Saturday, 27 July 2024

जहां इंसान तो इंसान, पशु-पक्षी भी बदल देते है अपना ठेकाना

जहां इंसान तो इंसान, पशु-पक्षी भी बदल देते है अपना ठेकाना

जी हां, चमत्कार की ढेरों कहानियां समेटे श्रीकृष्ण की धरती मथुरा के वृंदावन का निधिवन ऐसी जगह हैं, जहां शाम ढलते ही जंगल में बने मंदिर के पुजारी हो या श्रद्धालु या पशु-पक्षी, सबके सब अपना ठेकाना बदल देते है। कोई कुछ भी देख नहीं सकता। खास तौर से उस दौर में जब आज इंसान जमीन पर बैठे बैठे पूरा ब्रह्मांड देख सकता है. मगर जिस इलाके की बात हम कर रहे हैं वहां कोई भी इंसान वो खास रात चाह कर भी नहीं देख सकता. क्योंकि यहां कौन, कब, क्या देख सकता है ये इंसान नहीं, भगवान तय करते हैं और इसीलिये इस इलाके में जाने  वाले रात तो रात, दिन के उजाले में भी अपने कदम फूंक-फूंक कर रखते हैं. कहते है इस वन में आज भी हर रात श्रीकृष्ण गोपियों संग रास रचाते हैं। यही वजह है कि सुबह खुलने वाले निधिवन को संध्या आरती के पश्चात बंद कर दिया जाता है। इस दौरान वहां कोई नहीं होता। कहते है यदि कोई छुप छुपाकर भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला देखने की कोशिश की तो वह घटनाक्रम को बताने योग्य ही नहीं रहा। या तो उसकी अकाल मौत हो गयी या अपना मानसिक संतुलन खो बैठा या अंधा हो गया। इसी कारण निधिवन के आसपास मौजूद घरों में लोगों ने उस तरफ खिड़कियां भी नहीं लगाई हैं. कई लोगों ने अपनी खिड़कियों को ईंटों से बंद करा दिया है. आसपास रहने वाले लोगों के मुताबिक शाम सात बजे के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता. मंदिर के पुजारियों के मुताबिक इस जगह राधा और कृष्ण शाम के अंधेरे में रास रचाने आते हैं और उनका साथ देने के लिए वन में मौजूद पेड़ गोपियां बन जाती हैं। खास यह है यहां लगे तुलसी के पौधे जोड़े में है। कहते हैं जब राधा-कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर ये तुलसी के पौधे में बदल जाती हैं। यहां लगे वृक्षों की शाखाएं ऊपर की ओर नहीं बल्कि नीचे की ओर बढ़ती हैं। ये पेड़ ऐसे फैले हैं कि रास्ता बनाने के लिए इन पेड़ों को डंडे के सहारे रोका गया है 

                  सुरेश गांधी

फिरहाल, जब भी भगवान श्रीकृष्ण का जिक्र होता है, तब कान्हा की नगरी मथुरा और वृंदावन का जिक्र जरूर होता है. या यूं कहे श्रीकृष्ण की धरती ब्रज मंडल में चमत्कार के किस्से हर किसी की जुबान पर है। वहां का हर व्यक्ति श्रीकृष्ण के चमत्कारी दास्तां को बयां करते दिखाई देता है। लेकिन उन्हीं में से एक ऐसा किस्सा सुनने को मिला, जिस पर विश्वास करना तो दूर सुनने में भी अटपटा लगा। लेकिन मान्यताओं और आस्था का जुनून मन मस्तिष्क में इस कदर समाया हुआ है कि मानना ही पड़ेंगा, खासकर तब जब परंपरा के निवर्हनकर्ता प्रत्यक्षदर्शी खुद रहस्य से पर्दा उठा रहे हों। मतलब साफ है भगवान के अस्तित्व की झलक आज भी वृंदावन के निधिवन में मौजूद है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक आज भी हर शाम आरती के बाद निधिवन को बंद कर दिया जाता है। उसके बाद वहां कोई नहीं रहता। यहां तक कि पशु-पक्षी भी अपना ठिकाना कहीं और बसा लेते हैं।

कहा जाता है कि जो भी मनुष्य रासलीला देखने की कोशिश करता है, वह या तो अंधा हो जाता है या तो मानसिक संतुलन खो बैठता है या उसकी अकाल मौत हो जाती है। कहते है निधिवन में श्री कृष्ण आज भी गोपियों के संग रास रचाते हैं. निधिवन बेहद पवित्र, धार्मिक और रहस्यमयी स्थान है. यहां दूर दूर से पर्यटक खींचे चले आते हैं. निधिवन का यह रहस्य ऐसा है, जिस पर शायद ही किसी को विश्वास हो. लेकिन लोगों की मानें तो आज भी भगवान कृष्ण निधिवन में राधा और गोपियों के साथ नृत्य करते हैं. कहा जाता है कि मंदिर में आरती के बाद निधिवन में श्रीकृष्ण राधा और गोपियों के साथ रासलीला करते हैं और हर रोज यहां आते हैं. पेड़ गोपियां बन जाते हैं और कान्हा और राधा का मिलन होता है. एक अन्य कथानुसार इस वन में लगे जोड़े की वन तुलसी की कोई भी एक डंडी नहीं ले जा सकता। लोग बताते हैं कि जो लोग भी ले गए वे किसी किसी आपदा का शिकार हो गए इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता। 

राधा-कृष्ण के बारे में कहा जाता है अध्यात्मिक प्रेम की अनूठी मिशाल है, भगवान श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम. कृष्ण शरीर हैं तो राधा आत्मा हैं. राधा रानी ने कई बार कृष्ण जी से विवाह करने को बोला लेकिन कृष्ण जी ने राधा रानी को मना कर दिया और बोले आत्मा से कोई विवाह करता है. इस बात से आप समझ सकते हैं दोनों का रिश्ता कितना पवित्र था. निधिवन के अंदर ही हैरंग महलहै। कहते है रोज रात यहां पर राधा और कृष्ण रास रचाते हैं। इसीलिए रंग महल में राधा और श्रीकृष्ण के लिए रखे गए चंदन की पलंग को शाम सात बजे के पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है।रंग महलके पट सुबह पांच बजे खुलते हैं। उस समय बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुची हुई और पान खाया हुआ मिलता है। रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते है और प्रसाद स्वरुप उन्हें भी श्रृंगार का सामान मिलता है।

निधिवन में मौजूद पंडित और महंत बताते हैं कि हर रात भगवान  श्री कृष्ण के कक्ष में उनका बिस्तर सजाया जाता है, दातून औपानी का लोटा रखा जाता हैं. इसके बाद इस पूरे मंदिर को 7 तालों से बंद कर दिया जाता है। मंदिर के पट बंद होने के बाद लोगों को खूब नाच गाने की आवाज मंदिर के अंदर से आती है. जब सुबह मंगला आरती के लिए पंडित उस कक्ष को खोलते हैं तो लोटे का पानी खाली, दातून गिली, पान खाया हुआ और कमरे का सामान बिखरा हुआ मिलता है. मंदिर में रोज माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है और वही भोग लोगों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है, जो बच जाता है उसे वही रख दिया जाता है. सुबह वह माखन मिश्री साफ मिलता है

 निधिवन में मौजूद पेड़ भी अपनी तरह के बेहद खास हैं. जहां आमतौर पर पेड़ों की  शाखाएं ऊपर की और बढ़ती है, वहीं निधि वन में मौजूद पेड़ों की शाखाएं नीचे की और बढ़ती हैं. इन पेड़ों की स्थिति ऐसी है कि रास्ता बनाने के लिए उनकी शाखाओं कोडों के सहारे फैलने सो रोका गया हैं. निधिवन में बहुत से पेड़ पौधे लगे है जिस में तुलसी के पौधे जोड़ों में हैं. जो कृष्ण और राधा की रास लीला में शामिल होने के लिए गोपियों का रूप धारण कर लेती हैं. इस तुलसी का एक भी पत्ता यहां से कोई नहीं ले जा सकता है, जिसने भी ये कार्य किया वह भारी आपदा का शिकार हो जाता है.

मान्यता है कि संगीत सम्राट और ध्रुपद के जनक स्वामी हरिदास भजन गाया करते थे. माना जाता है कि बांके बिहारी जी ने उनकी भक्ति संगीत से प्रसन्न होकर सपने कहा कि मैं तुम्हारी साधना स्थल में ही विशाखा कुंड के पास जमीन में छिपा हूं. सपने के बाद हरिदास जी ने अपने शिष्यों की मदद से बिहारी जी को निकलवाया और मंदिर की स्थापना की. यहीं पर स्वामी जी की समाधि भी बनी है. श्रद्धालु देवकी नंदन कहते है इंसानी ज़ेहन या इंसानी यकीन को तो डगमगाया जा सकता है. उसे मजबूर किया जा सकता है किसी दास्तान पर यकीन करने के लिए, लेकिन जानवरों पर किसी का बस नहीं चलता. वो वही करते हैं जो उन्हें करना होता है. फिर आखिर क्या वजह है कि इस इलाके के तमाम जानवर भी शाम होते होते अपना ठिकाना बदल लेते हैं. उनका कहना है कि इस जंगल में भगवान कृष्ण का वास है. इसलिए हर कोई यहां कि मिट्टी को सरमाथे लगाना चाहता है. ये वो जगह है, जहां आकर विज्ञान भी रुक जाता है. बचती है तो सिर्फ भक्ती और श्रृद्धा. जिसमें सरोबार होकर कान्हा के भक्त खो जाना चाहते हैं.

निधिवन में 5000 साल पुराने पेड़ मात्र एक पेड़ नहीं बल्कि भगवान श्री कृष्ण की सखा अर्थात गोपियाँ है। जो अक्सर रात के समय रासलीला करती है। लगभग दो ढ़ाई एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की खासियत यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे तथा इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत हाते हैं। द्वापर युग में वृंदावन की सभी गोपियां श्रीकृष्ण को पति रूप में पाना चाहती थीं। जब गोपियों ने ये इच्छा श्रीकृष्ण को बताई तो भगवान ने ये कामना पूरी करने का वचन दिया। शरद पूर्णिमा की रात चंद्र अपनी 16 कलाओं के साथ दिखाई देता है, इस रात चंद्र बहुत सुंदर दिखाई देता है। इसीलिए श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात यमुना तट के पास निधिवन में गोपियों को मिलने के लिए कहा। 

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात सभी गोपियां निधिवन पहुंच गईं। उस समय निधिवन में जितनी गोपियां थीं, श्रीकृष्ण ने उतने ही रूप धारण किए और सभी गोपियों के साथ रास रचाया। यही वजह है कि शरद पूर्णिमा की रात यहां पूरी तरह से प्रवेश वर्जित रहता है। दिन में श्रद्धालु -जा सकते हैं, पर शाम होते ही निधिवन खाली करवा लिया जाता है। निधिवन के सेवायत गोस्वामी कहते हैं, ‘यह कन्हैया की माया है, उनकी अब भी रासलीला होती है. तुलसी की जो लताएं हैं, वही गोपिका बन जाती हैं और वन के अन्य पेड़ ग्वाल-बाल.’

 

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