Thursday, 22 March 2018

कांग्रेस का ब्राह्मण कार्ड! तो बीजेपी का ओबीसी


कांग्रेस का ब्राह्मण कार्ड! तो बीजेपी का ओबीसी
फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने बीजेपी को करारी मात दी। इस जीत से अखिलेश यादव और मायावती के हौसले बुलंद हैं। माना जा रहा है कि सपा-बसपा 2019 में एकजुट होकर चुनाव में उतर सकते हैं। बीजेपी इससे अलर्ट हो गई है। दोनों के जवाब में योगी ने महादलित और अतिपिछड़ों को अलग अलग आरक्षण देने की योजना बनाई है। माना जा रहा है इससे बीजेपी का सोशल इंजिनियरिंग काफी मजबूत होगा। एक बार फिर गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित उससे जुड़ेंगे
सुरेश गांधी
उपचुनावों के नतीजों ने झटके में देश में राजनीति की नई बिसात बिछा दी है। इस बिसात पर हर विपक्षी दल मोदी को शह देना है। एक तरफ बीजेपी संगठन बना कर कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की कोशिश कर रही है और दूसरी और पूरा विपक्ष इकठा हो कर मोदी मुक्त भारत की तैयारी में है। खासकर फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में हार और सपा-बसपा के बीच बढ़ती दोस्ती को सियासी मात देने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महादलित का मास्टर कार्ड खेला है। सूत्रों की मानें तो शीघ्र ही योगी सरकार महादलित और अति पिछड़ों को आरक्षण दे सकती है। सूबे में ओबीसी नेताओं को आगे बढ़ायेगी। योगी के इस चाल से सपा-बसपा की बढ़ती नजदीकियों के चलते एकजुट हो रहे दलित-पिछड़ों के वोटबैंक को अपनी ओर खींचा जा सकता है। जबकि कांग्रेस अपने परंपरागत ब्राह्मण वोट की तरफ लौटने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस बीजेपी के ओबीसी कार्ड के जवाब में ब्राह्मण कार्ड खेलने की तैयारी एक बार फिर से की है। क्योंकि योगी के दुर्ग गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी के उपेंद्र शुक्ल की हार से ब्राह्मण समुदाय में नाराजगी बढ़ी है। उन्हें लगता है कि उपेंद्र शुक्ल की हार स्वाभाविक नहीं है बल्कि जानबूझकर राजपूतों ने उन्हें हरवाया। गोरखपुर में राजपूत बनाम ब्राह्मण के बीच वर्चस्व की जंग जगजाहिर है। ब्राह्मणों की इसी नाराजगी को कांग्रेस भुनाने की तैयारी में है। 
कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथों में आने के बाद माना जा रहा है कि यूपी में कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर की विदाई तय है। राज बब्बर को राहुल गांधी की टीम में नई जिम्मेदारी दी जा सकती है। पार्टी सूबे में कांग्रेस की कमान ब्राह्मण हाथों में सौंप सकती है। प्रमोद तिवारी, जितिन प्रसाद, राजेश मिश्रा या संदीप दीक्षित जैसे किसी एक नाम पर मुहर लगाई जा सकती है। यूपी में करीब 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। एक दौर में ये कांग्रेस का परंपरागत वोट था। कांग्रेस दोबारा इन्हें जोड़ने की कवायद कर रही है। प्रमोद तिवारी का इसी महीने राज्यसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पूरी जिम्मेदारी देने की पार्टी की योजना है। दरअसल तिवारी एक ऐसे नेता हैं, जिनके सपा और बसपा में भी अच्छे संबंध हैं। वो तो राज्यसभा भी सपा के सहयोग से ही पहुंचे थे। इन दिनों सपा और बसपा की दोस्ती परवान चढ़ रही है. ऐसे में तिवारी सपा-बसपा के साथ कांग्रेस को भी मजबूती से खड़ा कर सकते हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस सूबे में पार्टी की कमान ब्राह्मण हाथों में सौंपकर चार उपाध्यक्ष बनाकर संगठन में नया प्रयोग कर सकती है। हाल ही में कांग्रेस का दामन थामने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी और राहुल के करीबी दीपक सिंह को सूबे का उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। सोनिया गांधी के संसदीय सीट के तहत आने वाले रायबरेली सदर से विधायक बनी अदिति सिंह और प्रमोद तिवारी की बेटी और विधायक आराधना मिश्रा को भी महिला कांग्रेस में बड़े पद दिए जा सकते हैं।
बता दें, यूपी के उपचुनाव में हार से बीजेपी के मिशन 2019 और पार्टी कैडर को झटका लगा है। पार्टी अब मिशन 2019 के तहत सपा और बसपा की दोस्ती को मात देने के लिए अपनी मौजूदा रणनीति में बदलाव करके दोबारा से सोशल इंजीनियरिंग पर लौटने की रणनीति बना रही है। बीजेपी यूपी में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लालू यादव के फामूर्ले को अपनाना चाहती है। क्योंकि बिहार के दलित वोटबैंक में इसी फॉर्मूले से सेंध लगाई गयी थी और दोनों ने अपना वोट बैंक तैयार किया था। इसी का नतीजा है कि वे मौजूदा दौर में बिहार की सत्ता में काबिज हैं। पार्टी इसके तहत ओबीसी नेताओं को संगठन से लेकर सरकार तक में आगे बढ़ा सकती है। माना जा रहा है कि जल्द ही योगी के मंत्रिमंडल में फेरबदल किया जाएगा और ओबीसी मंत्रियों को खास तवज्जो दी जाएगी। बता दें कि बीजेपी के सहयोगी दल भी सूबे में ओबीसी को आगे बढ़ाने की बात उठा रहे हैं। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर इशारों-इशारों में कहते हैं कि सूबे में बीजेपी को सीएम की कुर्सी पर योगी आदित्यनाथ के बजाए केशव प्रसाद मौर्य को बिठाना चाहिए था। बीजेपी के वरिष्ठ रणनीतिकार ने स्वीकार किया कि सपा-बसपा 2019 चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड की राजनीति कर रही है। इसीलिए बीजेपी अपनी रणनीति में बदलाव पर काम कर रही है।
गौरतलब है कि देश में कई बड़े राज्य हैं जहां पर गठबंधन की राजनीति हावी है। ऐसे में अगर विपक्ष के समीकरण फिट हो गए तो फिर नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बड़ी मुश्किल बन जाएगी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी-बिहार में जबर्दस्त सोशल इंजीनियरिंग की थी। बीजेपी ने गैर यादव पिछड़ी जातियों के अपने पक्ष में लामबंद किया था और इसकी वजह से पार्टी को हिंदी पट्टी में जबर्दस्त सफलता भी मिली थी। लेकिन उपचुनावों के नतीजों से ऐसा लगता है कि बीजेपी का यह समीकरण अब टूट रहा है। इस जीत की एक बड़ी वजह यह माना गया था कि बीजेपी ने गैर यादव पिछड़ी जातियों का जबर्दस्त समीकरण बनाते हुए एक बहुत बड़ा वोट हिस्सा अपने पाले में कर लिया था। बीजेपी ने हिंदुत्व, सामाजिक समरसता और राष्ट्रवाद जैसे नारों को जोर-शोर से उछालते हुए इस वर्ग में अपनी अच्छी पैठ बना ली। भाजपा ऐतहासिक रूप से अपने लिए सबसे बड़ा राजनीतिक खतरा दलितों, पिछड़ों के बीच राजनीतिकसमझौतेको मानती रही है। 
यही वजह भी रहा कि संपूर्ण आरक्षण का विरोध करने के बजाय पिछड़ों को जोड़ने के लिए सोशल इंजीनियरिंग और साम्प्रदायिकता के रास्ते को और धारदार बनाया। दलितों के बीच समरसता के लिए भोज भात खाने का अभियान चलाया। इसके साथ ही दलितों के अंदर साम्प्रदायिक की भावना से सशक्तिकरण का मनोविज्ञान तैयार किया। गठबंधन के इस दौर में नीतिश के बाद अब ममता बनर्जी में क्षेत्रीय पार्टियों को तीसरे मोर्चे का मसीहा नजर रहा है। एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल दीदी से मुलाकात कर चुके हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी उनके संपर्क में हैं। शायद इसीलिए उन्होंने पार्टी के नेताओं से कहा है कि वे आने वाले पंचायत चुनावों पर ध्यान केंद्रित करें, जबकि वे खुद बड़ी जिम्मेदारियों की तरफ ध्यान देंगी। जाहिर है, उनकी नजर किसी बड़ी योजना पर है। कांग्रेस ने भी स्वीकार लिया कि अगले लोक सभा चुनावों में वह मोदी का अकेले सामना नहीं कर सकती। जबकि बीजेपी चाहती है कि अगला चुनाव मोदी बनाम राहुल हो जाए। ऐसा होने पर सरकरा का पांच साल का काम पीछे रह जायेगा और यह बीजेपी के फायदे में होगा।

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