जूट निर्मित कालीनों को कृषि उत्पाद में शामिल कर 10 प्रतिशत इंसेंटिव की मांग
सीइपीसी के पूर्व प्रशासनिक सदस्य संजय गुप्ता व कालीन निर्यातक बृजेश गुप्ता औद्योगिक विकास मंत्री नंदगोपाल नंदी से मिलकर पत्रक सौंपा
सुरेश गांधी
वाराणसी। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के पूर्व प्रशासनिक
सदस्य एवं सीनियर कालीन निर्यातक संजय गुप्ता एवं बृजेश गुप्ता कालीन उद्योग के विकास के
लिए सदैव प्रत्यनशील रहते है। इसी कड़ी में रविवार को संजय एवं
बृजेश ने सूबे के
औद्योगिक विकास मंत्री नंदगोपाल नंदी से मिलकर कालीन
उद्योग के विकास एवं
निर्यात दर में वृद्धि
संबंधित मांग पत्र सौंपा। मांग पत्र में संजय गुप्ता ने जूट निर्मित
कालीनों को कृषि उत्पाद
में शामिल कर 10 प्रतिशत इंसेंटिव की मांग की
है। उन्होंने कहा है कि अमेरिका जैसे देश कृषि उत्पादों के निर्यात बढ़ावा के लिए अपने निर्माताओं को 5 फीसदी इंसेटिव देता है तो भारत क्यों नहीं? जबकि भारतीय निर्यातक प्रधानमंत्री द्वारा के दिए गए
20 हजार करोड़ के निर्यात लक्ष्य
के सापेक्ष अब तक 16000 करोड़
तक पहुंच चुके है। संजय गुप्ता का दावा है
कि सरकार यदि जूट निर्मित कालीनों पर 10 प्रतिशत का इंसेटिव देती
है तो 2024 तक लक्ष्य को
पार करते हुए 25000 करोड़ तक का निर्यात
किया जा सकता है।
मांग पत्र में संजय गुप्ता ने कहा है
कि कालीन उद्योग को बढ़ावा देने
के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों की
सराहना करते हैं। उनके प्रयास का ही प्रतिफल
है कि कारपेट इंडस्ट्री
में न सिर्फ रोजगार
बढ़ा है, बल्कि बुनकरों का पलायन भी
रुका है। संजय गुप्ता ने पत्र में
पीएम मोदी का ध्यानाकृष्ट कराते
हुए कहा है कि अक्टूबर
2018 में वाराणसी में आयोजित इंडिया कारपेट एक्स्पों के डिजिटल उद्घाटन
में आपने निर्यातकों को 10,000 करोड़ से बढ़ाकर 2024 तक
20 हजार करोड़ निर्यात का टारगेट दिया
था, उसे कोविडकाल के बावजूद अब
तक 16,000 करोड़ तक पहुंचा दिया
गया है। ऐसे में यदि जूट निर्मित उत्पादों पर 10 प्रतिशत की इंसेटिप दिया
जाएं यह लक्ष्य 2024 तक
25 हजार करोड़ तक किया जा
सकता है। इसकी बड़ी वजह है कि जूट
एक प्राकृतिक उत्पाद है और विदेशों
में लोगों का इसके प्रति
झुकाव ज्यादा है। खास यह है कि
पाकिस्तान और ईरान जैसे
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका उत्पादन काफी कम है। जो
हमारे लिए एक एडवांटेज है।
उन्होंने कहा कि भदोही एवं
मिर्जापुर से 1000 करोड़ का जूट का
कारपेट निर्यात होता है। यदि सुविधा मिले तो इसे 2000 करोड़
तक कर सकते है।
संजय गुप्ता ने कहा कि
निर्यात लक्ष्य तभी बढ़ सकता है
जब हम मार्केटिंग के
लिए होने वाले खर्च में करने इजाफा करें। क्योंकि हमारा जूट निर्मित कालीन हाथ द्वारा बनाया जाता है। जबकि अन्य प्रतिद्वंदी देश का मशीनमेड होता
है। हाथ से बने होने
के चलते इसमें समय ज्यादा लगता है और इसमें
हमारी पूंजी ज्यादा दिनों तक फंसी रहती
है। इस वजह से
हम लोग अपनी पूंजी उत्पादन पर ही इन्वेस्ट
करते करते खत्म कर देते हैं।
जिससे हम मार्केटिंग में
वह बजट नहीं दे पाते हैं,
जिसकी वजह से हम अपने
व्यापार को बढ़ावा नहीं
दे पा रहे हैं।
हमें पहले 10 प्रतिशत का अतिरिक्त इंसेटिव
मिलता था जिससे हम
अपने पूंजी का ज्यादा से
ज्यादा हिस्सा उत्पादन एवं इंसेंटिव का पैसा मार्केटिंग
में लगते थे जिससे हमारा
व्यापार आज इस मुकाम
पर पहुंच गया परंतु पीछे कुछ सालों में डब्ल्यूटीओ के नियमों की
वजह से लगभग सारी
इंसेंटिव न के बराबर
हो गई है। चूकि
जूट एक कृषि उत्पाद
है जिसका कालीन बनाकर निर्यात किया जाता है। परन्तु इसे टेक्सटाइल में डालकर हमें इंसेटिव नहीं मिलता है। पर यह भी
बताना चाहूंगा कि अमेरिका जैसे
देश भी जब भारत
को अपना कृषि उत्पाद निर्यात करते हैं तो उनके किसानों
को 5 प्रतिशत इंसेटिव देते हैं। अतंः हमारा आपसे आग्रह है कि जूट
से निर्मित कालीनों को कृषि उत्पाद
में दर्ज करा कर 10 प्रतिशत इंसेटिव का प्रावधान बहाल
करने की कृपा करें।
अमेरिका व चीन है जूट का बड़ा खरीदार
बता दें, चीन और अमेरिका समेत
दुनिया के 97 देश भारत से जूट और
जूट से बने प्रोडक्ट
का आयात करते है। अमेरिका सभी देशों में सबसे ऊपर रहा है. वहीं, इस दौरान चीन
भारतीय जूट का दूसरा सबसे
बड़ा आयातक देश रहा है. खास यह है कि
कोविड-19 महामारी के बावजूद जूट
और जूट से बने उत्पादों
का 2020-21 में निर्यात इससे पहले वर्ष की तुलना में
600 करोड़ रुपये अधिक रहा है. ये बढ़कर 2062.43 करोड़
रुपये पर पहुंच गया
है. यह जूट बोर्ड
के अब तक इतिहास
में सबसे बड़ा आंकड़ा है. वर्ष 2019-20 की पहली छमाही
में जूट और जूट से
बने उत्पादों का एक्सपोर्ट 1361.45 करोड़ रुपये
का था. वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली छमाही
में 5,43,393 मीट्रिक टन के जूट
और जूट से बने उत्पादों
का निर्यात किया गया जबकि इससे पहले वर्ष की पहली छमाही
में 4,93,399 मीट्रिक टन का निर्यात
किया गया था. यह निर्यात पिछले
वर्ष की समान अवधि
में निर्यात किए गए जूट और
जूट से बने उत्पाद
के मूल्य के संदर्भ में
22.1 फीसदी की वृद्धि थी
जबकि निर्यात की मात्रा के
संदर्भ में वृद्धि 10.1 प्रतिशत थी. यह रुझान यह
दर्शाता है कि वर्ष
के आखिर में जूट निर्यात अब तक के
सबसे उच्च स्तर पर पहुंच जाएगा.
इस दौरान चीन भारतीय जूट का दूसरा सबसे
बड़ा आयातक देश रहा, जिसने भारत के कुल जूट
निर्यात में मूल्य के संदर्भ में
23 फीसदी और मात्रा के
संदर्भ में 37 फीसदी जूट भारत से मंगाए. इन
दो देशों के अलावा भारतीय
जूट के बड़े आयातक
देशों में नीदरलैंड, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, इटली, जर्मनी और कनाडा आदि
शामिल रहे.
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