Wednesday, 5 April 2023

जायसवाल सहित वैश्य समाज की राजनीतिक उपेक्षा बर्दाश्त नहीं : मनोज जायसवाल

जायसवाल सहित वैश्य समाज की राजनीतिक उपेक्षा बर्दाश्त नहीं : मनोज जायसवाल

राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद लोकसभा में आबादी के अनुपात में राजनीतिक भागीदारी नगण्य

एकजुट हो करना होगा संघर्ष

सुरेश गांधी

वाराणसी। राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद लोकसभा में जायसवाल सहित पूरे वैश्य समाज की लगातार उपेक्षा की जा रही है। जायसवाल, कलवार, कलाल, ब्याहुत, गुप्ता, शिवहरे, अहलूवालिया, चौधरी, चौकसी, नेवाड़ा, गुलहरे, बाटम, सुहालका, वालिया सहित पूरे वैश्य समाज को आबादी के अनुपात में राजनीतिक भागदारी नहीं है। ताज्जुब है राजस्थान, कर्नाटक बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तराखंड पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में वैश्य समाज की बड़ी आबादी होने के बाद भी उन्हें राजनीतिक हक नहीं मिल रहा है। यह बातें जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज जायसवाल ने कहीं।

पत्रकारों से बातचीत करते हुए मनोज जायसवाल ने कहा कि देशभर में फैले 40 करोड़ से भी अधिक वैश्य समाज है। लेकिन इतनी बड़ी संख्या बल के बावजूद इनके वैधानिक अधिकारों में सेंधमारी की जा रही है। ऐसे में अब और उपेक्षा बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। खासकर बीजेपी द्वारा जिसे वैश्य समाज का बड़ी आबादी उससे जुड़ी है और वह सिर्फ वोटबैंक ही समझती है। मनोज जायसवाल ने कहा कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित पूरे देश में जायसवाल क्लब अपनी राजनीतिक भागीदारी हिस्सेदारी के लिए अभियान चला रही है। यह आंदोलन तब तक चलेगा जब तक उसे अपना हक नहीं मिल जाता। मनोज जायसवाल ने समाज के लोगों से राजनीति के क्षेत्र में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूक होने का आह्वान करते हुए कहा कि यूपी में 403 विधानसभा में से 110 सीटें ऐसी हैं, जिनमें वैश्य समाज की बाहुल्यता है। इन विधान सभाओं में वैश्य समाज की आबादी 60 से 80 हजार के बीच है। इसके बाद भी समाज को आबादी के हिसाब से ना ही टिकट नहीं दी जाती और ना ही एमएलसी मनोनीत किया जाता है। कुछ ऐसा ही राजस्थान , कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार तमिलनाडू में भी है। अफसोस है राजस्थान जैसे राज्य में समाज के लोगों की विधानसभा राज्यसभा में भागदारी शून्य है। हालांकि इसके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं। समाज के लोगों को जागरूक होने की जरूरत है।

मनोज जायसवाल ने कहा कि देश में 40 करोड़ की आबादी वाला वैश्य समाज राजनीति में किसी को भी जीरो से हीरो बनाने की क्षमता रखता है। ऐसे में हार जीत की चिंता किए बिना चुनौती स्वीकारें और राजनीति में भागीदारी बढ़ाएं। भाजपा का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि निकाय चुनावों में यदि पार्टियां उनकी आबादी के अनुपात में प्रत्याशी उतारे तो उनके खिलाफ वोटिंग करें। उन्होंने कहा कि भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनना है, तो वैश्य समाज को मजबूत करना होगा। उन्होंने कहा कि वैश्य समाज में भी ठेला चलाकर और कपड़ा सिलकर पेट भरने वाले लोग हैं। ऐसे वर्ग को आरक्षण दिलाने के लिए वैश्य समाज चुनावों में वोट का बहिष्कार करने पर विचार करेगा। मनोज जायसवाल ने बिना लाग लपेट के कहा कि समाज की उपेक्षा कर अब कोई राजनीतिक दल राजनीति नहीं कर सकता। समाज के लोग अब अपनी ताकत समझ चुके हैं। हमलोग समाज हक और अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने लोगों में जोश भरते हुए कहा कि जब तक हम हक और अधिकार नहीं ले लेते तब तक पीछे हटने का प्रश्न ही नहीं है।

उन्होंने कहा कि जायसवाल क्लब समाज के कुलदेवता राजराजेश्वर भगवान सहस्त्राबाहुजी महराज श्रद्धेय डॉ काशी प्रसाद जायसवाल की प्रतिमा हर शहर, हर जिला मुख्यालयों पर लगवाने के साथ ही काशी प्रसाद जायसवाल को भारत रत्न दिलाने के लिए संकल्पित है। साथ ही समाज के उन महान हस्तियों जिन्होंने इस देश की सेवा में प्रमुख स्थान बनाया है, जैसे श्रीनारायण गुरु-केरला, श्रीकामराज नाडार-तमिलनाडू, डॉ राजकुमार-कर्नाटक, श्री गोठू लाछन्ना-आंध्र प्रदेश, श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया-पंजाब, श्री शिव नाडार-एचसीएल, श्री गोपाल-सह कार्यकारी इंफोसिस, डॉ गोरख प्रसाद जायसवाल-यूपी, राय बहादुर डॉ हीरालाल राय-एमपी, श्री शिबूलाल-मुख्य कार्यकारी एवं प्रबंध निदेशक इंफोसिस सहित अन्य विभूतियों की पहचान कर उन्हें समाज एवं देश में उचित स्थान दिलाने के लिए प्रयास करेंगा।  इसके अलावा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा एक-दूसरे के सहयोग के लिए तैयार करना है। इसके लिए समाज निर्माण और विकास के लिए हर व्यक्ति को आगे आना होगा। इस मौके पर कैलाश चौधरी, रामेश्वर दयाल, सूर्य प्रकाश सुहालका, हरीश कलाल,  राणा जायसवाल, सुरेश गांधी, स्वीटी जायसवाल, रश्मि जायसवाल आदि मौजूद थे।


Sunday, 2 April 2023

जूट निर्मित कालीनों को कृषि उत्पाद में शामिल कर 10 प्रतिशत इंसेंटिव की मांग

जूट निर्मित कालीनों को कृषि उत्पाद में शामिल कर 10 प्रतिशत इंसेंटिव की मांग

सीइपीसी के पूर्व प्रशासनिक सदस्य संजय गुप्ता कालीन निर्यातक बृजेश गुप्ता औद्योगिक विकास मंत्री नंदगोपाल नंदी से मिलकर पत्रक सौंपा 
उन्होंने कहा है कि अमेरिका जैसे देश कृषि उत्पादों के निर्यात बढ़ावा के लिए अपने निर्माताओं को 5 फीसदी इंसेटिव देता है तो भारत क्यों नहीं? 

सुरेश गांधी

वाराणसी। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के पूर्व प्रशासनिक सदस्य एवं सीनियर कालीन निर्यातक संजय गुप्ता एवं बृजेश गुप्ता कालीन उद्योग के विकास के लिए सदैव प्रत्यनशील रहते है। इसी कड़ी में रविवार को संजय एवं बृजेश ने सूबे के औद्योगिक विकास मंत्री नंदगोपाल नंदी से मिलकर कालीन उद्योग के विकास एवं निर्यात दर में वृद्धि संबंधित मांग पत्र सौंपा। मांग पत्र में संजय गुप्ता ने जूट निर्मित कालीनों को कृषि उत्पाद में शामिल कर 10 प्रतिशत इंसेंटिव की मांग की है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका जैसे देश कृषि उत्पादों के निर्यात बढ़ावा के लिए अपने निर्माताओं को 5 फीसदी इंसेटिव देता है तो भारत क्यों नहीं? जबकि भारतीय निर्यातक प्रधानमंत्री द्वारा के दिए गए 20 हजार करोड़ के निर्यात लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 16000 करोड़ तक पहुंच चुके है। संजय गुप्ता का दावा है कि सरकार यदि जूट निर्मित कालीनों पर 10 प्रतिशत का इंसेटिव देती है तो 2024 तक लक्ष्य को पार करते हुए 25000 करोड़ तक का निर्यात किया जा सकता है।

मांग पत्र में संजय गुप्ता ने कहा है कि कालीन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों की सराहना करते हैं। उनके प्रयास का ही प्रतिफल है कि कारपेट इंडस्ट्री में सिर्फ रोजगार बढ़ा है, बल्कि बुनकरों का पलायन भी रुका है। संजय गुप्ता ने पत्र में पीएम मोदी का ध्यानाकृष्ट कराते हुए कहा है कि अक्टूबर 2018 में वाराणसी में आयोजित इंडिया कारपेट एक्स्पों के डिजिटल उद्घाटन में आपने निर्यातकों को 10,000 करोड़ से बढ़ाकर 2024 तक 20 हजार करोड़ निर्यात का टारगेट दिया था, उसे कोविडकाल के बावजूद अब तक 16,000 करोड़ तक पहुंचा दिया गया है। ऐसे में यदि जूट निर्मित उत्पादों पर 10 प्रतिशत की इंसेटिप दिया जाएं यह लक्ष्य 2024 तक 25 हजार करोड़ तक किया जा सकता है। इसकी बड़ी वजह है कि जूट एक प्राकृतिक उत्पाद है और विदेशों में लोगों का इसके प्रति झुकाव ज्यादा है। खास यह है कि पाकिस्तान और ईरान जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका उत्पादन काफी कम है। जो हमारे लिए एक एडवांटेज है। उन्होंने कहा कि भदोही एवं मिर्जापुर से 1000 करोड़ का जूट का कारपेट निर्यात होता है। यदि सुविधा मिले तो इसे 2000 करोड़ तक कर सकते है।

संजय गुप्ता ने कहा कि निर्यात लक्ष्य तभी बढ़ सकता है जब हम मार्केटिंग के लिए होने वाले खर्च में करने इजाफा करें। क्योंकि हमारा जूट निर्मित कालीन हाथ द्वारा बनाया जाता है। जबकि अन्य प्रतिद्वंदी देश का मशीनमेड होता है। हाथ से बने होने के चलते इसमें समय ज्यादा लगता है और इसमें हमारी पूंजी ज्यादा दिनों तक फंसी रहती है। इस वजह से हम लोग अपनी पूंजी उत्पादन पर ही इन्वेस्ट करते करते खत्म कर देते हैं। जिससे हम मार्केटिंग में वह बजट नहीं दे पाते हैं, जिसकी वजह से हम अपने व्यापार को बढ़ावा नहीं दे पा रहे हैं। हमें पहले 10 प्रतिशत का अतिरिक्त इंसेटिव मिलता था जिससे हम अपने पूंजी का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा उत्पादन एवं इंसेंटिव का पैसा मार्केटिंग में लगते थे जिससे हमारा व्यापार आज इस मुकाम पर पहुंच गया परंतु पीछे कुछ सालों में डब्ल्यूटीओ के नियमों की वजह से लगभग सारी इंसेंटिव के बराबर हो गई है। चूकि जूट एक कृषि उत्पाद है जिसका कालीन बनाकर निर्यात किया जाता है। परन्तु इसे टेक्सटाइल में डालकर हमें इंसेटिव नहीं मिलता है। पर यह भी बताना चाहूंगा कि अमेरिका जैसे देश भी जब भारत को अपना कृषि उत्पाद निर्यात करते हैं तो उनके किसानों को 5 प्रतिशत इंसेटिव देते हैं। अतंः हमारा आपसे आग्रह है कि जूट से निर्मित कालीनों को कृषि उत्पाद में दर्ज करा कर 10 प्रतिशत इंसेटिव का प्रावधान बहाल करने की कृपा करें।

अमेरिका चीन है जूट का बड़ा खरीदार

बता दें, चीन और अमेरिका समेत दुनिया के 97 देश भारत से जूट और जूट से बने प्रोडक्ट का आयात करते है। अमेरिका सभी देशों में सबसे ऊपर रहा है. वहीं, इस दौरान चीन भारतीय जूट का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा है. खास यह है कि कोविड-19 महामारी के बावजूद जूट और जूट से बने उत्पादों का 2020-21 में निर्यात इससे पहले वर्ष की तुलना में 600 करोड़ रुपये अधिक रहा है. ये बढ़कर 2062.43 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. यह जूट बोर्ड के अब तक इतिहास में सबसे बड़ा आंकड़ा है. वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में जूट और जूट से बने उत्पादों का एक्सपोर्ट 1361.45 करोड़ रुपये का था. वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में 5,43,393 मीट्रिक टन के जूट और जूट से बने उत्पादों का निर्यात किया गया जबकि इससे पहले वर्ष की पहली छमाही में 4,93,399 मीट्रिक टन का निर्यात किया गया था. यह निर्यात पिछले वर्ष की समान अवधि में निर्यात किए गए जूट और जूट से बने उत्पाद के मूल्य के संदर्भ में 22.1 फीसदी की वृद्धि थी जबकि निर्यात की मात्रा के संदर्भ में वृद्धि 10.1 प्रतिशत थी. यह रुझान यह दर्शाता है कि वर्ष के आखिर में जूट निर्यात अब तक के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच जाएगा. इस दौरान चीन भारतीय जूट का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा, जिसने भारत के कुल जूट निर्यात में मूल्य के संदर्भ में 23 फीसदी और मात्रा के संदर्भ में 37 फीसदी जूट भारत से मंगाए. इन दो देशों के अलावा भारतीय जूट के बड़े आयातक देशों में नीदरलैंड, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, इटली, जर्मनी और कनाडा आदि शामिल रहे.

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