कृष्णा जन्में, अब प्रथम पूज्य बप्पा पधारेंगे घर-घर
गणेश
चतुर्थी
यानी
वो
दिन
जब
लंबोदर
ने
जन्म
लिया
था।
यह
दिन
गणपति
की
प्रतिष्ठा
के
लिए
बेहद
शुभ
होता
है।
इस
दिन
विनायक
की
विधि
विधान
से
पूजा
कर
ली
जाए
तो
धन
संपदा,
कामयाबी
और
खुशियां,
छप्पर
फाड़
कर
बरसने
लगती
हैं।
गणेश
जी
के
पूजन
और
उनके
नाम
का
व्रत
रखने
का
विशिष्ट
दिन
है
भाद्रपद
शुक्ल
चतुर्थीं।
यानी
गणेश
चतुर्थी,
जिसे
दस
दिनों
तक
उत्सव
के
रुप
में
मनाते
है।
गणेश
चतुर्थी
के
दिन
लोग
अपने
घरों
में
गणपति
बप्पा
को
लेकर
आते
हैं,
उनकी
विधि
विधान
से
पूजा-अर्चना
करते
हैं.
10 दिन
बाद
अनंत
चतुर्दशी
के
दिन
गणेश
जी
का
विसर्जन
करते
हैं.
हालांकि
गणेश
विसर्जन
के
भी
अलग-अलग
नियम
हैं,
जिसके
तहत
सभी
लोग
10 दिनों
तक
गणपति
बप्पा
को
नहीं
रखते
हैं.
गणेश
चतुर्थी
का
उत्सव
महाराष्ट्र
समेत
पूरे
देश
में
मनाया
जाता
है,
लेकिन
मुंबई
समेत
पूरे
महाराष्ट्र
में
गणेश
चतुर्थी
का
उत्सव
लगातार
10 दिनों
तक
चलता
है.
इस
बार
चतुर्थी
तिथि
6 सितंबर
को
दोपहर
में
3 बजकर
1 मिनट
से
शुरू
हो
रही
है
और
इस
तिथि
का
समापन
7 सितंबर
को
शाम
5 बजकर
37 मिनट
पर
होगा.
ऐसे
में
उदयातिथि
की
मान्यता
के
आधार
पर
गणेश
चतुर्थी
का
शुभारंभ
7 सितंबर
शनिवार
से
होगा.
उस
दिन
गणेश
जी
की
मूर्ति
की
स्थापना
होगी
और
व्रत
रखा
जाएगा.
7 सिंतबर
को
गणेश
चतुर्थी
की
पूजा
का
शुभ
मुहूर्त
2 घंटे
31 मिनट
तक
है.
उस
दिन
आप
गणपति
बप्पा
की
पूजा
दिन
में
11 बजकर
03 मिनट
से
कर
सकते
हैं.
मुहूर्त
का
समापन
दोपहर
में
1 बजकर
34 मिनट
पर
होगा.
खास
यह
है
कि
गणेश
चतुर्थी
के
दिन
4 शुभ
योग
बन
रहे
हैं.
गणेश
चतुर्थी
को
सुबह
में
ब्रह्म
योग
है,
जो
रात
11 बजकर
17 मिनट
तक
है,
उसके
बाद
से
इन्द्र
योग
बनेगा.
इन
दो
योगों
के
अलावा
रवि
योग
सुबह
में
06ः02
बजे
से
दोपहर
12ः34
पी
एम
तक
है.
वहीं
सर्वार्थ
सिद्धि
योग
दोपहर
में
12 बजकर
34 मिनट
तक
है,
जो
अगले
दिन
8 सितंबर
को
सुबह
06 बजकर
03 मिनट
तक
है.
हालांकि
गणेश
चतुर्थी
के
दिन
भद्रा
भी
लग
रही
है.
भद्रा
सुबह
में
06 बजकर
02 मिनट
से
लग
रही
है,
जो
शाम
05 बजकर
37 मिनट
पर
खत्म
होगी.
इस
भद्रा
का
वास
पाताल
में
है.
गणेश
चतुर्थी
का
समापन
17 सितंबर
दिन
मंगलवार
को
अनंत
चतुर्दशी
को
होगा.
जो
लोग
10 दिनों
के
लिए
गणेश
जी
की
मूर्ति
रखेंगे,
वे
अनंत
चतुर्दशी
को
गणेश
जी
का
विसर्जन
करेंगे.
गणेश
जी
को
विदा
करेंगे
और
अगले
साल
फिर
आने
को
कहेंगे
सुरेश गांधी
घर में जब हो गणपति का वास तो हर मुश्किल हो जाती है आसान। अगर दिन हो गणेश चतुर्थी का, उत्सव हो गणपति की आराधना का तो बाप्पा की कृपा पाने का इससे अच्छा मौका भला और क्या हो सकता है। कहते है इस दिन विधि-विधान से पूजा कर लेने से समस्त विघ्न बाधाओं का नाश होगा। सभी गृहदोष कट जाएंगे। धन वैभव से बप्पा आपका घर आंगन भर देंगे। जी हां गणपति के 12 रूप आपके जीवन में भी अपार खुशियां ले आएंगे। क्योंकि इस बार गणेश चतुर्थी के दिन 4 शुभ योग बन रहे हैं. इस दिन ब्रह्म योग, इन्द्र योग, रवि योग व सर्वार्थ सिद्धि योग एक साथ पड़ रहे है। इसी दिन चित्रा नक्षत्र का भी संयोग है। इस दौरान महाराष्ट्र में गणेश उत्सव की अलग रौनक देखने को मिलती हैं। चारों ओर जगह-जगह गणेश पंडालों में गणपति जी की विशाल प्रतिमा स्थापित की जाती है। गणेश उत्सव के दौरान लोग अपने घरों और पंडालों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और 10 दिनों तक उनकी पूजा करते हैं. हिंदू धर्म में भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है. गणेश चतुर्थी का पर्व 07 सितंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा. इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले भगवान गणेश को प्रणाम करें. और तीन बार आचमन करें। स्नान आदि से निवृत होने के बाद मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई कर लें। इसके बाद गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें और उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं। पूजा के दौरान गणेश जी को वस्त्र, जनेऊ, चंदन, दूर्वा, अक्षत, धूप, दीप, पीले पुष्प और फल आदि अर्पित करें।
भगवान गणेश की पूजा के दौरान उन्हें 21 दूर्वा जरूर चढ़ाएं। ऐसा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। दूर्वा अर्पित करते समय ’श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि’ मंत्र का जाप करें। पूजा के अंत में समस्त सदस्यों के साथ मिलकर गणेश जी की आरती करें और प्रसाद बांटें। गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का आविर्भाव हुआ था। गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, 10 दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है। इस दिन गणेश विसर्जन के नाम से भी जाना जाता है। अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालुजन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं। शिवपुराणमें भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है। जबकि गणेशपुराण के मुताबिक गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गणपति यानी ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकोंके स्वामी। भाद्रपद मास की शुक्ल चतु्र्थी को अत्यंत शुभ माना जाता है। भविष्यपुराण अनुसार इस दिन अत्यंत फलकारी शिवा व्रत करना चाहिए। इस दिन से दस दिनों का गणेशमहोत्सव शुरु होता है।
चतुर्थी तिथि के प्रारम्भ
और अन्त समय के
आधार पर चन्द्र-दर्शन
लगातार दो दिनों के
लिये वर्जित है। सम्पूर्ण चतुर्थी
तिथि के दौरान चन्द्र
दर्शन निषेध है। चतुर्थी तिथि
के चन्द्रास्त के पूर्व समाप्त
होने के बाद भी,
चतुर्थी तिथि में उदय
हुए चन्द्रमा के दर्शन चन्द्रास्त
तक वर्जित हैं। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख
भी जाए तो निम्न
मंत्र का पाठ अवश्य
कर लेना चाहिए - सिहः
प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा
रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः।। फिर वस्त्र से
ढका हुआ कलश, दक्षिणा
तथा गणेशजी की प्रतिमा आचार्य
को समर्पित करके गणेशजी के
विसर्जन का विधान उत्तम
माना गया है।
पूजा विधि
नारद पुराण के
अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल
चतुर्थी को विनायक व्रत
करना चाहिए। यह व्रत ’इस
व्रत में आवाहन, प्रतिष्ठापन,
आसन समर्पण, दीप दर्शन आदि
द्वारा गणेश पूजन करना
चाहिए। इस व्रत में
प्रातः काल उठकर सोने,
चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के
गणेश जी की प्रतिमा
स्थापित कर षोडशोपचार विधि
से उनका पूजन करते
हैं। पूजन के पश्चात्
नीची नजर से चंद्रमा
को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को
दक्षिणा देते हैं। इस
पूजा में गणपति को
21 लड्डुओं का भोग लगाने
का विधान है। पूजा में
दूर्वा अवश्य शामिल करें। गणेश जी के
विभिन्न नामों से उनकी आराधना
करनी चाहिए। नैवेद्य के रूप में
पांच लड्डू रखें। आज के दिन
लाल रंग के वस्त्र
पहनना अति शुभ होता
है। गणपति का पूजन शुद्ध
आसन पर बैठकर अपना
मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा
की तरफ करके करें।
पंचामृत से श्री गणेश
को स्नान कराएं तत्पश्चात केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर
उनकी पूजा और आरती
करें। उनको मोदक के
लड्डू अर्पित करें। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष
प्रिय हैं। श्री गणेश
जी का श्री स्वरूप
ईशाण कोण में स्थापित
करें और उनका श्री
मुख पश्चिम की ओर रहे।
संध्या के समय गणेश
चतुर्थी की कथा, गणेश
पुराण, गणेश चालीसा, गणेश
स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेश जी की
आरती, संकटनाशन गणेश स्तोत्र का
पाठ करें। अंत में गणेश
मंत्र ऊं गणेशाय नमः
अथवा ऊं गं गणपतये
नमः का अपनी श्रद्धा
के अनुसार जाप करें।
मोदक और भगवान गणेश
भगवान गणेश की मूर्तियों
एवं चित्रों में उनके साथ
उनका वाहन और उनका
प्रिय भोजन मोदक जरूर
होता है। शास्त्रों के
मुताबिक भगवान गणेश को प्रसन्न
करने के लिए सबसे
आसान तरीका है मोदक का
भोग। गणेश जी का
मोदक प्रिय होना भी उनकी
बुद्धिमानी का परिचय है।
भगवान गणेश को मोदक
इसलिए भी पसंद हो
सकता है क्योंकि मोदक
प्रसन्नता प्रदान करने वाला मिष्टान
है। मोदक के शब्दों
पर गौर करें तो
मोदक का अर्थ होता
है हर्ष यानी खुशी।
भगवान गणेश को शास्त्रों
में मंगलकारी एवं सदैव प्रसन्न
रहने वाला देवता कहा
गया है। अर्थात् वह
कभी किसी चिंता में
नहीं पड़ते। गणपत्यथर्वशीर्ष में लिखा है,
यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।
इसका अर्थ है जो
व्यक्ति गणेश जी को
मोदक अर्पित करके प्रसन्न करता
है उसे गणपति मनोवांछित
फल प्रदान करते हैं।
जरुरी सावधानियां
भगवान गणेश अपने भक्तों
के समस्त विघ्नों को दूर करने
के लिए विघ्नों के
मार्ग में विकट स्वरूप
धारण करके खड़े हो
जाते हैं। इसलिए अपने
घर, दुकान, फैक्ट्री आदि के मुख्य
द्वार के ऊपर तथा
ठीक उसकी पीठ पर
अंदर की ओर गणेश
जी का स्वरूप अथवा
चित्रपट जरूर लगाएं। ऐसा
करने से गणेश जी
कभी भी आपके घर,
दुकान अथवा फैक्टरी की
दहलीज पार नहीं करेंगे
तथा सदैव सुख-समृद्धि
बनी रहेगी। कोई भी नकारात्मक
शक्ति घर में प्रवेश
नहीं कर पाएगी। अपने
दोनों हाथ जोड़कर स्थापना
स्थल के समीप बैठकर
किसी धर्म ग्रंथ का
पाठ रोजाना करेंगे तो शुभ फल
मिलेगा। सच्चे मन और शुद्ध
भाव से गणपति की
पूजा करने से बुद्धि,
स्वास्थ्य और संपत्ति मिलती
है। गणेशजी की मूर्ति के
सामने रोजाना सुबह शाम दीपक
जलाएं और पूजा करें।
गणेशजी जितने दिन आपके घर
में रहें उतने दिन
उन्हें कम से कम
3 वक्त का भोग लगाना
चाहिए। गणेशजी की स्थापना के
बाद बप्पा जितने दिन आपके घर
में रहें आपको उतने
दिन सात्विक भोजन करना चाहिए।
गणेश चतुर्थी के दिन पूजा
करें और व्रत करें
और भगवान को मोदक का
भोग जरूर लगाएं। गणेशजी
की मूर्ति सही दिशा देखकर
स्थापित करें और रोजाना
उस स्थान को गंगाजल से
पवित्र करें। गणेशजी की पूजा में
साफ-सफाई और पवित्रता
का खास ध्यान रखें।
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी
वैसे तो गणेश
पूजा का जोश संपूर्ण
भारत में नजर आता
है। लेकिन महाराष्ट्र का गणेशोत्सव दुनियाभर
में मशहूर है। यहां इसे
विनायक चौथ के नाम
से भी जाना जाता
है। गणेश चतुर्थी से
शुरु हुआ यह गणेश
महोत्सव 10 दिनों तक चलता है।
इन दस दिनों में
महाराष्ट्र का यह आध्यात्मिक
रंग देखने लायक होता है।
अंतिम दिन विभिन्न घाटों
और सागर तट पर
गणेश मूर्ति का विसर्जन किया
जाता है।
गनपति के 16 नाम
गनपति के प्रतिदिन 16 नामों
का श्रद्धापूर्वक उच्चारण या स्मरण साधक
को धन-धान्य से
परिपूर्ण करता है। उनके
ये 16 नाम हैं- सुमुख,
एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र, विघ्नराज, द्वैमातुर, गणाधिप, हेरम्ब और गजानन। बुधवार
को भगवान गणपति पर मोदक (लड्डू)
चढ़ाने के बाद इस
मंत्र का जाप करने
से व्यक्ति ऋणमुक्त होकर धन-धान्य
से परिपूर्ण हो जाता है।
मूर्ति स्थापना की सही जगह
कहते है भगवान
गणेश की पूजा करने
से व्यक्ति को बुद्धि, सफलता
और सौभाग्य प्राप्त करने में मदद
मिलती है. इसके अलावा,
कोई भी नया काम,
परीक्षा, शादी या नई
नौकरी शुरू करते समय,
भगवान गणेश के भक्त
उनसे प्रार्थना करते हैं, उनका
आशीर्वाद लेते हैं और
उनसे सफलता का आशीर्वाद मांगते
हैं. ज्योतिष शास्त्र में बताया गया
है कि हर एक
देवी-देवता की अपनी दिशा
है जहां वो विराजित
होते हैं। ठीक ऐसे
ही उत्तर-पूर्वी दिशा में भगवान
गणेश का स्थान मौजूद
है। यानी कि पूर्व
और उत्तर दिशा के बीच
में गणेश जी विराजमान
हैं। ऐसे में इस
दिशा में गणेश जी
की प्रतिमा स्थापित करना अत्यधिक शुभ
है। उत्तर-पूर्व दिशा के मध्य
स्थान के अलावा पूर्णतः
पूर्व दिशा में भी
गणेश जी की प्रतिमा
रख सकते हैं। ऐसी
मान्यता है कि गणेश
प्रतिमा को जब पूर्व
दिशा में रखते हैं
तो उनका मुख पश्चिम
की ओर हो जाता
है और पश्चिम दिशा
में मां लक्ष्मी का
स्थान है। ऐसे में
गणेश जी के साथ
मां लक्ष्मी भी कृपा बरसाती
हैं। खास यह है
कि गणेश जी को
किसी ऊंचे स्थान पर
ही बैठाएं। यानी कि आप
घर में जिस जगह
पर गणेश जी की
प्रतिमा स्थापित करेंगे वह स्थान जमीन
से ऊंचा होना चाहिए।
नीचे स्थान पर गणपति न
बैठाएं।
पौराणिक मान्यताएं
शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिताके
चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह
वर्णन है कि भगवान
शिव एक बार सृष्टि
के सौंदर्य का अवलोकन करने
हिमालयों में भूतगणों के
साथ विहार करने चले गए।
पार्वती जी स्नान करने
के लिए तैयार हो
गईं। सोचा कि कोई
भीतर न आ जाए,
इसलिए उन्होंने अपने शरीर के
लेपन से एक प्रतिमा
बनाई। उसमें प्राणप्रतिष्ठा करके उसका नाम
गणेश रखा। उसे आदेश
दिया कि किसी को
भी अंदर आने से
रोक दे। इसके बाद
स्नान करने चली गई।
वह बालक द्वार पर
पहरा देने लगा। इतने
में शिव जी आ
पहुंचे। वह अंदर जाने
लगे। बालक ने उनको
अंदर जाने से रोका।
इस पर शिवगणों ने
बालक से भयंकर युद्ध
किया परंतु संग्राम में उसे कोई
पराजित नहीं कर सका।
अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित
होकर अपने त्रिशूल से
उस बालक का सर
काट दिया। स्नान से लौटकर पार्वती
ने इस दृश्य को
देखा। जब मां पार्वती
ने पुत्र गणेश जी का
कटा हुआ सिर देखा
तो अत्यंत क्रोधित हो गई। शिव
जी को सारा वृत्तांत
सुनाकर कहा, आपने यह
क्या कर डाला? यह
तो हमारा पुत्र है। तब ब्रह्मा,
विष्णु सहित सभी देवताओं
ने उनकी स्तुति कर
उनको शांत किया। दुख
में व्याकुल महामृत्युंजय रुद्र उनके अनुरोध को
स्वीकारते हुए भूतगणों को
बुलाकर आदेश दिया कि
कोई भी प्राणी उत्तर
दिशा में सिर रखकर
सोता हो, तो उसका
सिर काटकर ले आओ। भूतगण
उसका सिर काटकर ले
आए। शिव जी ने
उस बालक के धड़
पर हाथी का सिर
चिपकाकर उसमें प्राण फूंक दिए। माता
पार्वती ने हर्षातिरेक से
उस गजमुख बालक को अपने
हृदय से लगा लिया।
देवताओं में अग्रणी होने
का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस
बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित
करके अग्रपूज्य होने का वरदान
दिया। भगवान शंकर ने बालक
से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न
नाश करने में तेरा
नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य
बनकर मेरे समस्त गणों
का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास
के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को
चंद्रमा के उदित होने
पर उत्पन्न हुआ है। इस
तिथि में व्रत करने
वाले के सभी विघ्नों
का नाश हो जाएगा
और उसे सब सिद्धियां
प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की
रात्रि में चंद्रोदय के
समय गणेश तुम्हारी पूजा
करने के पश्चात् व्रती
चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण
को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन
करे। वर्षपर्यन्तश्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने
वाले की मनोकामना अवश्य
पूर्ण होती है।
पूजा सामग्री
गणेश
मूर्ति
लकड़ी
की चौकी
केले
के पौधे
पीला
और लाल रंग का
कपड़ा
नए
वस्त्र
जनेऊ
चंदन
फूल
अक्षत्
पान
का पत्ता
सुपारी
मौसमी
फल
धूप
दीप
गंगाजल
कपूर
सिंदूर
कलश
मोदक
केला
आरती की किताब
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