Monday, 26 August 2019

आर्थिक मंदी से उबरने की चुनौती


आर्थिक मंदी से उबरने की चुनौती
यह मंदी की आहट का ही असर है कि अप्रैल से जून 2019 की तिमाही में चाहे वह सोना-चांदी हो या ऑटो, हीरा, रियल एस्टेट, टेलिकॉम और बैंकिंग से लेकर स्टील, टेक्सटाइल, कृषि पेट्रोलियम, खनन, फर्टीलाइजर, सिगरेट और बिस्कुट के साथ-साथ अंडरवियर जैसे सेक्टरों में 35 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है। खासकर अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों में गिरावट, डिमांड और सप्लाई के बीच लगातार कम होता अंतर और निवेश में कमी जैसी चीजें मंदी की पुष्टि करते है। इसका असर अब इन सेक्टरों में दिखाई भी देने लगा है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही जो बीते 5 सालों में सबसे कम है। जिसके बाद आरबीआई ने मंदी की आहट को भांपते हुए साल 2019-20 के लिए विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। यह वो आंकड़े हैं जो आर्थिक मंदी से देश को खबरदार करते हैं। इसके लिए सरकारी नीतियों और फैसलें कहीं कहीं जिम्मेदार है। मंदी का सीधा असर रोजगार पर देखा जा सकता है
सुरेश गांधी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भले ही दूसरे देशों से तुलना करके भारत की आर्थिक मंदी से ज्यादा घबराने की बात कर रही हों लेकिन ग्राउंड पर आर्थिक मंदी के हालात बेहद खराब है। हालात कितने बदतर हो चले है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंदी के बादल इस कदर तेजी से काले और घने होते जा रहे हैं कि इसका असर ऑटो, रियल एस्टेट, टेलिकॉम और बैंकिंग से लेकर स्टील और टेक्सटाइल जैसे सेक्टरों पर दिखना शुरू हो गया है। इस बात को खुद वो समझ रही है तभी तो वित्त मंत्री ने बाजार में आई सुस्ती को दूर करने और अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए अलग-अलग सेक्टर्स, उद्योग और आम आदमी को मंदी से राहत देने के लिए कई ऐलान किए हैं।
फिरहाल, मंदी की वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हैं, जिसका असर महंगाई दर पर पड़ा है। इसके अलावा डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती हुई कीमत भी मंदी की एक वजह है। इस वक्त एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 72 रुपये के आंकड़े को छू रही है। इसके चलते आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट से देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा और विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी आई है। तीसरी बड़ी वजह यह है कि अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर भी है जिससे पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी की चपेट में है और इसका असर भारत पर भी पड़ा है। इन सबके बीच देश में आर्थिक मंदी की वजह अंदुरुनी हालात भी हैं। खासकर अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों में गिरावट, डिमांड और सप्लाई के बीच लगातार कम होता अंतर और निवेश में मामूली कमी जैसी चीजें मंदी की तरफ इशारा कर रही हैं। जिसका असर अब दिखाई देने लगा है।
हाल यह है कि देश का ऑटो इंडस्ट्री में कार और मोटरसाइकिलों की बिक्री में 31 फीसदी की गिरावट आई है। इसके चलते साढ़े तीन लाख से ज्यादा कर्मचारियों को छुट्टी दे दी गयी है। तकरीबन 10 लाख नौकरियों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। गिरावट के चलते ही 400 कंपनियों को 10 हजार करोड़ का नुकसान होने की बात कही जा रही है। उद्योग के कारोबार में गिरावट का असर उन्हें माल सप्लाई करने वाली कंपनियों के कारोबार पर भी पड़ा है। इसका खामियाजा लघु उद्योग को हुआ है। वर्ष 2018-19 के उत्पादन से फोर्जिंग उद्योग को लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था, लेकिन इस वित्त वर्ष में फोर्जिंग इंडस्ट्री को 9 से 10 हजार करोड़ रुपए तक का नुकसान होने का अनुमान है। वाहनों की बिक्री में आई गिरावट से मुख्य रूप से छोटे पैमाने की इकाइयां प्रभावित होंगी। तुलनात्मक रूप से देखें तो मध्यम और बड़े पैमाने के फोर्जिंग उद्योगों के मुकाबले छोटे पैमाने की इकाइयों को ज्यादा बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा। हालात इतने गंभीर हैं कि राहुल बजाज जैसे उद्योगपति को खुल कर कहना पड़ा कि अर्थव्यवस्था में मांग नहीं है और निवेश भी नहीं है, तो फिर विकास कहां से होगा।
कुछ ऐसा ही कृषि क्षेत्र का है। इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर की भी हालत खस्ता है। नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन की मानें तो देश के कपड़ा उद्योग में 34.6 फीसदी की गिरावट आई है। जिसकी वजह से 25 से 30 लाख नौकरियां जाने की आशंका है। रियल एस्टेट सेक्टर का हाल यह है कि मार्च 2019 तक भारत के 30 बड़े शहरों में 12 लाख 80 हज़ार मकान बनकर तैयार हैं लेकिन उनके खरीदार नहीं मिल रहे। या यूं कहे बिल्डर जिस गति से मकान बना रहे हैं लोग उस गति से खरीद नहीं रहे। आंकड़ों के मुताबिक बैंकों द्वारा उद्योगों को दिए जाने वाले कर्ज में भी गिरावट आई है। पेट्रोलियम, खनन, टेक्सटाइल, फर्टीलाइजर और टेलिकॉम जैसे सेक्टर्स ने कर्ज लेना कम कर दिया है।
सिगरेट और बिस्कुट के साथ-साथ अंडरवियर जैसे उपभोक्ता पदार्थों की खरीद में एकाएक कमी गयी है। बिस्कुट बनाने वाली पार्ले-जी कंपनी दस हजार कर्मचारियों की छंटनी करने जा रही है। यही रुझान निवेश में देखा जा सकता है। पिछले साल पहली तिमाही में नये निवेश प्रोजेक्ट की राशि में 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, तो इस साल की पहली तिमाही में 80 प्रतिशत कमी आयी। मंदी का मुकाबला करने में सरकारी खर्च की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन उसमें भी कमजोरी आयी है। पिछले साल की पहली तिमाही में सरकार की टैक्स आय 22 प्रतिशत बढ़ी थी, वह इस साल मात्र 1.5 प्रतिशत ही बढ़ी।
मंदी की चपेट में डायमंड नगरी सूरत का हीरा कारोबार भी है। पिछले एक साल से हीरे के कई छोटे - बड़े उद्योग मंदी के कारण बंद हो रहे हैं। कई हीरे के उद्योग बंद होने के बाद 15000 हीरे के कारीगर बेरोजगारी का सामना कर रहे है। फिलहाल कई हीरे के कारीगरों की हालत ऐसी है कि वे घर का गुजारा कैसे चलाए उन्हें समझ नहीं रहा। वहीं कई हीरे के कारीगर सूरत छोड़ अपने गांव लौट गए है। कारोबारियों की मानें तो वर्ष 2008 में जिस तरह हीरे के उद्योग में मंदी आई थी वैसी ही मंदी इस बार भी देखने को मिल रही है। पिछले लम्बे समय से अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वार के चलते कुछ ज्यादा ही असर पड़ा है। सूरत के 42 फीसदी पॉलिस हुए हीरे चीन और हॉन्गकॉन्ग एक्सपोर्ट किए जाते हैं। जिसे चीन फिर अमेरिका को बेचता है लेकिन अमेरिका द्वारा चीन के प्रोडक्ट पर एंटी डम्पिंग ड्यूटी लगाई गई है जिससे प्रोडक्ट कॉस्ट में काफी बढ़ोतरी हुई है। जिसकी सीधा असर सूरत उद्योग पर पड़ रहा है।
मंदी की आहट का ही असर है कि अप्रैल से जून 2019 की तिमाही में सोना-चांदी के आयात में 5.3 फीसदी की कमी आई है। जबकि इसी दौरान पिछले साल इसमें 6.3 फीसदी की बढ़त देखी गई थी। निवेश और औद्योगिक उत्पादन के घटने से भारतीय शेयर बाजार में भी मंदी का असर दिख रहा है। सेंसेक्स 40 हजार का आंकड़ा छूकर अब फिर 37 हजार पर आकर अटक गया है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही जो बीते 5 सालों में सबसे कम है। जिसके बाद आरबीआई ने मंदी की आहट को भांपते हुए साल 2019-20 के लिए विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है।
यह वो आंकड़े हैं जो आर्थिक मंदी से देश को खबरदार करते हैं। इसके लिए सरकारी नीतियों और फैसलें कहीं कहीं जिम्मेदार है। अगर साल 2018 में जनवरी से मार्च की तिमाही और इस साल इन्हीं तीन महीनों की तुलना करें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि लगभग सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था में मंदी आयी है। मंदी का सीधा असर रोजगार पर देखा जा सकता है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे का रोजगार सर्वेक्षण पहले ही दिखा चुका है कि पिछले साल बेरोजगारी का स्तर आज तक रिकॉर्ड किये गये किसी आंकड़े से अधिक था। यानी कि रोजगार के मोर्चे पर कंगाली में आटा गीला वाली स्थिति है। ऐसे में और भी गहरी चिंता की बात यह है कि धीरे-धीरे सभी अच्छे अर्थशास्त्री इस सरकार को छोड़ कर जा रहे हैं। पिछले कार्यकाल में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन गये। फिर उर्जित पटेल भी बीच रास्ते में छोड़ कर चले गये। अरविंद सुब्रमण्यन ने भी कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार को छोड़ दिया। अब आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष विवेक देबराय भी अलग हो रहे हैं।
हालांकि वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी की मार से बचाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विदेशी निवेशकों के बीच सरचार्ज को वापस लेने का फैसला किया है। सरकार के इस फैसले से विदेशी और घरेलू निवेशक काफी खुश हैं। क्योंकि, यह नियम दोनों निवेशकों पर लागू होता है। बता दें, सरचार्ज वापस लेने से टैक्स में 4 - 7 फीसदी की कटौती होगी। सरकार के इस कदम को निवेशकों ने भी सराहना की है। यह घरेलू निवेशकों के लिए भी बोनस है। इसके अलावा अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए सरकार ने बैंकों के लिए 70 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की है। यह कदम क्रेडिट ग्रोथ (कर्ज उठाव) को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है। वित्तमंत्री के मुताबकि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 70,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी डालेगी, जिससे वे 5 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त कर्ज मुहैया करा पाएंगे। इससे कॉर्पोरेट्स, खुदरा कर्जदारों, और छोटे व्यापारियों समेत अन्य को फायदा होगा। इस कदम से क्रेडिट की वृद्धि दर को बढ़ावा मिलेगा, जो करीब 12 फीसदी तक होगी। साथ ही कंज्यूमर सेंटीमेंट को भी बढ़ावा मिलेगा। उद्योग के लिए कार्यशील पूंजी कर्ज भी सस्ता होगा।
सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को कर्ज चुकाने के 15 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से कर्ज से जुड़े दस्तावेज लौटाने का निर्देश दिया है। इससे उधारकर्ताओं को लाभ होगा, जिनके संपत्ति गिरवी रखी होती है क्योंकि इससे उन्हें आगे भी कर्ज जुटाने में मदद मिलेगी। बाजार में तरलता प्रदान (लिक्विडिटी बढ़ाने) करने और लोगों के खर्च करने के लिए अधिक पैसा देने के अन्य उपायों के अलावा, सरकार ने एनबीएफसी और एमएसएमई को अधिक क्रेडिट सहायता (कर्ज) देने का फैसला किया है।

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