Wednesday, 23 June 2021

’धर्म का प्रचार’ के नाम पर धर्मांतरण का कारोबार?

धर्म का प्रचारके नाम पर धर्मांतरण का कारोबार?

हिंदू धर्म के लोगों का इस्लाम धर्म में परिवर्तन कोई पहला मामला नहीं है, बल्कि सालों से यह कारोबार चलता रहा है। इसके लिए बाकायदा ऐसे अवांछनीय तत्वों को कांग्रेस सपा सहित अन्य गैरभाजपा दलों का परोक्ष रुप से समर्थन सिर्फ इसलिए था कि उनका वोट बैंक तैयार हो रहा था और ये लोग गरीब लाचार मूक बधिर, महिलाओं और पिछड़े लोगों को निशाना बनाते थे। उन्हें पैसा, नौकरी और शादी कराने का लालच देते थे। इसके लिए बाकायतदा विदेशों से फंडिंग होती थी। यह अलग बात है कि अब हिन्दू समर्थित भाजपा के आने के बाद एक-एक कर इनके कारनामों का खुलासा हो रहा है। सबसे बड़ी बात ये कि ये गैंग देश की राजधानी दिल्ली के जामिया नगर से ऑपरेट होता है। ये वही जामिया नगर है, जहां वर्ष 2008 में बम धमाकों के बाद आतंकवादी छिप हुए थे और मशहूर बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था

सुरेश गांधी

फिरहाल, धर्मांतरण के मामले में गैर-मुस्लिमों को मुस्लिम बनाने के आरोप में मोहम्मद उमर गौतम और जहांगीर कासमी को यूपी एटीएस ने गिरफ्तार किया है। यूपी में चुनावी आहट के बीच धर्म परिवर्तन और लव जेहाद जैसी घटनाएं भावनात्मक तौर पर सूबे के सियासी माहौल की तपिश को बढ़ा दी है। क्योंकि धर्मांतरण जैसे घिनौने कार्य के लिए आईएसआई सहित विदेश से फंडिंग होने की बात भी सामने आयी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच एजेंसियों को धर्मांतरण मामले की पूरी तह में जाने का निर्देश दिया है। साथ ही उन्होंने आदेश दिया है कि आरोपियों पर गैंगेस्टर और एनएसए के साथ-साथ प्रॉपर्टी जब्त करने की कार्रवाई की जाए। दावा है कि आरोपी उमर गौतम ने करीब एक हजार गैर मुस्लिम लोगों को मुस्लिम धर्म में धर्मांतरित कराया और उनकी मुस्लिमों से शादी कराई है। खास यह है कि जब योगी सख्त हुए तो इन अवांछनीय तत्वों को सहारा देने वाली पार्टियां इनके समर्थन में खुलकर सामने गयी है। यही वजह है कि इस मामले पर सियासत भी तेज हो गई है। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है।

जबकि उमर गौतम खुद कबूला है कि इस्लामिक दावा सेंटर में इंग्लैंड, सिंगापुर, पोलैंड तक में धर्मांतरण का काम होता है, लोगों के इस्लाम कबूल करने से अल्लाह का काम हो रहा है। सेंटर को अमेरिका, कतर, कुवैत आदि में स्थित गैर सरकारी संगठनों से विदेशी चंदा मिलता है। फातिमा चैरिटेबल फाउंडेशन (दिल्ली), अल हसन एजुकेशन एंड वेलफेयर फाउंडेशन (लखनऊ), मेवात ट्रस्ट फॉर एजुकेशनल वेलफेयर (फरीदाबाद), मरकजुल मारीफ (मुंबई) और ह्यूमन सॉलिडेरिटी फाउंडेशन सहित कई भारत-आधारित एफसीआरए पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से फंड को आईडीसी को दिया जाता है। बताया जा रहा है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में अनुवादक के रूपकाम करने वाले इरफ़ान शेख भी इस धर्मांतरण रैकेट में शामिल है। वह आईडीसी को ज़रूरतमंद मूक-बधिर युवाओं और महिलाओं की पहचान करने में मदद कर रहा था, जिन्हे आर्थिक मदद देकर धर्मांतरण के लिए कोशिश की जा सके। आईडीसी का कतर स्थित सलाफी उपदेशक डॉ बिलाल फिलिप्स द्वारा स्थापित इस्लामिक ऑनलाइन विश्वविद्यालय के ससाथ संबंध हैं, जो जाकिर नाइक के सहयोगी हैं। उमर गौतम के ग्लोबल पीस सेंटर, दिल्ली के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो मौलाना कलीम सिद्दीकी द्वारा संचालित है, जो विशेष रूप से मेवात क्षेत्र में धर्मांतरण गतिविधियों में शामिल है। वर्तमान में देश भर में 60 से अधिक दावा संस्थान चलाए जा रहे हैं। खासतौर पर यूपी, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र में आईडीसी के सेंटर चल रहे हैं।

बड़ी बात ये है कि देश में इसे लेकर कोई कानून नहीं है, लेकिन कानून बनाने को लेकर मांग कई दशकों से उठती रही है। जब भारत में अंग्रेजी सरकार का शासन था, तब कई रजवाड़ों ने धर्म परिवर्तन को लेकर सख्त कानून बना दिए थे, इनमें कोटा, बीकानेर, जोधपुर, रायगढ़, उदयपुर और कालाहांडी राजवाड़ा प्रमुख हैं। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इन कानूनों को कभी नहीं माना। वोट बैंक के चक्कर में कांग्रेस, सपा-बसपा ने भी धर्म परिवर्तन नहीं माना। परिणाम यह रहा कि ये लोग पहली मुलाकात के बाद ही धर्म परिवर्तन के लिए ऐसे लोगों को राजी कर लेते थे, जो गरीब असहाय होते थे। इसके लिए पहले इन लोगों के अंदर उनके धर्म को लेकर नफरत पैदा की जाती थी और उन्हें बताया जाता था कि उनका धर्म सही नहीं है। जब ये लोग उनका ब्रेन वॉश कर देते थे, तब उन्हें लालच दिया जाता था और कहा जाता था कि इस्लाम धर्म अपनाने से उनकी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। पाकिस्तान की ओर से ये एक बड़ा जाल बिछाया गया था। बताते हैं कि इन लोगों का मकसद था कि बड़ी संख्या में लोगों का धर्मांतरण कराया जाए और फिर दंगा भड़काने में इन सभी का इस्तेमाल किया जाए।

                जहां तक सियासत का सवाल है तो गाजियाबाद में एक बुजुर्ग की पिटाई को लेकर बीजेपी और विपक्ष के बीच पहले से अंर्तद्वंग चल रहा है। अब नोएडा में धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद भावनात्मक रूप से राजनीतिक तपिश बढ़ती जा रही है। यूपी में महज सात महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में इन दोनों घटनाओं ने सियासी उबाल पैदाकर दिया है, क्योंकि इसमें समर्थन और विरोध करने वाले दोनों ही पक्षों को अपने-अपने सियासी लाभ मिलने की उम्मीद दिख रही है। गाजियाबाद की घटना को लेकर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर इसे शर्मनाक बताया था। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा था कि मैं ये मानने को तैयार नहीं हूं कि श्रीराम के सच्चे भक्त ऐसा कर सकते हैं। ऐसी क्रूरता मानवता से कोसों दूर हैं और ऐसी घटनाएं समाज और धर्म दोनों के लिए शर्मनाक है। राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर कहा था कि प्रभु श्रीराम की पहली सीख है- सत्य बोलना, जो आपने जीवन में कभी किया नहीं। सीएम योगी ने कहा कि शर्म आनी चाहिए कि पुलिस की ओर से सच्चाई बताए जाने के बाद भी आप समाज में जहर फैलाने में लगे हैं। सत्ता के लालच में मानवता को शर्मसार कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यूपी की जनता को अपमानित करना, उन्हें बदनाम करना छोड़ दें।

अब नोए़डा में धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद योगी सरकार ने सख तेवर अख्तियार कर लिया हैं तो आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतउल्ला खान ने इसे बीजेपी का राजनीतिक साजिश करार दिया। अमनातउल्ला खाने ने कहा कि भारतीय संविधान आर्टिकल 25 के तहत सभी को अपने धर्म के प्रचार-प्रसार करने की अनुमति देता है। ऐसे में योगी सरकार ने सिर्फ चुनावी फायदे के लिए दोनों मौलानों को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही सपा के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने कहा कि यूपी की नाकामियों को छिपाने के लिए योगी सरकार इस तरह से मुद्दों को उछाल रही है ताकि लोगों का ध्यान हटाया जा सके। जबकि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा है कि इन लोगों को मृत्युदंड मिलना चाहिए। क्योंकि इनका मकस गृहयुद्ध की तैयारी था। मतलब साफ है मुस्लिम परस्ती राजनीति का ही तकाजा है कि गाजियाबाद की घटना को भी हिन्दू-मुस्लिम रंग देने की पूरी कोशश की गयी। जबकि 3 जून को गाजियाबाद पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में लिखा है कि 2 जून को दो संदिग्ध व्यक्ति गाजियाबाद के एक मंदिर में घुस आए। इन लोगों के पास सर्जिकल ब्लेड, धार्मिक पुस्तकें और शीशियों में कुछ तरल पदार्थ था, जो जहर भी हो सकता है। इन लोगों को जब मंदिर में घुसते समय पकड़ा गया तो इन लोगों ने अपना नाम विपुल विजयवर्गीय और काशी गुप्ता बताया, लेकिन बाद में पता चला कि जो व्यक्ति खुद को काशी गुप्ता बता रहा है, उसका नाम काशिफ है और विपुल विजयवर्गीय का असली नाम रमजान है।

एफआईआर में लिखा है कि ये लोग मंदिर में एक महंत को जान से मारने के लिए आए थे। इस मामले की जांच शुरू की तो वो ऐसे लोगों तक पहुंची, जो पिछले कुछ समय से गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों का धर्म परिवर्तन करा कर उन्हें मुस्लिम बना रहे हैं और पुलिस का कहना है कि इन लोगों ने ऐसा सिर्फ एक या दो व्यक्ति के साथ नहीं किया, बल्कि लगभग एक हजार लोगों का धर्म परिवर्तन ये लोग अब तक करा चुके हैं। यानी धर्म परिवर्तन के इस पूरे रैकेट का रिमोट जामिया नगर में था, जहां पीएफआई का दफ्तर है। ये संस्था लोगों का धर्म परिवर्तन कराने का काम करती है। सोचिए देश की राजधानी में ऐसी संस्थाओं के दफ्तर हैं, जिनका काम लोगों का धर्म परिवर्तन कराना है और उमर गौतम यही करता था। पुलिस के मुताबिक, इन लोगों ने नोएडा के सेक्टर 117 में मूक बधिरों के रेजिडेंशियल स्कूल में कई छात्रों को मजबूर किया और इन छात्रों के परिवार को भी इसके बार में नहीं पता चलने दिया। उदाहरण के लिए एक छात्र के परिवार ने कानपुर में अपने बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई, लेकिन बाद में पता चला कि उसका धर्म परिवर्तन ने लोगों ने करा दिया है। इसी तरह और लोगों को भी निशाना बनाया गया।

जहां तक धर्म परिवर्तन कानून का सवाल है वर्ष 1954 में पहली बार धर्म परिवर्तन से संबंधित बिल देश की संसद में पेश किया गया। इसके तहत ये प्रस्ताव रखा गया था कि धर्म परिवर्तन कराने वाली संस्थाओं को इसके लिए भारत सरकार से मंजूरी लेनी होगी और जिला स्तर पर भी अधिकारियों को जानकारी देनी होगी लेकिन ये बिल पास नहीं हो पाया। इसके 6 वर्ष बाद वर्ष 1960 में भी एक ऐसा ही बिल आया लेकिन ये बिल भी पास नहीं हो पाया और फिर वर्ष 1997 में भी इसे लेकर कानून बनाने की कोशिश हुई, लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली। वर्ष 2015 में संसद में एक बहस के दौरान कानून मंत्रालय ने कहा कि जबरन और धोखाधड़ी से कराए गए धर्म परिवर्तन के मामलों में कोई कानून बनाना संभव नहीं है क्योंकि, कानून व्यवस्था राज्यों का मामला है। यानी केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि इसे लेकर राज्य चाहें तो अपना कानून बना सकते हैं। इस समय देश में कुल 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं, लेकिन इसे लेकर कानून सिर्फ 8 राज्यों में है और शायद यही वजह है कि ऐसे लोग धर्म परिवर्तन की अपनी दुकानें खुलेआम चलाते हैं। देश में धर्म परिवर्तन को लेकर राष्ट्रीय कानून नहीं होने की वजह से इसे लेकर कोई आंकड़ा भी मौजूद नहीं है। लेकिन कुछ राज्यों में इसे लेकर अब जानकारियां जुटाई जा रही हैं।

उदाहरण के लिए वर्ष 2019 में गुजरात सरकार ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में 1 हजार 895 लोगों ने धर्म परिवर्तन के लिए अनुमति मांगी थी। ये उन लोगों का आंकड़ा है, जो सरकार के पास पहुंचे, जिन लोगों का लालच देकर धर्म बदला गया या जबरन धर्म परिवर्तन करवाया गया, उनकी कोई संख्या देश में इस समय मौजूद नहीं है और ये एक डराने वाली बात है। वर्ष 2012 में केरल सरकार ने बताया था कि 2006 से 2012 के बीच में वहां 7 हजार 713 लोगों ने अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम धर्म को अपना लिया, जिसमें 2 हजार 667 केवल महिलाएं थीं और इनकी उम्र भी 40 वर्ष से कम थी। ऐसा नहीं है कि धर्म परिवर्तन का ये मुद्दा पहली बार सुर्खियों में आया है. भारत में धर्म परिवर्तन का इतिहास बहुत पुराना है। वर्ष 1930 में राजवाड़ों को धर्म परिवर्तन को लेकर इसलिए कानून बनाना पड़ा था क्योंकि, ईसाई मिशनरी भारत में बड़े पैमाने पर हिंदुओं को ईसाई धर्म अपनाने के लिए काम कर रही थीं और इतिहास में और भी पीछे जाएं तो ऐसी घटनाएं मिलती हैं। 19 जनवरी वर्ष 1790 में टीपू सुल्तान ने अपने एक खत में लिखा था कि उन्होंने मालाबार में चार लाख हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा कर उन्हें मुस्लिम बना दिया है। एक और खत में टीपू सुल्तान लिखते था कि कालीकट प्रदेश के सभी हिंदुओं का उन्होंने धर्म परिवर्तन करा दिया है और अब सभी इस्लाम को मानने वाले लोग बचे हैं। मुगलों के समय में भी ऐसे उदाहरण सामने आते हैं।

मुगल शासक अकबर ने अपने एक आदेश में कहा था कि जिन लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन हुआ है, ऐसे लोग वापस अपने पुराने धर्म में लौट सकते हैं। इस बात ये ही आप समझ सकते हैं कि उस समय भी हिंदुओं का धर्म जबरन बदला जाता था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि मेरे पास कानून बनाने की शक्ति होती तो मैं निश्चित तौर पर धर्म परिवर्तन की सारी गतिविधियों पर रोक लगा देता। यानी महात्मा गांधी लालच देकर और जबरन तरीके से कराए गए धर्म परिवर्तन के खिलाफ थे। भारत में कभी भी आक्रामक धर्म परिवर्तन की परंपरा नहीं थी। हिंदू धर्म में मान्यता है कि ईश्वर तक पहुंचने के अनेकों रास्ते हैं और हर व्यक्ति अपने मुताबिक मोक्ष का रास्ता ढूंढ सकता है। सम्राट अशोक ने भी अपने लौह स्तंभ में धार्मिक सद्भाव का परिचय दिया था और मध्य युग में कबीर और गुरु नानक देवजी ने भी धार्मिक सद्भाव का संदेश लोगों को दिया था। गुरु नानक देवजी के जीवन से संबंधित जन्म साखी में उल्लेख मिलता है कि एक बार मर्दाना ने उनके धर्म के बारे में उनसे पूछा ताकि वो भी उस धर्म को अपना सकें, तब गुरु नानक ने उनसे कहा कि वो एक मुसलमान हैं, तो उन्हें अच्छा मुसलमान बनने की कोशिश करनी चाहिए और एक हिंदू हैं तो अच्छा हिंदू बनने की कोशिश करनी चाहिए कि धर्म को बदलना चाहिए। लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि उनका धर्म ही एक मात्रा सत्य और बाकी सब धर्म अंधविश्वास है। यही वो भावना है, जिससे समाज में द्वेष की भावना जन्म लेती है।

 

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