Monday, 30 April 2018

बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज

बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज
सुबह श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी, शाम को बुद्ध मंदिरों में जगमगाएं दीपों की श्रृंखला 
सुरेश गांधी 
शहर हो देहात, सारनाथ हो या बोधगया या कुशीनगर से लेकर सोमवार को दुनियाभर में भगवान गौतम बुद्ध की जयंती धूमधाम से मनाई जा रही
है। हर जगह बुद्धं शरण गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज सुनाई दे रही है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध नारायण के अवतार हैं, उन्होंने 2500 साल पहले धरती पर लोगों को अहिंसा और दया का ज्ञान दिया था। बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। इसी वजह से हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।सुबह से लेकर देर शाम तक जगह-जगह बुद्ध पूजा व वंदना, संगोष्ठी, भंडारा, दीक्षा समारोह, धम्म सभा व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। धम्म यात्रा निकाली गयी। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत की। बुद्ध मंदिरों में सुबह से लेकर देर रात तक रौनक रही। श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। समारोह का मुख्य आकर्षण बुद्ध चित्र प्रदर्शनी, बौद्ध विद्वान व भिक्खुओं का अभिभाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रम (बुद्ध एकांकी, नृत्य, कविता, संगीत का भव्य प्रदर्शन) सामूहिक भंडारा रहा। शाम में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत बुद्ध एकांकी, नृत्य, कविता, संगीत का प्रदर्शन किया गया। 
भगवान बुद्ध ने चार आर्यसत्य बताए हैं जिसके माध्यम से मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा दी है। दुख है। दुख का कारण है। दुख का निवारण है। दुख निवारण का उपाय है। महात्मा बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और संन्यास ले लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुद्ध जयंती के मौके पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इसके बाद कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि मौजूदा वक्त में विश्व को बचाने के लिए बुद्ध का करुणा प्रेम का संदेश काम आ सकता है और इसके लिए बुद्ध को मानने वाली शक्तियों के सक्रिय भूमिका निभानी होगी। पीएम मोदी ने कहा कि भगवान बुद्ध कहते थे कि किसी के दुख को देखकर दुखी होने से ज्यादा बेहतर है कि उस व्यक्ति को उसके दुख को दूर करने के लिए तैयार करो, उसे सशक्त करो। उन्होंने कहा कि इस बात की खुशी है कि हमारी सरकार करुणा और सेवाभाव के उसी रास्ते पर चल रही हैं जिस रास्ते को भगवान बुद्ध ने हमें दिखाया था। सारनाथ और बोधगया में बुद्ध की धरोहर संरक्षित करने वाली संस्थाओं को वैशाख सम्मान मिलने पर पीएम मोदी ने बधाई दी। उन्होंने कहा हम गर्व से कह सकते है कि भारत से निकली हर विचारधारा ने मानवहित को सर्वोपरि रखा। उन्होंने कहा कि बुद्ध के विचारों ने नवचेतना जगाने के साथ-साथ एशिया के कई देशों के राष्ट्रीय चरित्र को बुद्ध के विचार ही परिभाषित कर रहे हैं। बुद्ध का अर्थ बताते हुए पीएम मोदी ने कहा कि हिंसा के लिए प्रेरित मन को शुद्ध स्थिति में लाना ही बुद्ध है। उन्होंने कहा कि जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर मनुष्य और मनुष्य के भीतर भेद करने का संदेश न भारत का हो सकता है, न बुद्ध का हो सकता है, धरती पर इस विचार के लिए जगह नहीं हो सकती। 

मोदी-जिनपिंग के बीच जुगलबंदी तो ठीक सजगता भी जरुरी

मोदी-जिनपिंग के बीच जुगलबंदी तो ठीक सजगता भी जरुरी 
              इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर चीन भारत साथ साथ चले तो न सिर्फ वैश्विक नेतृत्व इनके हाथ में होगा, बल्कि आतंक की फैक्ट्री पाकिस्तान पर नकेल कसी जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो दिवसीय अनौपचारिक वुहान दौरे के बाद से कुछ इसी तरह के कयास लगाएं जा रहे है। माना जा रहा है कि मोदी और जिनपिंग की जुगलबंदी दोनों देशों के बीच नए युग की शुरुआत होती दिख रही है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन एक ऐसा पड़ोसी है जो पाकिस्तान की तरह घिनौनी हरकत तो नहीं करता लेकिन पीठ में छुरा भोकने से भी बाज नहीं आता। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि मोदी जिनपिंग की जुगजबंदी भारत-चीन की जनता के साथ पूरी दुनिया के लिए हितकारी तो हैं। पर भरोसा भी आंख मूंद कर नहीं बल्कि सावधानी के बीच तरेरे रहने क जरुरत है  
             सुरेश गांधी 
            बेशक, डोकलाम विवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बता दिया अब 1962 वाला भारत नहीं है। भारत किसी भी संकट या उसे आंखे दिखाने वाले को सबक सिखा सकता है। यही वजह भी है कि चीन ने डोकलाम विवाद को खत्म करने में ही अपनी भलाई समझा और अब भारत से दोश्ताना के लिए दो दो हाथ करने को तैयार है। इसकी झलक दो दिवसीय दौरे के दौरान वुहान में भी देखने को मिला। वुमान में दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत को भी इसी कड़ी से जोड़क देखा जा रहा है। कहा जा सकता है विश्व की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन और भारत आपसी मतभेदों को दूर करने और सहयोग को बढ़ाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। मोदी और जिनपिंग दोनों का ही यह मानना है कि अगर वे आपसी मतभेद को दूर करने और सहयोग को बढ़ाने में कामयाब होते हैं, तो वे दुनिया में अपना प्रभाव स्थापित कर सकते हैं। चीनी राष्ट्रपति का संकेत साफ है कि अब चीन और भारत एशिया में बादशाहत कायम करने की प्रतिद्वंदिता से ऊपर उठकर वैश्विक नेतृत्व करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। वहीं, पीएम मोदी भी मानते हैं कि दुनिया की 40 फीसदी जनसंख्या का भला करने का दायित्व चीन और भारत के ऊपर है। 40 प्रतिशत जनसंख्या का भला करने का मतलब विश्व को अनेक समस्याओं से मुक्ति दिलाने का एक सफल प्रयास है। इस महान उद्देश्य को लेकर दोनों देशों का मिलना, साथ चलना और संकल्पों को पूरा करना अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसर है। 
                 मोदी जिनपिंग की यह सोच दोनों देशों एवं उसके जनता के लिए सही भी है। लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी चीन की धोखे और अविश्वास वाली उस मानसिकता को खत्म करने में कामयाब हो पाएंगे जिसके चलते दोनों देशों के संबंध एक कदम आगे बढ़ते हैं तो दो कदम पीछे हट जाते हैं। चीन की इसी मानसिकता के चलते तीस साल के फासले पर भारत और चीन का रिश्ता जस का तस खड़ा है। बातों में भरोसे की कोशिश लेकिन जमीन पर अविश्वास का माहौल हमेशा बना रहता है। हमें हिन्दी चीनी भाई भाई के नारे को भी नहीं भूलना चाहिए। इस नारे का ही तकाजा था कि साल 2017 के अंत तक भारत में चीन का निवेश 532 अरब रुपये का आंकड़ा पार कर गया है। या यू कहें  चीन ने भारत के बाजार पर काफी हद तक कब्जा कर रखा है। या यू कहे चीन के लिए भारत कमाऊ पुत है। इसके बावजूद डोकलाम को लेकर तीन महीने तक दोनों देशों के बीच खींचतान जारी रही। पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में चीन के दखल को लेकर विवाद अभी भी जस का तस है। मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की फाइल अभी चीन के चलते ही अटका पड़ा है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या भारत से रिश्तों की कीमत पर वो यहां सड़क और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर बनाता रहेगा? आतंकी अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने में भारत की कोशिशों का समर्थन करेगा या आगे भी अड़ंगा ही लगाएगा? क्या न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी एनएसजी में भारत की एंट्री को चीन समर्थन के लिए तैयार होगा? क्या उस कारोबारी असंतुलन को मिटाने की है, जिसमें चीन ने तो भारत पर कब्जा रखा है लेकिन भारत का चीन में उसके कारोबार का एक चैथाई भी नहीं हैं? ये ऐसे सवाल है जिसके उत्तर का इंतजार हमेशा रहेगा। 
             फिरहाल, इन सवालों के बीच अगर मोदी जिनपिंग के बीच दोस्ती आगे बढ़ती है तो स्वागतयोग्य है। क्योंकि पिछले साल डोकलाम में 72 दिन तक चले गतिरोध के बाद विश्वास बहाल करने और संबंध सुधारने के भारत और चीन के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है। वैसे भी पड़ोसी और बड़ी ताकतें होने के नाते यह लाजमी है कि दोनों देशों में मतभेद होंगे। लेकिन समय पर विवाद सलट जाएं तो सोने पर सुहागा से भी कम नहीं। ऐसी स्थिति में शांतिपूर्वक और आपसी सम्मान को बनाए रखते हुए उसका निपटारा हो ही जाना चाहिए और इसके लिए कोशिश की जानी चाहिए। सौहार्दपूर्ण रिश्तों के लिए जरूरी है कि दोनों देशों की सीमाओं पर शांति बनी रहे। ऐसे में दोनों देशों को आपसी भरोसे को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करना होगा। यह कोशिश उस वक् देखने को मिली जब चीन जैसी महाशक्ति का राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आगवनी के लिए एअरपोर्ट पर 52 सेकेंड तक इंतजार किया। फिर 28 सेकेंड तक मोदी से हाथ मिलाए रखा। दोनों शीर्ष नेता कई बार बहुत अच्छे मूड में दिखाई दिए। डोकलाम सीमा विवाद के बाद श्रीलंका, नेपाल और मालदीव में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप के मद्देनजर मोदी और शी की यह अनौपचारिक वार्ता महत्वपूर्ण है। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच सीमा विवाद सुलझाने समेत कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच भारत-चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और संयम बनाए रखने को लेकर सहमति बनी है। दोनों नेता अपनी-अपनी सेनाओं को सामरिक दिशानिर्देश देने और शांति बनाए रखने के लिए जरूरी स्ट्रैटेजिक मेकेनिज्म मजबूत करने पर राजी हुए हैं। जो अच्छे संकेत है। 
              हो सकता है जिनपिंग मोदी से गहरी दोस्ती करके दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहते हो। हो सकता है अब वह एशिया में भारत से प्रतिद्वंदिता की बजाय वैश्विक दबदबा बनाने की कोशिश में हो। लेकिन इसमें भारत का भी हित निहित है। क्योंकि पड़ोसी से दुश्मनी किसी भी दशा में ठीक नहीं है। भारत और चीन के बीच 3,488 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है। दोनों देशों को जल्द ही हॉटलाइन से भी जोड़ा जा सकता है। दोनों देशों को हॉटलाइन से कनेक्ट करने का सीनियर सैन्य नेतृत्व बेसब्री से इंतजार कर रहा है। हालांकि दोनों देश हॉटलाइन से कब जुड़ेंगे, इसको लेकर अभी विस्तार से जानकारी नहीं मिल पाई है। पीएम मोदी का यह दौरा औपचारिक नहीं था, जिसके मद्देनजर दोनों देशों के बीच कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ। लेकिन दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच जो बातचीत हुई, उसका भविष्य में कई मसलों पर असर दिखने की संभावना है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच इस तरह अनौपचारिक वार्ता हुई  हो। पीएम मोदी ने खुद दुनिया के नेताओं से इस परंपरा को आगे बढ़ाने का आह्वान किया है। हालांकि, इस वार्ता में कोई आधिकारिक समझौता नहीं हुआ, लेकिन सीमा विवाद और आतंकवाद जैसे तमाम मुद्दों पर दोनों नेताओं के बीच सकारात्मक बातचीत हुई। भारत और चीन के बीच अफगानिस्तान मसले को लेकर अहम बातचीत हुई। दोनों देश अफगानिस्तान में साथ मिलकर काम करेंगे। अफगान प्रोजेक्ट में दोनों देशों की आर्थिक भागीदारी होगी। दोनों देशों ने अफगानिस्तान में शांति कायम करने और आर्थिक मोर्चे पर मिलकर काम करने पर सहमति जताई है, ताकि यहां से आतंकवाद को जड़ से खत्म किया जा सके। 
           दोनों नेताओं ने विशेष प्रतिनिधियों द्वारा विवाद का बेहतर हल तलाशने का समर्थन किया। 2005 में जो पैरामीटर थे, उन्हीं के आधार पर सेकेंड स्टेज में बात होगी। साथ ही इस बाबत दोनों नेताओं ने फैसला किया कि वे अपनी-अपनी सेनाओं को सामरिक दिशानिर्देश जारी करेंगे ताकि हालात बेहतर हो सकें और डोकलाम जैसी स्थिति न पैदा हो। इस बात भी सहमति बनी कि दोनों देशों की सेनाओं के बीच संचार बढ़े और परस्पर विश्वास पैदा हो। कृषि, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और पर्यटन क्षेत्र पर भी बात की। साथ ही मौजूदा संस्थागत तंत्र को भी मजबूत किया जाएगा ताकि सीमाई इलाकों में हालात संभाले जा सकें। दोनों ही देश तेजी से विकसति हो रही अर्थव्यवस्था हैं। चीन और भारत, दोनों का काफी बड़ा घरेलू बाजार है। दोनों देशों की अर्थव्यवस्था दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए सबसे बेहतर माध्यम है। 1980 में भारत-चीन की अर्थव्यवस्था समान थी, चीन ने लगातार औद्योगिकीकरण पर काम किया, आज उसकी अर्थव्यवस्था भारत से पांच गुना अधिक है। अगर भारत अपने रवैए में सुधार करता है, तो चीन से उसे अधिक उत्पाद, क्षमता और इंफ्रास्ट्रक्चर मिल सकता है जो भारतीयों की जरूरत है। ये सवाल इसलिए खड़े हैं कि प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद ही पीएम मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत बुलाया था लेकिन जिस वक्त शी जिनपिंग साबरमती नदी के किनारे झूला झूल रहे थे, उसी वक्त चीनी सैनिक जम्मू और कश्मीर के चुमार में घुस आए थे। 1988 में जिस वक्त राजीव गांधी चीनी राष्ट्रपति डेंग जिओपिंग से मुलाकात कर रहे थे, उस वक्त समडोरोंग में चीन का अतिक्रमण था। दरअसल 1954 में तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन के साथ नए रिश्तों की बुनियाद रखने के मकसद से वहां की यात्रा की थी। लेकिन वो बुनियाद कमजोर निकला क्योंकि भारत के भरोसे के सीमेंट में उसने धोखे की रेत मिला दी.। तब से कोशिशें बहुत हुईं लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अब फिर से प्रयास हो रहा है तो उम्मीद रखने में हर्ज क्या है। 

Sunday, 29 April 2018

वैशाख व बुद्ध पूर्णिमा: आज पूरे होंगे हर बिगड़े काम

वैशाख व बुद्ध पूर्णिमा: आज पूरे होंगे हर बिगड़े काम 
          वैशाख मास की एकादशी हो या अमावस्या, सभी तिथियां खास है। लेकिन इनमें वैशाख पूर्णिमा का विशेष महत्व है। क्योंकि इस दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी दिन बोध गया में पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध ने गोरखपुर से 50 किलोमीटर दूर स्थित कुशीनगर में महानिर्वाण की ओर प्रस्थान किया था। दुनियाभर के बौद्ध गौतम बुद्ध की जयंती को धूमधाम से मनाते हैं...
            सुरेश गांधी 
            इस बार वैशाख पूर्णिमा 30 अप्रैल सोमवार को है। सोमवार को पूर्णिमा का योग होने से सोमवती पूर्णिमा का योग बन रहा है। खास यह है कि इस बार वैशाख पूर्णिमा पर 3 साल बाद सिद्धि योग का शुभ संयोग बन रहा है। अब यह संयोग वर्ष 2022 में बनेगा। इस दिन स्वाति नक्षत्र और तुला राशि का चंद्रमा समृद्धि व वैभव प्रदान करेगा। यह योग कैरियर और कारोबार में सफलता के साथ साथ दान से लेकर खरीदारी तक के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन सत्य विनायक व्रत रखने का विशेष विधान है। मान्यता है कि इस दिन यह व्रत रखने से व्रती की दरिद्रता दूर होती है। उसके बिगड़े काम बनते हैं। इस शुभ योग में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है। वैशाख पूर्णिमा को ‘सत्य विनायक पूर्णिमा‘ के तौर पर भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने उनसे मिलने पहुंचे उनके मित्र सुदामा को सत्य विनायक व्रत करने की सलाह दी थी, जिसके प्रभाव से उनकी दरिद्रता समाप्त हो सकी। इसके अलावा इस दिन ‘धर्मराज‘ की पूजा का भी विधान है। धर्मराज की इस दिन पूजा-उपासना से साधक को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है। इसे सोमवती पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गुरू का विशाखा नक्षत्र भी है। इस दिन भगवान बुद्ध की जयंती भी है जिसे बुद्ध पूर्णिमा कहते हैं। इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान भी मिला था इसी दिन भगवान बुद्ध ने अपनी देह का त्याग भी किया था। 
          वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन से बहुत गहराई से जुड़ी हुई है। इस दिन भगवान बुद्ध का ध्यान करना विशेष लाभदायक होता है। दुनिया भर में इस दिन भगवान बुद्ध की याद में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इस दिन को दैवीयता का दिन भी माना जाता है। इस दिन ब्रह्म देव ने काले और सफेद तिलों का निर्माण भी किया था। अतः इस दिन तिलों का प्रयोग जरूर करना चाहिए। इस दिन बृहस्पति चंद्र का अद्भुत योग भी होगा। स्वास्थ्य और जीवन का कारक सूर्य अपनी उच्च राशि में होगा। इसके अलावा सुख को बढ़ाने वाला ग्रह शुक्र भी स्वगृही होगा। इस पूर्णिमा को स्नान और दान करने से चन्द्रमा की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। साथ ही साथ आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती जाएगी। मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति के पिछले कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। दीप जलाते हैं। रंगीन पताकाओं से सजावट की जाती है और बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं। इस दिन भक्त भगवान महावीर पर फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती और मोमबत्तियां जलाते हैं तथा भगवान बुद्ध के पैर छूकर शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इस दिन लोग व्रत-उपवास करते हैं। बौद्ध और हिंदू दोनों ही धर्मों के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। 
चंद्रमा करेगा धन की अमृत वर्षा  
            शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, विष्णु भगवान और माता लक्ष्मी की पूजा करने से चारो तरफ से सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। सिद्धि योग और सोमवार के चलते यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। कहते है पूर्णिमा पर ज्योतिष में बताए उपायों को विधि विधान से करने से जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का अंत हो जाता है। चंद्रमा को सफेद रंग और शीतलता का प्रतीक माना गया है। इसलिए इस योग में दूध और शहद के उपाय से धन, मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है। पूर्णिमा की तिथि पर सुबह स्नान के बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजन करने के बाद दिनभर अपने मन में ऊं सोम सोमाय नमः के मंत्र का जप करना चाहिए। पूर्णिमा की रात को कच्चे दूध में पूजा के उपयोग में लाने वाले शहद और चंदन को मिलाकर उसमें अपनी छाया देखें फिर चंद्रमा को अघ्र्य दें। इस तिथि को चन्द्रमा सम्पूर्ण होता है। या यूं कहें सूर्य और चन्द्रमा समसप्तक होते हैं। इस तिथि पर जल और वातावरण में विशेष ऊर्जा आ जाती है। चन्द्रमा इस तिथि के स्वामी होते हैं। अतः इस दिन हर तरह की मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। इस दिन स्नान, दान और ध्यान विशेष फलदायी होता है। इस दिन सत्यनारायण देव या शिव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। भविष्य पुराण और आदित्य पुराण के अनुसार बैशाख पूर्णिमा अत्यन्त पवित्र और फलदायिनी बताई गयी है। इस दिन महीने भर से चले आ रहे बैशाख स्नान और महीने भर से चले आ रहे धार्मिक अनुष्ठान आदि की पूर्णाहुति होती है। स्वाति नक्षत्र 27 नक्षत्रों में दान में पुण्य प्रदान करने वाला है। इसके अधिपति वायुदेव हैं। इसी तरह सिद्धि योग के अधिपति गणेश है जो कि हर प्रकार के कार्य में सिद्धि प्रदान करने वाले हैं। तुला के चंद्रमा से वैभव में वृद्धि होगी। कहते है नक्षत्रों में स्वाति ऐसा नक्षत्र है जिसमें दान करने से पुण्य होता है जिसपर वायुदेव का आधिपत्य है। बता दें कि सिद्धी योग के स्वामी गणपति हैं जो अपने भक्तों को हर तरह की सिद्धी प्रदान करते हैं। तुला का चंद्रमा राज प्रताप देने वाला है। इसलिए भी इस दिन का खास महत्व है। इस दिन लक्ष्मी मां की भी खासकर पूजा की जाती है।  
पूजन विधि 
        प्रातः काल स्नान के पूर्व संकल्प लें। पहले जल को सर पर लगाकर प्रणाम करें। फिर स्नान करना आरम्भ करें। स्नान करने के बाद सूर्य को अघ्र्य दें। साफ वस्त्र या सफेद वस्त्र धारण करें, फिर मंत्र जाप करें। मंत्र जाप के पश्चात सफेद वस्तुओं और जल का दान करें। चाहें तो इस दिन जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं। इस दिन खासकर अगर लक्ष्मी मां को प्रसन्न
करना चाहते हैं तो पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीया जलाएं। पीपल के पेड़ पर इस दिन जल चढ़ाने से आपकी शनि की साढ़ेसाती कम हो सकती है। कुंवारी कन्याओं को खाना खिलाएं और उपहार दें। इससे कुछ अच्छा होगा। इस दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्रती को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इस दिन विशेष तौर से सूर्योदय से पूर्व उठकर घर में साफ-सफाई जरूर करें। पूजा के दौरान गाय के घी का दीपक जलाएं। धूप करें और कपूर जलाएं। मां लक्ष्मी को मखाने की खीर, साबू दाने की खीर या किसी सफेद मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के बाद सभी में प्रसाद बाटें. ध्यान रखें कि इस दिन घर में कलह का माहौल बिल्कुल न हो। इस दिन व्रती को जल से भरे घड़े सहित पकवान आदि भी किसी जरूरतमंद को दान करने चाहिये। स्वर्णदान का भी इस दिन काफी महत्व माना जाता है।
महात्मा बुद्ध का ज्ञान
         महात्मा बुद्ध ने हमेशा मनुष्य को भविष्य की चिंता से निकलकर वर्तमान में खड़े रहने की शिक्षा दी। उन्होंने दुनिया को बताया आप अभी अपनी जिंदगी को जिएं, भविष्य के बारे में सोचकर समय बर्बाद ना करें। बिहार के बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और उनके ज्ञान की रौशनी पूरी दुनिया में फैली। महात्मा बुद्ध का एक मूल सवाल है। जीवन का सत्य क्या है? भविष्य को हम जानते नहीं है। अतीत पर या तो हम गर्व करते हैं या उसे याद करके पछताते हैं। भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं। दोनों दुखदायी हैं। बुद्ध के जीवन में दो स्त्रियां बहुत अहम स्थान रखती हैं। एक तो उनकी मौसी महापजापति गौतमी और दूसरी सुजाता जो उनके आत्मिक जन्म का निमित्त बनी। बुद्ध की जन्मदात्री मां उनके जन्म के बाद मर गईं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। उसके लिए गौतमी ने अपने नवजात पुत्र को किसी और दाई को सौंपा और वह खुद बालक सिद्धार्थ का पालन करने लगी। गौतमी ने आगे चलकर बुद्ध से दीक्षा लेने की जिद की, उसके कारण संघ में स्त्री का प्रवेश हुआ, और वह बुद्धत्व को उपलब्ध हुई। दूसरी घटना है कि बुद्ध दिन रात बिना रुके ध्यान करते थे, इस वजह से उनका शरीर उपवास और तपस्या से क्षीण, अस्थिपंजर हो गया था। लेकिन एक पूर्णिमा के दिन उन्होंने सारे नियम तोड़ने का निश्चय किया और सहज स्वीकार भाव में बैठ गए। भोर के समय सुजाता नाम की स्त्री अपनी मन्नत पूरी करने के लिए खीर बनाकर ले आई। बुद्ध को देख कर उसे लगा, वृक्ष देवता प्रगट हुए हैं। उसने उन्हीं को भोग लगाया और खीर खाने की बिनती करने लगी। बुद्ध ने उसकी बिनती स्वीकार की और सुजाता के हाथ की खीर खाई। उसी दिन उन्हें बुद्धत्व की उपलब्धि हुई। उस दिन सुजाता उन्हें खीर नहीं खिलाती तो उनका शरीर नष्ट हो सकता था। बुद्ध की मां उनके जन्म के बाद नहीं रहीं थीं लेकिन उनकी मौसी ने अपना दूध पिलाकर उनका पोषण किया। महामानव वो होते हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी में ताउम्र कुछ ऐसी मिसाल कायम की, जिसके कारण उनको भगवान का दर्जा दिया गया। और वह अंत में देवत्व को प्राप्त होकर लोगों के पूज्य हो जाते हैं। उनके नाम पर एक विशेष धर्म जन्म लेता है। जो उस व्यक्ति के विचारों को आगे ले जाने के लिए अपने अनुयायियों को बढ़ाते हुए लोगों के अंदर नई शक्ति और नई चेतना का संचार करता है। इन्हीं में से एक थे भगवान बुद्ध, जिन्हें बौद्ध धर्म का निर्माता भी कहा जाता है। भगवान बुद्ध समय की महत्ता को बेहद अच्छी तरह से जानते थे। वह अपना हर क्षण कभी भी व्यर्थ नहीं जाने देते थे। एक बार उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला, तथागत आप हर बार विमुक्ति की बात करते हैं। आखिर यह दुःख होता किसे है? और दुःख को कैसे दूर किया जा सकता है? प्रश्नकर्ता का प्रश्न निरर्थक था। तथागत बेतुकी चर्चा में नहीं उलझना चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘अरे भाई! तुम्हें प्रश्न करना ही नहीं आया। प्रश्न यह नहीं था कि दुःख किसे होता है बल्कि यह कि दुख क्यों होता है?‘ और इसका उत्तर है कि आप निरर्थक चर्चाओं में समय न गवाएं ऐसा करने पर आपको दुःख नहीं आएगा। यह बात ठीक उसी तरह है कि किसी विष बुझे तीर से किसी को घायल कर देना और फिर बाद में उससे पूछना कि यह तीर किसने बनाया है? भाई उस तीर से लगने पर उसका उपचार जरूरी है न की निरर्थक की बातों में समय गंवाना। कई लोग, कई तरह की बेतुकी बातों में समय को पानी की तरह बहा देते हैं बहते पानी को तो फिर भी सुरक्षित किया जा सकता है लेकिन एक बार जो समय चला गया उसे वापिस कभी नहीं लाया जा सकता। इसलिए समय को सोच समझ कर खर्च करें। यह प्रकृति की दी हुई आपके पास अनमोल धरोहर है।
बुरे समय को ऐसे टालिए 
       शाम का समय था। महात्मा बुद्ध एक शिला पर बैठे हुए थे। वह डूबते सूर्य को एकटक देख रहे थे। तभी उनका शिष्य आया और आया और गुस्से में बोला, गुरुजी ‘रामजी‘ नाम के जमींदार ने मेरा अपमान किया है। आप तुरंत चलें, उसे उसकी मूर्खता का सबक सिखाना होगा। महात्मा बुद्ध मुस्कुराकर बोले, ‘प्रिय तुम बौद्ध हो, सच्चे बौद्ध का अपमान करने की शक्ति किसी में नहीं होती। तुम इस प्रसंग को भुलाने की कोशिश करो। जब प्रसंग को भुला दोगे, तो अपमान कहां बचेगा?‘। लेकिन तथागत, उस धूर्त ने आपके प्रति भी अपशब्दों का प्रयोग किया है। आपको चलना ही होगा। आपको देखते ही वह अवश्य शर्मिंदा हो जाएगा और अपने किए की क्षमा मांगेगा। बस, मैं संतुष्ट हो जाउंगा। महात्मा बुद्ध समझ गए कि शिष्य में प्रतिकार की भावना प्रबल हो उठी है। इस पर सदुपदेश का प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुछ विचार करते हुए वह बोले, अच्छा वत्स! यदि ऐसी बात है तो मैं अवश्य ही रामजी के पास चलूंगा, और उसे समझाने की पूरी कोशिश करूंगा। बुद्ध ने कहा, हम सुबह चलेंगे। सुबह हुई, बात आई-गई हो गई। शिष्य अपने काम में लग गया और महात्मा बुद्ध अपनी साधना में। दूसरे दिन जब दोपहर होने पर भी शिष्य ने बुद्ध से कुछ न कहा तो बुद्ध ने स्वयं ही शिष्य से पूछा- प्रियवर! आज रामजी के पास चलोगे न?‘ नहीं गुरुवर! मैंने जब घटना पर फिर से विचार किया तो मुझे इस बात का आभास हुआ कि भूल मेरी ही थी। मुझे अपने कृत्य पर भारी पश्चाताप है। अब रामजी के पास चलने की कोई जरूरत नहीं। तथागत ने हंसते हुए कहा, ‘यदि ऐसी बात है तो अब अवश्य ही हमें रामजी महोदय के पास चलना होगा। अपनी भूल की क्षमा याचना नहीं करोगे।‘ 
गौतम बुद्ध के कुछ प्रमुख सूत्र
         गौतम बुद्ध प्रज्ञा पुरुष थे। उन्होंने धर्म को पारंपरिक स्वरूप से मुक्त कराकर उसे ज्ञान की तलाश से जोड़ा। उन्होंने विवेक को धर्म के मूल में रखा और तमाम रुढ़ियों को खारिज किया। उन्होंने ज्ञान को सर्वोच्च महत्व दिया और उनके इन विचारों की प्रासंगिकता आज भी है।पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैलती है। तीन चीजों को लम्बी अवधि तक छुपाया नहीं जा सकता, सूर्य, चन्द्रमा और सत्य। हजार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें, अन्यथा हम अपने मन को सक्षम और शुद्ध नहीं रख पाएंगे। हम आपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते हैं, हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं। जब मन पवित्र होता है तो खुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है। हजारों दीपों को एक ही दिए से, बिना उसके प्रकाश को कम किए जलाया जा सकता है। खुशी बांटने से कभी कम नहीं होती। अप्रिय शब्द पशुओं को भी नहीं सुहाते हैं। अराजकता सभी जटिल बातों में निहित है। परिश्रम के साथ प्रयास करते रहो। आप को जो भी मिला है उसका अधिक मूल्यांकन न करें और न ही दूसरों से ईष्र्या करें। वे लोग जो दूसरों से ईष्र्या करते हैं, उन्हें मन को शांति कभी प्राप्त नहीं होती। अतीत पर ध्यान केंद्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो, वर्तमान क्षण पर ध्यान केंद्रित करो। आप चाहे कितने भी पवित्र शब्दों को पढ़ लें या बोल लें, लेकिन जब तक उन पर अमल नहीं करते उसका कोई फायदा नहीं है। इच्छा ही सब दुःखों का मूल है। जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। चतुराई से जीने वाले लोगों को मौत से भी डरने की जरुरत नहीं है। वह व्यक्ति जो 50 लोगों को प्यार करता है, 50 दुखों से घिरा होता है, जो किसी से भी प्यार नहीं करता है उसे कोई संकट नहीं है।


Friday, 27 April 2018

आरबीआई द्वारा ओवरड्यूज चार्ज वसूले जाने पर भड़के निर्यातक

आरबीआई द्वारा ओवरड्यूज चार्ज वसूले जाने पर भड़के निर्यातक 
भेजे गए शिपमेंट का भुगतान तीन माह की अवधि में न मिलने पर बैंके दो प्रतिशत अधिक वसूल रही है बिलंब ब्याज 
बैंकों के इस रवैये से निर्यातकों की नींद हराम 
वित्त मंत्री, कपड़ा मंत्री, सीइपीसी एवं एकमा को पत्र भेंजकर निर्यातकों के हित में आवश्वयक कार्रवाई करने की मांग 
           सुरेश गांधी 
          भदोही। जीएसटी रिफंड व जीएसटी ई वे बिल की समस्या से कालीन निर्यातक अभी उबर भी नहीं पाएं कि अब आरबीआई ने नई गाइडलाइन जारी कर मुश्किलें और बढ़ा दी है। निर्यातकों के मुताबिक आरबीआई के नए गाइडलाइन के तहत अब बैंके भेजे गए शिपमेंट का भुगतान तीन माह की अवधि में न मिलने पर दो प्रतिशत अधिक विलंब ब्याज वसूल रही है। बैंकों के इस रवैये से निर्यातकों की नींद हराम हो गयी है। काजीपुर के कालीन निर्यातक मुश्ताक अंसारी ने वित्त मंत्री अरुण जेटली, कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी समेत कालीन निर्यात संवर्धन परिषद एवं अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के पदाधिकारियों को पत्र भेंजकर निर्यातकों के हित में आवश्वयक कार्रवाई करने की मांग की है। साथ में चेतावनी भी दी है कि यदि इसे तत्काल नहीं रोका गया तो निर्यातक सड़क पर उतरने के लिए बाध्य होंगे। 
           

श्री मुश्ताक अंसारी ने बताया कि कारपेट विदेशों में इक्स्पोर्ट होता है। अधिकांश आयातक अनुबंध के दौरान 6 से 12 महीने तक की उधारी की शर्त पर आर्डर देते हैं। इससे भेजे गए शिपमेंट का भुगतान कभी तीन चार माह में हो जाता है तो कभी कभी सालभर तक लटका देते हैं। ऐसे में भुगतान आने में अक्सर बिलंब हो जाता है। लेकिन अब बैंकों का फरमान है कि अगर भुगतान मिलने में तीन माह से अधिक बिलंब होगा तो दो प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज लेंगे। बता दें, हाल के दिनों में भदोही समेत पूर्वांचल के कालीन निर्यातकों के तकरीबन पांच सौ करोड़ रुपये से अधिक जीएसटी रिफंड में फंसा पड़ा है। तमाम प्रयास के बाद भी उन्हें रिफंड नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में कुल लागत का बड़ी पूंजी रिफंड के रूप में फंसने से निर्यातकों का काम प्रभावित हो रहा है। छोटे निर्यातकों की कमर ही टूट ही गई हैं। ऐसे में आरबीआई का यह नया फरमान निर्यातकों के लिए काल बन गया है। श्री मुश्ताक अंसारी ने बताया कि सभी दस्तावेज पूरे होने के बाद भी हमें जीएसटी रिफंड के तहत अपना पैसा लेने में दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। सालभर से रिफंड न मिलने से कारोबार प्रभावित हो रहा है। वित्त मंत्रालय में शिकायत के बाद भी सुनवाई नहीं हो रही है। गौरतलब है कि भदोही से हर साल करीब पांच हजार करोड़ रुपये की कालीन निर्यात होती है। कालीन निर्यातकों का कहना है कि 12 फीसदी जीएसटी अदा करने के बाद कालीन निर्यात किया जाता है। इस लिहाज से अब तक करीब 500 करोड़ रुपये रिफंड मद में जमा हो चुका है। 


Thursday, 26 April 2018

व्यवस्था के ‘ढ़ाचा परिवर्तन‘ की सबक है आसाराम की सजा

व्यवस्था के ‘ढ़ाचा परिवर्तन की सबक है आसाराम की सजा 
                कानून का पालन करने वाले निष्पक्ष व निर्भिक होकर काम करें तो कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी जीत सकता है। स्वयंभू आसाराम जैसे प्रभावशाली, शक्तिशाली और वैभवशाली दुष्कर्म आरोपी को मृत्यु पर्यन्त सींखचों के पीछे डालने का फैसला न सिर्फ यही संदेश देता है, बल्कि ब्रतानियां हुकूमत की तर्ज पर कार्य कर रहे एवं अवैध वसूली में लिप्त उन पुलिसकर्मियों को सबक है, जिनकी तफतीश में न्याय नहीं पैसा ही सिर चढ़कर बोलता है। मतलब साफ है प्रत्येक पुलिस वाले को इस फैसले से प्रेरणा लेने की जरुरत है। क्योंकि सजा के पीछे पुलिस की निष्पक्षता एवं पीड़ित बच्ची और उसके परिवार की दृढ़ता ही सबसे अहम् कड़ी है। अदालत का फैसला इस बात का नजीर बनेगा कि अध्यात्म को व्यभिचार का व्यवसाय बनाने वाले बाबाओं के ‘भक्तों‘ की भीड़ के उन्माद का उस पर कोई असर नहीं होता। यह फैसला साबित करता है कि अदालतो व पुलिसिया कानून में न्याय मिलता है भले ही बहुतों को लगे कि वह देर से होता है  
        सुरेश गांधी 
                  जी हां, देशभर में पुलिसकर्मियों की जो छबि है वह ब्रतानियां हुकूमत के पुलिसकर्मियों के तौर तरीकों को भी मात देने वाली है। मानवता से इतर एवं वसूली संस्कृति के मकड़जाल में फंसी वर्तमान पुलिस की क्रूरता कुछ इस कदर बढ़ गयी है कि नाम सुनते ही लोगों के जेहन में महिषासुर जैसे राक्षस का खौफनाक मंजर घर जाता है। यह अलग बात है कि टीवी धारावाहिक ‘क्राइम पेट्रोल‘ ‘सीआईडी‘ और ‘सावधान इंडिया‘ में पुलिस की छबि व काम करने के तरीके की जितनी भी तारीफ किया जाय कम है। कहा जा सकता है जोधपुर पुलिस ने इन्हीं धारावाहिकों की तर्ज पर कुछ ऐसा ही किया, जिससे देश के अन्य पुलिसकर्मियों को सबक लेने की जरुरत है। उनके सामने एक-दो नहीं कई बाधाएं आईं। तीन-तीन गवाहों की हत्या हो गई। किन्तु पुलिस व अभियोजन ने मूल साक्ष्य मिटने न दिए। मतलब साफ है पुलिस के कर्तव्य विमुख होने के कारनामों से भरा पड़ा भारतीय इतिहास, आसाराम प्रकरण में जोधपुर पुलिस एवं न्यायालय की अच्छी भूमिका देश एक नई नजीर के लिए को याद रखेगा। खासकर यह फैसला उस वक्त आया है जब समूचा राष्ट्र बच्चियों-महिलाओं की गरिमा पर हो रहे पाश्विक हमलों से आहत और उद्वेलित है। असुरक्षा और अविश्वास का वातावरण बन गया है। आसाराम जैसे लोग भारतीय संत परंपरा और लोगों में उनकी प्रति आस्था का फायदा उठाते हैं। अभियोजन का उत्साहवर्धन होना चाहिए कि न्यायालय में क्या मान्य होगा, कैसे मान्य होगा - सबकुछ उन्हीं पर है। क्योंकि आसाराम जैसे लोगों को बेड़ियों में जकड़ा जाना ही अविश्वसनीय था। एक नन्हीं मासूम का उत्पीड़न कर, असंख्य अनुयायियों की आस्था का आपराधिक दुरुपयोग कर, स्वयंभू आसाराम कानून का मखौल उड़ा रहा था। किन्तु विशेष अजा-जजा न्यायालय ने आसाराम को सजा कर एक नई आशा जगा दी है। वे सफेद चोले के पीछे वे अपने आपराधिक कृत्यों को ही नहीं छिपाते हैं, बल्कि अपनी पैशाचिक वृत्तियों का पोषण भी करते हैं। कहा जा सकता है यह फैसला न सिर्फ अभूतपूर्व है, बल्कि प्रेरक भी है। 
                 न्यायालय ने जर्जर बूढ़ी हो चुकी उस रहम की अपील को खारिज कर बहुत अच्छा किया जिसमें आसाराम की वृद्धावस्था का भावुक उल्लेख किया गया था। राम रहीम भी ऐसे ही अपने सामाजिक कार्यों के कवच को दया का भिक्षा-पात्र बनाकर कोर्ट में लाया था। आशा है, कम उम्र के दुष्कर्मियों की इससे रूह कांप उठेगी। अब राष्ट्र का न्याय में नए सिरे से विश्वास जगा है। इसे बनाए रखने की चुनौती है। प्रश्न केवल इतना है कि कहीं यह केवल आसाराम तक सीमित न रह जाए। आसाराम जैसे हजारों दुष्कर्मी चारों ओर स्वच्छंद फैले हैं। देश में भोली-भाली बालिकाएं और महिलाएं धार्मिक प्रवृत्ति की अधिक होती है। किसी सच और तर्क को नहीं मानती और ऐसे बहुरुपियों के चंगुल में आसानी से फंस जाती है। वे अपने शोषण के बारे में लोकलाज के कारण किसी से आपबीती भी नहीं कहती है। जब से ऐसे अपराधी पकड़े जाने लगे है और उन पर कानून का शिकंजा कसने लगा है तब से महिलाएं हौसले के साथ सामने आने लगी है, जो अच्छा संकेत हैं। सर्वोच्च प्रशंसा की जानी चाहिए न्यायालय की। जज मधुसूदन शर्मा ने इस न्याय से समूचे दुष्कर्म-विरोधी माहौल को कानूनी मजबूती प्रदान की है। जो इसलिए आवश्यक है, चूंकि लोगों की आशाओं का अंतिम केंद्र कोर्ट ही है। न्याय का मार्ग दुरूह, लम्बा और संताप भरा होता है। बस, चलने वाला चाहिए। इस बार सभी दृढ़ता से चले, आगे भी चलते रहे। और जैसे दुष्कर्म की नई परिभाषा नए कानून में लिखी गई वैसे ही न्यायालय, न्याय की ऐसी ही सुस्पष्ट परिभाषा लिखते रहेंगे। इसके लिए पीड़ित बालिका और उसके परिजनों की भी प्रशंसा की जानी चाहिए जो जबर्दस्त दबावों के बावजूद अटल रहे इसीलिए इस ढ़ोंगी संत पर अपराध साबित हो सका। ऐसे बाबाओं के पीछे भक्तों की भीड़ वो शक्तियां इकठ्ठा करती है जो आस्था और धर्म का व्यवसाय करके फलती-फूलती हैं। पकड़े जाने के पहले तक जब ऐसे बाबा अपनी लोकप्रियती की चमक में इतराते हैं, तब हमारे राजनेता भी उनके चरणों मूें गिरते दिखते हैं और उन्हें सत्ता का वैभव प्रदान करते हैं। इसी के बल पर दुनियाभर में करोड़ों लोगों को अपने संजाल में फांस लेते है। 
                   कई भक्त तो आसाराम व राम रहीम जैसे बाबाओं को साक्षात ईश्वर का प्रतिरूप मानने लगते हैं। इसी का परिणाम था कि घमंड में चूर आसाराम ने निर्भया केस में कहा था, ‘वह अपराधियों को भाई कहकर पुकार सकती थी। इससे उसकी इज्जत और जान दोनों बच सकती थीं। क्या ताली एक हाथ से बज सकती है, मुझे तो ऐसा नहीं लगता।’ आसाराम ने मीडिया की भी काफी आलोचना की थी। उन्होंने खुद को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए कहा-‘हाथी चलता है तो कुत्ते भौकते हैं, इस पर बहुत ध्यान देने की जरूरत नहीं है। ’हमने अक्सर देखा है ऐसे कानूनों का दुरुपयोग हुआ। दहेज संबंधी कानून इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। होली के दिन आसाराम ने सूरत में हजारों लीटर पानी बर्बाद कर डाला। इस पर सवाल उठे तो कहा, ‘मैं किसी के बाप का पानी खर्च नहीं करता। पानी भगवान का है, सरकार का नहीं है। उस पर लोगों को भरोसा था। उसने संकट में भक्त की रक्षा की बजाय यौन हमला किया। लोगों की इन्हीं भावनाओं का दोहन कर ऐसे स्वघोषित बाबा करोड़ों करोड़ रुपये का भक्ति साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं। यह अलग बात है कि एक नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के मामले में राम रहीम की भी करोड़ों अरबों का साम्राज्य व प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गई। ऐसे स्वघोषित संतो ंके अनुयायी कानून अपने हाथ में लेने से भी नहीं कतराते। अधिकांश दो-दो बार ऐसा पाप कर चुके हैं। वे बचे क्यों रहते हैं? इस पर भी मनन करने की जरुरत है। देशभर से महिलाओं और बालिकाओं पर दुराचार संबंधी बढ़ती खबरों के बीच ऐसे ही मामले में आसाराम बापू को अदालत से उम्रकैद की सजा मिलने से कानून और न्याय व्यवस्था में भरोसा और मजबूत होगा। 
                   इसके बावजूद ऐसा लगता नहीं कि देश में ऐसे बाबाओं के प्रति जनसाधारण का जुनून कुछ कम हुआ हो। दरअसल, इसकी जड़ंे कहीं ओर हैं। भारत के आर्थिक विकास की कितनी ही बात की जाए पर लगता नहीं कि यह आर्थिक तरक्की आमजन को सामाजिक न्याय व समानता देने में सफल रही है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि शासन के अधिकृत संस्थान अपनी जिम्मेदारियां निभाने में नाकाम रहे हैं। इसके कारण एक तरफ ऐसे बाबाओं को कानून से ऊपर अपनी सत्ता चलाने का मौका मिलता है तो दूसरी तरफ न्याय व राहत की तलाश में जनसाधारण इनकी ओर आकर्षित होते हैं। जितना देश समृद्ध होता जा रहा है। उसी अनुपात में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है, जिन्हें महसूस होता है कि वे पीछे छूट गए हैं। ऐसे लोगों को आसाराम जैसे पाखंडी बाबाओं में ही अपनी सारी समस्याओं का समाधान नजर आता है। सामाजिक विषमता के अलावा यह प्रवृत्ति शिक्षा की कमजोर गुणवत्ता की ओर भी इशारा करती है। वरना आमजन के साथ उच्चशिक्षित और समृद्ध तबका भी क्यों ऐसे बाबाओं के पीछे भागता। हमारी शिक्षा व्यवस्था समाज में अंधविश्वास व कुरीतियों के खिलाफ एक वैज्ञानिक सोच का वातावरण बनाने में नाकाम रही है, क्योंकि इसे अच्छा नागरिक बनाने की बजाय अच्छा कॅरिअर बनाने की दिशा में मोड़ दिया गया है। आप अगर गौर से देखेंगे तो ऐसे बाबाओं के पास आध्यात्मिक ज्ञान पाने के लिए जाने वाले बहुत ही कम होंगे, अधिसंख्य लोग आर्थिक व सेहत संबंधी समस्याओं और अंधविश्वास के कारण जाते हैं। जाहिर है इसका संबंध आर्थिक विषमता व स्वास्थ्य व शिक्षा की कमजोर व्यवस्था है। इन्हें मजबूत बनाकर ही हम ऐसी स्वस्थ व वैज्ञानिक सोच वाले समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां ऐसे बाबाओं के लिए कोई स्थान नहीं होगा। 
                  यह ऐसे सभी पीड़ितों की जीत और सारे अपराधियों को संदेश है कि वह कानून की नजर से बच नहीं सकेंगे। हाल के दिनों में अदालतों ने बहुत से बाबाओं के ढोंग खोले हैं। यह बताता है कि हमारी न्याय प्रक्रिया में ताकतवर लोगों को दंड देने की कैसी क्षमता है। भले ही आसाराम को उम्रकैद की सजा निचली अदालत से हुई और वह मन के किसी कोने में ऊपरी अदालत से राहत की कोई उम्मीद लगाए बैठे हों, लेकिन जिस तरह बीते पांच साल में उनकी ढिठाई के कसबल अदालत की सख्ती से टूटे हैं, वह देश की कानून-व्यवस्था पर भरोसा बढ़ाने वाला है। यह बताता है कि धर्म और अध्यात्म को गंदा धंधा बना देने वाले फर्जी बाबाओं के दिन अब लद चुके हैं। अब समाज को ऐसे फर्जी बाबाओं का मूल चरित्र समझकर इनसे तौबा करने की जरूरत है। अभी कुछ बाबा कानून की जद में आए हैं। कई अब भी अपने-अपने तरीके से जनता को बरगला रहे होंगे। यह फैसला उनके लिए भी संभल जाने का संदेश है। फर्जी बाबाओं का साम्राज्य रातोंरात तो खड़ा नहीं होता। पूरा घटनाक्रम साबित कर रहा है कि हमारा समाज किस तरह बाबाओं के सामने घुटनों पर बैठा हुआ है। हाल के दिनों में अदालतों की सख्ती ने इनके कुछ ढोंग खोले हैं। अदालत सख्त न होती, तो यह मामला भी शायद इस अंजाम तक तो नहीं ही पहुंचता। 

Sunday, 22 April 2018

रेप पर फांसी, फर्जी पर कब?

रेप पर फांसी, फर्जी पर कब? 
           बेशक, रेप बेहद घिनौना व दरिंदगी वाला कृत्य है। बढ़ती घटनाओं पर सख्ती बरतते हुए केन्द्र सरकार ने फांसी तक की सजा का प्राविधान करने की कोशिश में हैं। उम्मीद है कैबिनेट के बाद सदन में भी यह बिल पास हो जायेगा। इसके लिए हर तबका पीएम मोदी की सराहना भी कर रहा है। लेकिन सच यह भी है कि इस तरह के घृणित कार्य की आड़ में कुछ दूषित मानसिकता के लोग अपनी निजी दुश्मनी को साधने के लिए धन, बल व सत्ता की धौंस दिखाकर फर्जी मुकदमें दर्ज कराने से भी बाज नहीं आते। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या फर्जी मुकदमें दर्ज कराने वालों या अपने बाहुबल व धबल के बूते बच निकलने वालों की भी फांसी होगी? क्योंकि एक-दो नहीं सैकड़ों मुकदमें ऐसे है जो ले देकर फर्जी मुकदमें दर्ज कराएं गए है या गवाह व सबूतों को खरीदकर बच निकले है 
              सुरेश गांधी 
            रेप पर सबसे सख्त कानून लागू हो गया है। अब 12 साल से कम उम्र की नाबालिगों से रेप पर मौत की सजा मिलेगी। नए कानून के मुताबिक, नाबालिगों से रेप के मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की व्यवस्था की जाएगी। फॉरेंसिक जांच के जरिए सबूतों को जुटाने की व्यवस्था को और मजबूत करने की व्यवस्था भी की जाएगी। इतना ही नहीं दो महीने में ट्रायल पूरा करना होगा। अगर अपील दायर होती है तो 6 महीने में निपटारा करना होगा। नाबालिग के साथ बलात्कार के केस को कुल 10 महीने में खत्म करना होगा। मतलब साफ है इस नए कानून से नाबालिग से रेप की बढ़ती घटनाओं पर लगाम जरुर लगेगा, ऐसी कर कोई उम्मीद के साथ पीएम मोदी तारीफ भी कर रहा है। लेकिन इस नए कानून का कहीं दुरुपयोग नहीं होगा इसकी क्या गारंटी है? क्योंकि व्यवस्था तंत्र तो वही है जो ले देकर कभी रपट ही नहीं लिख्ती और कभी हकीकत से परे बिना किसी इंवेस्टीगेशन के ही फर्जी मुकदमें दर्ज कर देती है। 
          खासकर अगर किसी पीड़िता के दबाव में मुकदमा दर्ज भी पुलिस कर लेती है तो आरोपी को बचाने व सबूत मिटाने में पूरी ताकत झोक देती है। पीड़िता की मदद करने वालों पर ही फर्जी मुकदमें ठोक देती है। ऐसे में सवाल तो यही है क्या फर्जीगिरी के मास्टरमाइंड पुलिसकर्मियों को भी फांसी दिए जाने का प्राविधान होगा? क्योंकि अब तक कई ऐसे मामले सामने आ चुके है जिसमें पुलिस ने पहले तो रपट दर्ज नहीं की। अगर दर्ज भी किया तो आरोपी को बचाने में हरहथकंडे अपनाती रही है? ताजा मामला उन्नाव, कठुआ से लेकर एटा, बिहार, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के मामले है। मतलब साफ है रेप जैसी घिनौने वारदात को रोकने के लिए एक ओर जहां यह आवश्यक है कि कानून कठोर हों वहीं यह भी कि उन पर सही तरह अमल भी हो और उनका दुरुपयोग न होने पाए। इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि देश को हिला देने वाले निर्भया कांड के बाद भी यौन हिंसा रोधी कानून कठोर किए गए थे, लेकिन स्थिति में तनिक भी बदलाव देखने को नहीं मिला। ऐसा इसीलिए हुआ कि हम सख्त सजा का कोई उदाहरण पेश नहीं कर सके। किसी को बताना चाहिए कि आखिर निर्भया के हत्यारों को अभी तक उनके किए की सजा क्यों नहीं मिली? 
              यौन हिंसा के मामले में यह भी देखना होगा कि विकृत सोच इसलिए तो नहीं पनप रही कि समाज को बनाने-संवारने का एजेंडा किसी के पास नहीं रह गया है? कठुआ में एक मासूम बच्ची के साथ कई दिन तक दुष्कर्म होता रहा। अंत में हत्या भी कर दी गयी। लेकिन जब पुलिस रपट दर्ज कर कुछ लोगों को गिरफ्तार किया, तो लोग आरोपितों के पक्ष में सड़कों पर उतर आएं। एटा में विवाह समारोह में सात वर्षीय बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। अगर पीड़ित अथवा पीड़क, दोनों का संप्रदाय एक न होता, तो इस त्रासदी को भी कुछ लोग कठुआ जैसी कुतार्किक जंग में तब्दील कर देते। पता नहीं ऐसे कुकर्मी यह क्यों भूल जाते हैं कि इस देश में हर रोज 100 से ज्यादा बलात्कार होते हैं। हर घंटे में करीब पांच बच्चे शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं। यह अच्छा हुआ कि केंद्रीय कैबिनेट ने उस अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की जो एक ओर जहां 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों के लिए मौत की सजा तय करेगा वहीं दूसरी ओर दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सात साल के सश्रम कारावास की अवधि को बढ़ाकर दस वर्ष या फिर आजीवन कारावास में तब्दील करेगा। महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि दुष्कर्म के अपराधियों के लिए कठोर सजा के प्रबंध किए जा रहे हैं, बल्कि यह भी है कि दुष्कर्म के मामलों की जांच और फिर ट्रायल को एक तय अवधि में पूरा करना होगा। ऐसा वास्तव में हो और दुष्कर्म के अपराधियों को समय रहते उनके किए की सख्त सजा मिले, इसे सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और अदालती तंत्र को कहीं अधिक सक्रियता का परिचय देना होगा। इसके लिए तंत्र में सुधार भी करना होगा, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि दुष्कर्म के मामलों में सजा का प्रतिशत बहुत ही कम है। स्पष्ट है कि पुलिस को कमर कसने की सख्त जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति हो, यह राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना होगा। 
             नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के ताजा आंकड़े नाबालिग से रेप पर मौत की सजा पर सवाल उठाते हैं। पॉक्सो एक्ट के तहत साल 2016 में कोर्ट के सामने 64,138 रेप केस सामने आए, इन में से सिर्फ 1869 मालमों में ही सजा सुनाई जा सकी। महिलाओं और बच्चों से रेप के जो मामले में पुलिस के सामने दर्ज करवाए गए उनमें से 96 प्रतिशत ऐसे केस थे जिनमें आरोपी परिवार का ही कोई सदस्या था, या दोस्त, पड़ोसी या परिचित था। इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि नाबालिग से रेप पर फांसी की सजा से इस तरह के मामलों में गिरावट आएगी इसे लेकर संशय है। फांसी की सजा दिए जाने का प्रावधान आने से ऐसे केस रिपोर्ट होने का आंकड़ा भी गिर जाएगा, इसकी क्या गारंटी है? ये जानते हुए कि आरोपी परिचित को मौत की सजा होगी पीड़िता पर शिकायत नहीं करने को लेकर और दबाव बनाया जाएगा। उसे धमकाया जाएगा। इससे पीड़िता अलग-थलग पड़ जाएगी। शिकायत के बाद की जाने वाली कार्रवाई, कोर्ट की कार्रवाई में तेजी और अदालत के भीतर व बाहर सक्षम वातावरण बनाने के बगैर सजा को कड़ा किया जाना किसी मतलब का नहीं है। यदि कार्रवाई में ही लंबा समय लगेगा तो फांसी की सजा भी आरोपियों में डर पैदा करने और अपराध घटाने में मददगार साबित नहीं होगा। साल 2016 में ही पॉक्सो एक्ट जिसके तहत मामलों का निपटारा एक साल के भीतर करने का प्रावधान था, करीब 89 प्रतिशत मामले लंबित रहे। यहां तक कि निर्भया कांड में नाबालिग आरोपी को छोड़ बाकी सभी आरोपियों को फांसी दिए जाने के बाद भी गैंगरेप की घटना रुकी नहीं है। सरकार का कहना है कि तमाम उपायो को तीन महीने में अमली जामान पहनाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके साथ ही ये भी तय हुआ है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में यौन अपराधियों का प्रोफाइल तैयार किया जाएगा और तमाम राज्य आपस में इस जानकारी को साझा करेंगे। वैसे भी दुष्कर्म के बढ़ते मामले यही बता रहे हैं कि बच्चियों, किशोरियों और महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना रहे अपराधी तत्व बेलगाम हो गए हैं। उनकी घिनौनी हरकतें समाज को शर्मिदा करने के साथ देश की छवि को भी खराब करने का काम कर रही हैं। ऐसे तत्वों के साथ किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। ऐसे तत्वों को सबक सिखाने और उनके मन में खौफ पैदा करने की जरूरत है। इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि आज दुष्कर्मी तत्व बेलगाम हैं और समाज खौफ में है। यह स्थिति सभ्य समाज के विपरीत है। आखिर आज के युग में ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोग कैसे हो सकते हैं कि छोटी-छोटी बच्चियों को निशाना बनाएं? यह तो हैवानियत की पराकाष्ठा के अलावा और कुछ नहीं कि साल-दो साल की बच्चियां भी दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। 

Friday, 20 April 2018

‘कांग्रेस’ का महाभियोग सिर्फ और ‘आडंबर’

‘कांग्रेस’ का महाभियोग सिर्फ और सिर्फ ‘आडंबर’  
क्योंकि कांग्रेस के पास पर्याप्त ना ही संख्याबल है और ना ही आजादी के बाद से लेकर आज तक किसी भी जज को महाभियोग प्रस्ताव से हटाया नहीं जा सका है  
                  सुरेश गांधी
              एक के बाद एक हाथ से छिनते राज्य, राज्य सभा में घटती संख्या, तरह-तरह के आरोपों के निराधार होने सहित जस्टीस लोया के नाम पर छोड़ा गया ब्रह्मास्त्र भी टाॅय-टाॅय फिस्स हो जाना, से कांग्रेस की बौखलाहट तो समझ में आती है। लेकिन कांग्रेस शायद भूल गयी कि जिस हडबड़ाहट में वह जस्टिस दीपक के खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिश  में है उसे एकबार फिर मुंह की खानी पड़ेगी। क्योंकि उसके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं हैं। माना कि नोटिस स्वीकार हो जाने के बाद राज्यसभा में सफल हो जायेगी। पर जब तक लोकसभा में प्रस्ताव पारित नहीं होगा, कोई फायदा नहीं हैं। मतलब साफ है कांग्रेस इस प्रस्ताव के जरिए सिर्फ और सिर्फ हौउवा खड़ा करना चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट प्रधानमंत्री मोदी के इशारे पर चल रहा है। फिरहाल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस एवं उसके समर्थित दलों ने महाभियोग लाने का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को सौंपा है। महाभियोग प्रस्ताव कांग्रेस उस वक्त लायी है जब जज लोया की मौत से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान जज ने पाया कि न्यायालय को गुमराह करने के मकसद से याचिका दायर की गयी है। याचिका में पर्याप्त सबूत भी नहीं हैं। इस फैसले के बाद ही कांग्रेस का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। समस्त विपक्षीजनों को एकजुट किया जाने लगा। यह अलग बात है कि उसके इस प्रस्ताव से मनमोहन सिंह, सलमान खुर्शीद सहित कई विपक्षी दलों ने भी किनारा कर लिया। वह समझते है कि उनका यह अभियान सिवाय नौटंकी के कुछ भी साबित नहीं सकता। 
         इसके बावजूद मोदी के विजयरथ को रोकने में लगातार असफल हो रहे राहुल गांधी कपिल सिब्बल के झांसे में आ गए। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है, क्या लगातार विफलताओं से कांग्रेस सहम गयी है? क्या अब कांग्रेस के पास सियवाय धमकी के कोई चारा नहीं बचा है? क्योंकि थक हार चुकी कांग्रेस जिस महाभियोग प्रस्ताव के सहारे मोदी को पटकनी देना चाह रही है, वह सिर्फ और सिर्फ नौटंकी से अधिक कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि कांग्रेस के पास वर्तमान में दोनो सदनों में पर्याप्त संख्या नहीं है? माना कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ आर्डर करते वक्त यह भूल गई कि सोहराबुद्दीन की मुठभेड़ में मौत का मामला भारतीय विधिशास्त्र को चुनौती दे रहा है। ताकतवर लोगों के दबावों के चलते इस मामले में इंसाफ नहीं मिल पा रहा है। 
       न्यायमूर्ति चेलमेश्वर और पूर्व न्यायमूर्ति अभय एम थिम्से को प्रेस कांफ्रेस कर यह न कहना पड़ता कि निचली ही नहीं ऊंची अदालतों में भी भ्रष्टाचार है। देश का संविधान ऐसी स्थिति को अकल्पनीय नहीं मानता और उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों के जजों पर भ्रष्ट आचरण के आरोप में महाभियोग चलाकर हटाने की व्यवस्था देता है। और फिर भ्रष्टाचार पैसो के लेनदेन तक ही सीमित नहीं होता। और भी कारण हो सकते है। जहां तक जजों के ईमानदारी का सवाल है उस पर टिप्पणी करना बिल्कुल गलत है। क्योंकि इससे न सिर्फ देश के सर्वोच्च न्यायालय पर लाखों लोगों की आस्था पर ठेस लगेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी छबि धूमिल होगी। लेकिन हमें महाभारत व रामायण के प्रसंगों को भी नहीं भूलना चाहिए कि युधिष्ठिर विषम परिस्थितियों में भी झूठ नहीं बोलते थे। उन्हें इसके लिए जाना भी जाता है। लेकिन द्रोणाचार्य ने उनके ही बातों पर विश्वास कर लिया था कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। जबकि यह सच नहीं था, उनका पुत्र जीवित था। लेकिन उनके भाई अर्जुन द्वारा युद्ध जीतने के लिए युधिष्ठिर को झूठ बोलना जरुरी था। कुछ ऐसा ही सूरवीर बालि के साथ हुआ। करोड़ों लोगों के आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को छुपकर बालि को मारना पड़ा। 
कहा जा सकता है जज है तो संदेह नहीं करना चाहिए लेकिन ऐसी स्थिति आ ही गई तो जांच से घबराना भी नहीं चाहिए। 
        शायद कांग्रेस इसीलिए चार जजेज के बयानों को आधार बनाकर महाभियोग की बात कर रही है। महाभियोग स्वीकार हो या पराजित हो यह बाद की बात है लेकिन, यह नौबत ही लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। इसलिए अगर सुप्रीम कोर्ट जज लोया की मृत्यु को संदेहास्पद मानता तो गंभीर किस्म का टकराव पैदा होता लेकिन, अदालत ने याचिका को खारिज करके अपने को संदेह के दायरे में ला दिया है। कोर्ट ने न सिर्फ उस याचिका को खारिज किया है बल्कि जनहित याचिका करने वालों को फटकारते हुए कठोर टिप्पणियां भी की हैं। अदालत चाहती है कि राजनीतिक विवाद को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मंच का इस्तेमाल न किया जाए, क्योंकि उसके लिए संसद जैसी संस्था है। इसी बात को लेकर कांग्रेस नाराज भी है। लेकिन कांग्रेस भूल रही है कि जेएसआई के  खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। 
         हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है। कांग्रेस के अनुसार इसपर 71 सांसदों के साइन हैं। इनमें से 7 सांसद रिटायर हो चुके हैं। जबकि राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पास करने के लिए कुल 245 सांसदों में दो तिहाई बहुमत यानी 164 सांसदों के वोट की जरूरत होगी। यह आकड़ा सिर्फ एनडीए के पास ही है। राज्यसभा में एनडीए के पास 86 सांसद हैं। इनमें से 68 बीजेपी के सांसद हैं। यानी इस सदन में कांग्रेस समर्थित इस प्रस्ताव के पास होने की संभावना नहीं है। लोकसभा में कुल सांसदों की संख्या 545 है। दो तिहाई बहुमत के लिए 364 सांसदों के वोटों की जरूरत पड़ेगी। यहां विपक्ष बिना बीजेपी के समर्थन के ये संख्या हासिल नहीं कर सकता क्योंकि लोकसभा में अकेले बीजेपी के ही 274 सांसद हैं। इतना सबकुछ जानने, सुनने, समझने के बाद भी अगर कांग्रेस महाभियोग का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति को सौंपा है तो इसे महानौटंकी नहीं तो और क्या कहेंगे? ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या जज लोया के केस में कांग्रेस का झूठ साबित होने के बाद बदला लेने के लिए महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया गया है? या फिर जजों को डराने धमकाने की कोशिश हैै।

परमात्मा की शक्ति स्वरूपा हैं मां सीता 
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में सीता जी को संसार की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करने वाली माता कहा है। माता सीता शक्ति, इच्छा-शक्ति तथा ज्ञान-शक्ति तीनों रूपों में प्रकट होती हैं। अतः वे परमात्मा की शक्ति स्वरूपा हैं। एक पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी और मां के रूप में उनका आदर्श रूप सभी के लिए पूजनीय रहा है। संसार में एकमात्र मां सीता ही है जिन्होंन धरती से जन्म लिया तो धरती में ही समा गयी 
 सुरेश गांधी 

21 अप्रैल 2018 के दिन सीता जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में उत्साह व श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व मां सीता के जन्म दिवस के रुप में जाना जाता है। वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भी जानकी-जयंती के रूप में मनाया जाता है, परंतु भारत के कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष को सीता-जयंती के रूप में भी मनाने की परंपरा रही है। इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमी के नाम से भी संबोद्धित किया जाता है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीराम की प्राणप्रिया आद्याशक्ति, सर्वमंगलदायिनी, पतिव्रताओं में शिरोमणि श्री सीता माताजी का प्राकट्य हुआ था। इसे पर्व को जानकी नवमी भी कहते हैं। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए भूमि जोत रहे थे, उसी समय उन्हें पृथ्वी में दबी हुई एक बालिका मिली। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को सीता कहते हैं। इसलिए उस बालिका का नाम सीता रखा गया। माता सीता की उत्पत्ति भूमि से हुई थी, इस कारण उन्हें ‘अन्नपूर्णा’ भी कहा जाता है। भगवती सीता जी की पति-परायणता, त्याग सेवा, संयम, सहिष्णुता, लज्जा, विनयशीलता भारतीय संस्कृति में नारी भावना का चरमोत्कृष्ट उदाहरण है। उनकी त्याग व तपस्या समस्त नारी जाति के लिए अनुकरणीय है। 


भारत और नेपाल की सीमा के नजदीक बसा है ‘जनकपुर‘। जनकपुर वह जगह है जहां त्रेतायुग में माता सीता भूमि से अवतरित हुई थीं। यह स्थान माता सीता के जन्मस्थान के रूप में सदियों से धार्मिक आस्था का केंद्र है। जनकपुर, नेपाल के धानुषा जिले के दक्षिणी तराई शहर से लगभग 200 किमी दूर दक्षिण-पूर्व है। जनकपुर में मां सीता का भव्य मंदिर है, जो भारतीय सीमा से महज 22 किमी दूरी पर है। हालांकि नेपाल में 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में यह मंदिर भी क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसका जीर्णोद्धार कराया गया। त्रेतायुग में मिथला के राजा जनक जब भूमि में हल जोत रहे थे, तभी उन्हें सीता जी एक स्वर्ण जड़ित बक्से में मिली थीं। रामायण में मिथिला राज्य का उल्लेख मिलता है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री सीता थीं। जिनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम से हुआ था। जनकपुर की अपनी भाषा और लिपि के साथ प्राचीन मैथिली संस्कृति का केंद्र है। जनकपुर के निवासी सीता जी को जानकी देवी कहते हैं। जनकपुर के केंद्र उत्तर और पश्चिम में जानकी मंदिर है। यह मंदिर 1911 में बनाया गया था। जनकपुर में कई तालाब हैं जिनमें 2 सबसे महत्वपूर्ण हैं धनुष सागर और गंगा सागर। यहां की बोली मैथिली अभी भी व्यापक रूप से इस क्षेत्र में बोली जाती है। 

पौराणिक मान्यताएं 
हिंदू पौराणिक पवित्र ग्रंथ रामायण की मुख्य नायक और नायिका भगवान श्रीराम और माता सीता है। श्रीराम के तीन भाई थे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। श्रीराम सबसे बड़े पुत्र थे। ठीक इसी तरह माता सीता की तीन बहनें मांडवी, श्रुतकीर्ति और उर्मिला थी। माता सीता सबसे बड़ी थीं। सीता उपनिषद में वर्णित है कि सीता उपनिषद अथर्ववेद का एक भाग है। इसलिए इसे अथर्ववेदीय उपनिषद भी कहते हैं। इस उपनिषद के अनुसार देवगण तथा प्रजापति के मध्य हुए प्रश्नोत्तर में ‘सीता‘ को शाश्वत शक्ति का आधार माना गया है। इसमें सीता को प्रकृति का स्वरूप बताया गया है। उन्हें ही प्रकृति में परिलक्षित होते हुए देखा गया है। सीता जी को प्रकृति का स्वरूप कहा गया है। यहां सीता शब्द का अर्थ अक्षरब्रह्म की शक्ति के रूप में हुआ है। यह नाम साक्षात ‘योगमाया‘ का है। सीता को भगवान श्रीराम का सानिध्य प्राप्त है, जिसके कारण वे विश्वकल्याणकारी हैं। राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया, इसी कारण उनका नाम ‘जानकी’ पड़ा। सीता मां का चरित्र सभी के लिये मार्गदर्शक रहा है और आज भी प्रासंगिक है। सीता जी ही प्रकृति हैं वही प्रणव और उसका कारक भी हैं। सीता जी जग माता हैं और श्री राम को जगत-पिता बताया गया है। एकमात्र सत्य यही है कि श्रीराम ही बहुरूपिणीमाया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे हैं और सीता जी ही वही योगमाया है। वाल्मीकि रामायण तथा वेद-उपनिषदों में माता सीता के स्वरूप का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। ऋग्वेद में एक स्तुति में कहा गया है कि असुरों का नाश करने वाली सीता जी आप हमारा कल्याण करें। 
व्रत से मिलता है सौभाग्यवती का फल 
सीता जयंती के उपलक्ष्य पर भक्तगण माता की उपासना करते हैं। परम्परागत ढंग से श्रद्धा पूर्वक पूजन अर्चन किया जाता है। सीता जी की विधि-विधान पूर्वक आराधना की जाती है। इस दिन व्रत करने को सबसे उत्तम बताया गया है। व्रतधारी को व्रत से जुडे सभी नियमों का पालन करना चाहिए। सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता व श्री राम जी की पूजा उपासना करनी चाहिए। पूजन में चावल, जौ, तिल आदि का प्रयोग करना चाहिए। इस व्रत को करने से सौभाग्य सुख व संतान की प्राप्त होती है। मां सीता लक्ष्मी का ही रुप है। इसलिए इस दिन व्रत धारण करने से परिवर में सुख-समृ्द्धि और धन कि वृद्धि होती है। एक अन्य मत के अनुसार माता का जन्म क्योंकि भूमि से हुआ था, इसलिए वे अन्नपूर्णा कहलाती है। माता जानकी का व्रत करने से उपावसक में त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। इस दिन माता सीता के मंगलमय नाम ‘श्री सीतायै नमः‘ और ‘श्रीसीता-रामाय नमः‘ का उच्चारण करना लाभदायी रहता है। 
सीता नवमी की पौराणिक कथाएं 
सीता नवमी की पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्मधुरीण ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम देवदत्त था। उन ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपगर्विता पत्नी थी, उसका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई। अब तो पूरे गांव में उसके इस निंदित कर्म की चर्चाएं होने लगीं। परंतु उस दुष्टा ने गांव ही जलवा दिया। दुष्कर्मों में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ। पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी, ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ठ हो गया तथा व्यभिचार-कर्म के कारण वह अंधी भी हो गई। अपने कर्म का फल उसे भोगना ही था। इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनों दिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश-देशांतर में भटकने लगी। एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी, जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है। सीता (जानकी) नवमी के पावन उत्सव पर भूख-प्यास से व्याकुल वह दुखियारी इस प्रकार प्रार्थना करने लगी- हे सज्जनों! मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो। मैं भूख से मर रही हूं- ऐसा कहती हुई वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई। उसने पुनः पुकार लगाई- भैया! कोई तो मेरी मदद करो- कुछ भोजन दे दो। इतने में एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो सीता नवमी है, भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है, इसीलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा। कल पारणा करने के समय आना, ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा, किंतु वह नहीं मानी। अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी एवं जल प्रदान किया। वह पापिनी भूख से मर गई। किंतु इसी बहाने अनजाने में उससे सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया। अब तो परम कृपालिनी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंदपूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात् वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। उसने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई। अतः सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन-अर्चन करते है, उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं। इस दिन जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम्, रामचरित मानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। 
जहां माता सीता धरती में समाई 
कहते है जब मर्यादा पुरुषोंत्तम श्रीराम ने राज्याभिषेक पूर्व अश्वमेघ घोड़े को छोड़ा था तब मां जानकी के लव-कुश पुत्रों ने सीतामढ़ी में ही पकड़ा था। घोड़े के साथ चल रहे हनुमान को यहां न सिर्फ लवकुश पुत्रों से युद्ध करनी पड़ी बल्कि पराजय का भी सामना करना पड़ा। लवकुश पुत्रों ने हनुमान को यहां बंधक बना लिया। इससे क्रोधित होकर यहां हनुमान ने अपना शरीर विकराल कर लिया। लेकिन जब उन्हें ज्ञात हुआ कि यह बालक सामान्य नहीं बल्कि श्रीराम के ही पुत्र है तो उन्होंने अपना रुप छोटा कर लिया। उसी विराट रुप में यहां विराजमान है हनुमान। मूर्ति की उंचाई 125 फीट है। मान्यता है कि इस रुप के दर्शन बाद भक्तों की अकाल मौत नहीं होती। उस जगह को सीता समाहित स्थल, सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है। मन्दिर के पास ही गंगा तट के समीप महर्षि वाल्मिकी की तपोस्थली है। यही पर सीताजी ने राम द्वारा निर्वासित जीवन बिताया था। लव कुश का जन्म स्थान भी यही है। इस पुण्यभुमि से सटकर ही परम सरल सलिला मा गंगा प्रवाहित होती है, जो उत्त्रवाहिनी है। कहते है त्रेता युग में जब भगवान् श्रीराम ने माता सीता का परित्याग किया तो वे यहीं आकर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहीं। यहीं पर उन्होंने अपने दोनों पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया। दोनों पुत्रो की शिक्षा-दीक्षा भी यही हुई। और जब श्रीराम ने राज्याभिषेक से पूर्व अश्वमेघ यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा था तब उन घोड़ों को लव-कुष ने यहीं पर बंधक बनाया था। घोड़े को छुड़ाने जब श्रीराम लक्ष्मण, भरत, षत्रुघ्न समेत अपनी सेना के साथ यहां पहुंचे तो दोनों पुत्रों से महासंग्राम भी यहीं हुआ। इसकी प्रमाणिकता खुदाई के दौरान तीरों आदि के मिले अवषेष खुद ब खुद देते हैं। कहते है श्रीराम के आने से पूर्व उनके दूत चंद्रकेतु, शत्रुघ्न, भरत और लक्ष्मण तक को युद्ध में लवकुष ने परास्त कर दिया था। बाद में स्वयं अयोध्यापति श्रीराम के रणभूमि में आने पर महर्षि वाल्मीकि और माता सीता ने वास्तुस्थिति का ज्ञान कराया। बताते है अनजाने में लव-कुश भाइयों ने महाबली हनुमान को भी बंधक बना लिया था। जबकि बजरंग बली के अथाह बल और शक्ति से कौन परिचित नहीं है। अष्ट सिद्धि और नौ निधियों से युक्त राम भक्त हनुमान को युद्ध में हराना बड़े-बड़े शूरवीरों के बस की बात भी नहीं। लेकिन, यहां महाबली हनुमान को हार का सामना करना पड़ा था। और लवकुष ने माता जानकी के कहने पर उन्हें छोड़ा। जहां पर हनुमान को बंधक बनाया गया था उसी स्थान पर बजरंग बली की 108 फीट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। कहते है यहा भी महाबलि हनुमान ने अपना भव्य रुप श्रीराम पुत्रों को दिखाया था। स्वामी जितेन्द्रानन्द तीर्थ उच्चतम न्यायालय दिल्ली मे भारत सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता थे। परमात्मा से आत्मानुराग होने के फलस्वरुप उन्होने सन्यास ग्रहण कर लिया। स्वामी जी हरिद्वार से गंगा किनारे-किनारे पदयात्रा करते हुए 1992 मे सीतामढ़ी पहुंचे। यहां उन्हें दिव्य व अलौकिक शक्ती का अहसास हुआ। स्वामी ने अपनी पदयात्रा को विराम देते हुए इस तपोभूमि मे एक विशाल एव अद्दभुत मन्दिर निर्माण करने का संकल्प लिया। स्वामी जी ने अपनी इस भावना से अपने परम मित्र तथा दिल्ली के प्रमुख उद्योगपति श्री सत्यनारायण प्रकास पुन्ज को अवगत कराई। उन्हे सीतामढ़ी आने के लिए प्रेरित किया। जब पुंज यहां पहुंचे तो इस आध्यात्मिक पुण्यभूमि से खासा प्रभावित हुए। इसके बाद इस तपोस्थली पर भव्य मन्दिर निर्माण का उन्होंने संकल्प लिया। 14 जून 1997 को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की धर्मपत्नी विमला शर्मा ने सीता मन्दिर की आधारषिला रखी। इसके बाद तो देखते ही देखते एक विषाल मंदिर का रुप का ले लिया। कृत्रिम पहाड की गुफा मे शिव मन्दिर, हनुमान गुफा पर विश्व प्रसिद्ध हनुमान की 125 फीट उची मुर्ति, बाल उद्यान, गेस्ट हाउस, भव्य सीता मन्दिर बन गया। इसके बाद सीता समाहित स्थल ट्रस्ट के कर्ताधर्ता प्रकाष पुंज के अनुरोध पर तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने मर्यादा पुरुसोत्तम भगवान राम एवं माता सीता के विवाहोत्सव के दिन 1 दिसम्बर 2000 को मन्दिर का लोकार्पण किया। इस अवसर पर ट्रस्ट द्वारा आयोजित तीन दिवसीय लोकार्पण उत्सव मे प्रसिद्ध भजन गायक श्री अनूप जलोटा एव मशहुर अभिनेत्री हेमामालिनी द्वारा दुर्गा नृत्य आदि कार्यक्रम संपंन हुआ।  स्वामी जितेंद्रानंद जी के असीम प्रयास से और श्री प्रकाश नारायण पुंज की मदद से ये स्थान पर्यटक स्थल के रूप में विख्यात है। हालांकि मंदिर निर्माण के दौरान ही स्वामी जितेन्द्रानंद की असामयिक मौत हो गयी थी। मंदिर परिसर में ही उनकी समाधिस्थल व मूर्ति मौजूद है। 

‘ई-वे बिल’ मुक्त हो कारपेट इंडस्ट्री संजय

‘ई-वे बिल’ मुक्त हो कारपेट इंडस्ट्री संजय 
इस एक्ट से चाहे वह कारपेट इंडस्ट्री हो या साड़ी या फिर टेक्सटाइल हो ट्रांसपोटेशन में लगे माल परिवहन मालिक सभी की नींद हराम 
सुरेश गांधी 
भदोही। नए आदेश के तहत ’पचास हजार से अधिक माल परिवहन में ई-वे बिल अनिवार्य है। इसके लिए अस्थाई जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लि
ए आपको जीएसटी पोर्टल में जाकर रजिस्ट्रेशन संबधित सभी औपचारिकताएं पूरी करनी होगी। आप माल स्वयं अपने साथ लेकर चलते है तो ई-वे बिल की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन अस्थाई जीएसटी नंबर लेना होगा। ई-वे बिल को लेकर सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट सख्त हो गया है। उधर इस एक्ट के तहत धरपकड़ में तेजी आने से ट्रांसपोर्टर 50 हजार रुपए से कम का भी माल ई- वे बिल के बगैर लाने व ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में आम जरुरत वाले सामाग्रियों के व्यापारियों की नींद हराम हो गई है। माना जा रहा है कि ट्रांसपोटेश ठप होने से चींजों के दाम में वृद्धि हो सकती है। खासकर उन कारोबारियों को ज्यादा दिक्कत झेलनी पड़ रही है जो अपने ही माल को एक गोदाम की जगह दूसरे गोदाम पर भेज रहे हैं।
रास्ते में उनकी भी जांच हो रही है और रजिस्ट्रेशन न होने पर जुर्माना ठोकी जा रही है। जबकि दोनों गोदाम जीएसटी में रजिस्टर्ड हैं, फिर भी जुर्माना लगाने से व्यापारियों का पारा सातवे आसमान पर पहुंच गया है। कालीन और साड़ी कारोबारियों के लिए ई-वे बिल तो पूरी तरह आफत बन गयी है। क्योंकि उनकी तो पूरी बुनाई से लेकर फिनिशिंग तक बाहर होती है। सीइपीसी के प्रशासनिक सदस्य एवं कालीन निर्यातक संजय गुप्ता की मानें तो कुटीर उद्योग के लिए ई-वे बिल आफत बन गया है। इस बिल से इंडस्ट्री की कमर टूट जायेगी। क्योंकि प्राविधान के मुताबिक 50,000 रुपये से अधिक का माल सड़क के रास्ते ले जाने व ले आने के लिए ई-वे बिल की जरुरत होगी। जबकि कालीन हो या साड़ी दोनों का निर्माण या यूं कहे बुनाई ग्रामीण अंचलों में बेहद गरीब तबका बुनकर करता है। और बुनाई के बाद इसे फैक्ट्री या यूं कहे निर्यातक के पास ले जाता है। इस दौरान अगर वे ई-वे बिल के घनचक्कर में पड़ेंगे तो पकड़े जाने पर उनकी पूरी मेहनताना ही अफसरों के पाॅकेट की भेट चढ़ जायेगा। वे चाहते है कि कम से कम कुटीर उद्योग को इससे मुक्त रखा जाएं। ई-वे बिल का वर्तमान प्रारूप तर्कसंगत नहीं है और व्यापार विरोधी है। व्यापारियों को इससे व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसकी सीमा 50 हजार रुपये से बढ़ाकर कम से कम डेढ़ लाख रुपये करना चाहिये। जिन वस्तुओं पर जीएसटी नहीं है उसपर भी ई-वे बिल लगाने की अनिवार्यता का कोई औचित्य नहीं है। बेशक, कालीन हो या साड़ी या अन्य इससे जुड़ी वस्तुएं सभी का निर्माण किसी के फैक्ट्री में नहीं होती। इसका निर्माण से लेकर फिनिशिंग तक ग्रामीण अंचलों या शहरी इलाकों के निचले आबादी के गरीब तबकों के बुनकर करते है। वे कालीन या साड़ी कंपनियों के फैक्ट्री से आर्डर लेते है। उनसे राॅ मैटेरियल लेते है और निर्माण कार्य पूरा करने के बाद फैक्ट्री पहुंचाते हैं। इस दौरान अगर रास्ते में उन्हें ई बिल के नाम पूछताछ की गई और ई’वे बिल रजिस्ट्रेशन न होने की दशा में उनके खिलाफ कार्रवाई की गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे। मतलब साफ है गरीब तबके के इस बुनकर की जितनी हाड़तोड़ मेहनत के बाद मजदूरी मिलनी है वह अफसरों की जेब में चला जायेगा। क्योंकि बुनकरों का कोई रजिस्ट्रशन नहीं होता है। गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी के तहत राज्य के भीतर सामान की आवाजाही के लिए ई-वे बिल लागू होने के बाद बुनकरों में जबरदस्त खौफ है। इसके चलते कालीनों के निर्माण अब तक सामान्य से करीब 30 से 35 प्रतिशत कम हुई है। उनके मुताबिक करीब 80 प्रतिशत कालीनों की बुनाई बाहर ही होती है। इसके चलते व ेअब बुनकर ई-वे बिल की चपेट में आ जायेंगे। नई व्यवस्था के कारण छोटे छोटे बुनकरों के सामने सबसे बड़ी समस्या आ गयी है।

क्या अब धमकी के सहारे है ‘कांग्रेस’

क्या अब धमकी के सहारे है ‘कांग्रेस’ 
          एक के बाद एक हाथ से छिनते राज्य, राज्य सभा में घटती संख्या, तरह-तरह के आरोपों के निराधार होने सहित जस्टीस लोया के नाम पर छोड़ा गया ब्रह्मास्त्र भी टाॅय-टाॅय फिस्स हो गया। या यूं कहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजयरथ को रोकने की कांग्रेसी कवायद फेल होती जा रही है। ऐसे में बढ़ा सवाल तो यही क्या लगातार विफलताओं से कांग्रेस सहम गयी है? क्या अब कांग्रेस के पास सियवाय धमकी के कोई चारा नहीं बचा है? क्योंकि थक हार चुकी कांग्रेस जिस महाभियोग प्रस्ताव के सहारे मोदी को पटकनी देना चाह रही है, वह सिर्फ और सिर्फ नौटंकी से अधिक कुछ भी नहीं हैं। क्योंकि कांग्रेस के पास वर्तमान में दोनो सदनों में पर्याप्त संख्या नहीं है 
                सुरेश गांधी 
                फिरहाल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस एवं उसके समर्थित दलों ने महाभियोग लाने का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को सौंपा है। महाभ्यिोग प्रस्ताव कांग्रेस उस वक्त लायी है जब जज लोया की मौत से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान जज ने पाया कि न्यायालय को गुमराह करने के मकसद से याचिका दायर की गयी है। याचिका में पर्याप्त सबूत भी नहीं हैं। इस फैसले के बाद ही कांग्रेस का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। ख्,सुद समेत समस्त विपक्षीजनों को एकजुट किया जाने लगा। बता दें, जेएसआई के  खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है। हस्ताक्षर होने के बाद प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है। कांग्रेस के अनुसार इसपर 71 सांसदों के साइन हैं। इनमें से 7 सांसद रिटायर हो चुके हैं। जबकि राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पास करने के लिए कुल 245 सांसदों में दो तिहाई बहुमत यानी 164 सांसदों के वोट की जरूरत होगी। यह आकड़ा सिर्फ एनडीए के पास ही है। राज्यसभा में एनडीए के पास 86 सांसद हैं। इनमें से 68 बीजेपी के सांसद हैं। यानी इस सदन में कांग्रेस समर्थित इस प्रस्ताव के पास होने की संभावना नहीं है। लोकसभा में कुल सांसदों की संख्या 545 है। दो तिहाई बहुमत के लिए 364 सांसदों के वोटों की जरूरत पड़ेगी। यहां विपक्ष बिना बीजेपी के समर्थन के ये संख्या हासिल नहीं कर सकता क्योंकि लोकसभा में अकेले बीजेपी के ही 274 सांसद हैं। इतना सबकुछ जानने, सुनने, समझने के बाद भी अगर कांग्रेस महाभियोग का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति को सौंपा है तो इसे महानौटंकी नहीं तो और क्या कहेंगे? ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या जज लोया के केस में कांग्रेस का झूठ साबित होने के बाद बदला लेने के लिए महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया गया है? या फिर जजों को डराने धमकाने की कोशिश हैै।
 

कांग्रेस का आरोप है कि संविधान के तहत अगर कोई जज दुर्व्यवहार करता है तो संसद का अधिकार है कि उसकी जांच होनी चाहिए। जब से दीपक मिश्रा चीफ जस्टिस बने हैं तभी से कुछ ऐसे फैसले लिए गए हैं जो कि सही नहीं हैं। इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट के ही चार जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी। इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश के पद के अनुरुप आचरण ना होना, प्रसाद ऐजुकेशन ट्रस्ट में फायदा उठाना और इसमें मुख्य न्यायाधीश का नाम आने के बाद सघन जांच न कराया जाना, जमीन का अधिग्रहण करना, फर्जी एफिडेविट लगाना और सुप्रीम कोर्ट जज बनने के बाद 2013 में जमीन को सरेंडर करना, कई संवेदनशील मामलों को चुनिंदा बेंच को देना आदि प्रमुख है। हो जो भी सच तो यही है कि कांग्रेस द्वारा जस्टिस लोया के मामले में महाभियोग लाना तो एक बहाना है मकसद सिर्फ और सिर्फ मोदी को पटकनी देने की है। बता दें, जज लोया की मौत की नए सिरे से जांच कराने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। आदेश में टिप्प्णी भी किया है कि ऐसी जनहित याचिकाएं कोर्ट का समय बर्बाद करती हैं। फैसला देने वालों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा भी शामिल थे। इस फैसले से निराश होकर कांग्रेस पार्टी ने कहा था कि यह इतिहास का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन है। इस फैसले के बाद भी जज लोया की मौत से जुड़े बहुत सारे सवालों का जवाब नहीं मिला। हालांकि इस मामले पर अब 7 मई को सुनवाई होगी।
लेकिन क्या विपक्ष द्वारा पेश किया गया यह प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में पास हो पाएगा? ये बढ़ा सवाल है क्योंकि आजादी के बाद से लेकर आज तक किसी भी जज को महाभियोग प्रस्ताव से हटाया नहीं जा सका है। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज को संविधान में पर्याप्त रूप से संरक्षण दिया गया है और इसलिए उनको महाभियोग प्रस्ताव से हटाना बेहद मुश्किल है। इसकी प्रक्रिया भी काफी जटिल है। संविधान के अनुच्छेद 124(4) और जजेज (इंक्वायरी) एक्ट, 1968 में जजों के खिलाफ महाभियोग का जिक्र किया गया है। इनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ अक्षमता और गलत व्यवहार के आधार पर महाभियोग लाया जा सकता है। इस तरह का प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में से कहीं भी पेश किया जा सकता है। यह प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। इसके साथ ही जज को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करना जरूरी है। यदि इस तरह का कोई प्रस्ताव पास हो भी जाता है तो आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई जाती है। इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, किसी भी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक न्यायविद शामिल होते हैं। इनमें से न्यायविद को लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के सभापति नामित करते हैं। यह न्यायविद कोई जज, कोई वकील या कोई विद्दान हो सकता है। रिपोर्ट तैयार करने के बाद कमेटी उसे लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के सभापित को सौंपती है। इसके साथ ही महाभियोग प्रस्ताव चाहे किसी भी सदन में लाया जाए, लेकिन उसे पास दोनों सदनों में होना पड़ेगा। प्रस्ताव को पास करने के लिए वोटिंग के दौरान सभी सांसदों का दो तिहाई बहुमत हासिल करना जरूरी है। दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद राष्ट्रपति जज को हटा सकते हैं।
बता दें, इसके पहले साल 2011 में राज्यसभा ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन को एक न्यायाधीश के तौर पर वित्तीय गड़बड़ी करने और तथ्यों की गलतबयानी करने का दोषी पाया था। इसके बाद उच्च सदन ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया था। हालांकि, लोकसभा में महाभियोग की कार्यवाही शुरू किए जाने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। साल 2015 में राज्यसभा के 58 सदस्यों ने गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे बी पर्दीवाला के खिलाफ महाभियोग का नोटिस भेजा था। उन्हें यह नोटिस आरक्षण के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ एक मामले में फैसले को लेकर दिया गया था। महाभियोग का नोटिस राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी को भेजने के कुछ ही घंटों बाद न्यायाधीश ने फैसले से अपनी टिप्पणी वासप ले ली। भूमि पर कब्जा करने, भ्रष्टाचार और न्यायिक पद का दुरुपयोग करने के मामले में सिक्किम उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश पी डी दिनाकरण विवादों में आए थे। उन्होंने अपने खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही 2011 में पद से इस्तीफा दे दिया था। साल 2016 में आंध्र और तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नागार्जुन रेड्डी विवादों में आए थे। उन पर एक दलित न्यायाधीश को प्रताड़ित करने के लिये पद का दुरुपयोग करने का आरोप था। जिसके चलते राज्यसभा के 61 सदस्यों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिये एक याचिका दी थी। बाद में राज्यभा के 54 सदस्यों में से उन 9 ने अपना हस्ताक्षर वापस ले लिया था, जिन्होंने न्यायमूर्ति रेड्डी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने का प्रस्ताव दिया था। वहीं साल 1990 में पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस वी रामास्वामी पर 1993 में महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी। हालांकि, लोकसभा में न्यायमूर्ति रामास्वामी के खिलाफ लाया गया महाभियोग का प्रस्ताव इसके समर्थन में दो तिहाई बहुमत जुटाने में विफल रहा था।

Wednesday, 18 April 2018

ई-वे बिल बना कारपेट व साड़ी इंडस्ट्री के लिए जी का जंजाल!


-वे बिल बना कारपेट साड़ी इंडस्ट्री के लिए जी का जंजाल! 
राज्य के भीतर एक शहर से दूसरे शहर में माल भेजने के लिए अनिवार्य -वे बिल व्यवस्था लागू हो गई। इसका सबसे बुरा प्रभाव कुटीर उद्योग पड़ा है। खासकर कालीन एवं साड़ी उद्योग के कारोबारियों के लिए -वे बिल जी का जंजाल बन गया है। सीइपीसी के प्रशासनिक सदस्य एवं कालीन निर्यातक संजय गुप्ता की मानें तो कुटीर उद्योग के लिए -वे बिल आफत बन गया है। इस बिल से इंडस्ट्री की कमर टूट जायेगी। क्योंकि प्राविधान के मुताबिक 50,000 रुपये से अधिक का माल सड़क के रास्ते ले जाने ले आने के लिए -वे बिल की जरुरत होगी। जबकि कालीन हो या साड़ी दोनों का निर्माण या यूं कहे बुनाई ग्रामीण अंचलों में बेहद गरीब तबका बुनकर करता है। और बुनाई के बाद इसे फैक्ट्री या यूं कहे निर्यातक के पास ले जाता है। इस दौरान अगर वे -वे बिल के घनचक्कर में पड़ेंगे तो पकड़े जाने पर उनकी पूरी मेहनताना ही अफसरों के पाॅकेट की भेट चढ़ जायेगा। वे चाहते है कि कम से कम कुटीर उद्योग को इससे मुक्त रखा जाएं 
सुरेश गांधी
बेशक, कालीन हो या साड़ी या अन्य इससे जुड़ी वस्तुएं सभी का निर्माण किसी के फैक्ट्री में नहीं होती। इसका निर्माण से लेकर फिनिशिंग तक ग्रामीण अंचलों या शहरी इलाकों के निचले आबादी के गरीब तबकों के बुनकर करते है। वे कालीन या साड़ी कंपनियों के फैक्ट्री से आर्डर लेते है। उनसे राॅ मैटेरियल लेते है और निर्माण कार्य पूरा करने के बाद फैक्ट्री पहुंचाते हैं। इस दौरान अगर रास्ते में उन्हें बिल के नाम पूछताछ की गई और वे बिल रजिस्ट्रेशन होने की दशा में उनके खिलाफ कार्रवाई की गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे। मतलब साफ है गरीब तबके के इस बुनकर की जितनी हाड़तोड़ मेहनत के बाद मजदूरी मिलनी है वह अफसरों की जेब में चला जायेगा। क्योंकि बुनकरों का कोई रजिस्ट्रशन नहीं होता है। 
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के प्रशासनिक सदस्य एवं कालीन निर्यातक संजय गुप्ता का कहना है कि इस बिल से कारपेट इंडस्ट्री हो अन्य कुटीर उद्योग उसके मेहनतकश मजदूरों की कमर टूट जायेगी। क्योंकि प्राविधान के मुताबिक 50,000 रुपये से अधिक का माल सड़क के रास्ते ले जाने ले आने के लिए -वे बिल की जरुरत होगी। गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी के तहत राज्य के भीतर सामान की आवाजाही के लिए -वे बिल लागू होने के बाद बुनकरों में जबरदस्त खौफ है। इसके चलते कालीनों के निर्माण अब तक सामान्य से करीब 30 से 35 प्रतिशत कम हुई है। उनके मुताबिक करीब 80 प्रतिशत कालीनों की बुनाई बाहर ही होती है। इसके चलते ेअब बुनकर -वे बिल की चपेट में जायेंगे। नई व्यवस्था के कारण छोटे छोटे बुनकरों के सामने सबसे बड़ी समस्या गयी है। कुछ ऐसा ही पूर्वाचल फ्लोर मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय कपूर का भी कहना है। उनके मुताबिक पूर्वाचल की थोक गल्ला मंडी विश्वेश्वरगंज से प्रतिदिन लगभग सौ गाड़ियां आसपास जनपदों को जाती थीं लेकिन -वे बिल लागू होने के बाद इनकी संख्या घटकर आधी हो गई है। क्योंकि ज्यादातर छोटे व्यापारी -वे बिल जेनरेट नहीं कर पा रहे हैं। इसका असर कारोबार पड़ रहा है। फ्लोर मिल का प्रतिदिन का कारोबार करीब आठ करोड़ है। वाराणसी ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष जय प्रकाश तिवारी ने कहा कि -वे बिल प्रभावी होने के साथ ही ट्रांसपोर्टर कारोबार पर असर पड़ना शुरू हो गया। छोटी गाड़ी से माल परिवहन में ज्यादा परेशानी हो रही है। स्थिति सुधरने में अभी कम से कम एक पखवारा लग सकता है।
बता दें, जीएसटी परिषद ने राज्य के भीतर माल ढुलाई से लेकर कंपनियों के बाहर अंदर सप्लाई होने वाली वस्तुओं पर -वे बिल की व्यवस्था लागू करने फैसला किया है। पहले चरण में इन पांच राज्यों- गुजरात, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में इसे शुरू किया गया है। एक ही राज्य या फैक्ट्री के अंदर माल की आवाजाही के लिए -वे बिल 15 अप्रैल 2018 से लागू है। अब सवाल यह उठता है कि कारोबारियों और सरकार के लिए यह किस प्रकार उपयोगी है? -वे बिल, दरअसल एक प्रकार का कम्प्यूटर पर बना बिल होता है। इसमें, किसी माल को एक जगह से दूसरी जगह भेजने पर, उसके लिए पूरा ब्योरा भी तैयार करना होगा। ये बिली जीएसटी पोर्टल पर भी दर्ज हो जाएगा। जबकि पुरानी टैक्स व्यवस्थाओं में भी माल परिवहन के लिए कागज पर बिल बनता रहा है। पहले जो बिल कागज पर बनता था, अब वह कम्प्यूटर पर बनेगा। उसके बाद इसे जीएसटी के नेटवर्क पर संबंद्ध कर दिया जाएगा। अब देश में कहीं भी माल ढुलाई के लिए ट्रांसपोर्टर को अब -वे बिल जारी करना होगा। 50 हजार रुपये से ज्यादा के माल के मूवमेंट पर सप्लायर को जानकारी जीएसटीएन पोर्टल में दर्ज करानी होगी और -वे बिल जनरेट करना होगा। सरकार का दावा है कि इससे माल ढुलाई में तेजी आएगी, लेकिन ट्रांसपोर्टर्स का कहना है कि इससे परेशानियां बढ़ेंगी। देश में ट्रकों से माल ढुलाई में इतना वक्त लग जाता है कि परिवहन के दौरान ही 40 फीसदी फल और सब्जियां खराब हो जाती हैं। सरकार कहती रही है कि जीएसटी आएगा और ट्रांसपोर्ट की राह के रोड़े हटाएगा। लेकिन ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि तेज ट्रांसपोर्ट का ख्वाब, ख्वाब ही रह जाएगा।
ट्रांसपोर्टरों को डर है कि टैक्स अधिकारी जहां मर्जी वहां गाड़ी रोककर बिल और सामान की जांच करेंगे। ट्रांसपोर्टरों के मुताबिक देरी इसलिए भी होगी क्योंकि हर बार गाड़ी बदलते वक्त नया -वे बिल जेनरेट करना होगा। एक ही ट्रक से जा रहे अलग-अलग सामान के लिए अलग बिल होगा। जितने राज्यों में बिजनेस होगा, उतनी जगह रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा। ट्रांसपोर्टर परेशानी की एक वजह दूरी के हिसाब से -वे बिल की वैलिडिटी को भी बताते हैं। मसलन 100 किलोमीटर से कम दूरी के लिए 1 दिन, 300 किलोमीटर से कम के लिए 3 दिन और 500 किलोमीटर तक के लिए 5 दिन। इतने सब के बावजूद ड्राइवर को अपने पास हार्ड-कॉपी रखनी होगी। ट्रांसपोर्टर इन तमाम चीजों के कारण परेशानी बढ़ती देख रहे हैं। वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “यह साफ किया जाता है कि अब केवल एक -वे बिल की जरूरत होगी। अगर माल ढुलाई में एक से अधिक कंपनियां शामिल होगी तो ऐसे मामलों में ट्रांसपोर्टर -वे बिल को ट्रांसपोर्टर बी को प्रदान करेगा, जो अपने वाहन की जानकारी भरकर माल की ढुलाई करेंगे।-वे बिल को जीएसटी के तहत लागू किया जा रहा है, जो कि 50,000 रुपये से अधिक मूल्य के सामानों की एक राज्य से दूसरे राज्य में सड़क, रेलवे, हवाई मार्ग से या पानी के जहाज से ले जाने पर लागू होगा। - वे बिल की वैधता अवधि को उस दिन से गिना जायेगा जब जीएसटी फार्म ईवेबिल-01 के भाग- बी में ट्रांसपोर्टर पहली बार ब्योरा भरेगा। इसके बारे में उदाहरण देते हुये कहा गया है कि माना कोई कारोबारी फार्म जीएसटी -वे बिल-01 में शुक्रवार को भाग- में ब्योरा भरता है और अपना माल ट्रासंपोर्टर के हवाले कर देता है। इसके बाद ट्रांसपोर्टर यदि माल को सोमवार को रवाना करता है और जीएसटी - वेबिल-01 के भाग- बी को भरता है तो उसकी वैधता अवधि सोमवार से ही गिनी जाएगी।
जीएसटी परिषद द्वारा मंजूर किए गए नियमों के मुताबिक 100 किलोमीटर से कम दूरी तय करने पर - वे बिल एक दिन के लिए वैलिड होगा। इसके बाद प्रत्येक 100 किलोमीटर के लिये वैलिडिटी एक अतिरिक्त दिन के लिए होगी। सरकार को उम्मीद है कि -वे बिल लागू होने से टैक्स चोरी रुकेगी और कर राजस्व में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी होगी। -वे बिल को एसएमएस के जरिये निकाला अथवा कैंसिल भी किया जा सकता है। जब भी कोई -वे बिल निकाला जाता है तो उसके तहत एक विशिष्ट -वे बिल नंबर आवंटित किया जाता है। यह नंबर आपूर्तिकर्ता, प्राप्तिकर्ता और ट्रांसपोर्टर सभी को उपलब्ध करा दिया जाता है। 
-वे बिल हासिल करने के लिए अगर आप रजिस्टर्ड कारोबारी हैं और आप 50 हजार रुपये से ज्यादा का सामान कहीं भेज रहे हैं, तो आपको साइट पर पहुंचकर फॉर्म भरना होगा। वस्तु सप्लाई करने से पहले आपको -वे बिल प्राप्त करना जरूरी है। अगर सामान भेजने वाला कारोबारी रजिस्टर्ड नहीं है और सप्लाई प्राप्त करने वाला कारोबारी रजिस्टर्ड है, तो उसे फॉर्म भरना होगा। दोनों ही के रजिस्टर होने पर, सामान की सप्लाई करने वाले ट्रांसपोर्टर को यह फॉर्म भरना होगा। अगर कोई ट्रांसपोर्टर रजिस्टर्ड नहीं है, तो वह जीएसटी कॉमन पोर्टल पर खुद को एनरॉल कर सकता है और अपने क्लाइंट के लिए -वे बिल जनरेट कर सकता है। सरकार के मुताबिक कोई भी शख्स, जो अपने सामान वस्तु को ट्रांसपोर्ट कर रहा है, वह भी जीएसटी कॉमन पोर्टल पर पहुंचकर खुद को एनरॉल कर -वे बिल जनरेट कर सकता है। बिल रहने पर माल के सापेक्ष जुर्माना वसूल करने का प्रावधान किया गया है। - वे बिल आनलाइन निकालने के लिए व्यापारियों को पहले - वे बिल के पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा। बिल जेनरेट कराने के लिए उनको पोर्टल पर ही पूरे माल के ब्यौरा के साथ आवेदन करना होगा। इसके बाद कारोबारियों को - वे बिल आनलाइन उपलब्ध करा दिया जाएगा।
इसके तहत अफसरों द्वारा रिपोर्ट और फॉर्म तयशुदा वक्त के अंदर जमा कर देने, सामान जब्त होने की स्थिति में तय समय के अंदर मामले का निपटारा करने और प्रथम दृष्टया कोई गड़बड़ नहीं पाए जाने पर सामान छोड़ देने संबंधी विस्तृत दिशा निर्देश शामिल हैं। दिशानिर्देशों के बाद -वे बिल के तहत सामानों की छानबीन, रोकना, छोड़ देना और इस तरह की सभी गतिविधियां सरल और सहज हो जाएंगी। हर न्यायिक आयुक्त अपने न्यायिक क्षेत्र एक अधिकारी को नामित और नियुक्त करेंगे, जो -वे बिल के तहत सामान रोकने और गड़बड़ी पकड़ने के लिए जिम्मेदार होगा। नियुक्त अधिकारी को दस्तावेजों की जांच और सामानों के निरीक्षण का पूरा कानूनी हक होगा और वह इनसे जुड़ी हर तरह की जांच कर सकता है। 
अधिकारी द्वारा रोके जाने पर सामान का तात्कालिक स्वामी (जो उस वक्त उस सामान की देखरेख कर रहा हो) उन सामानों से जुड़े सारे दस्तावेज मुहैया कराएगा। अधिकारी दस्तावेजों की जांच करेगा और प्रथम दृष्टया गड़बड़ नहीं पाए जाने पर सामान जाने देगा। अगर अफसर को दस्तावेज में कोई झोल नजर आता है या उसे सामानों का निरीक्षण करना है, तो वह इससे संबंधित एक आदेश जारी करेगा और सामान के तत्कालीन स्वामी का बयान जरूर दर्ज करेगा। आदेश जारी होने के 24 घंटे के भीतर अधिकारी को एक रिपोर्ट तैयार कर जीएसटी पोर्टल पर अपलोड करना होगा। अधिकारी को सामानों की औपचारिक जांच के लिए तीन कारोबारी दिनों की मोहलत दी जाएगी। जांच के बाद सामान के तत्कालीन स्वामी को एक जांच रिपोर्ट सौंपी जाएगी। सामान के तत्कालीन स्वामी या उनके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा कर और जुर्माने के भुगतान के बाद ही सामान छोड़ा जाएगा, जुर्माना बांड और बैंक गारंटी की शक्ल में भी भरा जा सकेगा। अगर अधिकारी को लगता है कि सामान की ढुलाई में कर-चोरी हो रही है, तो वह सामान जब्त कर सकता है।
अगर -वे बिल में किसी भी तरह की गलती हो जाती है, तो आप उसे सुधार नहीं सकेंगे। ऐसी स्थिति में आपको जिस -वे बिल में गलती हुई है, उसे रद्द करना होगा और नया -वे बिल जनरेट करना होगा। -वे बिल सभी उत्पादों के लिए जरूरी है। सिर्फ वे उत्पाद इसमें शामिल नहीं होंगे, जो नियम और सरकारी अधसिूचना की बदौलत इससे बाहर रखे गए हैं। सरकार ने साफ किया है कि हैंडीक्राफ्ट सामान और जॉब वर्क के लिए भेजे जाने वाले सामान के लिए कुछ विशेष परिस्थितियों में सामान की वैल्यू 50 हजार रुपये से कम होने पर भी जरूरी होगा। -वे बिल की वैलिडिटी तय है। यह इस पर निर्भर करेगा कि कोई सामान या वस्तु कितनी दूरी तक ट्रांसपोर्ट किया जाना है। अगर सामान्य वाहन और परिवहन माध्यम से आप कोई 50 हजार रुपये से ज्यादा का सामान या वस्तु 100 किलोमीटर या उसके दायरे में भेज रहे हैं, तो -वे बिल एक दिन के लिए वैध होगा। वहीं अगर सामान ऑवर डायमेंशनल कार्गो व्हीकल से भेजा जा रहा है, तो हर 20 किलोमीटर और इसके दायरे में जा रहे सामान के लिए जनरेट हुए -वे बिल की वैधता भी एक दिन ही होगी।