Thursday, 9 April 2020

नहीं चेते तो प्रकृति का कोरोना से भी बड़ी त्रासदी


नहीं चेते तो प्रकृति का कोरोना से भी बड़ी त्रासदी
कोरोना महामारी से इन दिनों पूरी दुनिया जूझ रही है। इससे लड़ने की हर संभव कोशिश की जा रही है, लेकिन आखिर ऐसा हुआ ही क्यों? इतनी भयानक महामारी फैली ही कैसे? यदि सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की जाए तो हम पाएंगे कि यह सब प्रकृति से खिलवाड़ करने का नतीजा है। यदि हम दोबारा प्रकृति की ओर लौटेंगे तो ही लंबे समय तक अपना अस्तित्व बचा पाएंगे। मतलब साफ है प्रकृति ईश्वर का वरदान है। इसके साथ खिलवाड़ करना किसी बड़ी त्रासदी को दावत देना है। कोरोना का इशारा काफी है कि अगर प्रकृति से खिलवाड़ किया जाएगा तो दुनिया को परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा
सुरेश गांधी
फिरहाल, भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमण का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना के संक्रमित मरीजों एवं मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। केवल भारत में अब तक संक्रमितों की संख्या 5194 हो गई है। इस महामारी से अब तक 149 की मौत हो गई है। पिछले 24 घंटे में 773 नए केस सामने आए हैं। 402 लोग इस बीमारी से अब तक ठीक हुए हैं। जबकि दुनियाभर में मृतकों का आकड़ा 80 हजार से अधिक है। बता दें, कोरोना की वजह से दुनिया में छाई मंदी तो है ही इससे उबरने में कई साल लग जायेंगे। भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं। दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है। या यूं कहे कोविड-19 और वैश्विक कामकाजमें कोरोना संकट दूसरा विश्व युद्ध से भी भयानक है। मतलब साफ है कोरोना हमें आगाह कर रहा है प्रकृति के प्रति आत्म चिंतन के लिए।
यानी जब आप लॉकडाउन से बाहर निकले तो सजग रहे कि एक बार फिर से मुस्कुराती हुई हमारी प्रकृति बिलखने लग जाएं। जैसा वातावरण लॉकडाउन का है वैसा ही हर वक्त बनाने की कोशिश करें। वायु प्रदूषण का स्तर फिर से तबाही मचाने लग जाए। सालों बाद आज गंगा, यमुना सहित अन्य नदियों का जल साफ दिखने लगा है। सांस के मरीज भी राहत महसूस कर रहे हैं। यह सब मानव की प्रकृति के प्रति खिलवाड़ करने वली गतिविधि रुकने से ही हो पाया है। क्यांकि आज के स्वस्च्छ वातावरण चीख चीख कर गवाही दे रहे है कि प्रकृति के साथ कोई और नहीं हम ही खिलवाड़ करते रहे हैं। लोग घरों में है इसका मतलब वाहन नहीं चल रहे। वाहन नहीं चल रहे तो वायु प्रदूषण भी नहीं हो रहा। प्रदूषण नहीं तो हवा भी साफ हो चली है। औद्योगिक इकाइयां बंद है तो इसके वेस्ट या अवयव नदियों में नहीं मिल रहे है। परिणाम यह है कि पानी निर्मल हो चला है। यानी जो काम अरबों रुपए खर्च करके सरकारें दशकों तक चलने वाली योजनाओं के माध्यम से पूरा नहीं कर पाई वो काम करोना के कहर के भय ने कर दिखाया है। कोरोना ने बता दिया है कि प्रकृति के साथ तालमेल बैठाना ही विनाशलीला से बचने का एकमात्र उपाय है। इसके लिए सरकारों पर नहीं हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। हमें आज से ही प्रकृति को अपना मित्र बनाना होगा। यकीन मानिए जब आप प्रकृति के साथ दोस्ती निभाएंगे तो वो भी हमारा साथ देगी।
महात्मा गांधी कहते थे- वास्तविक भारत का दर्शन गांवों में ही संभव है जहां भारत की आत्मा बसती है। महात्मा गांधी का ये कथन, महामारी की इस घड़ी में भी प्रासंगिक है। गांवों में कोरोना का कहर नहीं देखने को मिल रहा है। है भी तो नाममात्र का। क्योंकि गांव वाले कुछ हद तक प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर रखते है। दिल्ली, मुंबई और इंदौर जैसे बड़े बड़े शहरों से अलग होती है इनकी दुनिया। यही वजह है कि शहरों के मुकाबले गांवों में कोरोना की त्रासदी कम है। या यूं कहे इंसान जब प्रकृति के करीब हुआ करता था, जब प्रकृति और पर्यावरण से प्रेम करता था और उसे अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानता था तो प्रकृति भी इंसान के लिए हितैषी बनी रहती थी। लेकिन जब इंसान ने अपने लालच और फायदे के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना शुरू किया, पेड़ काटने लगा, जानवरों पर अत्याचार करने लगा तो प्रकृति भला कैसे चुप रह सकती है। प्रकृति ने बीमारियों के रूप से इंसान को उसी का दिया लौटाना शुरू किया है। कोरोना तो उसका संकेत मात्र है नहीं सुधरे तो हाल और भयावह हो सकते है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि चीन में शायद ही कोई ऐसा जानवर होगा जिसे वहां के लोग बख्श देते हों अन्यथा चीन में सांप, चूहे, बिल्ली, कुत्ते, ऊंट समेत सभी पशु पक्षियों और यहां तक की जलीय जीव-जन्तु का भक्षण भी किया जाता है। चीन के लोग जिंदा जानवर खाने के शौकीन हैं। कुछ ऐसे जानवर हैं जिन्हें चीन के लोग जिंदा खाना ही पसंद करते हैं जैसे घोंघा, झींगा, फिश, सांप, गधा, बंदर का कच्चा ब्रेन, चूहे के बच्चे, बतख का भ्रूण आदि। इन नामों को सुनकर ही घृणा हो रही होगी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती कि चीन के लोग इन जानवरों को कितने चाव के साथ खाते होंगे। कोरोना वायरस जानवरों में पाया जाने वाला एक सामान्य वायरस है लेकिन जानवरों से मनुष्य के शरीर में पहुंचाने वाला खुद मनुष्य ही है। माना जाता है कि कोरोना वायरस से संक्रमित जानवर के भक्षण से ही कोरोना का कहर इंसानों पर टूट पड़ा जिसका खामियाज़ा सिर्फ चीन बल्कि दुनिया के तमाम देश भुगत रहे हैं। ये कारण पता लगा पाना काफी मुश्किल है कि आखिर क्या वजह है चीन में इस तरह के खान-पान की लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद चीन का वुहान शहर जहां कोरोना एक त्रासदी की तरह टूट पड़ा, वहां ऐसा कोरोना का खौफ पैदा हुआ कि जानवरों को मूली-गाजर की तरह चबा जाने वाले वुहान शहरवासियों ने मांसाहार से तौबा कर ली।
कोरोना का दंश ऐसा है कि मध्य युग में पूरे यूरोप पर राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पे गया, मध्य पूर्व को अपने कदमों से रोंदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान , टर्की ) अब घुटनों पर हैं, जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था, उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिस बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं, जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे, उस रूस के बॉर्डर सील हैं, जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं, जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी हैं, उस अमेरिका में लॉक डाउन हैं और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे, वो चीन , आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियां खा रहा है। एक जरा से परजीवी ने विश्व को घुटनों पर ला दिया? एटम बम काम रहे पेट्रो रिफाइनरी? मानव का सारा विकास एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा। उसके आगे सबकी हेकड़ी निकल गयी है। इतने सालों कमाई ताकत कोएक छोटे से जीव ने घरो में कैद कर दिया है।
भारत जानता है कि युद्ध अभी शुरू हुआ है जैसे जैसे ग्लोवल वार्मिंग बढ़ेगी, ग्लेशियरों की बर्फ पिघलेगी और आज़ाद होंगे लाखों वर्षों से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु, जिनका आपको परिचय है और लड़ने की कोई तैयारी, ये कोरोना तो झांकी है, चेतावनी है, उस आने वाली विपदा की, जिसे आपने जन्म दिया है। मेनचेस्टर की औद्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स संसार को अंत के मुहाने पे ले आयी। क्या आप जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है? तक्षशिला के खंडहरो में, नालंदा की राख में, शारदा पीठ के अवशेषों में, मार्तण्डय के पत्थरों में। सूक्ष्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है, ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है, और सदैव चलता रहेगा। इस से लड़ने के लिए के लिए हमने हर हथियार खोज भी लिया था, मगर आपके अहंकार, आपके लालच, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया। क्या चाहिए था आपको? स्वर्ण एवं रत्नो के भंडार? यूँ ही मांग लेते, राजा बलि के वंशज और कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते। सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्य हीन ही थे, ले जाते। मगर आपने ये क्या किया, विश्वबंधुत्व की बात करने वाले समाज को नष्ट कर दिया? जिस बर्बर का मन आया वही भारत चला आया, रोदने, लूटने, मारने, जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने।
कोई विश्व विजेता बनने के लिए तक्ष शिला को तोड़ कर चला गया, कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया, तो कोई किसी खुद को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा की किताबों को जला गया, किसी ने बर्बरता को जिताने के लिए शारदा पीठ टुकड़े टुकड़े कर दिया, तो किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया। और आज करुण निगाहों से देख रहे हैं उसी पराजित, अपमानित, पद दलित, भारत भूमि की ओर, जिसने अभी अभी अपने घावों को भरके अंगड़ाई लेना आरम्भ किया है।किन्तु, हम फिर भी निराश नहीं करेंगे, फिर से माँ भारती का आँचल आपको इस संकट की घडी में छाँव देगा, श्रीराम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे, ’किन्तु, मार्ग उन्हीं नष्ट हुए हवन कुंडो से निकलेगा, जिन्हें कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोडा था। आपको उसी नीम और पीपल की छाँव में आना होगा, जिसके लिए आपने हमारा उपहास किया था। आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करनी होगी जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया। उन्हीं मंदिरो में जाकर घंटा नाद करना होगा, जिनको कभी आपने तोड़ा था। उन्हीं वेदों को पढ़ना होगा, जिन्हें कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था। उसी चन्दन तुलसी को मष्तिक पर धारण करना होगा , जिसके लिए कभी हमारे मष्तिक धड़ से अलग किये गए थे। ये प्रकृति का न्याय है और आपको स्वीकारना होगा


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