प्रखर वक्ता...; कुशल रणनीतिकार थे अरुण जेटली...लोगों के दिलों में हमेशा करेंगे राज
अरुण जेटली महज एक नाम नहीं है। यह नाम सुनते ही उनकी कई तस्वीरें सामने आती हैं। नेता के तौर पर पहली तस्वीर में वह पीएम मोदी के पहले शासनकाल में पांच सालों तक देश के वित्त मंत्री रहे। उससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में वे सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री, कानून मंत्री, कंपनी अफेयर एंड शिपिंग मंत्री रह चुके थे वहीं, वे देश के मशहर वकीलों में से एक थे। वे विद्वान के साथ-साथ वाकपटुता के धनी थे। उन्हें मोदी सरकार का संकटमोटक भी कहा जाता था। जब वे पहली बार देश के वित्त मंत्री बने, तो उन्होंने अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर कई ऐतिहासिक फैसले लिए। साथ ही उनके कार्यकाल के दौरान कई अहम योजनाओं की शुरुआत हुई। इन योजनाओं का महत्व पांच सालों के बाद दिख रहा है। देश-दुनिया में इन योजनाओं की तारीफ की जा रही है
सुरेश गांधी
पूर्व केंद्रीय मंत्री
व भाजपा के
वरिष्ठ नेता अरुण
जेटली का लंबी
बीमारी के बाद
24 अगस्त को निधन
हो गया। 66 साल
की उम्र में
उन्होंने एम्स में
दोपहर 12.07 मिनट पर
अंतिम सांस ली।
वह 9 अगस्त से
दिल्ली स्थित एम्स में
भर्ती थे। अरुण
जेटली भारतीय राजनीति
में कई बड़ी
जिम्मेदारियां निभाईं। वह एक
प्रखर नेता और
कुशल रणनीतिकार के
रूप में हमेशा
याद किए जाएंगे।
अरुण जेटली का
भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने
में प्रमुख योगदान
रहा। नेता के
रूप में देश
के पूर्व वित्त
मंत्री, कानून मंत्री, सूचना
एवं प्रसारण राज्यमंत्री
और नेता विपक्ष
जैसे अहम पदों
पर रह चुके
थे। यह अलग
बात है कि
वे कभी लोकसभा
चुनाव नहीं जीते।
लेकिन जहां भी
उन्होंने चुनावी बिसात बिछाई
वहां बीजेपी को
मजबूत स्थिति में
पहुंचाया। यही वजह
है कि उनकी
अहमियत भाजपा के कद्दावर
नेताओं में रही।
उन्हें पार्टी का चाणक्य
भी कहा गया।
क्योंकि वह चुनावी
रणनीति बैठाने में माहिर
थे। देश की
राजनीति में जेटली
की भूमिका हमेशा
याद की जाएगी।
वह अटल
बिहार वाजपेयी के
सबसे भरोसेमंद सहयोगियों
में से एक
रहे, जिन्होंने उन्हें
एक साल के
बाद ही कैबिनेट
रैंक में पदोन्नत
किया। अरुण जेटली
ने अपनी काबिलियत
को बखूबी साबित
किया। वह प्रमोद
महाजन और अटल
बिहारी वाजपेयी की सेवानिवृत्ति
के बाद बीजेपी
के मुख्य रणनीतिकार
बन गए। मोदी
सरकार-1 में उन्हें
वित्त मंत्रालय संभाला।
2006 में राज्यसभा में विपक्ष
के नेता बने
और अपनी स्पष्टता,
बेहतरीन याद्दाश्त और त्वरित
विचारों के जरिए
उन्होंने कई कांग्रेस
सदस्यों का भी
सम्मान हासिल किया।
उन्हें क्रिकेट पसंद था। उन्होंने 2014 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। 1990 के दशक में बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की राष्ट्रीय एकता यात्रा के दौरान दोनों संपर्क में आए थे। ये पॉलिटिकल कनेक्शन धीरे-धीरे गहरी दोस्ती में बदल गया। उस दौर में जेटली लुटियंस दिल्ली में अपनी पैठ मजबूत कर चुके थे। 1998 में मोदी पार्टी महासचिव बने, अगले साल जेटली को प्रवक्ता बनाया गया। मोदी को 2014 में पीएम पद का उम्मीदवार बनाने में जेटली का बड़ा रोल था। जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने अहम भूमिका निभाई थी। वहीं, मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण शौरी और सुब्रमण्यम स्वामी के आगे जेटली को तरजीह देते हुए वित्त मंत्रालय का जिम्मा सौंपा था। स्वास्थ्य कारणों से जेटली 2019 में सक्रिय राजनीति से किनारे हो गए थे, लेकिन मोदी सरकार के बचाव में वह सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखते रहे। कहा जा सकता है पार्टी के साथ-साथ मोदी के लिए जेटली दिल्ली में कुशल मैनेजर की भूमिका में थे और उन्हीं की बदौलत मोदी ने राजधानी को भी समझा। और आज मोदी प्रधानमंत्री है।
उन्हें क्रिकेट पसंद था। उन्होंने 2014 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग प्रकरण के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। अरुण जेटली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। 1990 के दशक में बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की राष्ट्रीय एकता यात्रा के दौरान दोनों संपर्क में आए थे। ये पॉलिटिकल कनेक्शन धीरे-धीरे गहरी दोस्ती में बदल गया। उस दौर में जेटली लुटियंस दिल्ली में अपनी पैठ मजबूत कर चुके थे। 1998 में मोदी पार्टी महासचिव बने, अगले साल जेटली को प्रवक्ता बनाया गया। मोदी को 2014 में पीएम पद का उम्मीदवार बनाने में जेटली का बड़ा रोल था। जेटली ने राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को साथ लाने अहम भूमिका निभाई थी। वहीं, मोदी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अरुण शौरी और सुब्रमण्यम स्वामी के आगे जेटली को तरजीह देते हुए वित्त मंत्रालय का जिम्मा सौंपा था। स्वास्थ्य कारणों से जेटली 2019 में सक्रिय राजनीति से किनारे हो गए थे, लेकिन मोदी सरकार के बचाव में वह सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखते रहे। कहा जा सकता है पार्टी के साथ-साथ मोदी के लिए जेटली दिल्ली में कुशल मैनेजर की भूमिका में थे और उन्हीं की बदौलत मोदी ने राजधानी को भी समझा। और आज मोदी प्रधानमंत्री है।
1974 में अरुण
जेटली ने दिल्ली
छात्र संघ का
चुनाव जीता था।
1977 में वे जनसंघ
में शामिल हुए।
1980 में वे बीजेपी
में सक्रिय हो
गए थे, लेकिन
34 सालों तक वे
सीधे चुनावी रण
में नहीं उतरे
थे। 2014 में जब
बीजेपी नरेंद्र मोदी के
नेतृत्व में चुनाव
लड़ रही थी
तो जेटली चुनाव
लड़ने उतरे। पार्टी
ने जेटली के
लिए पंजाब की
अमृतसर लोकसभा सीट को
चुना। हालांकि उन्हें
कांग्रेस के दिग्गज
नेता कैप्टन अमरिंदर
सिंह ने जीतने
नहीं दिया। बिहार
की राजनीति में
अरुण जेटली की
असल भूमिका चारा
घोटाले के दौर
में शुरू हुई
थी। यहीं से
लालू राज का
ढलना शुरू हो
गया था। हालांकि
लालू के बाद
राबड़ी देवी सत्ता
में बनी रहीं,
लेकिन जेटली भी
अपनी गणित बैठाते
रहे। 2005 के विधानसभा
चुनाव में अरुण
जेटली को बिहार
बीजेपी का प्रभारी
बनाया गया। उस
वक्त राबड़ी देवी
की वापसी तय
मानी जा रही
थी, लेकिन लालू-पासवान में आपसी
कलह की वजह
से राज्य में
राष्ट्रपति शासन तक
की नौबत आ
गई।
दरअसल, जनता भी
लालू-राबड़ी का
विकल्प ढूंढ रही
थी। जेटली ने
इस मौके को
भांपते हुए प्रमोद
महाजन को विश्वास
में लेते हुए
नीतीश कुमार को
एनडीए का मुख्यमंत्री
पद का उम्मीदवार
घोषित कराया और
उन्हें न्याय यात्रा पर
निकलने की सलाह
दी। अक्टूबर-नवंबर
के चुनाव में
जेटली ने खुद
पटना में चुनाव
प्रचार किया था।
इसके बाद नीतीश
कुमार की पूर्ण
बहुमत वाली सरकार
बनी। तब से
अब तक नीतीश
कुमार राज्य के
सीएम हैं। 2003 में
उन्हें मध्य प्रदेश
विधानसभा चुनाव की कमान
सौंपी गई, जिसके
बाद राज्य में
बीजेपी ने 15 साल शासन
किया। मध्य प्रदेश
में कांग्रेस के
दिग्गज दिग्विजय सिंह को
पटखनी देने में
जेटली की मुख्य
रणनीतिक भूमिका थी। उन्हीं
की बनाई रणनीति
के बाद शिवराज
सिंह चौहान 15 साल
तक राज्य मुखिया
बने रहे। 2008 कर्नाटक
विधानसभा चुनाव की कमान
अरुण जेटली को
सौंपी गई थी।
कर्नाटक में पहली
बार कमल खिलाने
का श्रेय भी
इन्हें ही दिया
जाता है। हालांकि
कर्नाटक की सियासत
में जेटली बहुत
सक्रिय नहीं दिखे,
लेकिन पहली बार
राज्य में कमल
खिलाने में बड़ी
भूमिका निभाई। इसके अलावा
जेटली ने पंजाब
और हिमाचल प्रदेश
में भी पार्टी
के लिए अहम
कड़ी रहे थे।
1995 में जब
गुजरात में बीजेपी
सरकार सत्ता में
आई तो मोदी
को दिल्ली में
काम करने के
लिए भेजा गया
था। ऐसा कहा
जाता है कि
तत्कालीन सीएम केशुभाई
पटेल को डर
था कि मोदी
गुजरात में रहकर
उनके लिए मुश्किल
पैदा कर रहे
हैं। उन्होंने केंद्रीय
नेताओं से बात
की और मोदी
को गुजरात से
दिल्ली भेज दिया
गया। इस दौरान
जेटली ने मोदी
का पूरा ख्याल
रखा, लेकिन और
किसी पार्टी नेता
ने मोदी को
तरजीह नहीं दी।
1998 में नरेंद्र मोदी को
पार्टी महासचिव और अगले
साल जेटली को
पार्टी को प्रवक्ता
बनाया गया। इसी
साल गुजरात से
राज्यसभा सदस्य चुने जाने
के बाद जेटली
वाजपेयी सरकार में सूचना
एंव प्रसारण मंत्री
बन गए। दो
साल बाद नरेंद्र
मोदी गुजरात की
सत्ता पर काबिज
हुए। मोदी ने
2002 में हुए गुजरात
दंगों के बाद
आठ महीने पहले
ही विधानसभा भंग
करने का एलान
किया और जेटली
को वहां का
प्रभारी बना दिया
गया। इस जिम्मेदारी
के साथ-साथ
जेटली दिल्ली भी
मैनेज कर रहे
थे। इस दौरान
मोदी पर विपक्ष
के साथ-साथ
पार्टी के कुछ
नेता भी हमलावर
थे, लेकिन इस
संकट की घड़ी
में जेटली ने
मोदी का पूरा
साथ दिया।
पार्टी के वरिष्ठ
नेता लाल कृष्ण
आडवाणी ने मोदी
और जेटली के
कामों के सराहना
जरूर की थी,
लेकिन उनके चहेते
प्रमोद महाजन ही रहे,
जो कई नेताओं
को पसंद नहीं
थे। हालांकि प्रमोद
महाजन की हत्या
के बाद जेटली
आडवाणी को भी
साधने में सफल
रहे। इसके बाद
जेटली, मोदी और
वैंकैया नायडू का खेमा
उभरकर सामने आया,
जिसमें बाद में
अनंत कुमार भी
शामिल हो गए
थे। इस खेमे
की कमान मोदी
2005 से संभाले हुए हैं।
दुर्भाग्य से अनंत
कुमार और जेटली
इस दुनिया में
नहीं रहे। वहीं
वैंकैया नायडू उप राष्ट्रपति
बन चुके हैं।
कहते है 2004 के
आम चुनाव में
हार के बाद
पार्टी में अंदरूनी
घमासान शुरू हो
गया था। तब
जेटली का कद
घटने लगा था।
इस बीच संघ
ने राजनाथ सिंह
को बीजेपी अध्यक्ष
पद के लिए
सपोर्ट कर दिया।
हालांकि राजनाथ सिंह के
लिए ये दौर
बहुत मुश्किल भरा
रहा। हर तरफ
पार्टी को आलोचनाओं
का सामना करना
पड़ा रहा था।
फरवरी 2007 में राजनाथ
सिंह ने जेटली
को पार्टी प्रवक्ता
के पद से
हटा दिया था,
लेकिन 2008 में कर्नाटक
में कमल खिलाकर
जेटली ने फिर
से सबको खुश
कर दिया। हालांकि
2009 आम चुनाव में मिली
करारी शिकस्त के
बाद जेटली फिर
पार्टी के निशाने
पर आ गए
थे।
बता दें,
अरुण जेटली का
जन्म 28 दिसंबर 1952 को दिल्ली
में हुआ था।
उनके पिता का
नाम महाराज किशन
जेटली था, जो
एक वकील थे।
पिता की कदमों
पर चले अरुण
जेटली ने भी
दिल्ली विश्वविद्यालय से वकालत
की। उन्होंने श्री
राम कॉलेज ऑफ
कॉमर्स से अपनी
ग्रेजुएशन की डिग्री
ली और फिर
दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही
लॉ की डिग्री
हासिल की। अरुण
जेटली की पत्नी
का नाम संगीता
जेटली है। साल
1982 में उनकी शादी
हुई थी। उनके
दो बच्चे हैं।
एक बेटी और
एक बेटी। बेटी
का नाम सोनाली
जेटली है, वहीं,
बेटे का नाम
रोहन जेटली है।
अरुण जेटली दिल्ली
यूनिवर्सिटी कैंपस में पढ़ाई
के दौरान अखिल
भारतीय विद्यार्थी परिषद से
जुड़े और 1974 में
स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष
बने। राज नारायण
और जयप्रकाश नारायण
द्वारा चलाये गए भ्रष्टाचार
विरोधी जनांदोलन में भी
वो प्रमुख नेताओं
में से थे।
जय प्रकाश नारायण
ने उन्हें राष्ट्रीय
छात्र और युवा
संगठन समिति का
संयोजक नियुक्त किया। इमरजेंसी
(1975-1977) के दौरान जेटली को
मीसा के तहत
19 महीने जेल में
भी काटने पड़े।
जेल से रिहा
होने के बाद
वो जनसंघ में
शामिल हो गए
थे। 1980 से 90 के दशक
तक बीजेपी भारत
में मुख्य धारा
की राजनीतिक पार्टी
बनने के लिए
संघर्ष कर रही
थी। अटल और
आडवाणी के नेतृत्व
में, बीजेपी कड़ी
मेहनत कर रही
थी तब अरुण
जेटली ने बीजेपी
के युवा ब्रिगेड
को परिपक्व राजनेताओं
में बदलने का
काम दिया गया
था।
जेटली की प्रमुख योजनाएं
वित्त मंत्री के
रूप में उन्होंने
1 जुलाई 2017 को जीएसटी
कानून को पूरे
देश में लागू
किया। इसकी वजह
से आज इंस्पेक्टर
राज शब्द के
बारे में कभी-कभी सुनने
को मिलता है।
सारी प्रक्रिया ऑनलाइन
और सरल हो
गई है। जीएसटी
कलेक्शन हर महीने
लगभग 1 लाख करोड़
रुपये का है।
सरकार लगातार कोशिश
कर रही है
कि इस कलेक्शन
में बढ़ावा हो
और चीजें और
ज्यादा आसान हो।
कालेधन के खिलाफ
उनके शासनकाल में
नोटबंदी जैसे ऐतिहासिक
फैसले लिए गए।
500 और 1000 रुपये का नोट
रातों रात बैन
कर दिया गया।
कानूनी वैधता समाप्त होने
से लाखों लोग
जिनके पास अकूत
कैश था वह
बर्बाद हो गया।
साथ ही करोड़ों
की संख्या में
नये टैक्स पेयर्स
सिस्टम में आ
गए। टैक्स कलेक्शन
बढ़ा है। उन्होंने
वित्त मंत्री रहते
हुए में “राइट
टू एग्जिट“ कानून
2016 को पहली बार
लागू किया था।
आर्थिक जगत के
लिए यह बहुत
बड़ा कदम है।
यही एक कानून
है जिसे बिजनेस
वर्ल्ड कहा जाता
है। इसकी वजह
से बैंकों पर
एनपीए का बोझ
भी कम हुआ
है।
मुद्रा योजना को मोदी शासनकाल-1 में लॉन्च किया गया था। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। 2015 में इस योजना की शुरुआत की गई थी। इस स्कीम के तहत युवाओं को स्वरोजगार के लिए लोन दिया जाता है। महिलाओं को लोन में प्राथमिकताएं मिलती हैं। सरकार इसके जरिए स्वरोजगार को बढ़ावा देना चाहती है। उनके शासनकाल में प्रधानमंत्री जनधन अकाउंट योजना की शुरुआत की गई। आज वर्तमान में 40 करोड़ से ज्यादा जनधन अकाउंट हैं। इन अकाउंट में 1 लाख करोड़ से ज्यादा रुपये जमा हैं। साथ ही सरकार की तमाम योजनाओं का लाभ लाभार्थी के अकाउंट में जाता है। इससे कमीशन खाने वालों पर रोक लग गई। आयुष्मान भारत पीएम मोदी की एक बड़ी उपलब्धि है। अपने आखिरी बजट (2018-19) में उन्होंने इस स्कीम का ऐलान किया था। इसके तहत लाभार्थियों के परिवार को 5 लाख रुपये तक कैशलेस स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलता है। मेक इन इंडिया स्कीम के तहत उन्होंने युवाओं के रोजगार का रास्ता खोला। ईज ऑप डूइंग बिजनेस में भारत का रैंक ऊपर हुआ। निवेशकों को लुभाने के लिए और निवेश की रफ्तार को बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने कार्यकाल में कई नियमों को आसान किया। इससे विदेशी निवेशक बड़ी संख्या में भारत में निवेश करने लगे। उनका मानना था कि जब तक इस सेक्टर में विकास नहीं होगा सभी को रोजगार नहीं दिए जा सकते हैं। इसलिए, उन्होंन स्टार्टअप योजना की शुरुआत की। एंजल इंवेस्टमेंट स्कीम की शुरुआत हुई। नई कंपनियों को टैक्स में छूट दी गई। बैंक से स्पेशल और सस्ते लोन मिलने लगे। इस तरह रिजनल मार्केट को मजबूत करने की तमाम कोशिशें हुईं।
मुद्रा योजना को मोदी शासनकाल-1 में लॉन्च किया गया था। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। 2015 में इस योजना की शुरुआत की गई थी। इस स्कीम के तहत युवाओं को स्वरोजगार के लिए लोन दिया जाता है। महिलाओं को लोन में प्राथमिकताएं मिलती हैं। सरकार इसके जरिए स्वरोजगार को बढ़ावा देना चाहती है। उनके शासनकाल में प्रधानमंत्री जनधन अकाउंट योजना की शुरुआत की गई। आज वर्तमान में 40 करोड़ से ज्यादा जनधन अकाउंट हैं। इन अकाउंट में 1 लाख करोड़ से ज्यादा रुपये जमा हैं। साथ ही सरकार की तमाम योजनाओं का लाभ लाभार्थी के अकाउंट में जाता है। इससे कमीशन खाने वालों पर रोक लग गई। आयुष्मान भारत पीएम मोदी की एक बड़ी उपलब्धि है। अपने आखिरी बजट (2018-19) में उन्होंने इस स्कीम का ऐलान किया था। इसके तहत लाभार्थियों के परिवार को 5 लाख रुपये तक कैशलेस स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलता है। मेक इन इंडिया स्कीम के तहत उन्होंने युवाओं के रोजगार का रास्ता खोला। ईज ऑप डूइंग बिजनेस में भारत का रैंक ऊपर हुआ। निवेशकों को लुभाने के लिए और निवेश की रफ्तार को बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने कार्यकाल में कई नियमों को आसान किया। इससे विदेशी निवेशक बड़ी संख्या में भारत में निवेश करने लगे। उनका मानना था कि जब तक इस सेक्टर में विकास नहीं होगा सभी को रोजगार नहीं दिए जा सकते हैं। इसलिए, उन्होंन स्टार्टअप योजना की शुरुआत की। एंजल इंवेस्टमेंट स्कीम की शुरुआत हुई। नई कंपनियों को टैक्स में छूट दी गई। बैंक से स्पेशल और सस्ते लोन मिलने लगे। इस तरह रिजनल मार्केट को मजबूत करने की तमाम कोशिशें हुईं।
एक साल में बीजेपी ने खोए अपने पांच ’रत्न’
बीजेपी ही नहीं
बल्कि पूरी राजनीतिक
जमात जेटली के
निधन से दुखी
है। कुछ ही
दिनों पहले पूर्व
विदेश मंत्री सुषमा
स्वराज का निधन
हो गया। पिछले
एक साल के
भीतर बीजेपी ने
अपने 5 दिग्गज नेताओं को
खो दिया है।
इनमें से चार
चेहरे तो ऐसे
थे जो 2014 की
नरेंद्र मोदी सरकार
में कैबिनेट मंत्री
रहे। इनमें एक
शख्सियत ऐसी भी
रही जिसने न
सिर्फ पार्टी को
खड़ा किया बल्कि
पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे
जिन्होंने 5 साल का
कार्यकाल पूरा किया।
भारत रत्न व
पूर्व प्रधानमंत्री अटल
बिहारी वाजपेयी की तबीयत
काफी लंबी समय
से खराब थी,
16 अगस्त, 2018 को उनका
निधन हो गया।
2004 में राजनीति से संन्यास
लेने वाले अटल
बिहारी वाजपेयी को 2015 में
भारत रत्न से
सम्मानित किया गया
था। बीजेपी नेता
और पूर्व केंद्रीय
मंत्री अनंत कुमार
का निधन 12 नवंबर,
2018 बेंगलुरु
में हुआ। बेंगलुरु
साउथ से लगातार
6 बार जीत हासिल
करने वाले 59 वर्षीय
अनंत कुमार को
फेफड़ों का कैंसर
था। उनका इलाज
लंदन और न्यूयार्क
में भी हुआ
था।
वह भाजपा सरकार में संसदीय कार्यमंत्री रहे। पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में लोगों के दिलों पर राज करने वाले भाजपा नेता मनोहर पर्रिकर 17 मार्च, 2019 को दुनिया छोड़कर चले गए। वह लंबे समय से अग्नाशय के कैंसरे से पीड़ित थे। पर्रिकर चार बार गोवा के मुख्यमंत्री रहे। 2014 में एनडीए सरकार में मनोहर पर्रिकर ने देश के रक्षा मंत्री की भूमिका निभाई। साल 2000-05 में पहली बार सीएम बने। पूर्व विदेश मंत्री, प्रखर वक्ता व पार्टी की दिग्गज वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने 6 अगस्त को दुनिया को अलविदा कह दिया था। वह 67 साल की थीं। साल 2014 से 2019 तक भारत की विदेश मंत्री रहीं। सुषमा ने दुनिया भर के देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए काफी योगदान दिया।
वह भाजपा सरकार में संसदीय कार्यमंत्री रहे। पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में लोगों के दिलों पर राज करने वाले भाजपा नेता मनोहर पर्रिकर 17 मार्च, 2019 को दुनिया छोड़कर चले गए। वह लंबे समय से अग्नाशय के कैंसरे से पीड़ित थे। पर्रिकर चार बार गोवा के मुख्यमंत्री रहे। 2014 में एनडीए सरकार में मनोहर पर्रिकर ने देश के रक्षा मंत्री की भूमिका निभाई। साल 2000-05 में पहली बार सीएम बने। पूर्व विदेश मंत्री, प्रखर वक्ता व पार्टी की दिग्गज वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने 6 अगस्त को दुनिया को अलविदा कह दिया था। वह 67 साल की थीं। साल 2014 से 2019 तक भारत की विदेश मंत्री रहीं। सुषमा ने दुनिया भर के देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए काफी योगदान दिया।
जब शादी में अटल व इंदिरा पहुंची
जेटली कांग्रेस के
पूर्व सांसद और
जम्मू कश्मीर के
मंत्री रहे गिरधारी
लाल डोगरा के
दामाद थे। उनका
विवाह 24 मई 1982 को डोगरा
की बेटी संगीता
से हुआ था।
उनकी ससुराल कठुआ
जिले के हीरानगर
के पैया गांव
में है। उनकी
शादी में बीजेपी
के दिग्गज नेता
अटल बिहारी वाजपेयी
तो शामिल हुए
ही, तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी भी इस
मौके पर नवदंपति
को आशीर्वाद देने
पहुंची थीं। ये
वो समय था
जब जेटली को
राजनीति में आए
कुछ ही वर्ष
हुए थे। इसके
बावजूद उनकी शादी
में भारतीय राजनीति
की उस दौर
की शीर्ष हस्तियां
शुमार हुईं। जेटली
को इस शादी
की वजह से
मजाक में कश्मीर
का जमाई बाबू
भी कहा जाता
था। गौरतलब है
कि गिरधारी लाल
डोगरा आजादी के
बाद से 1975 तक
जम्मू कश्मीर के
वित्त मंत्री रहे।
जम्मू और ऊधमपुर
से वो कांग्रेस
के सांसद भी
रहे। इंदिरा गांधी
एक समय उन्हें
लोकसभा का स्पीकर
बनाना चाहती थीं
लेकिन डोगरा इसके
लिए तैयार नहीं
हुए। 1987 में उनका
निधन हुआ। उनकी
25वीं पुण्यतिथि पर
तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला
ने उनकी जीवनी
पीपल्समैन का विमोचन
किया। 2015 में उनके
शताब्दी समारोह में खुद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी
शामिल हुए थे।
जेटली नहीं होते तो नीतीश सीएम नहीं बन पाते
नीतीश आज जिस
मकाम पर हैं,
उसकी सड़क में
कुछ अहम पत्थरें
जेटली की लगाई
हुई हैं। ये
2005 के बिहार का क़िस्सा
है। जेटली तब
बीजेपी के जनरल
सेक्रटरी व बिहार
प्रभारी भी थे।
नीतीश को जेडीयू
और बीजेपी गठबंधन
का चेहरा बनाने
के पीछे जेटली
का बड़ा हाथ
था। 2005 में लालू-राबड़ी के मुकाबले
में मिली जीत
के एक अहम
हिस्से का श्रेय
नीतीश और जेटली
की पार्टनरशिप को
जाता है। फरवरी
2005 के बिहार विधानसभा चुनाव
में लालू हार
गए। मगर किसी
भी पार्टी को
बहुमत नहीं मिला
था। लालू को
243 में से 75 सीटें मिली
थीं। बीजेपी और
जेडीयू मिलकर बस 92 ला
पाए थे। ये
जीत तो थी,
मगर सरकार बनाने
के लिहाज से
अभी काफ़ी दूर
था। नीतीश ने
जेटली से कहा-
गठबंधन तो कर
लिया था हमने,
लेकिन इस पार्टनरशिप
को एक चेहरा
नहीं दिया। चुनाव
से पहले मुख्यमंत्री
कैंडिडेट का ऐलान
न करने के
कारण ही हम
बहुमत नहीं ला
पाए। नीतीश का
कहना था कि
बिहार की जनता
लालू-राबड़ी को
हटाना तो चाहती
है। मगर उनकी
जगह कौन लेगा,
ये नहीं बताए
जाने के कारण
ठीक से निर्णय
नहीं ले पा
रही है। जेटली
सहमत थे इस
तर्क से। मगर
उस समय जेटली
को ज़्यादा ज़रूरी
ये लग रहा
था कि सरकार
बनाई जाए। वो
किसी तरह नीतीश
के लिए बहुमत
जुटाना चाहते थे। बहुत
कोशिशें हुईं। मगर आखिरकार
केंद्र की मनमोहन
सिंह सरकार ने
बिहार विधानसभा भंग
करके राष्ट्रपति शासन
लगा दिया। इसके
पीछे लालू का
बड़ा हाथ था।
इस फ़ैसले की
मुखालफ़त करते हुए
बीजेपी सुप्रीम कोर्ट भी
गई। मगर नीतीश
दिल ही दिल
में चाहते थे
कि फिर से
चुनाव हो जाएं।
वो स्पष्ट बहुमत
चाहते थे। नवंबर
2005 में फिर से
चुनाव हुए। इस
बार नीतीश अड़े
थे। उन्होंने बीजेपी
से कहा। अगर
बहुमत चाहिए, तो
मुझे मुख्यमंत्री पद
का दावेदार बनाओ।
ऐलान कर दो
मेरा नाम। जेटली
सहमत थे। उन्हें
महसूस हो गया
था कि लालू-राबड़ी राज खत्म
करना है, तो
नीतीश को चेहरा
बनाना ही होगा।
इसका एक बड़ा
कारण ये था
कि उस समय
बिहार में बीजेपी
के पास नीतीश
के मुकाबले का
कोई लोकप्रिय चेहरा
नहीं था। नीतीश
का संदेसा जेटली
ने बीजेपी हाईकमान
तक पहुंचाया। नीतीश
को दावेदार बनाने
को लेकर बीजेपी
का बड़ा सेक्शन
तैयार नहीं था।
ऐसे में जेटली
ने नीतीश के
नाम पर सहमति
बनाने में बड़ी
मेहनत की। वाजपेयी
और प्रमोद महाजन,
दोनों जेटली से
सहमत हो गए।
और इस तरह
जब 2005 के दूसरे
विधानसभा चुनाव के लिए
जेटली ने प्रचार
शुरू किया, तो
वोट नीतीश की
लीडरशिप में मांगा।
गजब भैया
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