टेक्सटाइल इंडस्ट्री रोजगार का सबसे बड़ा प्लेटफार्म : पीयूष गोयल
कृषि व
रेलवे
के
बाद
इस
इंडस्ट्री
से
लगभग
70 लाख
लोगों
को
रोजगार
मुहैया
करा
चुका
है
विदेशों में
कस्तूरी
नाम
से
जाना
जाएगा
स्वदेशी
कॉटन
इसके लिए
निजी
इंडस्ट्री
और
एक्सपोर्टर
मिल
कर
करेंगे
ब्रांडिंग,
किसानों
को
मिलेगी
अच्छी
कीमत
जल्द शुरू
होगी
ब्रांडिंग
मशीन वर्क
को
हैंडलूम
वर्क
बताकर
बेचने
वालों
पर
होगी
कार्यवाई
लोगों से
हैंडलूम,
हैंडीक्राफ्ट
व
खादी
से
बने
सामग्री
को
ही
भेंट
व
उपहार
स्वरूप
देने
की
अपील
आत्मनिर्भरता
की
सबसे
बड़ी
ताकत
बनकर
उभरा
है
’समर्थ
योजना’
सिल्क के
आयात-निर्यात
पर
होगी
कड़ी
नजर
महिलाओं में
स्वावलम्बन
की
जगी
उम्मीद
सरकार के
साथ
निजी
क्षेत्र
भी
हुनरमंद
बच्चों
को
आगे
लाने
की
उद्यमियों
से
अपील
प्रदर्शनी व
बिक्री
स्टालों
का
भी
अवलोकन
किया
और
कारोबारियों
से
अनुभव
साझा
किया
सुरेश गांधी
वाराणसी। केंद्रीय वस्त्र, उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष
गोयल ने कहा कि
कृषि व रेलवे के
बाद टेक्सटाइल इंडस्ट्री रोजगार का सबसे बड़ा
प्लेटफार्म बन गया है।
इस इंडस्ट्री से लगभग 70 लाख
लोगों को रोजगार मुहैया
करा चुका है। उन्होंने लोगों से अपील किया
है कि विभिन्न पर्वो
व अवसरों पर हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट
व खादी से बने सामग्री
को ही भेंट व
उपहार स्वरूप दें। इससे न सिर्फ कपड़ा
उद्योग को बल मिलेगा,
बल्कि देश की आर्थिक स्थिति
भी बेहतर होगा। उन्होंने कहा कि ’समर्थ योजना’ आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी
ताकत बनकर उभरा है। इससे महिलाओं में स्वावलम्बन बनने की उम्मीद जगी
है। उन्होंने कहा है कि सरकार
के साथ निजी क्षेत्र के उद्यमी भी
हुनरमंद बच्चों को आगे लाने
की पहल करें। इसके अलावा उन्होंने उद्यमियों को चेताया है
कि मशीन वर्क को हैंडलूम वर्क
बताकर अगर किसी ने बेचने की
कोशिश की तो पकड़े
जाने पर कार्यवाई होगी।
वह पंडित दीन
दयाल उपाध्याया संकुल टीएफसी बड़ालालपुर में आयोजित दो दिवसीय टेक्सटाइल
कॉन्क्लेव के समापन मौके
पर प्रदर्शनी, बिक्री स्टालों का अवलोकन व
लाभार्थियों व उद्यमियों से
संवाद के दौरान कारोबारियों
से अनुभव साझा करने के बाद पत्रकारों
से बातचीत करते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि
दुनिया में अमेरिका के पीमा और
गीजा कॉटन की तरह भारत
के कॉटन को कस्तूरी के
नाम से जाना जाएगा।
देश के कपास को
इंटरनेशनल लेवल पर बड़ा और
अच्छा मार्केट दिलाने के लिए दी
कॉटन टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (टेक्सप्रोसिल) और कॉटन कारपोरेशन
ऑफ इंडिया (सीसीआई) के बीच समझौता
हुआ है। इस समझौते के
तहत किसानों को उच्च गुणवत्ता
के कॉटन के उत्पादन और
उसकी ब्रांडिंग का प्रशिक्षण दिया
जाएगा। इस उत्पाद पर
क्यूआर कोड भी लगा होगा।
इसका उद्देश्य एकमात्र यही है कि भारत
में कपास का उत्पादन करने
वाले किसानों को उसकी अच्छी
कीमत मिले।
उन्होंने कहा कि यूएआई से
एग्रीमेंट हो चुका है
और आस्ट्रेलिया के साथ 29 दिसंबर
को ऑपरेशनलाइज हो जाएगा। फ्री
ट्रेड एग्रीमेंट के लिए अभी
कई देशों से चर्चाएं चल
भी रही हैं। इसका सीधा-सीधा लाभ टेक्सटाइल सेक्टर को मिलेगा। उन्होंने
कहा कि फार्म से
फाइबर, फाइबर से फैब्रिक, फैब्रिक
से फैशन और फिर फैशन
से फॉरेन... इस परिकल्पना को
इस सम्मेलन में आकार दिया गया है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर
में मंदी के बाद भी
इस क्षेत्र में प्रगति दिखाई दे रही है।
निर्यात के बढ़ावे के
लिए दो एमओयू हो
चुके हैं। इसमें एक यूरोप और
दूसरा ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ
है। कॉटन टेक्सटाइल की एडवाइजरी की
तरह ही मैन मेड
एडवाइजरी ग्रुप बनाया जाएगा। पीयूष गोयल ने कहा कि
प्रतिबंध के बाद भी
चीन का सिल्क अपने
देश में आ रहा है।
इस पर सरकार की
कड़ी नजर है। इसकी पहचान के लिए बार
कोडिंग की व्यवस्था होगी।
इसमें पहले से मानक तय
रहेंगे। ऐसे में बाहर से आए चाइना
के सिल्क की पहचान आसानी
से हो सकेगी।
उन्होंने कहा कि काशी तमिल
संगमम “एक भारत श्रेष्ठ
भारत“ की परिकल्पना को
साकार करने में सफल हुआ है। पीयूष गोयल ने कहा कि
कॉन्क्लेव में मौजूद लाभार्थिओं से बात करने
के बाद साफ हो गया है
कि ’समर्थ योजना’ के जरिए किस
तरह लोग हुनर सीख कर रोजगार पा
रहे है। अपने परिवार को मदद देने
में सक्षम साबित हुए हैं। इस दौरान उद्यमियों
द्वारा बताया गया कि ये योजना
पूरी तरह पारदर्शी है। 300 घंटे की ट्रेनिंग में
14000 का भुगतान पा रहा है।
इस दौरान बिना नाम लिए कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते
हुए वस्त्र मंत्री ने कहा कि
पहले 100 रूपये में 15 रूपये ही लाभार्थी तक
पहुंचता था, लेकिन अब 100 रुपये की लाभार्थी को
200 रुपये तक पहुंचाया जा
रहा है। कॉन्क्लेव में हमारा मुख्य फोकस इसी बात पर रहा कि
कैसे हम अपने टेक्सटाइल
के निर्यात को कैसे दुनिया
भर में बढ़ा सकें। राज्यों के बीच आपस
में अच्छा व्यापार हो। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि
दुनिया में व्यापार में मंदी दिखाई दे रही है।
इसके बावजूद हमारा टेक्सटाइल सेक्टर मजबूती के साथ खड़ा
है। टेक्सटाइल सेक्टर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भर भारत के सपने को
साकार कर रहा है।
उन्होंने उद्योग जगत सहित निजी क्षेत्र के लोगों से भी अपील किया वे युवाओं को ट्रेनिंग देकर उद्योग से जोड़ें, जिससे जरूरतमंद परिवार को भी रोजगार से जोड़ा जा सके। इससे बड़ा कोई पुण्य और पूजा नहीं हो सकता है। इसके लिए जो भी बदलाव करना होगा हम करेंगे। उन्होंने सभी से कहा कि हम इस तरफ प्रयास करें की इस उद्योग से जुड़े प्रत्येक परिवार की आय में कम से कम 1000 रूपये की बढोत्तरी कर सकें। उन्होंने कामगारों की सीधी पहुंच बाज़ार तक कैसे हो इस पर भी काम करने को कहा। उन्होंने पूरे इकोसिस्टम की इ-कॉमर्स तक सीधी पहुंच भी सुनिश्चित करने की बात कही।
टेक्सप्रोसिल के चेयरमैन सुनील
पटवारी, सीसीआई के चेयरमैन ललित
कुमार, नरेंद्र गोयनका, दयाल ने अपने सुझाव
व धन्यवाद ज्ञापन किए। रिलायंस टेक्सटाइल के अजय सरदाना
ने बताया कि दुनिया में
लोगों का पहनावा बदला
है। भारत में सूती वस्त्र का सबसे ज्यादा
उत्पादन है। अब इसके साथ
अन्य वस्त्र उद्योगों को लगाने की
जरूरत है। गुजरात में फाइबर उत्पादन के बड़े उद्योग
लगाने की योजना है।कार्यक्रम
में वस्त्र उद्योग की सचिव रचना
शाह, एडिशनल सेक्रेटरी रोहित कंसल, राजीव सक्सेना, ज्वाइंट कमिश्नर उमेश सिंह सहित बड़ी संख्या में उद्योग जगत के लोगों के
साथ लाभार्थी उपस्थित थे।
लाभार्थियों व उद्यमियों ने खुलकर साझा किया अपना अनुभव
सुभम एम्पेक्स प्रा. के डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने रूस और सीआईएस देशों को रेशमी कपड़े के निर्यात की क्षमता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भविष्य में रेशम उद्योग का विकास होगा क्योंकि रुझान विशेष रूप से यूरोप में रेशम के पक्ष में है। इन देशों में मांग बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि सिल्क में निर्यात लगभग 3 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष है, जिसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर 25 फीसदी है। सुश्री सुभी अग्रवाल ने वाराणसी के लकड़ी के खिलौनों पर एक प्रस्तुति दी, जो एक जीआई उत्पाद है। उन्होंने कहा कि सरकार की पहल के कारण भारत के लकड़ी के खिलौने निर्माताओं को आजकल अधिक निर्यात व पूछताछ मिल रही है। दुबई जैसे विदेशों के मेलों में लोग भाग ले रहे हैं।
वी. रामनाथन, कार्यकारी निदेशक ने कांचीपुरम हैंडलूम सिल्क पार्क की सफलता के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि 400 हथकरघा के जरिए न सिर्फ रेशम साड़ियों का उत्पादन कर रहे हैं बल्कि पूरे भारत के दुकानों में विपणन भी कर रहे है। 75 एकड़ भूमि में और 1000 हथकरघा स्थापित किए जा रहे हैं। मो. यासीन, बंकर स्टूडियो, वाराणसी ने बनारसी हैंडलूम के विकास के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने विभिन्न बनारसी साड़ियों जैसे ब्रोकेड, तनचोई, कडुवा, फेकवा आदि के बारे में भी बताया। एचईपीसी के कार्यकारी निदेशक ने विभिन्न देशों को निर्यात किए जाने वाले कपड़े की किस्मों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उत्पाद विविधीकरण रेशम वस्त्र बाजार को बढ़ाने में मदद करेगा।
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