Monday, 29 December 2025

जब तारीख बदलती है, तो अर्थव्यवस्था जागती है

जब तारीख बदलती है, तो अर्थव्यवस्था जागती है

भारत सदियों से उत्सवों का देश रहा है। लेकिन बीते एक दशक में उत्सवों का स्वरूप बदला है। आज दीपावली, होली, छठ, सावन ही नहीं, नव वर्ष भी एक बड़ा आर्थिक पर्व बन चुका है। जब घड़ी की सुइयाँ 31 दिसंबर की रात बारह बजाती हैं, तो भारत में केवल कैलेंडर का एक पन्ना नहीं पलटता, उस क्षण खपत की धड़कन तेज होती है, बाजार सक्रिय हो जाते हैं, यात्राएं शुरू होती हैं, मंदिरों की घंटियां गूंजती हैं और करोड़ों रुपये का कारोबार एक साथ गति पकड़ लेता है। नव वर्ष 2025 की विदाई और 2026 का स्वागत अब सिर्फ भावनात्मक उल्लास या आतिशबाजी का अवसर नहीं रह गया है। यह भारत की उत्सव-आधारित अर्थव्यवस्था का एक ऐसा क्षण बन चुका है, जहाँ आस्था, पर्यटन, उपभोग, सेवा और व्यापार एक-दूसरे में घुलकर एक विशाल आर्थिक चक्र का निर्माण करते हैं। उत्सव, जो अब आर्थिक घटना बन चुका है. 31 दिसंबर से 1 जनवरी के बीच के केवल 48 से 72 घंटे, देश की अर्थव्यवस्था में 75 हजार से 95 हजार करोड़ रुपये तक का अनुमानित नकदी प्रवाह पैदा कर देते हैं। यह वह समय है जब होटल हाउसफुल होते हैं, फ्लाइट और ट्रेनें ओवरबुक रहती हैं, मंदिरों में सामान्य दिनों से कई गुना अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं, -कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर ट्रैफिक दोगुना हो जाता है. और छोटे दुकानदार से लेकर बड़े ब्रांड तक, सबके काउंटर पर भीड़ होती है  

सुरेश गांधी

31 दिसंबर की आधी रात जैसे ही घड़ी की सुइयां बारह पर पहुंचती हैं, देश में केवल तारीख नहीं बदलती, बाज़ार की गति बदल जाती है। नव वर्ष के मौके पर भारत में इस बार अनुमानित 1.25 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उपभोक्ता कारोबार होने के आसार है, जिसमें होटल, पर्यटन, खाद्य-पेय, परिधान, इलेक्ट्रॉनिक्स, फूल, पूजा सामग्री और परिवहन सेक्टर सबसे आगे रहने की उम्मींद हैं। यूपी ने इस उत्सव-आधारित अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी निभाई। अकेले यूपी में नव वर्ष के अवसर पर 12 से 15 हजार करोड़ रुपये के व्यापार का अनुमान है। धार्मिक पर्यटन, स्थानीय बाज़ारों और छोटे कारोबारों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। काशी, अयोध्या, प्रयागराज और मथुरा जैसे धार्मिक नगर इस बार आर्थिक गतिविधियों के प्रमुख केंद्र बने। काशी की बात करें तो नव वर्ष से पहले और बाद के तीन दिनों में ही शहर में 20 से 25 लाख श्रद्धालुओं पर्यटकों की आवाजाही दर्ज की गई। होटल, गेस्ट हाउस, नाविक, गाइड, फूल मंडी, दुग्ध उत्पाद, मिठाई और हस्तशिल्प बाज़ारों को मिलाकर काशी में 800 से 1000 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होने का अनुमान है। घाटों से लेकर गलियों तक हर गतिविधि रोज़गार और आय से जुड़ी नज़र आई। पूर्वांचल के वाराणसी, गोरखपुर, बलिया, आज़मगढ़, जौनपुर, भदोही और मिर्ज़ापुर जैसे जिलों में नव वर्ष के दौरान 2500 से 3000 करोड़ रुपये तक का कुल व्यापार आंका जा रहा है।

छोटे दुकानदारों, ठेला-पटरी व्यवसायियों, कारीगरों और परिवहन क्षेत्र को इसका सबसे अधिक प्रत्यक्ष लाभ मिला। यह साफ दर्शाता है कि नव वर्ष अब केवल उत्सव नहीं, बल्कि पूर्वांचल की स्थानीय अर्थव्यवस्था का बड़ा इंजन बन चुका है। वाराणसी जैसे आध्यात्मिक नगर में नव वर्ष का सूर्योदय केवल सुबह नहीं लाता, वह आस्था, व्यापार और पर्यटन का संयुक्त आरंभ करता है। गंगा के घाटों पर स्नान, मंदिरों में दर्शन, फूल-मालाओं की खुशबू, प्रसाद की दुकानों की कतार, नावों की आवाजाही, होटलों और होम-स्टे की चहल-पहल, यह सब मिलकर एक जीवंत आर्थिक परिदृश्य रचते हैं। काशी अकेली नहीं है। अयोध्या, प्रयागराज, मथुरा-वृंदावन, गोरखपुर, मिर्जापुर सहित पूरे पूर्वांचल में नव वर्ष अब धार्मिक पर्यटन और स्थानीय व्यापार का साझा पर्व बन चुका है। मतलब साफ है उत्तर प्रदेश आज देश का सबसे अधिक पर्यटक आगमन वाला राज्य बन चुका है। नव वर्ष के अवसर पर यह बढ़त और स्पष्ट दिखाई देती है। होटल ऑक्यूपेंसी 30 से 70 फीसदी तक बढ़ जाती है. स्थानीय बाजारों में बिक्री सामान्य दिनों से कई गुना अधिक होती है. परिवहन, टैक्सी, नाव, गाइड सेवाओं की मांग चरम पर पहुंच जाती है. आस्था पर्यटन में पिछले वर्षों में 361 फीसदी तक की वृद्धि यह बताती है कि नव वर्ष अब केवल पार्टी या छुट्टी का दिन नहीं, बल्कि धार्मिक-आर्थिक गतिविधि का शिखर बन गया है। नव वर्ष की पूर्व संध्या पर सबसे पहले जो कारोबार महकता है, वह है फूल उद्योग। गुलाब, ऑर्किड, लिली, जरबेरा, माला, बुके, पूजा पुष्प, 31 दिसंबर की रात फूल मंडियों में नींद नहीं होती, वहाँ सबसे बड़ी बिक्री होती है।

उत्तर भारत में अनुमानित कारोबार : 800 से 1000 करोड़ रुपये, वाराणसी, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु में 3 से 5 गुना तक बिक्री, यह कारोबार सिर्फ फूल बेचने तक सीमित नहीं, यह किसानों, ढुलाई, पैकेजिंग, खुदरा विक्रेताओं और अस्थायी श्रमिकों की पूरी श्रृंखला को जीवंत करता है। 1 जनवरी अब बड़ी संख्या में लोगों के लिए मंदिरों में शीश नवाने का दिन बन चुका है। काशी, अयोध्या, उज्जैन, तिरुपति जैसे नगरों में मंदिर आय सामान्य दिनों से 2 से 3 गुना तक बढ़ जाती है. पूजा सामग्री, प्रसाद, दक्षिणा, पंडा-पुरोहित सेवाओं में भारी वृद्धि होती है. धार्मिक पर्यटन केवल आध्यात्मिक अनुभव नहीं, यह लोकल इकोनॉमी का मजबूत स्तंभ बन चुका है। होटल, रेस्टोरेंट और पार्टी कल्चर : जश्न का बड़ा बाजार बन चुका है. नव वर्ष का सबसे बड़ा लाभार्थी हॉस्पिटैलिटी और फूड सेक्टर होता है। होटल ऑक्यूपेंसीः 80 से 100 फीसदी है. गाला डिनर, लाइव म्यूजिक, पार्टी पैकेज, एक रात में लाखों से करोड़ों की कमाई, रेस्तरां, ढाबे, फूड स्टार्टअप, ऑनलाइन डिलीवरी, सभी के लिए यह सप्ताह पूरे साल का पीक पॉइंट बन चुका है। अनुमान है कि नव वर्ष सप्ताह में अकेले फूड सेक्टर का कारोबार 15 से 20 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचता है।

पर्यटन और ट्रैवल : सड़कों से आसमान तक कारोबार होता है. गोवा, मनाली, नैनीताल, जयपुर, वाराणसी, अयोध्या, नव वर्ष अब टूरिज्म सीजन का पीक मोमेंट है। फ्लाइट टिकट महंगे, होटल पैकेज फुल, टैक्सी, ऑटो, गाइडकृसब व्यस्त. अनुमान है कि 25 से 30 लाख लोग केवल नव वर्ष के लिए यात्रा करते हैं, जिससे ट्रैवल इंडस्ट्री को जबरदस्त गति मिलती है। गिफ्ट, केक, चॉकलेट और सजावट : भावनाओं का व्यापार हो गया है. नव वर्ष शुभकामनाओं का पर्व है और शुभकामनाएं अब गिफ्ट इकॉनमी से जुड़ चुकी हैं। केक, चॉकलेट हैम्पर, कस्टमाइज्ड गिफ्ट, कैंडल, गैजेट, खासकर युवा और शहरी बाजारों में यह सेक्टर तेज़ी से बढ़ता है। डिजिटल और -कॉमर्स : ऑनलाइन जश्न की नई अर्थव्यवस्था. नव वर्ष अब ऑनलाइन सेल फेस्टिवल भी है। मोबाइल, कपड़े, ज्वेलरी पर भारी डिस्काउंट, 31 दिसंबर और 1 जनवरी को ट्रैफिक सामान्य दिनों से दोगुना, भारत में त्योहारों से जुड़ा कुल -कॉमर्स मूल्य 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है, जिसमें नव वर्ष का बड़ा योगदान है। नव वर्ष का उत्सव स्थायी नहीं, लेकिन इससे पैदा होने वाला रोजगार प्रभावशाली है। फूल विक्रेता, होटल स्टाफ, टैक्सी ड्राइवर, इवेंट मैनेजमेंट, कैटरिंग, लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। मतलब साफ है नव वर्ष 2025 की विदाई और 2026 का आगमन अब केवल भावनात्मक क्षण नहीं, यह भारत की मल्टी-सेक्टर अर्थव्यवस्था का इंजन बन चुका है। यह पर्व बताता है कि जब खुशी, आस्था, उपभोग और व्यापार एक साथ चलते हैं, तो एक तारीख करोड़ों की कहानी बन जाती है।

नव वर्ष 2025 - 26 : सेक्टर-वाइज कारोबार (भारत स्तर)

सेक्टर   अनुमानित कारोबार (₹ करोड़)

होटल, पर्यटन ट्रैवल :      38,000

खाद्य-पेय, रेस्टोरेंट :             27,500

परिधान, गारमेंट्स :             18,000

इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स :    16,500

पूजा सामग्री, फूल, सजावट :             9,200

परिवहन (रेल, बस, टैक्सी, विमान) :                 11,300

अन्य (मनोरंजन, गिफ्ट, -कॉमर्स) :                 4,500

कुल भारत :                          1,25,000$

उत्तर प्रदेश : सेक्टर-वाइज नव वर्ष कारोबार

सेक्टर                   अनुमानित कारोबार (₹ करोड़)

धार्मिक पर्यटन होटल :    4,800

खाद्य-पेय मिठाई :            3,200

परिधान ऊनी वस्त्र :        1,900

इलेक्ट्रॉनिक्स :                      1,600

पूजा सामग्री फूल :           1,400

परिवहन :                              1,300

अन्य स्थानीय व्यापार :        900

कुल यूपी :                             12,000 से 15,000

काशी (वाराणसी) : नव वर्ष कारोबार का ब्रेक-अप

सेक्टर                   अनुमानित कारोबार (₹ करोड़)

होटल, गेस्ट हाउस, होम-स्टे :            280

नाविक, गाइड, घाट सेवाएं :               110

फूल, पूजा सामग्री :                              160

मिठाई, खाद्य-पेय :                               150

बनारसी साड़ी, हस्तशिल्प :                140

परिवहन (ऑटो, -रिक्शा, टैक्सी) : 90

अन्य छोटे व्यवसाय :                           120

कुल काशी :                                          800 से 1000

पूर्वांचल : जिला-स्तरीय संयुक्त कारोबार अनुमान

क्षेत्र         अनुमानित कारोबार (₹ करोड़)

वाराणसी 800 से 1000

गोरखपुर 420

बलिया 260

आज़मगढ 300

जौनपुर 240

भदोही 180

मिर्ज़ापुर 200

अन्य जिले 300 से 400

कुल पूर्वांचल : 2500 से 3000

रोज़गार प्रभाव (संक्षेप में)

भारतः 1.8 से 2 करोड़ अस्थायी रोजगार

उत्तर प्रदेशः 22 से 25 लाख लोग

काशीः 2.5 से 3 लाख लोग

पूर्वांचलः 6 से 7 लाख लोग


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