यूपी विधानसभा चुनाव : हिंसा, धमकी व गुंडगर्दी के सहारे सपाई
जी हां, यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 में होने है, लेकिन तैयारियां अभी से तेज हो गयी है। इसके लिए एक तरफ भाजपा जहां हिन्दुत्व, श्रीराम मंदिर व विकास के मुद्दे पर मुखर है, तो दुसरी तरफ बीजेपी के खि़लाफ़ सबसे मज़बूत दिखने की चाह में सपा हिंसा, धमकी व गुंडागर्दी के साथ मुलायम सिंह यादव की तर्ज पर श्रीराम मंदिर के विरोध में यह कहकर माहौल अपने पक्ष में करने में जुटी है कि ट्रस्ट लोगों की दी हुई चंदे को जमीन के नाम पर अपनी झोली भर रही है। यह अलग बात है कि मंदिर निर्माण एक रुपये की उसने सहयोग नहीं किया है, लेकिन उसे उम्मीद है कि ऐसा करने से भाजपा को अपना कट्टर दुश्मन समझने वाला मुस्लिम उसके पाले में जरुर आयेगा
सुरेश गांधी
फिरहाल, 2022 विधानसभा चुनाव से पहले ही
तमाम पार्टियां अपने लिए वोट की तलाश में
जुट गई हैं। जहां
कुछ नेता पार्टी बदल रहे हैं, तो कुछ नए
गठबंधन की तलाश में
हैं। इस बार सपा
जीत के लिए हर
हथकंडे अपना रही है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ के सख्त रवैये
अपनाने के बावजूद एकबार
फिर क्षेत्रीय गुंडे, माफिया व बाहुबलि सक्रिय
हो गए है। इसकी
झलक पूरे सूबे में ताबड़तोड़ हो रही लूट,
हत्या की घटनाओं से
समझा जा सकता है।
जिला पंचायत चुनाव में भी इनकी तेजी
देखी जा सकती है।
खास यह है कि
ये माफियां, गुंडे या बाहुबलि या
उनके नजदीकी किसी न किसी रुप
में सपा से जुड़े है।
उसी कड़ी में गाजियाबाद के लोनी बॉर्डर
के पास मुस्लिम बुजुर्ग अब्दुल समद की पिटाई को
धार्मिक रंग देकर और उसको बड़ा
मुद्दा बनाकर उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, मुरादाबाद,
देवबंद, सहारनपुर तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई और
शहरों में उन्माद भड़काने की साजिश की
गई थी।
सूत्रों के अनुसार सपा
नेता उम्मेद पहलवान पर उन्माद भड़काने
की साजिश रचने का आरोप है।
सपा नेता उन्मेद पहलवान ने ही अब्दुल
समद का फेसबुक लाइव
किया था और फेसबुक
लाइव के दौरान दावा
किया गया था कि अब्दुल
समद की जबरदस्ती पिटाई
की गई और उसे
जय श्रीराम बोलने के लिए कहा
गया, तथा उसकी दाढ़ी भी काटी गई।
लेकिन बाद में पुलिस की जांच में
यह बात झूठ निकली और पाया गया
कि अब्दुल समद ने परवेश गुर्जर
नाम के व्यक्ति को
कोई ताबीज बनाकर दिया था और परवेश
गुर्जर का दावा था
कि ताबीज की वजह से
उसके घर पर नुकसान
हुआ है। जिसके बाद परवेश गुर्जर ने अपने कुछ
मुस्लिम साथियों के साथ मिलकर
अब्दुल समद की पिटाई की
थी। सूत्रों की मानें तो
पूर्वांचल से लेकर पश्चिम
तक कई बाहुबलि माफिया
चाहे वह विजय मिश्रा,
मुख्तार अंसारी, अतीक हो या अन्य
छुटभईए व गली-मुहल्ले
के गुंडे सभी चुनाव से पहले सपा
से अपना टाका भिड़ाने में जुटे है। इनमें कुछ को हरी झंडी
मिल चुकी है तो कुछ
को इंतजार है।
सूत्रों का कहना है
कि पूर्वांचल से माफियाओं या
उनके सगे-संबंधियों को सपा चुनाव
मैदान में उतार सकती है। इसके पीछे वजह जो भी हो
लेकिन सच तो यही
है कि इन्हें लगता
है कि बंगाल चुनाव
में जिस तरह टीएमसी ने खून खराबा
व श्रीराम के नारे के
विरोध में अपना एजेंडा चलाकर सफलता पाई, उसी तरह यूपी में माहौल बनाकर विजयी हासिल किया जा सकता है।
कुछ माफियाओं के समर्थक अभी
से फेसबुक, ट्वीटर व सोशल मीडिया
में धमकी देते फिर रहे है कि जब
कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद ढहवाकर यूपी में दुबारा सत्ता हासिल नहीं कर सके तो
यूपी में योगी श्रीराम मंदिर बनवाकर दुबारा कैसे सीएम बन सकते है?
साथ में धमकी यह भी देते
है कि जिस तरह
बंगाल में भाजपा समर्थकों व नेताओं की
ममता की जीत के
बाद कुटाई चल रही है,
उसी तरह सपा की सरकार बनने
पर यूपी में भाजपाई की तोड़ाई होगी।
लेकिन धमकी देने से पहले वे
भूल जाते है कि इसी
गुंडागर्दी, अराजकता के चलते सपा
2017 में गयी थी और उसके
आतंक की गाथा लोगों
के आंखों के सामने अब
भी खौफ बनकर नाच रहे है।
बता दें, अराजकता से चुनाव कैसे
जीता जाता है, बंगाल ने एक रास्ता
बता दिया है। बीजेपी से नाराज़ लोग
उधर जायेंगे जिसमें चुनाव जीतने की ताक़त होगी।
यही वजह है कि यूपी
में राजनीतिक दलों में ताकतवर बनने की होड़ लगी
है। ऐसा होने पर बंगाल की
तरह बाक़ी पार्टियां मेल्ट्डाउन हो जायेंगी। उनका
मानना है कि बंगाल
में लेफ़्ट और कांग्रेस का
यही हाल रहा। गठबंधन के बावजूद दोनों
पार्टियों का खाता तक
नहीं खुला। यही वजह है कि सपा
अभी से अपने को
ताकतवर दिखने के लिए मुद्दे
सेट करने लगी हैं। इसमें जाति का मुद्दा तो
है ही छोटे-छोटे
जातिगत दलों को भी अपने
साथ जोड़ने की जोरदार कोशिशें
चल रही हैं। वैसे तो इन छोटी
जातिगत पार्टियों का अकेले कोई
वजूद नहीं है लेकिन, किसी
बड़े दल के साथ
जुड़ने से जीत का
फार्मूला तैयार हो जाता है।
भाजपा 2017 में ऐसा कर भी चुकी
है और आज भी
कुछ छोटे दल उसके साथ
है।
इन सबके बीच
चुनावों के दौरान विपक्ष
कोरोना मैनेजमेण्ट में सरकार को फेल बतायेगा
जबकि सत्ता पक्ष इसके बेहतर मैनेजमेण्ट की दुहाई देगा।
यानी दोनों तरफ से इस मुद्दे
पर रैलियों में जुबानी जंग देखने को मिलेगी। उनकी
कोशिश होगी जब लोग वोटिंग
करने जायें तो उनमें साम्प्रदायिक
चेतना हावी रहे। भाषणों में नये नारे आयेंगे जैसे पिछले चुनाव में अली और बजरंग बली
के नारे दिये गये थे। रोहिग्याओं की घुसपैठ की
खबरें व धर्मांतरण का
मुद्दा तेजी से हवा में
तैर रहा है। ऐसे में सवाल तो यही है
क्या उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सीमा
पार से साजिश रची
जा रही है? क्या उत्तर प्रदेश में अपना ठिकाना बनाने की फिराक में
है रोहिंग्या? यूपी एटीएस की ताबड़तोड़ कार्यवाही
के बाद ये खुलासा हुआ
है कि यूपी में
धर्मांतरण के साथ-साथ
रोहिंग्या अपराधी अपना ठिकाना बनाने की फिराक में
है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर खुफिया
तंत्र अलर्ट पर है। धर्मांतरण
में जुटे दो मौलानाओं सहित
11 रोहिंग्या की गिरफ्तारी कुछ
ऐसा ही संकेत दे
रहे है।
एटीएस सूत्रों के मुताबिक, रोहिंग्या
और बांग्लादेशी नागरिकों को यूपी में
ठिकाना बनाने के लिए तैयार
किया जा रहा है।
विधानसभा चुनाव से पहले इन
सभी को राशन कार्ड
और पैन कार्ड बनवा कर स्थाई सदस्यता
दिलवाने की साजिश है,
जिससे यूपी चुनाव में इनकी भागीदारी हो और एक
बड़ा वोट बैंक तैयार किया जाए। इसके लिए इनको अच्छी खासी रकम भी दी जाती
है। पुलिस के मुताबिक, प्रदेश
में रह रहे रोहिंग्याओ
की पहचान कर पाना इस
वजह से मुश्किल होता
है क्योंकि इनके पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड
अन्य राशन संबंधी कार्ड मौजूद रहते हैं। जिससे वह आम जनता
में घुल-मिल जाते हैं और चुनाव में
वोटिंग भी कर सकते
हैं। ऐसे में एटीएस के सामने सबसे
बड़ी चुनौती ऐसे बहरूपियों को पहचान कर
उनके खिलाफ कार्यवाई करने की है।
जहां तक छोटे दलों
का गठजोड़ का सवाल है
तो सोनेलाल पटेल की पहली बेटी
व अपना दी की मुखिया
अनुप्रिया पटेल पहले से ही भाजपा
के साथ है, जबकि दुसरी बेटी अपना दल (कृष्णा) की नेता पल्लवी
पटेल अखिलेश यादव के संपर्क में
है। दरअसल, यूपी में ओबीसी वोट बैंक करीब 42-45 फीसदी है। इसमें 10 फीसदी यादव की तादाद है,
जो रिवायती तौर पर सपा के
वोटर रहे हैं। इसके बाद करीब 29-32 फीसदी वोट गैर यादव ओबीसी का है, जो
एक नई पहचान बनकर
सामने आया है। इनमें भी सैनी, शाक्य,
कुशवाहा, मौर्य और कुर्मी तादाद
के हिसाब से आगे हैं।
जिनकी हिस्सेदारी करीब 15 फीसदी है। सिर्फ कुर्मी वोट बैंक की बात करें,
तो पूरे राज्य में इनकी तादाद 4-5 फीसदी है। वहीं, करीब 17 जिले ऐसे हैं, जिनमें इनकी तादाद 15 फीसदी से अधिक है।
इसलिए यहां ये आसानी से
हार जीत तय करते हैं।
पिछले 5-6 सालों में इनकी सबसे बड़ी नेता अनुप्रिया पटेल बन कर उभरी
हैं।
इसके
अलावा सपा के प्रदेश अध्यक्ष
नरेश उत्तम पटेल और भाजपा के
प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी इसी समुदाय
से आते हैं। वहीं, कुशवाहा भी 13 जिलों में 10 फीसदी से ज्यादा हैं।
इनके अलावा सैनी की तादाद प्रतापगढ़,
इलाहाबाद, देवरिया, कुशीनगर, संत कबीरनगर, गोरखपुर, महराजगंज, आजमगढ़, वाराणसी और चंदौली जैसे
जिलों में काफी अच्छी है। लगभग यही हालात मौर्य वोट के भी हैं,
जो प्रदेश में 4-5 फीसदी के करीब हैं।
केशव देव मौर्य, जो महान दल
के नेता हैं, वो पकड़ बनाने
की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि, भाजपा सरकार में डिप्टी सीएम केशव मौर्य की अपने तबके
में अच्छी पकड़ है। इनके अलावा करीब 23 जिलों में लोध की भी तादाद
5-10 फीसदी तक है, जो
कल्याण सिंह के वक्त से
भाजपा के वोटर रहे
हैं। उमा भारती भी इस तबके
की कयादत करती हैं। अपना दल, राजभर और निषाद जैसी
छोटी पार्टियों को जोड़कर भाजपा
2017 में यूपी में फतह हासिल की थी, अब
भी इसे साधने की कोशिश में
है।
आंकड़ों के मुताबिक साल
2014 लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने
क्लीन स्वीप किया, तब भाजपा को
60 फीसदी गैर यादव ओबीसी ने वोट दिया
था। इसके अलावा इन्हें कुर्मी और मौर्य समुदाय
के 53 फीसदी वोट मिले थे। जबकि सपा-बसपा 11-13 फीसदी में निपट गए। वहीं, साल 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों
में भाजपा को 40 से 20 फीसदी तक ही वोट
मिल सके थे, जबकि साल 2017 में यह आंकड़ा बढ़
कर 60 फीसदी से भी ज्यादा
हो गया। यही फार्मूला अब सपा अपना
रही है। चुनाव से पहले वह
छोटे दलों से तालमेल के
अलावा बड़े दलों के बागी नेताओं
पर नजर बनाए हुए है। वर्ष 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव के अलावा 2017 में
विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने
के बाद सपा नेतृत्व का बड़े दलों
से तालमेल को लेकर मोहभंग
हो चुका है। 2017 में कांग्रेस के साथ मिलकर
विधानसभा चुनाव लड़ने का खामियाजा उसे
करारी शिकस्त के साथ उठाना
पड़ा था जबकि 2019 में
लोकसभा चुनाव में बसपा और राष्ट्रीय लोकदल
(रालोद) के साथ गठबंधन
को भी जनता ने
नकार दिया था। हालांकि पश्चिमी यूपी में जाट वोटों पर खास पकड़
बनाने वाली रालोद इस बार भी
उनकी दोस्त बनी रहेगी। सपा ने महान दल
के साथ भी गठबंधन किया
है जिसका प्रभाव खासकर पश्चिमी यूपी में मौर्य, कुशवाहा और सैनी जाति
के मतदाताओं पर है। महान
दल ने भी विधानसभा
चुनाव में सपा के समर्थन की
घोषणा की है। उसका
मानना है कि इस
बार यादव-मुस्लिम वोट बैंक के साथ ये
छोटे दल उसके जीत
के खेवनहार साबित होंगे। या यूं कहे
11 फीसदी यादव और 19 प्रतिशत मुस्लिम वोट के साथ अति
पिछड़ों और अनुसूचित जाति
का साथ सपा को मिलता है
तो पार्टी भाजपा को करारी टक्कर
देने की स्थिति में
होगी। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव
में भाजपा ने 119 अति पिछड़ी को दिए जिनमे
राजभर, कुशवाहा और मौर्य शामिल
थे वहीं 69 टिकट जाटव दलित समुदाय के लोगों को
दिए गए और यही
कारण रहा कि उसे चुनाव
में बडी सफलता हासिल हुई।
कोरोना
से हुई मौते बीजेपी के लिए बनी
चुनौती
दूसरी
लहर ने राजनीतिक तौर
पर बीजेपी का काफी नुकसान
किया है। श्याम प्रकाश अकेले जनप्रतिनिधि नहीं हैं जिन्होंने संक्रमण प्रबंधन को लेकर सरकार
के प्रयासों पर इस तरह
की टिप्पणी की है। अप्रैल
के दूसरे सप्ताह में उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री
ब्रजेश पाठक ने अपर मुख्य
सचिव (चिकित्सा व स्वास्थ्य) और
प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) को पत्र लिखकर
चिंता व्यक्त की थी। पाठक
ने अपने पत्र में लिखा था, ’’अत्यंत कष्ट के साथ सूचित
करना पड़ रहा है
कि वर्तमान समय में लखनऊ जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं का अत्यंत चिंताजनक
हाल है। विगत एक सप्ताह से
हमारे पास पूरे लखनऊ जनपद से सैकड़ों फोन
आ रहे हैं, जिनको हम समुचित इलाज
नहीं दे पा रहे
हैं।’’ केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने भी मुख्यमंत्री
और सरकार के प्रमुख लोगों
को पत्र लिखकर अव्यवस्था की ओर इशारा
किया था। बलिया के विधायक सुरेंद्र
सिंह भी कोरोना प्रबंधन
को लेकर सरकार के खिलाफ असंतोष
जता चुके हैं। फिरोजाबाद जिले के जसराना से
बीजेपी विधायक राम गोपाल लोधी की पत्नी को
उपचार के लिए आठ
घंटे इंतजार करना पड़ा। वह आगरा में
बेड के लिए भटकीं
तो विधायक ने सरकारी तंत्र
के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली। प्रदेश बीजेपी में शीर्ष स्तर पर ऐसा मानने
वालों की कमी नहीं
है कि कोरोना की
दूसरी लहर ने राजनीतिक तौर
पर पार्टी का काफी नुकसान
किया है।
योगी
ने खुद मोर्चा संभाला
कोरोना
काल की समस्याओं को
देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद मोर्चा
संभाला है और वह
राज्य के जिलों का
दौरा करके गांवों तक व्यवस्था की
समीक्षा कर रहे हैं।
कोरोना संक्रमण से 30 अप्रैल को उबरने के
बाद योगी ने जिलों का
दौरा शुरू कर जमीनी सच्चाई
परखी। अब तक वह
करीब 50 जिलों में कोविड प्रबंधन की समीक्षा कर
चुके हैं और आगे भी
उनके कार्यक्रम विभिन्न जिलों में हैं। राज्य में आधिकारिक रूप से अब तक
सरकार के तीन मंत्री
और पांच विधायकों समेत 18,978 संक्रमित अपनी जान गंवा चुके हैं और अब तक
साढ़े 16 लाख से ज्यादा लोग
संक्रमित हो चुके हैं।
प्रियंका
गांधी के तीन साल
2022 विधानसभा चुनाव
के लिए प्रियंका गांधी पिछले तीन सालों से जितनी मेहनत
कर रही हैं, क्या उससे वह यूपी में
मृत्यु शय्या पर पड़ी कांग्रेस
में जान फूंक सकेंगी। या कांग्रेस पार्टी
फिर से मात्र कुछ
सीटों पर ही सिमट
कर रह जाएगी। जैसे
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल एक सीट रायबरेली
ही जीत पाई थी। यह सवाल हर
कोई पूछ रहा है। प्रियंका गांधी की समस्या यह
है कि उनका दिल
दिल्ली में होगा, पर उनकी परीक्षा
यूपी में होगी। अब परीक्षा देने
के लिए तैयारी तो करनी ही
पड़ती है, पर प्रियंका गांधी
की तैयारी पूरी नहीं दिख रही है। साल में दो तीन बार
वह प्रदेश का चक्कर लगा
आती हैं। जाती वही हैं जहां गरीब या पिछड़ों के
साथ अन्याय की खबर आती
है। बाकी के समय राहुल
गांधी की तरह प्रियंका
भी ट्विटर से ही राजनीति
करती दिखती हैं। रोज कम से कम
एक ट्वीट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ और
एक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ करती
ही हैं। यह प्रियंका गांधी
ही बेहतर जानती होंगी कि जिन गरीब,
दलित, पिछड़े और महिलाओं की
वह हमदर्द हैं उनमे से कितने ट्विटर
से जुड़े हैं और उन्हें क्या
पता भी चलता है
कि मैडम ने किस मुद्दे
पर किस नेता की आलोचना की
है? अगर ट्विटर और फेसबुक से
ही राजनीती चलती तो अभी तक
राहुल गांधी प्रधानमंत्री होते। ज़रुरत थी एक ऐसे
नेता कि जो यूपी
में रह कर जनता
के साथ घुलमिल कर मृत्यु सैय्या
पर पड़ी कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने की कोशिश करे,
पर इसके सामने प्रियंका के बड़े शहर
का मोह सामने आ गया। अब
प्रियंका वही कर रही हैं
जो पूर्व में राहुल गांधी ने किया था
जिसका नतीजा सभी ने पूर्व में
देखा था। अब प्रियंका गांधी
के ट्विटर की राजनीति और
साल में दो-तीन चक्कर
प्रदेश के लगा लेने
से ही अगर कांग्रेस
पार्टी का भला हो
सकता है तो फिर
2022 फरवरी-मार्च के महीने में
होने वाले चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत पक्की
मानी जानी चाहिए, और प्रियंका गांधी
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बन जाएंगी।
योगी
होंगे भाजपा के चेहरा
2022 के लिए
सियासी बिसात बिछना शुरू हो चुकी है।
भाजपा और आरएसएस के
बीच कई दिनों से
चल रही मैराथन बैठकों का निचोड़ सामने
आ चुका है। यूपी का सियासी किला
बचाने के लिए भाजपा
और संघ से मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ के नेतृत्व में
चुनाव लड़ने पर मुहर लगाई
जा चुकी है। हालांकि, इसके साथ ही जातिगत समीकरणों
को दुरुस्त करने के लिए भाजपा
के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह के गैर-यादव
ओबीसी फॉर्मूले को साधने की
कवायद भी तेज कर
दी गई हैं।
शानदार लेखन
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