Saturday, 13 September 2025

शताब्दी वर्ष में भारत की राह तय करेगा काशी

शताब्दी वर्ष में भारत की राह तय करेगा काशी 

जब भारत अपनी आज़ादी  के 100 वर्ष पूरे करेगा, तब उसकी पहचान केवल आर्थिक शक्ति से नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक गहराई और पर्यावरण-संवेदनशील विकास से होगी। या यूं कहे भारत 2047 का अर्थ केवल चमकदार अर्थव्यवस्था या जीडीपी नहीं, बल्कि हर नागरिक की गरिमा और परंपरा की रक्षा है। यह समान अवसरों वाला समाज है, जहां हर बच्चे को डिजिटल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, हर परिवार को बेहतर स्वास्थ्य सेवा और हर युवा को गरिमापूर्ण रोजगार मिले। स्वच्छ ऊर्जा, जल संरक्षण और हरित तकनीक विकास की रीढ़ बनें। उत्तर प्रदेश और उसकी आत्मा कहे जाने वाली काशी (वाराणसी) इस परिवर्तन की धुरी हैं। यहां से निकला कोई भी सुधार केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश को दिशा देगा। वाराणसी इस बदलाव का नेतृत्व कर सकता है, जहां घाटों की प्राचीनता और गलियों की आधुनिकता हाथ थामे चलें। जब काशी की हर गली में स्वच्छता, रोशनी और अवसर की खुशबू होगी, तभी शताब्दी वर्ष का जश्न सच में पूर्ण होगा। यही असली अमृतकाल की परिभाषा है, और यही भारत की आत्मा का उत्सव 

सुरेश गांधी

आज़ादी की शताब्दी वर्ष 2047 अब कोई दूर का स्वप्न नहीं, बल्कि ठोस तैयारी और दूरदर्शिता की मांग करता वर्तमान है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी, जहां आस्था, इतिहास और संस्कृति की अनगिन परतें हैं, भारत के उस भविष्य का प्रतीक है, जिसमें प्राचीन धरोहर और आधुनिक विकास का अद्भुत संगम है। गंगा की अनंत धाराओं पर झिलमिलाता काशी का चांदनी आभा से भरा आकाश, यह दृश्य केवल एक नगर का नहीं, भारत की सनातन आत्मा का प्रतीक है। हजारों वर्षों से यह भूमि साधना और जागरण का दीपक जलाए हुए है। आज, जब भारत अपनी आज़ादी के शताब्दी वर्ष 2047 की ओर बढ़ रहा है, काशी केवल तीर्थ नहीं, बल्कि अमृतकाल की दिशा दिखाने वाला उज्ज्वल पथप्रदर्शक बन खड़ा है। लेकिन सवाल है कि इस लक्ष्य तक कैसे पहुंचा जाए, ख़ासकर तब, जब गलियों की तंग चौकियों, टूटी नालियों और गंदगी से जूझता यह नगर रोज़ाना हमें उसकी वास्तविक चुनौतियों से परिचित कराता है। मतलब साफ है वाराणसी के गलियारों से होकर ही भारत 2047 का रास्ता निकलता है, यह सर्वविदित है. विकास का अर्थ केवल चौड़ी सड़कों और ऊंची इमारतों तक सीमित नहीं होना चाहिए। यह सांस्कृतिक स्मृति और आधुनिक नागरिक जीवन का संतुलन है। जब काशी की हर गली स्वच्छ, रोशन और सुरक्षित होगी, जब हर घर में पानी, शिक्षा और रोज़गार की रोशनी होगी, तब ही भारत अपनी शताब्दी का जश्न उस गर्व से मना पाएगा, जो केवल अतीत की नहीं, भविष्य की भी धरोहर बनेगी।

वैसे भी 2047 का भारत केवल आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय संतुलन का आदर्श होना चाहिए। शिक्षा में क्रांति के तहत हर बच्चे तक डिजिटल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचानी होगी. स्थानीय भाषाओं में उच्च-स्तरीय शोध सामग्री उपलब्धता के साथ ही हर ब्लॉक में डिजिटल स्मार्ट-क्लास, और उच्च शिक्षा में शोध-नवाचार के लिये राज्य-निधि की स्थापना करनी होगी. स्वास्थ्य का अधिकार यानी जिला स्तर पर विश्व-स्तरीय अस्पताल, 2030 तक हर 10,000 लोगों पर कम-से-कम एक बहु-विशेषज्ञ अस्पताल सहित टेलीमेडिसिन और ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का जाल बिछाना होगा। स्वच्छ ऊर्जा और जल प्रबंधन के लिए सौर, पवन और बायो-गैस को रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा बनाना होगा, साथ ही वर्षा जल-संरक्षण और नदी पुनर्जीवन की योजनाएं विकसित करनी होगी। रोज़गार का नया मानक गढ़ने के साथ ही कृषि-आधारित उद्योग, स्टार्टअप इनक्यूबेशन, और ग्रामीण हस्तशिल्प का अंतरराष्ट्रीय विपणन पर जोर देना होगा. जैविक खेती का विस्तार, फसल बीमा की 100 फीसदी कवरेज, और किसान उत्पादक संगठन (एफपीओं) को सीधे वैश्विक बाजार से जोड़ना होगा. देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य होने के नाते यूपी में शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार को प्राथमिकता देनी ही होगी। खासकर पूर्वांचल औद्योगिक कॉरिडोर के तहत वाराणसी, गाज़ीपुर, आज़मगढ़, भदोही, मिर्जापुर और गोरखपुर को जोड़ते हुए आईटी और फूड-प्रोसेसिंग हब बनाना होगा। स्मार्ट कृषि यानी सेंसर-आधारित सिंचाई, जैविक खेती और किसान उत्पादक संगठन को बढ़ावा देना होगा। महिला एवं युवा उद्यमिता के क्षेत्र में ज़िला स्तर पर माइक्रो-फाइनेंस और को-वर्किंग स्पेस देना होगा।

चुनौती और अवसर

23 करोड़ की आबादी वाला यूपी अगर शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार में निर्णायक सुधार करे तो भारत की प्रगति को कई गुना गति दे सकता है। काशी की गलियां आध्यात्मिकता की जीवित स्मृतियां हैं, मगर यथार्थ में जलभराव, कचरा, और जर्जर मकानों से जूझती हैं। कॉरिडोर और घाटों का सौंदर्यीकरण सराहनीय है, पर मोहल्लों के भीतर अब भी पुराने ढर्रे का दर्द है। इसे तत्काल सुधारना होगा. गली-नाली जीर्णोद्धार के अंतर्गत हर वार्ड का डिजिटल नक्शा और स्मार्ट ड्रेनेज सफाई अभियान चलाना होगा। 24×7 पेयजल आपूर्ति करनी होगी, पाइपलाइन दुरुस्ती और जल मीटरिंग को दुरुस्त करना होगा. कचरा प्रबंधन के तहत घर-घर पृथक कचरा संग्रह, मोहल्ला-स्तर कम्पोस्टिंग प्लांट को बढ़ती आबादी को देखते हुए और अधिक विकसित करना होगा। सौर रोशनी यानी प्रमुख सड़कों पर ही नहीं सभी गलियों में सौर-ऊर्जा आधारित स्ट्रीट लाइट लगानी होगी। इसके अलावा मध्यम अवधि में इन-सिटू स्लम अपग्रेडेशन के तहत बिना विस्थापन के झुग्गी क्षेत्रों को पक्का मकान में बदलना होगा। पैदल-पथ और -शटल यानी पुरानी गलियों में निजी वाहनों पर रोक, इलेक्ट्रिक रिक्शा सेवा को बढ़ावा देना होगा। हस्तशिल्प बाजार को बेहतर बनाने के लिए बुनकर और काष्ठ-शिल्पियों के लिए डिज़ाइन लैब और निर्यात केन्द्र की स्थापना करनी होगी। साथ ही हस्तकला संकुल बड़ालालपुर को बुनकरपरक बनाना होगा, जिससे वे उसका लाभ ले सकें। हरियाली परियोजना के तहत मोहल्लों में छोटे पार्क, छतों पर ग्रीन गार्डन योजना को विकसित करना होगा. कुछ प्रमुख सड़कों पर भूमिगत यूटिलिटी रिंग के तहत बेहतरी तो हुई है, लेकिन बिजली, पानी, इंटरनेट और गैस का साझा नेटवर्क तैयार करना अभी बाकी है। गंगा तट की बाढ़ सुरक्षा को बायो-इंजीनियरिंग से तटबंध, वर्षा जल-संग्रह आदि पर खास परियोजनाओं का संचालन करना होगा. सांस्कृतिक पर्यटन वृत्त के मामले में विश्वस्तरीय संग्रहालय, संगीत-गली महोत्सव और इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर को और अधिक विकसित करनी होगी. क्लाइमेट-रेज़िलिएंट अवसंरचना के अंर्गत बाढ़ और हीटवेव दोनों से सुरक्षित आवास बनाना होगा.

नागरिक भागीदारी : असली कुंजी

काशी का भविष्य केवल इसके प्राचीन वैभव में नहीं, बल्कि आधुनिक सुविधाओं और नागरिक भागीदारी में भी है। 2047 में जब भारत आज़ादी का शताब्दी पर्व मनाए, तब काशी की हर गली स्वच्छ, रोशन और अवसरों से भरी हो, यही असली अमृतकाल की पहचान होगी। यह केवल वाराणसी का नहीं, पूरे भारत का संकल्प है, और यही हमारे स्वतंत्रता उत्सव का सबसे सच्चा उत्सव होगा। हालांकि सरकार की योजनाएं तभी सफल होंगी जब नागरिक सक्रियता से जुड़ें। वार्ड एक्शन सेल के तहत हर मोहल्ले में 10 से 15 सदस्यों की निगरानी टीम गठित करनी होगी। पब्लिक डैशबोर्ड यानी ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म जहां हर योजना की प्रगति दिखाई दें, को बढ़ावा देना होगा। सीएसआर और क्राउडफंडिंग के तहत स्थानीय व्यापारी, प्रवासी काशीवासी और धार्मिक संस्थाओं का आर्थिक सहयोग करना होगा।

मापदंड और लक्ष्य

दो वर्षों में 80 फीसदी जलभराव की घटनाओं में कमी लानी होगी। पांच वर्षों में चौबीसों घंटे पानी और शत-प्रतिशत कचरा पृथक्करण योजना विकसित करने को प्राथमिकता देना होगा। अगले दस वर्षों में 90 फीसदी मकानों का बाढ़-रोधी नवीनीकरण करना होगा।

परंपरा की गहराइयों से भविष्य की उड़ान

महामुक्ति की कामना लिए यहां की हर गली में इतिहास सांस लेता है। शैव साधना की गंभीरता, बुद्ध के करुणा संदेश, कबीर की निर्भीक वाणी, सब कुछ इस नगरी के कण-कण में आज भी गूंजता है। यही वह भूमि है, जहां ऋषियों ने ब्रह्मज्ञान दिया और संतों ने समाज को नई दृष्टि। और यही वह काशी है, जो आज आधुनिक विज्ञान, स्मार्ट तकनीक और डिजिटल युग की ऊर्जा से परिपूर्ण हो, भविष्य का नया नक्शा गढ़ रही है।

आधुनिक विकास का सांस्कृतिक आलोक

विश्वनाथ धाम कॉरिडोर की भव्यता, घाटों का नवीनीकरण, रिवरफ्रंट की नयी चमककृयह सिर्फ विकास नहीं, अतीत और आधुनिकता के अनोखे संगम की साक्षी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से काशी का कायाकल्प केवल ईंट-पत्थर का विस्तार नहीं, बल्कि यह संदेश है कि जड़ों से जुड़कर भी दुनिया के साथ कदमताल किया जा सकता है।

गंगा : नदी से अधिक, जीवन की चेतना

अमृतकाल का भारत तभी संपूर्ण होगा जब उसकी नदियां अविरल और निर्मल रहें। गंगा यहां केवल जलधारा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जीवनरेखा है। काशी में चल रही स्वच्छता मुहिम, हरित ऊर्जा और जैविक खेती की पहलकदमियां यही दर्शाती हैं कि विकास और प्रकृति का संतुलन ही असली प्रगति है। काशी की यह पर्यावरण-संवेदनशील सोच पूरे देश के लिए आदर्श बन सकती है।

ज्ञान और नवाचार की नई काशी

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गरिमा, आईआईटी बीएचयू के शोध प्रयोग, स्टार्टअप्स की नई उड़ान, यह सब बताता है कि ज्ञान का पुरातन दीपक अब नवाचार की रोशनी से और प्रखर हो रहा है। यही वह चेतना है जो भारत को 2047 तक आत्मनिर्भर और विश्वगुरु बनाने की ताकत देती है।

विश्व को जोड़ती सांस्कृतिक कूटनीति

वाराणसी आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की सॉफ्ट पावर का उजला चेहरा है। यहां का शास्त्रीय संगीत, योग, आयुर्वेद, बनारसी बुनकरी और गंगा-जमुनी तहजीब विदेशी अतिथियों के लिए अद्भुत आकर्षण हैं। काशी की यह सांस्कृतिक कूटनीति भारत की वैश्विक पहचान को और गहरा करती है।

अमृतकाल का संदेश

काशी का मर्म यही कहता है, “परंपरा और प्रगति विरोधी नहीं, सहयात्री हैं।जब भारत अमृतकाल की ओर बढ़ रहा है, काशी यह स्मरण कराती है कि विकास तभी दिव्य होगा जब वह आत्मा, संस्कृति और प्रकृति का आदर करे। गंगा के जल में प्रतिबिंबित दीपों की लहरों-सा, काशी भारत को यह संदेश देती है कि आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए भी अपनी आध्यात्मिक जड़ों से जुड़े रहना ही सच्चा विकास है। अमृतकाल का भारत जब 2047 में विश्व के शिखर पर खड़ा होगा, तो उसकी राह में काशी की यह अमर ज्योति सदैव पथ आलोकित करती रहेगी।

क्या कहते है काशीवासी

वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा कहते है, आज़ादी के सौ साल पूरे होने में अब दो दशक से भी कम समय बचा है। भारत 2047 का सपना सिर्फ़ आर्थिक शक्ति बनने का नहीं, बल्कि हर नागरिक के जीवन को गरिमामय बनाने का है। इस दृष्टि से उत्तर प्रदेश, देश की जनसंख्या, राजनीति और संस्कृति का केंद्र होगा, जो सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। और यूपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी, यह दिखाने का सबसे बड़ा उदाहरण है कि परंपरा और आधुनिकता का संगम कैसा हो सकता है. वाराणसी की संकरी गलियों को पैदल मार्ग घोषित करना होगा, बाहरी क्षेत्रों में मल्टीलेवल पार्किंग की व्यवस्था करनी होगी. -शटल सेवा और छोटे इलेक्ट्रिक रिक्शा का प्रोत्साहन देना होगा. गलियों में हस्तशिल्प हाट, साड़ी-बुनाई और पीतल कारीगरी के लिए स्थायी बाजार मुहैया कराना होगा. युवाओं के लिए पर्यटनगाइड, होमस्टे, और डिजिटल टूरिज़्म प्रशिक्षण देना होगा।

No comments:

Post a Comment

शताब्दी वर्ष में भारत की राह तय करेगा काशी

शताब्दी वर्ष में भारत की राह तय करेगा काशी  जब भारत अपनी आज़ादी   के 100 वर्ष पूरे करेगा , तब उसकी पहचान केवल आर्थिक शक्...