Friday, 8 July 2022

भूला ना पायेंगा शिंजो आबे को भारत

भूला ना पायेंगा शिंजो आबे को भारत

शिंजो आबे ने भारत-जापान के संबंधों नया आयाम दिया है। उनके कामों को भारत भूल के भी नहीं भूला पायेगा। शिंजो आबे की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि यूएसए ने साल 2018 में दुनिया का 38वां सबसे ताकतवर  व्यक्ति माना था। राजनीति में उतरने से पहले उन्होंने फिल्मों में भी काम किया था. इस साल उनकी नेटवर्थ बढ़कर 10 बिलियन डॉलर के पार निकल गई थी. वह एक राजनीतिक परिवार में पैदा हुए थे. उनके परिवार में पहले से ही जापान को दो प्रधानमंत्री मिल चुके थे. दूसरे विश्वयुद्ध में पराजय के बाद जापान के ऊपर कई पाबंदियां लगाई गई थीं, जिनमें से एक शर्त सैन्य ताकत पर लगाम लगने की भी थी. आबे जापान के पहले प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने बदलती दुनिया में बदलने की हिम्मत की और चीन के खतरे को महसूस किया. चीन की आक्रामक नीतियों और उत्तर कोरिया जैसे पड़ोसी को ध्यान में रखते हुए आबे ने फिर से जापान की सैन्य ताकत को पटरी पर लाने की शुरुआत की. चीन पर लगाम लगाने के लिए आज भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर जिस क्वाड का गक्वाड का गठन किया है, इसकी जड़ें सींचने में भी आबे का अहम योगदान रहा था. अब आबे भले ही इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उन्हें हमेशा एक दूरदर्शी नेता के के तौर पर याद किया जाता रहेगा 

सुरेश गांधी

जापान में यूएस जैसा गन कल्चर तो नहीं है. लेकिन वहां माफिया अलग तरह से फल-फूल रहा है। जापान की जब भी चर्चा होती है, तब वहां के मेहनतकश लोगों का जिक्र जरूर आता है. लोग सोचकर हैरान रह जाते हैं कि इतना छोटा सा देश तरक्की के मामले में अमेरिका, ब्रिटेन, चीन जैसे सुपरपावर को चुनौती कैसे देता है. इस विकास के पीछे शायद वहां के शांतिप्रिय लोग ही हैं. लेकिन शुक्रवार सुबह इस शांति को ग्रहण लग गया. सुबह जापान दो गोलियों की आवाज से दहल उठा. गोली चली तो नारा शहर में थी, लेकिन इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी. शिंजो आबे लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े हुए हैं. आबे साल 2006 में पहली बार जापान के प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गए थे. हालांकि, अल्सरेटिव कोलाइटिस नामक बिमारी के जूझते हुए आबे ने एक साल के अंदर-अंदर ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद आबे ने साल 2012 में दोबारा प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़ा और चुनाव जीतने के बाद दोबारा देश की कमान संभाली. इस बार शिंजो आबे लगातार 2803 दिनों (7 साल 6 महीने) तक जापान के प्रधानमंत्री बने रहे. इससे पहले इतने लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने का रिकॉर्ड शिंजो के चाचाइसाकू सैतोके नाम था.

देखा जाएं तो जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे, जो सबसे लंबे समय तक जापान के प्रधानमंत्री पद पर रहे, उन्हें 8 जुलाई को सरेराह भाषण के बीच गोली मार दी गई. गोली लगने के तुरंत बाद आबे को अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जहां तकरीबन पांच घंटे के बाद उनकी मौत हो गयी। शिंजो सबसे अधिक बार भारत की यात्रा करने वाले जापान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. शिंजो जब 2006-07 में प्रधानमंत्री बने थे, उस दौरान भी उन्होंने भारत का दौरा किया था. इसके बाद 2012 में दोबारा प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद, उन्होंने जनवरी 2014, दिसंबर 2015 और सितंबर 2017 में भी भारत का दौरा किया था. यह भारत में किसी भी जापानी प्रधान मंत्री द्वारा सबसे अधिक किए गए दौरे रहे. वह 2014 में गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि बनने वाले पहले जापानी पीएम थे. यह भारत के संबंध के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है - उनकी मेजबानी एक ऐसी सरकार कर रही थी जो मई 2014 में चुनाव लड़ने जा रही थी.

जापान के नेता के तौर पर उन्हें डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए दोनों ने लुभाया था. शिंजो आबे के कार्यकाल के दौरान भारत और जापान के रिश्ते भी काफी मजबूत हुए थे. शिंजो आबे को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी नवाजा गया था. मतलब साफ है भारत और जापान के दोस्ती के रिश्तों को परवान चढ़ाने और उसे आकार देने में आबे की अहम भूमिका रही है. आज वही शिंजो आबे मौत के आगोश में समा गए हैं. भारत के लिए उनकी इस मौत को पचा पाना आसान नहीं है. जापान के आबे भारत को बहुत याद आने वाले हैं उनकी कमी देश के सियासतदानों को तो खलेगी ही भारत का जनमानस भी उन्हें याद करेगा. शिंजो आबे भारत के लिए कितने महत्वपूर्ण थे इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि उनकी मौत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत में एक दिन के राष्ट्रीय शोक का एलान किया है.

शिंजो का जन्म टोक्यो शहर में हुआ था. शिंजो आबे का परिवार मूल रूप से यामागुची प्रांत का रहने वाला है. शिंजो का परिवार जापान की राजनीति में मुख्य रूप से काफी सक्रिय था. बता दें उनकी मां योको किशी, जापान के पूर्व प्रधानमंत्री नोबुसुके किशी की बेटी हैं. शिंजो के पिता शिंटारो आबे ने 1982 से 1986 तक जापान के विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया था. शिंजो आबे ने अमेरिका से सार्वजनिक नीति की पढ़ाई पूरी करने के बाद अप्रैल 1979 में कोबे स्टील के लिए काम करना शुरू किया था. इसके बाद 1982 में, उन्होंने कंपनी छोड़ दी और कई सरकारी पदों पर काम किया. साल 1987 में शिंजो आबे नेएकी आबेसे शादी की थी. हालांकि, शिंजो और एकी की कोई संतान नहीं है. उनकी शादी के तकरीबन 4 साल बाद 1991 में शिंजो के पिता की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद साल 1993 में आबे यामा गुची प्रान्त के पहले जिले के प्रतिनिधी के तौर पर चुने गए थे. शिंजो आबे ने 28 अगस्त 2020 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए जापान के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. आबे कथित तौर पर अल्सरेटिव कोलाइटिस नामक बिमारी से पीड़ित है, जो एक सूजन आंत्र रोग है.

भारत-जापान संबंधों का कायाकल्प

भारत और जापान के बीच 15 बिलियन का बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट है और यह पीएम मोदी और शिंजो आबे की नजदीकी की वजह से ही आगे बढ़ पाया। जापान और भारत के बीच वैश्विक साझेदारी की नींव 2001 में रखी गई थी और वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए 2005 में सहमति बनी थी. आबे ने साल 2012 से इन संबंधों में तेजी लाने का श्रेय आबे को ही जाता है. अगस्त 2007 में, जब आबे पहली बार प्रधान मंत्री के रूप में भारत आए, तो उन्होंने अब मशहूरदो समुद्रों का संगमभाषण दिया था. इसके तहत उन्होंने  हिंद-प्रशांत अवधारणा की नींव रखी. उनका यही कॉन्सेप्ट अब भारत-जापान संबंधों के लिए एक मजबूत और अहम स्तंभ बन गया है. अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान आबे ने इस रिश्ते को और आगे बढ़ाने में मदद की. यही वजह रही की गुजरात के सीएम के तौर में कई बार जापान का दौरा करने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने सितंबर 2014 में पड़ोस के बाहर अपनी पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए जापान को चुना. मोदी और आबे द्विपक्षीय संबंधों कोविशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारीमें अपग्रेड करने पर सहमत हुए. ये संबंध बढ़े और इसमें नागरिक परमाणु ऊर्जा से लेकर समुद्री सुरक्षा, बुलेट ट्रेन से लेकर गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे, एक्ट ईस्ट नीति से लेकर इंडो-पैसिफिक रणनीति तक के मुद्दे शामिल हो गए

जब मोदी 2014 में जापान गए थे, तब भी भारत-जापान परमाणु समझौता अनिश्चित था, टोक्यो एक गैर-परमाणु-प्रसार-संधि सदस्य देश के साथ इस  समझौते के बारे में संवेदनशील था. आबे की सरकार ने जापान में परमाणु विरोधी तेजतर्रार लोगों को 2016 में समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मना लिया. यह समझौता अमेरिका और फ्रांसीसी परमाणु फर्मों के साथ भारत के सौदों के लिए महत्वपूर्ण था, जो या तो स्वामित्व में थे या जापानी फर्मों में हिस्सेदारी रखते थे. आबे ने यामानाशी में अपने पैतृक घर में मोदी की मेजबानी की थी और जापान की तरफ से इस तरह का सम्मान पाने वाले मोदी पहले ऐसे विदेशी नेता रहे. इसके बाद आबे ने अहमदाबाद में एक रोड शो किया था. 

चीन की नजरों में खटकते थे शिंजो आबे

चीन हमेशा से ही दूसरे देशों की सीमाओं पर अपनी नजरें गढाए रखता है, चीन की इस हरकत से भारत समेत तमाम पड़ोसी देश परेशान हैं. ऐसे में शिंजो आबे चीन के लिए बड़ी चुनौती बन गए थे. आबे को चीन की नीतियों का कट्टर विरोधी माना जाता है. चीन ने जब-जब दुनिया के किसी भी देश पर अपना दबदबा कायम करने की कोशिश की तो शिंजो आबे ने खुलकर उसका विरोध किया. जापान के प्रधानमंत्री रहने के दौरान शिंजो आबे ने कई ऐसे फैसले लिए जो चीन के लिए खतरनाक साबित हुए, या फिर यूं कहें कि इन फैसलों से चीन के कई बुरे मंसूबों पर पानी फिर गया

दुनिया के सबसे चर्चित नेताओं में से एक शिंजो आबे ने क्वाड जो कि भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का ग्रुप है, उसकी पहल की थी. ये चीन पर शिंजो आबे की सबसे बड़ी चोट थी. जब क्वाड का गठन हुआ था तो चीन ने इसका खुलकर विरोध किया था और कहा था कि इसे उसके खिलाफ साजिश के लिए बनाया गया है. बता दें कि शिंजो आबे की पहल के बाद बनाया गया संगठन क्वाड चीन को इसलिए खटकता है, क्योंकि इसे चीन की विस्तारवादी नीति और उसकी हर गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बनाया गया था. चीन ने इसका विरोध करने के लिए क्वाड सदस्य देशों से बात भी की थी. साथ ही जब-जब क्वाड सदस्य देशों की सेनाएं अभ्यास करती हैं या फिर ऐसी रणनीतिक बैठक करती हैं तो चीन बौखला जाता है. यही सबसे बड़ा कारण है कि शिंजो आबे चीन की नजरों में काफी पहले से खटकते आए हैं. इसीलिए जब दुनियाभर के लोग शिंजो आबे के जल्द ठीक होने की प्रार्थना कर रहे थे तो चीन में इस बात को लेकर खुशी जताई जा रही थी. 

सबसे युवा प्रधानमंत्री

साल 1993 में शिंजो आबे के पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा. चुनाव में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले. इसके बाद शिंजो आबे की लोकप्रियता लगातार बढ़ती रही. साल 2006 में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता शिंजो आबे को 52 वर्ष की आयु में जापान का प्रधानमंत्री चुना गया. जापान का सबसे युवा प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड उनके नाम है. इसके अलावा शिंजो आबे के जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री भी रहे.

काशी से था गहरा लगाव

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे 12 दिसंबर 2015 को पीएम मोदी के साथ वाराणसी आए थे। बनारस में हुए अभूतपूर्व स्वागत से शिंजो आबे गदगद थे। दोनों प्रधानमंत्रियों ने दशाश्वमेध घाट पर गंगाजल हाथ में लेकर विश्व की मंगलकामना का संकल्प लिया था। इस दौरान शिंजो आबे का भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति स्नेह सभी ने देखा था। दोनों ने मढ़ी में बैठकर एक घंटे से अधिक गंगा आरती देखी थी। तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिंजों की यह यात्रा भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा थी, जिसने दुनिया की महाशक्तियों को अपना अहसास दिलाया था। बनारस में हुए अभूतपूर्व स्वागत से शिंजो गदगद थे और देर तक खड़े रहकर लोगों का अभिवादन किया था। यही नहीं मोदी और शिंजो ने नदेसर पैलेस में अपने क्षेत्र के महारथी 68 खास लोगों से मुलाकात कर भविष्य की योजना का खाका भी खींचा था।

भारत जापान की दोस्ती का प्रतीक है रुद्राक्ष कंवेंशन सेंटर

भारत-जापान की वर्षों से चली रही मैत्री के प्रतीक रुद्राक्ष कंवेंशन सेंटर की नींव 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने रखी थी। सेंटर को सांस्कृतिक आधुनिक समागम के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। 186 करोड़ की लागत से तैयार सेंटर शिवलिंग के आकार में निर्मित है। खुद में एक अद्वितीय कंवेंशन सेंटर है। जिसमें जापानी और भारतीय दोनों ही प्रकार की वास्तुशैलियों का संगम दिखता है। रुद्राक्ष कन्वेंशन की डिजाइन जापान की कंपनी ओरिएंटल कंसल्टेंट ग्लोबल ने किया है। निर्माण का काम भी जापान की ही फुजिता कारपोरेशन कंपनी ने किया है। सारनाथ में भी जापानी मंदिर है।

राजीव गांधी, बेनजीर भुट्टो जैसे नेता बन चुके है शिकार!

इससे पहले जापान में 1932 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इनुकाई सुयोशी की हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या नेवी के एक अधिकारी ने की थी.राजनीतिक नेताओं पर हमले और हत्या का लंबा इतिहास रहा है. 44 ईसा पूर्व में रोमन शासक जूलियस सीजर की हत्या कर दी गई थी. माना जाता है कि किसी शासक की हत्या का इतिहास यहीं से शुरू हुआ था. जूलियस सीजर ने खुद को रोमन का ताउम्र शासक घोषित कर दिया था. 15 मार्च 44 ईसा पूर्व को 60 मंत्रियों ने साजिश रचकर उनकी हत्या कर दी थी. सीजर के शरीर पर चाकू से 23 वार किए गए थे. इस हत्या के बाद रोमन साम्राज्य में गृहयुद्ध छिड़ गया था. हालिया इतिहास में ऐसे कई सारे नाम हैं, जिनमें राजनेताओं की हत्या कर दी गई. इनमें महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर जॉन एफ केनेडी, मार्टिन लूथर किंग और अब्राहम लिंकन तक का नाम शामिल है.

- अब्राहिम लिंकन : 1865 में 14 अप्रैल की शाम को अब्राहिम लिंकन की हत्या कर दी गई थी. लिंकन अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति थे. लिंकन जब थियेटर में एक नाटक देख रहे थे, तभी हमलावर ने पीछे से उनके सिर में गोली मार दी थी. अगले दिन लिंकन की मौत हो गई थी. हमले के 10 दिन बाद हमलावर वाइक्स बूथ एक एनकाउंटर में मारा गया था.

- महात्मा गांधी : 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी जब प्रार्थना सभा में जा रहे थे, तभी नाथूरामगोडसे ने तीन गोलियां चलाकर उनकी हत्या कर दी थी. गोडसे का मानना था कि अगर गांधी चाहते तो बंटवारे को रोक सकते थे. गांधी की हत्या करने के जुर्म में गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई थी. गोडसे को 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गई थी.

- लियाकत अली खान : पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की 16 अक्टूर 1951 को हत्या हो गई थी. हमलावर ने उनके सीने पर तब गोलियां चलाईं, जब वो रावलपिंडी में एक जनसभा कर रहे थे. पुलिस ने तुरंत हमलावर सैद अकबर को मार गिराया

- जॉन एफ. केनेडी : अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी की 22 नवंबर 1963 को हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या टेक्सास के डलास में हुई थी. केनेडी अपनीपत्नी के साथ थे. शहर के बीच पहुंचते ही केनेडी ने अपनी गाड़ी लिमोजिन की छत खोल दी. डलास पहुंचने के एक घंटे बाद ही केनेडी को गोली मार दी गई. हत्या के आरोप में ली हार्वी ऑस्वाल्ड को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उस पर मुकदमा चलता, उससे पहले ही जैक रूबी ने उसकी हत्या कर दी. केनेडी की हत्या आज भी एक रहस्य बनी हुई है.

- मार्टिन लूथर किंग जूनियर : 29 मार्च 1968 को मार्टिन लूथर बेहर इलाज की मांग कर रहे लोगों से मिलने टेनेसी गई. मार्टिन लूथर अमेरिकी आंदोलनकारी थे. 3 अप्रैल को टेनेसी में उन्होंने भाषण दिया. अगली सुबह 4 अप्रैल को मार्टिन होटल की बालकनी में खड़े थे, तभी एक गोली चली और उनकी मौत हो गई. उनकी हत्या के दो महीने बाद जेम्स अर्ल रे नाम के शख्स को गिरफ्तार किया गया था, जिसने हत्या की बात कबूल की थी.

- इंदिरा गांधी : 31 अक्टूबर 1984 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही दो बॉडीगार्ड ने गोलियां मारकर हत्या कर दी थी. उनकी हत्या उनके बॉडीगार्ड सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने की थी. इंदिरागांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे. बेअंत सिंह की हिरासत में मौत हो गई थी. सतवंत सिंह और उसके साथी केहर सिंह को फांसी की सजा हुई. दोनों को 6 जनवरी 1989 को फांसी दे दी गई.

- राजीव गांधीः 21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की लिट्टे के आतंकियों ने हत्या कर दी थी. उस दिन राजीव गांधी तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में रैली करने वाले थे. तभी मानव बम बनी धनु उनके पास आई और पैर छूने के बहाने झुकी, जैसे ही धनु ऊपर उठी, एक जोर का धमाका हो गया. राजीव गांधी की उसी समय मौत हो गई. राजीव गांधी की हत्या के कई दोषी थे. अभी 6 दोषी जेल में बंद हैं.

- यित्जाक राबिन : इजरायल के प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन की 4 नवंबर 1995 को हत्या कर दी गई थी. वो तेल अवीव के किंग्स ऑफ स्क्वायर से रैली कर लौट रहे थे. तभी यिगाल आमिर नाम के हमलावर ने उन पर तीन गोलियां चला दीं, जिनमें से दो गोली राबिन को लग गईं. आमिर को तुरंत गिरफ्तार कर लिया. उसे हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई

- बेनजीर भुट्टोः पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या 27 दिसंबर 2007 की शाम को कर दी गई थी. भुट्टो की हत्या तब हुई थी, जब वो रावलपिंडी से एक रैली को संबोधित कर लौट रही थीं. तभी हमलावर उनके पास आया और गोली मारकर हत्या कर दी. बाद में हमलावर ने खुद को भी उड़ा लिया.

- जोवेनेल मोसेः कैरेबियाई देश हैती के राष्ट्रपति जोवेनेइल मोसे की हत्या 7 जुलाई 2021 को कर दी गई थी. हमलावरों ने उनकी हत्या उनके घर में ही घुसकर कर दी थी. इस हमलेमें उनकी पत्नी मार्टिन मोसे भी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं. मोसे की हत्या के पीछे ड्रग माफियाओं का हाथ होने की बात कही जा रही थी.

भूत के डरते थे शिंजो आबे

जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भूत के डर से प्रधानमंत्री आवास ही बदल लिया था और उन्होंने खुद प्रधानमंत्री आवास में भूत होने की बात कबूल की थी। शिंजो आबे के बाद देश के प्रधानमंत्री बनने वाले योशिहिदे सुगा ने भी अपने आधिकारिक आवास से ही काम करने का फैसला किया था और उन्होंने प्रधानमंत्री आवास जाने से इनकार कर दिया था। दरअसल, जापान में प्रधानमंत्री की हवेली को भुतहा माना जाता है और योशिहिदे सुगा से पहले जापान के सबसे लंबे वक्त तक प्रधानमंत्री रहे शिंजो आबे ने एक इंटरव्यू के दौरान कबूल किया था, कि प्रधानमंत्री बंगले में भुतहा शक्तियां रहती हैं और इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के बंगले को छोड़ दिया था। जब योशिहिदे सुगा जापान के प्रधानमंत्री बने थे, तब उन्होंने कहा था, कि कड़ी सुरक्षा होने के बाद भी वो प्रधानमंत्री के बंगले में शिफ्ट नहीं होंगे। जापान में प्रधानमंत्री के बंगले को आर्ट डेको हाउस कहा जाता है, जो साल 1929 में बनकर तैनात हुआ था और सुगा से पहले शिंजो आबे ने भी इस बंगले में एक साल रहने के बाद आगे रहने से इनकार कर दिया था। जापानी मीडिया को दिए गये एक इंटरव्यू में शिंजो आबे ने कहा था कि, उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री योशीरो मोरी सहित जापान के और भी कई पूर्व प्रधानमंत्रियों से हवेली में भूत होने की कहानियां सुनी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, जापान के पूर्व प्रधानमंत्री मोरी ने कथित तौर पर कहा था, कि उन्होंने प्रधानमंत्री बंगले में रहने के दौरान एक प्रेत के पैर देखे थे। 15 मई 1932 को इस बंगले में पूर्व प्रधानमंत्री इनुकाई त्सुयोशी की तख्तापलट करने की कोशिश की गई थी और जापानी नौसेना के 11 अधिकारियों ने उनकी इसी बंगले में हत्या कर दी थी। गार्जियन के अनुसार, 1936 में एक और तख्तापलट का प्रयास किया गया था और उसके बाद से ही प्रधानमंत्री के बंगले को भुतहा बंगला माना जाने लगा। साल 1932 में किए गये हमले में जापानी इम्पीरियल आर्मी के जवान शामिल थे, लेकिन प्रधानमंत्री पर हुए इस हमले को लेकर जापान में काफी खराब ट्रायल चला था और हत्यारों का काफी कम सजा मिली थी।

डिफेंस और इंडो-पैसिफिक

जब 2008 से सुरक्षा समझौता हुआ था, अबे के तहत दोनों पक्षों ने विदेश और रक्षा मंत्रियों की बैठक (2$2) करने का फैसला किया और अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौते पर बातचीत चल रही थी. ये एक तरह से सैन्य रसद समर्थन समझौता था. नवंबर 2019 में, पहली विदेश और रक्षा मंत्रियों की बैठक नई दिल्ली में आयोजित की गई थी. साल 2015 में रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए थे, जो युद्ध के बाद जापान के लिए एक असामान्य समझौता था. आबे के कार्यकाल के दौरान, भारत और जापान इंडो-पैसिफिक आर्किटेक्चर में करीब आए. आबे ने अपने 2007 के भाषण में दो समुद्रों के संगम के अपने दृष्टिकोण को साफ किया था जब क्वॉड का गठन किया गया था. यह जल्द ही ध्वस्त हो गया, लेकिन अक्टूबर 2017 में, जैसे ही प्रशांत, हिंद महासागर और डोकलाम में भारत की सीमाओं में चीनी आक्रामकता बढ़ी, यह आबे का ही जापान था जो आगे आया और जिसने वास्तव में क्वाड को पुनर्जीवित करने के विचार को जीवंत किया. जब नवंबर 2017 में भारतीय, जापानी, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिकी अधिकारी पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के मौके मनीला में मिले तब क्वॉड को पुनर्जीवित किया गया. गौरतलब है कि साल 2013 से ही भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच चार बार सार्वजनिक तौर सीमा विवाद को लेकर बहस और गतिरोध हुआ. चीन और भारत के बीच अप्रैल 2013, सितंबर 2014, जून-अगस्त 2017, और मई 2020 में भी सीमा विवाद होता रहा. इस दौरान भी आबे का जापान हर बार भारत के पक्ष में खड़ा दिखा. यहां तक की डोकलाम संकट और मौजूदा गतिरोध के दौरान जापान ने यथास्थिति को बदलने के लिए चीन के खिलाफ बयान भी दिए. आबे ने जापान की राजनीति के साथ ही वहां की अर्थव्यवस्था को भी एक नया रंग दिया. आबे की आर्थिक नीतियों ने एक नए शब्दआबेनॉमिक्सको जन्म दिया. इसकी तर्ज पर ही भारत में पीएम नरेंद्र मोदी की आर्थिक नीतियों कोमोदीनॉमिक्सनाम दिया गया था. आबे ने मार्च 2007 में राइट विंग राजनेताओं के साथ मिलकर एक बिल का प्रस्ताव रखा था. इस बिल के तहत जापान के युवाओं में अपने देश और गृहनगर के लिए प्यार को बढ़ाने के लिए कई तरह की बातें थीं.

 

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