Thursday, 9 April 2020

‘कोरोना’ के संग ‘बेरोजगारी’ की जंग जीतने की चुनौती

कोरोनाके संगबेरोजगारीकी जंग जीतने की चुनौती
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसको लेकर आमजन की बड़े पैमाने पर क्षति भी हो रही है। हालांकि कोरोना की जंग जीतने के लिए हरसंभव कोशिश भी हो रही है। लॉकडाउन कोरोना के लिए काल साबित हो रहा है। मतलब साफ है प्रकृति के साथ हुए छेड़छाड़ की कीमत चुकाते हुए देर सबेर हम कोरोना की जंग जीत ही लेंगे। लेकिन इसकी तबाही से निपटने में सालों लगेंगे। उस क्त बेरोजगरी बड़ी चुनौती होंगी। क्योंकि आयात निर्यात से लेकर उद्योग धंधे सब ठप है। लोगों के रोजगार और कमाई बंद हो गई है। अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई है 
सुरेश गांधी 
बेशक, कोरोना की जंग जीतने के बाद कुछ महीनों तक लैब नेटवर्क्स और डायग्नोस्टिक सुविधाएं बनाने पर ध्यान दिया जाएगा। साथ ही फंड का इस्तेमाल सर्विलांस, महामारी के खिलाफ जागरूकता जगाने में भी किया जाएगा। फंड का एक हिस्सा अस्पतालों, सरकारी दफ्तरों, जनसुविधाओं और एम्बुलेंस को संक्रमण रहित बनाने पर भी खर्च किया जाएगा। यानी जंग जीतने के बाद फिर से महामरी का प्रकोप फैले इसके लिए भी सरकारी खजाने जमकर खर्च होंगे। आमजन में भी खौफ बना रहेगा। इसलिए कोरोना से निपटने के साथ हमें अभी से बेरोजगारी और भूख से लड़ने की तैयारी करनी होगी। ऐसा नहीं किया तो भारत कम से कम एकबार फिर से बीस साल पीछे चला जायेगा। इसके लिए जरुरी है कि सरकार को अभी से व्यवस्था को पटरी पर लाने के जिए सजग रहना होगा।
लाकडाउन के चलते राज्यों के स्टार्टअप को बड़ा झटका लगा है। एक बार स्थिति ठीक होने के बाद भी शुरुआती दौर के अधिकांश स्टार्टअप को वित्त जुटाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। निवेशक बाजारों में अपनी पूंजी लगाने के पहले वित्त पोषित कंपनियों में ही निवेश करना बेहतर समझेंगे। गौरतलब है कि हमारे देश में लगभग 90 फीसदी कामगार असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार पाते हैं। स्वाभाविक रूप से लॉकआउट होने और उत्पादन वितरण व्यवस्था तबाह होने से सबसे अधिक नुकसान इन्हीं लोगों को होगा। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में देश के विभिन्न शहरों से बड़ी संख्या में मजदूरों के बदहवास पलायन का दुखद दृश्य हम देख चुके हैं। इसलिए रोजगार बढ़ाने के लिए हमें गांव को भी संपन्न बनाना होगा। गांव के भीतर ही रोजगार विकसित करने होंगे। इससे पलायन तो रुकेगा ही दुसरे शहरों में जाकर काम करने ठहरने के खर्च लोगों के बचेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ की रिपोर्ट की मानें तो कोरोना की जंग जीतने के बाद भारत ही नहीं पूरी दुनिया भयानक मंदी की चपेट में जाएगी। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को भुगतना होगा। अकेले भारत में 40 करोड़ कामगार गरीबी की ओर और बढ़ेंगे। उद्योग धंधे कल कारखानों के प्रभावित होने से बेरोजगारी बढ़ेगी। बेरोजगारी के चलते समाज में एक बड़ा तबका अचानक सड़क पर जायेगा। एक झटके में 40 करोड़ मजदूर काम करने की स्थिति में नहीं होंगे या फिर बेरोजगार हो जाएंगे। इसका सबसे ज्यादा असर देश की वित्तीय व्यवस्था पर होगा। जिस विकास मॉडल की दुहाई प्रधानमंत्री देते नहीं थकते, वो छिन्न भिन्न हो जायेगा। क्योंकि विकास से पहले बेरोजगार हुए लोगों की भुखमरी से उबारने में धन जाया होगा। क्योंकि जिस विकास की चकाचौंध में लोग शहर पहुंचे थे उन्हें संकट में गांव ही तारणहार बन रहा है। इसलिए अगर अभी से गांव में रोजगार पैदा करने के प्रयास किए जाय, गांव को समृद्ध संपंन बनाएं जाए। स्वास्थ्य, शिक्षा सामाजिक सुरक्षा के साथ दूसरी सभी बुनियादी सुविधाओं के बारे में सोचना होगा। कुल मिलाकर कोरोना के खौफ से निकलने के बाद हमें अपने विकास के मॉडल को वापस देखना होगा तभी इस देश का भला होगा।
यह अलग बात है कि कोरोना से चीन ककी माली हालत सुधरी है। दुनिया के 100 टॉप बिलेनियर्स में सिर्फ 9 प्रतिशत लोगों की संपत्ति बढ़ी है और ये सभी अरबपति चीन से हैं। जबकि दूसरे देशों के 86 प्रतिशत बिलेनियर्स की संपत्ति पहले से कम हुई है और 5 प्रतिशत की संपत्ति में कोई अंतर नहीं आया है। दुनिया के 100 टॉप बिलेनियर्स की लिस्ट में चीन के 6 नए लोग शामिल हुए हैं। जबकि भारत के तीन और अमेरिका के 2 लोग अब इस लिस्ट से बाहर हो चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में पिछले ढाई वर्षों में अरबपतियों ने जितनी दौलत कमाई गई, उसका बड़ा हिस्सा पिछले दो महीनों में खत्म हो चुका है। पिछले दो महीनों में दुनिया के टॉप 100 अरबपतियों की कुल संपत्ति लगभग 30 लाख करोड़ रुपए कम हो गई है। और टॉप 10 बिलेनियर्स की संपत्ति में 9 लाख 40 हजार करोड़ रुपए की कमी आई है।
इस महामारी से पहले दुनिया में 2 हजार 816 अरबपति थे और अब ये आंकड़ा 20 प्रतिशत कम हो गया है। यानी बिलेनियर्स में शामिल हर 5 में से एक व्यक्ति अब अरबपति नहीं है लेकिन इस वायरस से सबको नुकसान नहीं हुआ है, कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनकी संपत्ति लगातार बढ़ रही है। चीनी कंपनी के संस्थापक एरिक युआन की कुल संपत्ति 26 हजार करोड़ रुपए बढ़ गई है। अब इनकी कुल संपत्ति 60 हजार करोड़ रुपए हो गई है। इसी तरह वेंटिलेटर बनाने वाली एक कंपनी के संस्थापक एलेक्स सू की दौलत 26 प्रतिशत बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपए हो गई है। और सिर्फ दो महीनों में ही इनकी संपत्ति इतनी ज्यादा बढ़ी है। यह कंपनी कोरोना वायरस के संक्रमित मरीजों के इलाज में मदद करने वाले वेंटिलेटर बनाती है।
सबसे ज्यादा मुनाफा चीन के उद्योगपति स्पन को हुआ है, इनकी कंपनी सुअर के मांस का निर्यात करती है। इनकी दौलत पिछले 2 महीनों में 20 प्रतिशत बढ़कर 1 लाख 13 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। चीन में इसकी डिमांड बढ़ने की वजह से इनकी संपत्ति इस महामारी की शुरुआत होने से पहले ही बढ़ गई थी। यानी चीन कोरोना से हुए क्षति की भरपाई कर ली है। क्योंकि उसे पता था कोरोना के कहर से तबाही मचेगी और उसमें वह बड़ा कारोबारी बनकर उभरेगा। लेकिन भारत में अभी तक कोरोना से आर्थिक नुकसान ही दिख रही है। पिछले 2 महीनों में भारत के सबसे अमीर इंसान मुकेश अंबानी की संपत्ति में 1 लाख 33 हजार करोड़ रुपए की कमी आई है।
संपत्ति में 28 प्रतिशत की कमी के बाद, अब मुकेश अंबानी दुनिया के 17वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं। इससे पहले वो 9वें नंबर पर थे। भारत के एक और बिलेनियर रितेश अग्रवाल की कंपनी के बाजार मूल्य में 30 हजार करोड़ रुपए की कमी आई है और अब ये कंपनी 45 हजार करोड़ रुपए की रह गई है। कुल मिलाकर चीन की अर्थव्यवस्था को इस वर्ष के दो महीनों में बड़ा नुकसान होने के बाद भी वहां के बिलेनियर की संपत्ति बढ़ रही है। यानी दुनिया को कोरोना वायरस से बड़ा नुकसान हुआ है और उसी वायरस से चीन को फायदा हो रहा है। कहा जा सकता है संक्रमण को फैलाने से रोकने तथा संक्रमित लोगों को चिकित्सा देने की भारी चुनौती के बीच हमें आर्थिक स्तर पर भी कड़ा मुकाबला करना होगा।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि अय देशों के मुकाबले कोरोना का कहर भारत में कम होगा। कुछ सांख्यिकी विशेषज्ञ, जो मेडिकल विशेषज्ञ नहीं हैं, वे भले दावे करे कि मई के मध्य तक भारत में 97,000 से 13 लाख तक संक्रमित मामले हो सकते हैं। पर ऐसा हो उम्मींद कम ही है क्योंकि व्यावहारिक स्तर पर भारत के संदर्भ में ये सही नहीं हैं। जब ये आंकड़े प्रकाशित हुए थे, तब तक भारत में लॉकडाउन का निर्णय नहीं लिया गया था। चीन समेत अधिकतर देशों में संक्रमण तीसरे स्टेज तक फैलने के बाद ही लॉकडाउन का निर्णय लिया गया। भारत में सौभाग्य से यह निर्णय दूसरे स्टेज पर ही ले लिया गया। जब यह निर्णय लिया गया, तब तक भारत में संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 500 थी।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के आकलन के अनुसार, एक-दूसरे से भौतिक दूरी बनाकर इस संक्रमण को 62 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। यही कारण है कि पूर्व में संक्रमित लोगों के परिवार और निकट के लोगों को छोड़कर आम समाज में यह संक्रमण नहीं हुआ। वैसे भी.आज दुनिया में कुल संक्रमित लोगों की संख्या के मुकाबले मृत्यु का आंकड़ा बहुत कम है। ज्यादातर मामलों में मामूली संक्रमण है और गंभीर रूप से बीमार लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कम ही है। इसलिए भारत में कोरोना की जग जितने के लिए लॉकडाउन रामबाण है।
अगर यह 14 अप्रैल के बाद भी खिंचता है तो भारतीयों को घबराने की जरुरत नहीं है। इससे यह होगा कि जो भी थोड़ा बहुत संक्रमण बचा होगा, वह भी पूरी तरह से नष्ट हो जायेगा। लापरवाही यानी लॉकडाउन का पालन ना करने से ही अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी समेत कई देशों में इस बीमारी के भीषण प्रकोप के चलते वहां की अति विकसित स्वास्थ्य व्यवस्थाएं भी चरमरा गयी हैं। भारी संख्या में मौतों को देख विश्व घबराया हुआ है। ऐसे में भारत जैसे कम संसाधन संपन्न देश, जहां विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या रहती है, यह महामारी कितनी तबाही मचा सकती है, इसकी कल्पना भी भयावह है। इसलिए पूरे देश को लॉकउाउन का पालन करना ही होगा। भारत में मरीजों की संख्या बढ़ी तो यहसब तब्लीगी जमात के साजिश से हुआ। लेकिन अब उस साजिश को भी तोड़ने का प्रयास युस्तर पर चल रहा है। तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में विदेशियों के साथ देश के कोने-कोने से आये लोगों को चिहित किया जा रहा है। 
यानी इन प्रयासों से भारत इस महामारी के प्रकोप को रोकने की मुहिम में अभी तक सफल दिख रहा है। भारत में संक्रमितों की संख्या अब भी नियंत्रण में है। तब्लीगी जमात कार्यक्रम के बावजूद उसकी वृद्धि दर लगभग 17 प्रतिशत प्रतिदिन की है। यह वृद्धि पहले से संक्रमित लोगों के संबंधियों और निकट के लोगों तक ही सीमित दिखायी देती है। ऐसे में आनेवाले हफ्तों में जिम्मेवारी से और सावधानी बरतते हुए हमें भौतिक रूप से लोगों के बीच दूरी बनाये रखना है। साथ ही सख्ती के साथ लॉकडाउन का पालन करना है. भारत का यह प्रयास दुनिया के लिए पथ प्रदर्शक सिद्ध हो सकता है।

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