न्यू
इंडिया की
उड़ान, चांद
के पार
‘हिन्दुस्तान’

सुरेश
गांधी
तकरीबन 16 साल
पहले जब
चंद्रमा पर
अंतरीक्षयान भेजने की योजना नवजात
अवस्था में
थी, पूर्व
राष्ट्रपति वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कलाम
ने चंद्रयान
2 में एक
खास रोबोट
भेजने की
सलाह दी
थी ताकि
वह चांद
पर पानी
खोज सके।
सालभर बाद
इसरो के
वैज्ञानिकों की एक टीम चंद्र
अभियान पर
चर्चा के
लिए कलाम
से मिली।
मकसद था
100 किमी की
दूरी से
चंद्रमा की
परिक्रमा करना
था। डॉ
कलाम ने
सुझाव दिया
कि सिर्फ
परिक्रमा ही
क्यों? क्यों
न चांद
पर उतरे?
आज चांद
के दक्षिणी
ध्रुव तक
पहुंचने के
लिए चंद्रयान-2
की 48 दिन
की यात्रा
शुरू हो
गई है।
चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान 22 जुलाई से
लेकर 13 अगस्त
तक पृथ्वी
के चारों
तरफ चक्कर
लगाएगा। इसके
बाद 13 अगस्त
से 19 अगस्त
तक चांद
की तरफ
जाने वाली
लंबी कक्षा
में यात्रा
करेगा। 19 अगस्त को ही यह
चांद की
कक्षा में
पहुंचेगा। इसके बाद 13 दिन यानी
31 अगस्त तक
वह चांद
के चारों
तरफ चक्कर
लगाएगा। फिर
1 सितंबर को
विक्रम लैंडर
ऑर्बिटर से
अलग हो
जाएगा और
चांद के
दक्षिणी ध्रुव
की तरफ
यात्रा शुरू
करेगा। 5 दिन
की यात्रा
के बाद
6 सितंबर को
विक्रम लैंडर
चांद के
दक्षिणी ध्रुव
पर लैंड
करेगा। लैंडिंग
के करीब
4 घंटे बाद
रोवर प्रज्ञान
लैंडर से
निकलकर चांद
की सतह
पर विभिन्न
प्रयोग करने
के लिए
उतरेगा। यानी
चंद्रयान-2 को चांद पर पहुंचने
में 48 दिन
ही लगेंगे।

एक तरह
से देखे
तो हमें
इसका जवाब
मिलता दिखता
है। हम
बस्ती बनाने
का प्रयास
कर सकते
हैं क्योंकि
हमारे पास
संचार प्रणाली
है। हम
मौसम का
पूर्वानुमान लगा सकते हैं। जलवायु
परिवर्तन समझ
सकते हैं।
हमारे पास
जीपीएस है।
धरती और
इसके पर्यावरण
के बारे
में गहन
जानकारी और
आपदाओं की
चेतावनी हैं।
टेक्नोलॉजी दिनोदिन आधुनिक हो रही
है। इन्फ्रा-रेड इयर
थर्मामीटर और एलईडी आधारित उपकरण
चांद पर
मददगार साबित
होंगे। इंसान
6 बार पहले
ही चांद
पर पांव
के निशान
छोड़ आया
है। अपोलो
17 मिशन सबसे
अधिक तीन
दिनों तक
चाँद पर
रहा था,
जहां 3.8 करोड़
वर्ग किलोमीटर
जमीन है।
अमेरिका ने
जितनी बार
चांद पर
मानव मिशन
भेजा उसका
खर्च साल-दर-साल
बढ़ता चला
गया। आज
की तारीख
में दो
लोगों को
चांद पर
भेजकर, कुछ
दिन वहां
बिताकर लौटने
में कम
से कमा
2.40 लाख करोड़
रुपयों का
खर्च आएगा।
इससे ज्यादा
पैसा लगेगा
चांद पर
हवा और
पानी बनाने
में। हमें
पता है
कि चांद
पर बड़ी
मात्रा में
बर्फीला पानी
है। चट्टानों
में ऑक्सीजन
कैद है।
इसलिए चांद
के भावी
नागरिकों के
लिए हवा
और पानी
की जरूरतें
पूरी हो
सकती है।
लेकिन अभी
तक हवा
और पानी
की सही
मात्रा का
अंदाजा नहीं
लगाया जा
सका।
हालांकि
भविष्य में
संभावनाएं अच्छी हैं। चाँद पर
जाने की
अन्य वजहें
हैं - वहां
हीलियम की
बड़ी मात्रा,
जिसका उपयोग
ऊर्जा के
लिए हो
सकता है
और पर्यटन।
रोवर लैंडर
के अंदर
ही मैकेनिकल
तरीके से
इंटरफेस किया
गया है।
यानी लैंडर
के अंदर
इन्हाउस रहेगा
और चांद
की सतह
पर लैंडर
के सॉफ्ट
लैंडिंग के
बाद रोवर
प्रज्ञान अलग
होगा और
14 से 15 दिन
तक चांद
की सतह
पर चहलकदमी
करेगा और
चांद की
सतह पर
मौजूद सैंपल्स
यानी मिट्टी
और चट्टानों
के नमूनों
को एकत्रित
कर उनका
रसायन विश्लेषण
करेगा और
डेटा को
ऊपर ऑर्बिटर
के पास
भेज देगा।
जहां से
ऑर्बिटर डेटा
को इसरो
मिशन सेंटर
भेजेगा।
बता दें,
नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी
रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि
वह इस
प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा।
वह इसरो
को लैंडर
देगा। 2008 में इस मिशन को
सरकार से
अनुमति मिली।
2009 में चंद्रयान-2
का डिजाइन
तैयार कर
लिया गया।
जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी,
लेकिन रूसी
अंतरिक्ष एजेंसी
रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई।
इसरो ने
चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग मार्च 2018 तय
की। लेकिन
कुछ टेस्ट
के लिए
लॉन्चिंग को
अप्रैल 2018 और फिर अक्टूबर 2018 तक
टाला गया।
इस बीच,
जून 2018 में
इसरो ने
फैसला लिया
कि कुछ
बदलाव करके
चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग जनवरी 2019 में
की जाएगी।
फिर लॉन्च
डेट बढ़ाकर
फरवरी 2019 किया गया। अप्रैल 2019 में
भी लॉन्चिंग
की खबर
आई थी।
लेकिन टल
गया, फिर
15 जुलाई को
तिथि तय
हुई फिर
टल गया,
अब सफल
हुई है।
खास बात
यह है
कि इसरों
ने चांद
पर वह
जगह चुनी
है, जहां
अभी तक
कोई देश
नहीं पहुंचा
ह। इसरो
के अनुसार
चंद्रयान 2 भारतीय मून मिशन है
जो पूरी
हिम्मत से
चाँद के
दक्षिणी ध्रुव
क्षेत्र में
उतरेगा जहां
अभी तक
कोई देश
नहीं पहुंचा
है। यानी
कि चंद्रमा
का दक्षिणी
ध्रुवीय क्षेत्र।
इसका मकसद,
चंद्रमा के
प्रति जानकारी
जुटाना है।
ऐसी खोज
करना जिनसे
भारत के
साथ ही
पूरी मानवता
को फायदा
होगा। इन
परीक्षणों और अनुभवों के आधार
पर ही
भावी चंद्र
अभियानों की
तैयारी में
जरूरी बड़े
बदलाव लाए
जाएंगे। ताकि
आने वाले
दौर के
चंद्र अभियानों
में अपनाई
जाने वाली
नई टेक्नोलॉजी
को बनाने
और उन्हें
तय करने
में मदद
मिले।

आज देश
के लिए
गर्व करने
का दिन
है। क्योंकि
इस मिशन
से हिंदुस्तान
के कदम
पहली बार
चांद पर
पड़ने वाले
हैं। चंद्रयान
अपने साथ
एक रोबोट
प्रज्ञान ले
जा रहा
है जो
चांद के
उस हिस्से
पर उतरेगा
जहां अब
तक कोई
नहीं पहुंचा
है। चांद
पर कदम
रखने वाला
चौथा देश
बन जाएगा
हिंदुस्तान। ये देश के लिए
बहुत बड़ी
उपलब्धि है।
सबसे पहले
1966 में लूना-9
यान ने
चांद पर
कदम रखा
था। उसके
तीन साल
बाद 1969 में
अमेरिका ने
सबसे पहले
इंसान को
चांद पर
उतारा। इसके
करीब 45 साल
बाद चीन
ने चांग
ई-3 यान
उतारा और
अब आज
भारत का
चंद्रयान-2 चांद पर कदम रखने
के लिए
जाने वाला
है। इस
मिशन की
लागत 978 करोड़
रुपये है।
चंद्रयान-2 भारत का दूसरा चंद्रमा
मिशन है।
इस मिशन
की खासियत
यह है
कि पहली
बार भारत
चंद्रमा की
उत्तरी सतह
पर ’लुनर
रोवर’ उतारेगा। कानपुर
द्वारा निर्मित
’लुनर रोवर’ यानी मानवरहित चंद्रयान
को चंद्रमा
पर भेजा
जाएगा, जो
चंद्रमा की
सतह के
कई रहस्यों
से पर्दा
उठाएगा। रॉकेट
को ’बाहुबली’ नाम दिया गया
है। यह
पहली बार
है कि
मानवरहित चंद्रयान
भारत की
ओर से
चंद्रमा की
उत्तरी सतह
पर लैंड
करेगा, जो
पूरी दुनिया
के लिए
अभी अछूता
है।
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