विकसित यूपी 2047 की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है बिजली का निजीकरण
महंगी बिजली
से
कमजोर
होगा
किसान,
गरीब
उपभोक्ता
होंगे
सबसे
ज्यादा
प्रभावित
सुरेश गांधी
वाराणसी. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले
निजीकरण के विरोध में
जारी आंदोलन गुरुवार को 281वें दिन भी
तेज़ रहा। बनारस के
बिजलीकर्मियों ने व्यापक प्रदर्शन
कर स्पष्ट किया कि “विकसित
उत्तर प्रदेश 2047” का सपना तभी
पूरा होगा जब बिजली
सार्वजनिक क्षेत्र में बनी रहे।
सभा को संबोधित करते हुए ई. मायाशंकर तिवारी ने कहा कि निजीकरण से आम जनता और खासकर किसानों को सस्ती बिजली नहीं मिल पाएगी।
घाटा उठाकर भी वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्र गरीब और मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को रियायती दर पर बिजली देता आया है, लेकिन निजी कंपनियां ऐसा करने से बचेंगी।
इसका सीधा असर खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। अंकुर पांडेय ने कहा कि सरकारी उत्पादन घरों से मिलने वाली बिजली औसतन 4.17 रुपये प्रति यूनिट की है, जबकि निजी कंपनियों की बिजली 7 से 19 रुपये प्रति यूनिट तक महंगी है।
ऐसे में निजीकरण होने पर बिजली के दाम स्वतः बढ़ेंगे और किसानों से लेकर छोटे उपभोक्ता तक इसकी मार झेलेंगे। समिति ने चेतावनी दी कि बिजली निजी हाथों में गई तो न केवल महंगाई बढ़ेगी बल्कि 2047 तक “विकसित उत्तर प्रदेश” का विजन भी अधूरा रह जाएगा।
संघर्ष
समिति ने साफ किया
कि निजीकरण का निर्णय वापस
होने तक आंदोलन जारी
रहेगा। सभा को संबोधित
करने वालों में ई. मायाशंकर
तिवारी, अंकुर पांडेय, आर.के. श्रीवास्तव,
शिवम उपाध्याय, कृष्णा सिंह, अभिषेक यादव, रमेश कुमार, कमलेश
यादव, अरुण कुमार, ओमप्रकाश
विश्वकर्मा, सतीश चंद्र पांडेय,
पी.एन. चक्रधारी, पंकज
यादव, बृजेश यादव, रोहित कुमार, सूरज रावत, विकास
ठाकुर, प्रवीण कुमार, बृज सोनकर और
संजय गौतम शामिल रहे।
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