निजीकरण
नहीं, जनसेवा चाहिए, संघर्ष समिति का हुंकार
वाराणसी के चिंतन मंथन
शिविर में बिजलीकर्मियों ने ठोकी ताल, बोले—निजी
घरानों को नहीं सौपेंगे प्रदेश की रोशनी, जेल भरो आंदोलन की तैयारी का आह्वान
सुरेश गांधी
वाराणसी.
वाराणसी की धरती पर
मंगलवार को बिजलीकर्मियों का गुस्सा, चेतावनी और संकल्प—तीनों
एक साथ दिखाई दिए। उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने यहां आयोजित
“चिंतन मंथन शिविर – संदर्भ निजीकरण” में साफ कहा कि बिजली विभाग का निजीकरण
प्रदेश के ऊर्जा तंत्र को कमजोर करेगा और लाखों कर्मचारियों के भविष्य को अंधेरे में
झोंक देगा। शिविर में पावर कॉर्पोरेशन के निजीकरण विकल्पों को खारिज करते हुए अभियंताओं
ने नारा बुलंद किया — “निजीकरण किसी कीमत पर नहीं, संघर्ष जारी रहेगा!” शिविर से पहले
संघर्ष समिति की वाराणसी इकाई की कोर मीटिंग हुई, जिसमें ई. शैलेन्द्र दुबे, जितेंद्र
सिंह गुर्जर, माया शंकर तिवारी, अंकुर पांडेय और ए.पी. शुक्ला जैसे वरिष्ठ पदाधिकारियों
ने रणनीति तय की। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि जैसे ही सरकार निजीकरण
का टेंडर जारी करेगी, “सामूहिक जेल भरो आंदोलन” शुरू किया जाएगा। संघर्ष समिति ने यह
भी दोहराया कि 314 दिनों से जारी यह आंदोलन तभी खत्म होगा, जब निजीकरण का फैसला पूरी
तरह वापस लिया जाएगा।
तीन विकल्प, तीन संकट — दुबे ने बताया
‘भविष्य के अंधेरे का सौदा’
शिविर की अध्यक्षता अखिल भारतीय पावर
इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन ई. शैलेन्द्र दुबे ने की। उन्होंने कहा कि पावर कॉर्पोरेशन
के चेयरमैन डॉ. आशीष गोयल द्वारा सुझाए तीन विकल्प — निजी कंपनी की नौकरी जॉइन करना,
अन्य निगमों में स्थानांतरण लेना, या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्वीकार करना — बिजली
कर्मचारियों के भविष्य को खत्म करने की चाल है। उन्होंने कहा कि “ये विकल्प नहीं, फंदे
हैं। अगर इन्हें स्वीकार किया गया तो आने वाली पीढ़ियां असुरक्षा और बेरोजगारी के अंधेरे
में चली जाएंगी।” दुबे ने आगे कहा कि निजीकरण के बाद न
तो स्थायी रोजगार बचेगा, न सेवा सुरक्षा। जनता को भी मंहगी बिजली और घटिया सेवा का
ही सामना करना पड़ेगा।
संविदाकर्मियों के हित में भी उठी आवाज
— दुर्घटना मुआवजा की मांग
बैठक में संविदा बिजलीकर्मियों की सुरक्षा
का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाया गया। समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग
की कि संविदाकर्मियों को भी होमगार्ड और सफाईकर्मियों की तरह विद्युत दुर्घटना की स्थिति
में ₹35 से ₹40 लाख रुपये तक मुआवजा दिया जाए। नेताओं ने कहा कि “जब ये कर्मचारी रात-दिन
बिजली व्यवस्था संभालते हैं, जान जोखिम में डालकर पोल पर चढ़ते हैं, तो उन्हें भी समान
सुरक्षा का अधिकार मिलना चाहिए।”
निजी फ्रेंचाइजी को लेकर आक्रोश, अभियंताओं
में उबाल
शिविर के दौरान यह जानकारी सामने आते
ही कि पश्चिमांचल और मध्यांचल के बड़े शहरों में “अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी”
लागू होने जा रही है, अभियंताओं में भारी नाराजगी फैल गई। शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि
“वर्टिकल रिस्ट्रक्चरिंग सिस्टम” लागू होने वाले सभी शहरों में फ्रेंचाइजी
टेंडर भी पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों के निजीकरण टेंडर के साथ ही जारी किए जाने
की तैयारी है। उन्होंने कहा — “यह जनता की बिजली व्यवस्था को कॉरपोरेट घरानों के हवाले
करने की साजिश है, जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
अभियंता संकल्प लें तो निजी घरानों की नहीं चलेगी
: जितेंद्र सिंह गुर्जर
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता
संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर ने कहा कि यह शिविर अभियंताओं को निर्णायक संघर्ष
के लिए प्रशिक्षित करने का एक कदम है। उन्होंने बताया कि इसी तरह के पांच “चिंतन मंथन
शिविर” डिस्कॉम स्तर पर आयोजित किए जा रहे हैं ताकि संगठनात्मक
मजबूती बढ़े। गुर्जर ने कहा — “अगर अभियंता संकल्प लेकर आगे आएं तो पॉवर सेक्टर में
निजी घरानों को रोकना कोई कठिन काम नहीं। यह आंदोलन अब निर्णायक चरण में प्रवेश कर
चुका है।” शिविर में अभियंता संघ के उपाध्यक्ष मनोज कुमार सिंह, संगठन
सचिव जगदीश पटेल, सहायक सचिव पुष्पेंद्र सिंह, क्षेत्रीय सचिव उपेन्द्र चौरसिया, पंकज
कुमार, जिवेश नंदन, शिवम रंजन, शशि कुमार सिंह, वीरेंद्र सिंह, नरेन्द्र वर्मा सहित
बड़ी संख्या में अभियंता मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि “प्रदेश की रोशनी जनता
की है, न कि किसी निजी कंपनी की पूंजी की।”
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