तथा समस्त कार्यों
के आरंभ में स्मरण
किए जाने वाले श्रीगणेश
का यह पर्व केवल
उत्सव नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और संस्कारों का
जीवंत प्रतीक है। गणेश चतुर्थी
का पर्व महाराष्ट्र से
लेकर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत
के विभिन्न हिस्सों तक बड़े उत्साह
से मनाया जाता है। समाज
का हर वर्ग इसमें
सम्मिलित होकर भक्तिरस में
डूब जाता है। चूंकि
गणेशजी का जन्म दोपहर
में हुआ था, इसलिए
इस अवधि में पूजन
अत्यंत फलदायी माना जाता है।
भक्तजन इस समय विघ्नविनाशक
बप्पा को घर-आंगन
में सादर आमंत्रित कर
उनकी आराधना करेंगे। गणेशोत्सव भारतीय संस्कृति का उत्सव है,
जिसमें भक्ति, परंपरा, समाज और पर्यावरण
सभी का समन्वय देखने
को मिलता है। यह पर्व
हर वर्ष हमें यह
संदेश देता है कि
सामूहिकता और एकता से
बड़ी से बड़ी बाधाएं
दूर हो सकती हैं।
बप्पा केवल व्यक्तिगत समस्याओं
के विघ्नहर्ता नहीं हैं, बल्कि
समाज की सामूहिक चेतना
के मार्गदर्शक भी हैं। आज
जब विश्व अशांति, विभाजन और भौतिक दौड़
में उलझा है, गणेशोत्सव
हमें याद दिलाता है
कि सच्ची समृद्धि संस्कारों, संस्कृति और सामूहिकता से
आती है। यही कारण
है कि गणपति बप्पा
का आशीर्वाद हर वर्ष देश-विदेश में करोड़ों भक्तों
के लिए जीवन की
सबसे बड़ी शक्ति बन
जाता है.
विशेष संयोग (षड् योगों का प्रभाव)
इस बार गणेश
चतुर्थी के दौरान निम्नलिखित
छह दुर्लभ योग एक साथ
बन रहे हैं : रवि
योग, धन योग, लक्ष्मी-नारायण योग, गजकेसरी योग,
शुभ योग, आदित्य योग,
ये संयोग विशेष रूप से ग्रहों
की स्थिति के कारण बन
रहे हैं और इसे
अत्यंत शुभ माना जाता
है। इस दौरान मिथुन
राशि वालों को अप्रत्याशित धन
लाभ और व्यापारिक सफलता
मिलेगी. कर्क राशि : प्रोमोशन
और नए अवसर। सिंह
राशि : नए काम की
शुरुआत, सरकारी कार्यों में सफलता। कन्या
राशि : धन योग और
पैतृक संपत्ति का लाभ। मकर
राशि : नए कमाई के
माध्यम और साझेदारी से
लाभ।
मोदक का विशेष महत्व
गणेशजी को मोदक अति
प्रिय है। शास्त्रों में
कहा गया है, “यो
मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।”
अर्थात जो भक्त मोदक
अर्पित करता है, उसे
इच्छित फल की प्राप्ति
होती है। मोदक का
अर्थ है, हर्ष, खुशी
और आनंद। यही कारण है
कि गणपति की प्रतिमा या
चित्र के साथ प्रायः
मोदक अवश्य दर्शाया जाता है। महाराष्ट्र
और दक्षिण भारत में गणेश
उत्सव पर मोदक बनाने
की विशेष परंपरा है।
गणपति के 16 नाम
गणेशजी के 16 नामों का जप विशेष
फलदायी है : - सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब और गजानन। इन
नामों का स्मरण साधक
को धन, सौभाग्य और
सफलता प्रदान करता है।
परंपरा और आस्था की जड़ें
गणेश चतुर्थी का
आरंभ पौराणिक मान्यताओं में उस समय
से होता है जब
स्वयं भगवान शिव और माता
पार्वती के आंगन में
गणेशजी का जन्म हुआ।
पुराणों के अनुसार गणेशजी
को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता का
स्थान प्राप्त है। हर शुभ
कार्य से पहले ‘श्रीगणेश’
करने की परंपरा इसी
विश्वास से जुड़ी है
कि बप्पा के आशीर्वाद से
सभी बाधाएं दूर होती हैं
और सफलता का मार्ग प्रशस्त
होता है।
मूर्ति का स्वरूप और महत्व
गणेश प्रतिमाओं के
स्वरूप का भी विशेष
महत्व होता है। पीली
और लाल प्रतिमाएं घर
में सुख-समृद्धि लाती
हैं, जबकि सफेद गणेश
ऋण मुक्ति दिलाते हैं। चार भुजाओं
वाले रक्तवर्ण गणपति (संकष्टहरण) संकटों को हरते हैं
और त्रिनेत्रधारी महागणपति दशभुज रूप में समस्त
शक्तियों के दाता माने
जाते हैं। हल्दी से
बने हरिद्रा गणपति, विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति करने
वाले होते है। हालांकि
आचार्य बताते हैं कि घर
में अत्यधिक भव्य या विशाल
प्रतिमा से बचना चाहिए
और मध्यम आकार की प्रतिमा
ही पूजन हेतु श्रेष्ठ
मानी जाती है। सामान्य
गृहस्थ पूजा में मध्यम
आकार की पीली या
रक्तवर्ण प्रतिमा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) या पूर्व दिशा
में स्थापित करना सबसे शुभ
माना जाता है।
कैसे करें गणपति की स्थापना?
गणेश चतुर्थी पर
घर या पंडाल में
गणेश प्रतिमा की स्थापना अत्यंत
शुभ मानी जाती है।
पूजा-विधि इस प्रकार
है, प्रातः स्नान कर व्रत एवं
संकल्प लें। ईशान कोण
(उत्तर-पूर्व दिशा) में चौकी रखकर
पीला वस्त्र बिछाएं। गणेश प्रतिमा को
गंगाजल से शुद्ध कर
स्थापित करें। सिंदूर, दूर्वा (21 पत्तियां), लाल पुष्प, मोदक,
फल और नैवेद्य अर्पित
करें। अथर्वशीर्ष, गणेश चालीसा या
गणपति स्तोत्र का पाठ करें।
पूजन के अंत में
आरती और ब्राह्मण भोजन-दान कर स्वयं
भोजन ग्रहण करें। पूजा सुबह और
शाम, दोनों समय करना उत्तम
माना गया है। पूजा
के दौरान सात्विकता, स्वच्छता और नियमितता का
पालन आवश्यक है। गणेशजी के
घर में विराजने की
अवधि में व्रती को
सात्विक भोजन और संयमित
आचरण करना चाहिए।
दस दिनों का अनूठा पर्व
गणेश चतुर्थी से
अनंत चतुर्दशी तक के दस
दिन भक्ति, उत्साह और आध्यात्मिक चेतना
से परिपूर्ण होते हैं। इस
अवधि में लोग विधिपूर्वक
व्रत रखते हैं, गणेश
भक्ति में लीन रहते
हैं और वातावरण भक्ति-संगीत, ढोल-नगाड़ों व
‘‘गणपति बप्पा मोरया’’ के जयघोष से
गूंजता है। इस बार
गणपति विसर्जन 6 सितंबर (शनिवार) को होगा। उस
दिन शोभायात्रा, ढोल-ताशे, नृत्य
और भक्ति-गीतों के साथ भक्तजन
बप्पा को विदाई देंगे।
मान्यता है कि गणपति
अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी
कर सुख-समृद्धि का
आशीर्वाद देकर जाते हैं।
चंद्र दर्शन वर्जित क्यों?
गणेश चतुर्थी का
एक विशेष नियम है, इस
दिन चंद्र दर्शन वर्जित है। शास्त्रों के
अनुसार, इस दिन चंद्र
दर्शन करने से व्यक्ति
पर झूठे आरोप और
कलंक लगने का भय
होता है।
श्रीकृष्ण की कथा
मान्यता है कि एक
बार भगवान श्रीकृष्ण ने गणेश चतुर्थी
के दिन अनजाने में
चंद्रमा का दर्शन कर
लिया। इसके परिणामस्वरूप उन
पर स्यमंतक मणि चोरी का
आरोप लग गया। निर्दोष
होते हुए भी उन्हें
अपनी निष्कलंकता सिद्ध करने के लिए
कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।
गणेश-चंद्र संवाद
पौराणिक कथा के अनुसार,
जब गणेशजी को गजमुख प्राप्त
हुआ तो चंद्रमा ने
उनका उपहास किया। गणेशजी ने क्रोधित होकर
चंद्रमा को श्राप दिया
कि आज से तुम्हारे
दर्शन से कलंक लगेगा।
यद्यपि बाद में चंद्रमा
ने क्षमा मांगी, किंतु गणेशजी ने यह शर्त
रखी कि भाद्रपद शुक्ल
चतुर्थी को तुम्हारा दर्शन
निषिद्ध रहेगा।
भूलवश चंद्र दर्शन हो जाए तो क्या करें?
यदि कोई भक्त
इस दिन चंद्रमा को
देख ले तो शास्त्रों
में उपाय बताए गए
हैं। स्यमंतक मणि कथा’’ सुनना
या पढ़ना चाहिए। अथवा
यह मंत्र जपना चाहिए,
सिंहः
प्रसेनमवधीत्सिंहो
जाम्बवता
हतः।
सुकुमार
मा
रोदीस्तव
ह्येष
स्यमन्तकः।।’
इतिहास में गणेशोत्सव
यद्यपि यह पर्व सदियों
से घर-घर में
मनाया जाता रहा है,
परंतु सार्वजनिक गणेशोत्सव का स्वरूप लोकमान्य
बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में
दिया। तिलक ने इसे
अंग्रेजी शासन के विरुद्ध
जनजागरण और सामाजिक एकजुटता
का माध्यम बनाया। पंडालों में गणेश प्रतिमाएं
स्थापित कर हजारों-लाखों
लोग एकत्र होते, धार्मिक प्रवचनों से लेकर देशभक्ति
गीतों तक की गूंज
वातावरण को ऊर्जा से
भर देती। इस दृष्टि से
गणेशोत्सव भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का भी साक्षी
रहा है।
महाराष्ट्र से पूरे भारत तक
गणेशोत्सव की भव्यता सबसे
अधिक महाराष्ट्र में देखने को
मिलती है। मुंबई में
यह पर्व न केवल
धार्मिक उत्सव है बल्कि सामाजिक
उत्सव भी है। दस
दिनों तक गली-गली
में भव्य पंडाल सजते
हैं, सामाजिक संदेशों और सजावट के
साथ मूर्तियों की शोभा देखते
ही बनती है। ढोल-ताशों की गूंज, आरती
की धुन और मोदक
की मिठास से वातावरण अद्भुत
हो उठता है। आज
महाराष्ट्र की इस परंपरा
ने देशभर और विदेशों तक
अपनी छाप छोड़ी है।
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश से लेकर दुबई,
लंदन और न्यूयॉर्क तक
गणपति बप्पा की आराधना होती
है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
ने आज़ादी के आंदोलन के
समय इसे सार्वजनिक उत्सव
का रूप दिया। आज
भी मुंबई और पुणे में
जगह-जगह विशाल पंडाल
सजते हैं, जहां दस
दिनों तक सांस्कृतिक, सामाजिक
और धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। अनंत
चतुर्दशी के दिन ढोल-ताशों और जयकारों के
साथ शोभायात्रा निकालकर गणपति प्रतिमाओं का विसर्जन समुद्र
और नदियों में किया जाता
है। यह दृश्य महाराष्ट्र
ही नहीं, पूरे देश की
आस्था और सांस्कृतिक विरासत
का प्रतीक है।
लोकजीवन से जुड़ा उत्सव
गणेशोत्सव केवल धार्मिक पूजा
भर नहीं है। यह
लोकजीवन की आत्मा से
जुड़ा पर्व है। पंडालों
में सामाजिक संदेश दिए जाते हैं,
स्वच्छता, जल संरक्षण, नशा
मुक्ति, बेटी बचाओ-बेटी
पढ़ाओ जैसी जागरूकता को
लोग गणेश प्रतिमाओं और
सजावट के माध्यम से
समाज के सामने रखते
हैं। यह पर्व भक्ति
और सामाजिक चेतना का संगम है।
पर्यावरणीय पहलू
हाल के वर्षों
में पर्यावरणीय दृष्टि से यह पर्व
चर्चा में रहा है।
प्लास्टर ऑफ पेरिस और
रासायनिक रंगों से बनी मूर्तियों
का विसर्जन जलाशयों को प्रदूषित करता
है। इसके समाधान के
लिए अब पर्यावरण मित्र
गणेश प्रतिमाएं बनाने की परंपरा तेजी
से बढ़ रही है।
मिट्टी, कागज की लुगदी
और प्राकृतिक रंगों से बनी प्रतिमाएं
जल में घुलकर पर्यावरण
को नुकसान नहीं पहुंचातीं। कई
स्थानों पर ‘सीड गणपति’
की पहल भी हो
रही है, जिनकी मिट्टी
में पौधों के बीज दबे
रहते हैं और विसर्जन
के बाद नए पौधे
जन्म लेते हैं।
गणपति और साहित्य-संस्कृति
गणेशजी केवल देवता ही
नहीं, बल्कि भारतीय कला और साहित्य
के प्रेरणास्रोत भी हैं। उन्हें
विद्या का अधिष्ठाता माना
गया है। महाकाव्य महाभारत
का लेखन भी गणपति
ने व्यासजी के कथन पर
अपने दांत से किया
था। संस्कृत से लेकर मराठी
और हिंदी साहित्य तक, बवनदजसमे कविताओं,
भजनों और नाटकों में
गणेशजी का गुणगान मिलता
है।
आधुनिक भारत में गणेशोत्सव
आज का गणेशोत्सव
पारंपरिक और आधुनिक दोनों
रूपों का संगम है।
सोशल मीडिया पर डिजिटल आरती,
ऑनलाइन मूर्ति बुकिंग और वर्चुअल दर्शन
की सुविधा ने इसे वैश्विक
मंच पर पहुंचा दिया
है। लेकिन इसके बावजूद मूल
भावना वही हैकृगणपति बप्पा
मोरया, मंगलमूर्ति मोरया!
आध्यात्मिक महत्व
गणपति केवल विघ्नहर्ता ही
नहीं, बल्कि बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के
देवता माने जाते हैं।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, किसी
भी नए कार्य, विवाह,
परीक्षा या शुभ अवसर
की शुरुआत गणेशजी के पूजन से
ही की जाती है।
यही कारण है कि
उन्हें ‘अग्रपूज्य’ कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता
पार्वती ने स्नान के
समय अपने शरीर के
लेपन से गणेश की
प्रतिमा बनाई और उसमें
प्राण-प्रतिष्ठा कर द्वारपाल नियुक्त
किया। भगवान शिव के आगमन
पर गणेशजी ने उन्हें रोक
दिया और युद्ध में
उनका मस्तक काट दिया गया।
बाद में पार्वती के
आक्रोश को शांत करने
के लिए शिवजी ने
हाथी का सिर लगाकर
गणेशजी को पुनर्जीवित किया
और उन्हें गणों का अधिपति,
सभी देवताओं में अग्रपूज्य तथा
विघ्नहर्ता होने का आशीर्वाद
दिया।
आवश्यक सावधानियां
प्रतिमा को हमेशा ऊंचे
स्थान पर स्थापित करें।
गणेशजी के स्थान को
रोजाना गंगाजल से पवित्र करें।
घर, दुकान, फैक्ट्री के मुख्य द्वार
पर गणेशजी का चित्रपट लगाना
शुभ है। गणपति की
उपस्थिति में सात्विक आहार
और नियमित पूजा का पालन
करना चाहिए।
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