दीपदान से जगमगाए भाग्य के दीप, कार्तिक में बरसती है मां लक्ष्मी की कृपा
कार्तिक मास का दीपदान केवल पूजा का कार्य नहीं, बल्कि आत्मोदय का उत्सव है। यह वह महीना है जब दीपक की लौ के साथ व्यक्ति अपने भीतर के अंधकार को भी जलाता है। काशी, मथुरा, अयोध्या, प्रयाग और हरिद्वार जैसे पवित्र स्थलों पर जब असंख्य दीप एक साथ जलते हैं, तो वह केवल नदी नहीं, धर्म, श्रद्धा और संस्कृति का सागर उजागर होता है। “दीपो भासयते लोके, दीप ही इस संसार को प्रकाशित करता है।” कार्तिक मास हिंदू पंचांग का आठवां और सर्वाधिक पवित्र महीना माना गया है। यह मास भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर प्रदान करता है। इस वर्ष कार्तिक मास 5 नवंबर को पूर्णिमा तक चलेगा। इस पूरे मास में दीपदान का अत्यंत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बताया गया है। यह महीना केवल पूजा या व्रत का नहीं, बल्कि प्रकाश से अंधकार मिटाने का प्रतीक है। शास्त्रों में कहा गया है, “दीपं दत्त्वा प्रयच्छेत् यः, स याति परमां गतिम्।” अर्थात जो श्रद्धा से दीपदान करता है, वह परम गति को प्राप्त करता है
सुरेश गांधी
कार्तिक मास की चांदनी जैसे-जैसे अपने पूर्ण तेज की ओर बढ़ रही है, वैसे-वैसे दीपों का प्रकाश भी जीवन के अंधकार को मिटाने चला है। यही वह समय है जब प्रत्येक आंगन में, हर घाट पर और हर मंदिर में दीपक का उजास केवल तेल या घी से नहीं, बल्कि श्रद्धा और शुद्ध भावना से जलता है। मान्यता है कि कार्तिक में किया गया दीपदान केवल एक संस्कार नहीं, बल्कि आत्मा को आलोकित करने का साधन है। दीपदान यानी दीपक जलाकर किसी पवित्र स्थान, नदी, देवालय या तुलसी के समीप श्रद्धापूर्वक रखना या अर्पित करना। यह केवल दान नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक अनुष्ठान है। दीपक जहां जलता है, वहां से नकारात्मकता, अज्ञान और दुर्भाग्य का नाश होता है। शास्त्रों के अनुसार दीपदान का अर्थ केवल घी या तेल से दीप जलाना नहीं, बल्कि जीवन में आत्मप्रकाश का जागरण करना है। इसलिए इसे ज्ञानदान, पुण्यदान और मोक्षमार्ग तीनों की संज्ञा दी गई है।
यह वह समय है जब हर घाट, हर मंदिर और हर आंगन में दीपों की पंक्तियां केवल अंधकार मिटाने के लिए नहीं, बल्कि मनुष्य के भीतर के तमस को दूर करने के लिए जलती हैं। इसीलिए कहा गया है, “दीपदानं महादानं सर्वपापप्रणाशनम्।” मान्यता है कार्तिक मास में दीपदान करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और जीवन में धन, ज्ञान, यश तथा सौभाग्य का स्थायी प्रकाश फैलता है। यम के भय से मुक्ति और अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति भी इसी दीपदान से संभव होती है।
हर दीपक में बसता है भक्ति का ब्रह्म
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया
है, “जो कार्तिक में
श्रीहरि को घी का
दीप देता है, वह
दीप जितने पल जलता है,
उतने वर्षों तक हरिधाम में
आनंद भोगता है।” इसलिए कार्तिक
में प्रतिदिन दो दीपक जलाने
की परंपरा है, एक भगवान
विष्णु के समक्ष और
दूसरा भगवान शिव के समक्ष।
यह दो दीप ही
सृष्टि के दो तत्त्वों,
साकार और निराकार के
प्रतीक हैं। वैसे भी
कार्तिक मास का अधिपत्य
स्वयं भगवान विष्णु को प्राप्त है।
देवउठनी एकादशी पर वे चार
माह की योगनिद्रा से
जागते हैं और सृष्टि
में मंगल कार्यों का
प्रारंभ होता है। इसीलिए
इस मास में दीपदान,
तुलसी पूजन, गंगा स्नान, दान
और जप-तप करने
से असीम पुण्य की
प्राप्ति होती है।
आकाशदीप : पितरों और देवों का मार्ग”
कार्तिक मास का आकाश,
जैसे स्वर्ग की छाया से
आच्छादित हो, पावन दीपों
की टिमटिमाहट में जगमगाता है।
काशी की पतित-पावनी
गंगा के घाटों पर
यह दृश्य सदियों से अपनी रहस्यपूर्ण
छटा बिखेरता आ रहा है।
हर शाम, जैसे गंगा
की शीतल धारा के
साथ यह दिव्य ज्योति
बहती है, दूर-दराज
के श्रद्धालु भी यहां दीपदान
के लिए आते हैं।
जो स्वयं उपस्थित नहीं हो पाते,
वे पंडों के माध्यम से
पुण्य की इस धारा
में अपने हिस्से का
दीपदान करते हैं, और
स्वयं को आध्यात्मिक आलोक
से अंशतः स्नान कराते हैं। खास यह
है कि ये संतों
और ऋषियों की दी हुई
परंपराओं की अमूल्य धरोहर
हैं, ज्ञान और भक्ति की
ज्योति का प्रतीक हैं।
आकाश सर्वव्यापी परमात्मा का प्रतीक है
और करंड, यानी दीपक का
पात्र, जीवात्मा का। जब इसमें
ज्ञान की बाती प्रज्ज्वलित
होती है, तो यह
वंश के यश को
बढ़ाती है और आत्मा
को परमात्मा के निकट ले
जाती है। ग्रंथों में
स्पष्ट है कि आकाशदीप
दान से लक्ष्मी, संतति,
आरोग्य और भगवान की
प्रसन्नता प्राप्त होती है। लोक
मान्यता के अनुसार, प्राचीन
समय में व्यवसाय या
परदेश गए परिजनों की
सुरक्षित वापसी के लिए घाट
पर दीप जलाने की
परंपरा आरंभ हुई। उस
समय नदियाँ और नावें ही
मुख्य आवागमन का साधन थीं।
घुप अंधेरी रात में टिमटिमाते
ये दीप, मानो माणिक्य
की तरह, पथिकों को
सही मार्ग दिखाते और जीवन में
आशा का दीप जलाते।
विज्ञान की दृष्टि से
भी ये दीप महत्वपूर्ण
हैं। ओस से भीगी
काली रातों में, यह नन्ही
ज्योति निराश मन में उम्मीद
की किरण जगाती है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि दीप
प्रज्ज्वलन न केवल अंधकार
को हराने में मदद करता
है, बल्कि समाज में सकारात्मक
चेतना और सामूहिक ऊर्जा
का संचार भी करता है।
सनत्कुमार संहिता के कार्तिक महात्म्य
के नौवें अध्याय में तिल के
तेल से भरे आकाशदीपों
के दान का उल्लेख
मिलता है। यह दिखाता
है कि सदियों से
यह परंपरा हमारे जीवन और संस्कृति
में गहरी जड़ें जमा
चुकी है। कार्तिक मास
की हर शाम, गंगा
घाटों पर टिमटिमाते ये
दीप केवल प्रकाश नहीं,
बल्कि ज्ञान, भक्ति और श्रद्धा का
अनुपम संगम हैं। ये
दीप हमें याद दिलाते
हैं कि तमस (अज्ञान
और अंधकार) से निकलकर दिव्य
ज्योति की ओर बढ़ना
ही जीवन का परम
उद्देश्य है। आकाशदीप की
हर चमक, हर टिमटिमाहट,
सर्वे भवंतु सुखिनः की भावना के
साथ सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करने
की प्रेरणा देती है।
संस्कारों का उजास
धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली,
गोवर्धन पूजा, भाई दूज, छठ
पर्व और देव दीपावली,
ये सभी कार्तिक के
वही उत्सव हैं जिनमें दीप
ही जीवन का केंद्र
है। हर दीपक यह
संदेश देता है कि
अंधकार चाहे कितना भी
गहरा हो, एक छोटी
लौ भी ब्रह्मांड को
जगमगा सकती है। मतलब
साफ है कार्तिक के
दीप केवल पूजा का
हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन की दिशा
हैं। वे सिखाते हैं
कि प्रकाश केवल बाहर नहीं,
भीतर भी जलाना होता
है। जब भीतर का
दीप जलता है, तभी
लक्ष्मी कृपा करती हैं
और जीवन में सच्ची
समृद्धि उतरती है। धन-संपन्नताः
मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त
होती है, जिससे घर
में धन, ऐश्वर्य और
सुख-शांति बढ़ती है।
ज्ञान
का
प्रकाश
: दीपक का उजास अज्ञान
का अंधकार मिटाता है, व्यक्ति में
विवेक और प्रज्ञा जाग्रत
होती है।
मोक्ष
की
प्राप्ति
: पद्मपुराण में कहा गया
है कि दीपदान करने
से यम भय से
मुक्ति और अंत में
मोक्ष मिलता है।
पापों
का
क्षय
: अग्निपुराण के अनुसार दीपदान
करने से जन्म-जन्मांतर
के पाप नष्ट होते
हैं।
गृह
में
सकारात्मक
ऊर्जा
: कार्तिक मास में दीप
जलाने से वातावरण में
नकारात्मकता समाप्त होती है।
संतान
वंशवृद्धि
: भविष्य पुराण में कहा गया
है कि दीपदान से
संतान और कुल की
उन्नति होती है।
अक्षय
पुण्य
की
प्राप्ति
: जो व्यक्ति देवालय, नदी तट या
मार्ग पर दीप जलाता
है, उसे “सर्वतोमुखी लक्ष्मी”
की प्राप्ति होती है।
काशी के प्रमुख घाट और उनकी दीपदान मान्यताएँ
घाट का
नाम धार्मिक महत्व
दशाश्वमेध
घाट कहा जाता
है यहां दीपदान करने
से दस अश्वमेध यज्ञों
का फल मिलता है।
मणिकर्णिका
घाट मोक्षदायिनी
गंगा की गोद में
यहाँ दिया गया दीप
मृत्युभय का नाश करता
है।
अस्सी
घाट कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में
यहाँ दीपदान करने से इच्छित
फल की प्राप्ति होती
है।
पंचगंगा
घाट पाँचों पवित्र नदियों का संगम स्थल
कृ यहाँ किया दीपदान
पापों का क्षालन करता
है।
राजघाट इस घाट पर
दीपदान करने से सुख-समृद्धि और वंशवृद्धि का
आशीर्वाद मिलता है।
कार्तिक पूर्णिमा के पाँच धार्मिक रहस्य
1. देव दीपावली का
उत्सव : मान्यता है कि इस
दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर दीप
जलाते हैं।
2. त्रिपुरासुर वध दिवस : भगवान
शिव ने इसी दिन
त्रिपुरासुर का संहार कर
देवताओं का कल्याण किया
था।
3. गंगा स्नान का
महापुण्य : कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने
से सौ यज्ञों का
फल प्राप्त होता है।
4. दान का अक्षय
फल : इस दिन किया
गया दीपदान, तिलदान या अन्नदान अनंत
फलदायी माना गया है।
5. विष्णु और शिव दोनों
का आशीर्वाद : यह एकमात्र तिथि
है जब हरि और
हर दोनों की संयुक्त आराधना
का विधान है।
अंधकार से प्रकाश की यात्रा
ज्योतिषशास्त्र कहता है कि
कार्तिक में सूर्य अपनी
नीच राशि तुला में
रहते हैं, जिससे वातावरण
में अंधकार और नकारात्मकता बढ़
जाती है। ऐसे में
दीपक जलाने से सकारात्मक ऊर्जा
का संचार होता है और
वातावरण में मंगल तरंगें
फैलती हैं। भविष्य पुराण
में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को
दीपदान का महत्व बताया
था। उन्होंने कहा, “सूर्य के लिए रक्तवर्ण
की वर्तिका पूर्णवर्ति कहलाती है, शिव के
लिए श्वेत वर्तिका ईश्वरवर्ति, विष्णु के लिए पीतवस्त्र
की भोगवर्ति और गौरी के
लिए कुसुम रंग की सौभाग्यवर्ति
होनी चाहिए।” इसी प्रकार दुर्गा,
ब्रह्मा, नागों और ग्रहों के
लिए भी विशिष्ट वर्तिकाओं
का उल्लेख है। यह दर्शाता
है कि दीपदान केवल
पूजा का कर्म नहीं,
बल्कि देवताओं के प्रति तत्वज्ञानपूर्ण
समर्पण है।
जब दीपदान होता है अक्षय फलदायी
पद्मपुराण और अग्निपुराण दोनों
में दीपदान को सबसे पुण्यदायी
कर्म कहा गया है।
विशेष रूप से कृष्णपक्ष
की पांच रातें, रमा
एकादशी से दीपावली तक
कृ ऐसे माने गए
दिन हैं जब दीपदान
का पुण्य अक्षय रहता है। “कृष्णपक्षे
विशेषेण पुत्र पंच दिनानि च
पुण्यानि, तेषु यो दत्ते
दीपं, सोऽक्षयमाप्नुयात्।” इन दिनों मंदिरों,
नदी तटों और देवालयों
में दीपदान करने से मां
लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, और
दुर्गम स्थलों पर दीपदान करने
से नरक जाने का
भय समाप्त होता है।
काशी में 33 करोड़ देवताओं के स्वागत में सजते हैं घाट
कार्तिक मास की पूर्णिमा
की रात, जब काशी
के घाटों पर करोड़ों दीपक
जल उठते हैं, तब
ऐसा लगता है मानो
स्वयं देवता पृथ्वी पर उतर आए
हों। यह केवल उत्सव
नहीं, बल्कि आस्था और आध्यात्मिकता का
वह संगम है, जिसमें
प्रकाश, पुण्य और परंपरा एकाकार
हो जाते हैं। देव
दीपावली का यह पर्व,
जो अब काशी की
पहचान बन चुका है,
दीपदान, स्नान और दान के
शास्त्रीय विधान से जुड़ा हुआ
है। कहा गया है,
“कार्तिके दीपदानं च सर्वपापप्रणाशनम्।” अर्थात् कार्तिक
में दीपदान करने से सारे
पाप नष्ट हो जाते
हैं और भगवान विष्णु
की अखंड कृपा प्राप्त
होती है।
शास्त्रों में दीपदान का महत्व
पुराणों में उल्लेख है
कि कार्तिक मास में मंदिरों,
तीर्थों, नदियों और तुलसी के
पास दीपदान करने से अश्वमेघ
यज्ञ के समान पुण्य
मिलता है। अग्निपुराण कहता
है कि जो व्यक्ति
मंदिर अथवा ब्राह्मण के
गृह में दीपदान करता
है, वह सब कुछ
प्राप्त कर लेता है।
पद्मपुराण के अनुसार, मंदिरों
और नदी के किनारे
दीपदान करने से लक्ष्मीजी
प्रसन्न होती हैं, जबकि
ब्रह्मवैवर्त पुराण कहता है कि
श्रीहरि को घृत का
दीप देने वाला व्यक्ति
विष्णुभक्ति और मोक्ष प्राप्त
करता है। दीपदान से
न केवल अकाल मृत्यु
का भय समाप्त होता
है, बल्कि यह पितरों की
सद्गति का माध्यम भी
बनता है।
दीपदान की रहस्यमय विधि
भविष्य पुराण में भगवान श्रीकृष्ण
ने युधिष्ठिर को दीपदान की
रहस्यमय विधि बताई है,
सूर्य के लिए रक्तवर्ण
की पूर्णवर्ति, शिव के लिए
श्वेतवर्ण की ईश्वरवर्ति, विष्णु
के लिए पीतवर्ण की
भोगवर्ति, गौरी के लिए
कुसुमवर्ण की सौभाग्यवर्ति, दुर्गा
के लिए लाखवर्ण की
पूर्णवर्तिका, ब्रह्मा के लिए पद्यवर्ति,
नागों के लिए नागवर्ति,
और ग्रहों के लिए ग्रहवर्ति।
इन वर्तिकाओं से युक्त दीपक
को धान या चावल
के ऊपर रखकर मंदिर
में जलाना शुभ माना गया
है, भूमि पर सीधा
रखने से भूमि को
आघात होता है।
गंगा तट का दिव्य आलोक
काशी में देव
दीपावली की परंपरा प्राचीन
काल में केवल पंचगंगा
घाट तक सीमित थी,
किंतु 1989 के बाद से
यह परंपरा सभी 84 घाटों तक फैल गई
और अब यह अंतरराष्ट्रीय
ख्याति प्राप्त महोत्सव बन चुकी है।
कहा जाता है कि
इस दिन गंगा घाटों
पर 33 करोड़ देवी-देवता
विराजमान होते हैं। अस्सी
से आदि केशव घाट
तक जलते लाखों दीयों
की पंक्तियाँ जब गंगा जल
में प्रतिबिंबित होती हैं, तो
मानो स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आता
है।
सांस्कृतिक गौरव और संस्थाओं की भूमिका
देव दीपावली अब
केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि
संस्कृति, स्वच्छता और राष्ट्रवाद का
प्रतीक बन गया है।
देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष पं.
वागीशदत्त मिश्र के अनुसार, “यह
केवल सरकारी प्रयास नहीं, बल्कि बनारस की अनेक संस्थाओं
की सामूहिक साधना का परिणाम है।
कोई तेल की व्यवस्था
करता है, कोई दीपों
की। आयोजन में पाँच हजार
से अधिक लोगों की
भागीदारी रहती है।” गंगा
सेवा निधि के अध्यक्ष
पं. सुशांत मिश्र बताते हैं कि गंगा
आरती की तैयारी दो
माह पहले से शुरू
हो जाती है, जिसमें
200 से अधिक सहयोगी जुड़े
होते हैं।
दीपों से पितरों को श्रद्धांजलि
इस अवसर पर
दीपदान केवल देवताओं के
लिए नहीं, पितरों के प्रति कृतज्ञता
का भी प्रतीक है।
पं. रामदुलार उपाध्याय कहते हैं कि
शरद पूर्णिमा को श्रीकृष्ण ने
रासलीला की थी। उसी
भावभूमि पर आज भी
कार्तिक पूर्णिमा को गंगा घाटों
पर दीपदान के माध्यम से
लोक रास का आलोक
फैलाया जाता है।
काशी की जीवंत परंपरा
काशी न केवल
मृत्यु का सत्य है,
बल्कि जीवन की जीवंतता
का प्रतीक भी है। यहाँ
के घाट, बिंदुमाधव से
लेकर अस्सी तककृज्ञान, भक्ति, और मोक्ष के
केंद्र रहे हैं। इन्हीं
घाटों पर देव दीपावली
का हर दीप अज्ञान
पर ज्ञान और मृत्यु पर
अमरत्व की विजय का
प्रतीक बन जाता है।
लोक और पर्यावरण का संगम
ग्रामीण परंपराओं में गोबर के
दीये का उपयोग आज
भी होता है। इससे
न केवल तालाबों की
मछलियों को आहार मिलता
है, बल्कि महिला समूहों को आमदनी भी
होती है। इस तरह
देव दीपावली केवल धार्मिक नहीं,
बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना
का उत्सव भी है।
देवत्व का आलोक
दीप केवल तेल
और वर्तिका का मिश्रण नहीं,
वह ज्ञान, करुणा और देवत्व का
प्रतीक है। काशी के
घाटों से झिलमिलाते ये
दीप मनुष्य को याद दिलाते
हैं, “जितना शाश्वत जीवन है, उतनी
ही शाश्वत मृत्यु भी है।” और
यही काशी की सनातन
संस्कृति का सार है।
एक नजर
अश्वमेघ
यज्ञ समान पुण्य देता
है दीपदान
काशी
के 84 घाटों पर जलते हैं
51 लाख दीप
33 करोड़
देवताओं का आगमन कृ
गंगा तट बना दिव्य
लोक
गोबर
के दीयों से पर्यावरण व
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल
शास्त्रों
में दीपदान को कहा गया
है मोक्ष का द्वार
मोक्ष और पुनर्जन्म से मुक्ति
कार्तिक मास में दीपदान
करने से व्यक्ति जन्म-मृत्यु के चक्र से
मुक्ति प्राप्त करता है। भगवान
श्रीकेशव के निकट अखंड
दीपदान करने से शरीर
और मन दोनों में
तेज और शांति का
संचार होता है। शास्त्र
कहते हैं, कार्तिक मास
में किया गया दीपदान
सभी यज्ञों और तीर्थों के
फल से भी बढ़कर
होता है। सूर्योदय से
पहले स्नान के बाद जब
दीपदान किया जाता है,
तो जीवन के सभी
पापों का नाश होता
है। तुलसी के समक्ष दीपक
जलाने से व्यक्ति को
अगले जन्म में उत्तम
कुल में जन्म प्राप्त
होता है। पुराणों के
अनुसार कार्तिक दीपदान से केवल पुण्य
ही नहीं, लोक प्राप्ति भी
होती है, मंदिर में
दीपदान से विष्णुलोक की
प्राप्ति होती है। नदी
या घाट पर दीपदान
करने से पूर्वजों की
आत्मा को शांति और
मोक्ष मिलता है। घर के
द्वार या तुलसी के
पौधे के पास दीपदान
करने से लक्ष्मी और
समृद्धि का वास होता
है। इसलिए कार्तिक मास में हर
संध्या दीपदान करना कृ देव,
पितर और गृह तीनों
की कृपा पाने का
माध्यम बनता है।
दीपदान की सही विधि
1. दीपक तैयार करेंः
मिट्टी का दीप लें,
उसमें घी या तिल
का तेल भरें और
रुई की बत्ती रखें।
2. स्थान चुनेंः घर के मंदिर,
तुलसी का पौधा, या
किसी नदी/तालाब का
घाट उत्तम स्थान हैं।
3. भूमि का सम्मानः
दीपक को सीधे जमीन
पर न रखें कृ
चावल, सप्तधान या किसी थाली
पर रखें।
4. प्रार्थना और संकल्पः दीप
जलाते समय भगवान विष्णु
या लक्ष्मी का स्मरण करें
और अपनी मनोकामना बोलें।
5. जल अर्पित करेंः
दीपक के साथ थोड़ा
जल अर्पित करना शुभ माना
गया है.
6. वापस मुड़कर न
देखेंः दीपदान के बाद बिना
पीछे देखे घर लौटना
शास्त्रीय नियम है।
🕉️ दीपदान का मंत्र
“शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपदाम्।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।।
इस मंत्र के
उच्चारण से दीप की
ज्योति केवल बाहर नहीं,
भीतर भी उजाला करती
है।
दीपदान के नियम और सावधानियाँ
दीपदान में दीपों की
संख्या मनोकामना के अनुसार रखी
जा सकती है। यदि
नदी या घाट तक
जाना संभव न हो,
तो घर पर ही
गंगा का आवाहन कर
दीपदान करें। एक दीप से
दूसरा दीप जलाना वर्जित
माना गया है। दीपदान
सायंकाल या ब्रह्ममुहूर्त कृ
इन दोनों कालों में करना शुभ
होता है।






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