कर्मभूमि ने किया अपने कर्मयोगी पीएम मोदी का भव्य एवं दिव्य स्वागत
गंगा-घाटों की नगरी में गूंजा, हर-हर मोदी, हर-हर महादेवपूरे रास्तेभर
में
जनसैलाब
उमड़ा,
गुलाब
वर्षा
और
ढोल-नगाड़ों
के
बीच
बरसाएं
गए
फूल
सुरेश गांधी
वाराणसी। गंगा-घाटों की नगरी काशी ने शुक्रवार को एक बार फिर अपने जन-नायक का असाधारण स्वागत देखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब अपने दो दिवसीय प्रवास पर बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे, तो उनके स्वागत में उत्साह और आत्मीयता की ऐसी लहर दौड़ी, जो अद्भुत और अविस्मरणीय थी। मानो पूरा शहर अपने जन-नायक के स्वागत के लिए सांस रोके प्रतीक्षा कर रहा था।
बाबतपुर के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लेकर बीएलडब्ल्यू तक का मार्ग उत्सव-भाव में डूबा दिखा। हर ओर “हर-हर महादेव” और “मोदी-मोदी” के स्वर गूंज रहे थे, ढोल-नगाड़ों की ताल वातावरण को जीवंत कर रही थी और गुलाब की वर्षा जन-भावनाओं की सुगंध की तरह हवा में तैर रही थी।
कई स्थानों पर
महिलाओं ने मंगल-कलश
और पुष्पवर्षा से स्वागत किया,
तो युवा कार्यकर्ताओं ने
शंखनाद, ढोल-नगाड़ों और
नृत्य के साथ सांस्कृतिक
उल्लास का अद्भुत दृश्य
प्रस्तुत किया। इस आत्मीय स्वागत
से अभिभूत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार
वाहन की खिड़की से
हाथ हिलाकर जनता का अभिवादन
करते रहे। यह क्षण
केवल औपचारिकता नहीं था, यह
काशी की जनता और
उसके प्रतिनिधि के बीच उस
विश्वास, प्रेम और गौरव का
दृश्य था जो वर्षों
में गढ़ा गया है।
संत अतुलानंद बाईपास, जेपी मेहता मोड़,
बरेका एफसीआई गोदाम और बरेका मुख्य
द्वार सहित अनेक बिंदुओं
पर पार्टी कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों और आम नागरिकों
ने अभूतपूर्व स्वागत किया।
बरेका में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया स्वागत
प्रधानमंत्री का काफिला जब
बरेका परिसर में पहुंचा, तब
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ स्वयं गेट पर उपस्थित
होकर अपने नेता का
पूर्ण सम्मान और आत्मीय प्रशंसाभाव
से स्वागत किया। यह केवल राजनीतिक
स्वागत न था, यह
था काशी की आत्मा
का अपने सारथी के
प्रति स्नेह, यह था जनता
और नेतृत्व के बीच ‘विश्वास’
नामक उस अदृश्य किंतु
दृढ़ सेतु का पुनर्पुष्टि-क्षण, जिसने वाराणसी को विकास, संस्कृति
और आत्मगौरव की नई पहचान
दी है। मतलब साफ
है काशी ने आज
फिर सिद्ध किया, यह केवल स्वागत
न था, यह अपनत्व
का उत्सव था। यह स्वागत
केवल यात्रा का आरंभ नहीं,
यह काशी और उसके
कर्मयोगी के बीच अटूट
विश्वास का उत्सव था।



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