Monday, 9 December 2024

महाकुंभ : लेटे हनुमान के दर्शन बिना अधूरा है संगम स्नान

महाकुंभ : लेटे हनुमान के दर्शन बिना अधूरा है संगम स्नान 

अपने आराध्य और भक्तों के लिए हनुमान लला ने सिर्फ कई अवतार लिए बल्कि कई रुप भी धारण किए। पौराणिक काल से बजरंगबली का नाम चमत्कारों से जुड़ा है। चाहे फिर सीने में बैठे राम-जानकी के दर्शन करवाना हो या फिर लक्ष्मणजी को जीवित करने के लिए संजीवनी बूटी लाना हो। सिर्फ पौराणिक काल बल्कि कलियुग भी हनुमानजी के चमत्कारों से सजा है। हमारे देश में जगह-जगह पर हनुमानजी के प्राचीन चमत्कारिक मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है धर्म एवं आस्था की नगरी प्रयागराज के संगम किनारे, जहां लेटे हुए विराजते हैं हनुमान जी, जिनके दर्शन मात्र से भक्तों के संवर जाते हैं सात जन्म। एक चुटकी सिंदूर से मिल जाता है मनचाहा आशीर्वाद, हो जाते है गणपति, शनि और शिव प्रसन्न। यहां आने वाले भक्तों का बजरंगबली का ये रूप देखकर उनकी शक्ति के आगे सिर बरबस ही झुक जाता है। खास यह है कि हनुमानजी की यह प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी और 20 फीट लंबी है. माना जाता है कि यह धरातल से कम से कम 6 या 7 फीट नीचे है. इन्हें बड़े हनुमानजी, किले वाले हनुमानजी, लेटे हनुमानजी और बांध वाले हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि इनके दाएं पैर के नीचे अहिरावण दबा हुआ है. उनके दाएं हाथ में राम-लक्ष्मण और बाएं हाथ में गदा शोभित है. बजरंगबली यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस मंदिर में मन्नत मांगता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है. भक्त यहां पर मन्नत पूरी होने के बाद हर मंगलवार और शनिवार को झंडा निशान चढ़ने के लिए जुलूस की शक्ल में गाजे-बाजे के साथ आते हैं। कहते है संगम स्नान के बाद यहां दर्शन नहीं किए तो स्नान अधूरा माना जाता है 

सुरेश गांधी

जी हां, धर्म, आस्था एवं शिक्षा की नगरी प्रयागराज में संगम किनारे शक्ति के देवता हनुमान जी का एक अनूठा मन्दिर है। यह पूरी दुनिया मे इकलौता मन्दिर है, जहां बजरंगबलि की लेटी हुई प्रतिमा को पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि संगम का पूरा पुण्य हनुमान जी के इस दर्शन के बाद ही पूरा होता है। यहां स्थापित हनुमान की अनूठी प्रतिमा को प्रयाग का कोतवाल होने का दर्जा भी हासिल है। कहते है लंका विजय के बाद भगवान राम जब संगम स्नान कर भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लेने प्रयाग आए तो उनके सबसे प्रिय भक्त हनुमान इसी जगह पर शारीरिक कष्ट से पीड़ित होकर मूर्छित हो गए। पवन पुत्र को मरणासन्न देख मां जानकी ने उन्हें अपनी सुहाग के प्रतिक सिन्दूर से नई जिंदगी दी और हमेशा स्वस्थ एवं आरोअग्य रहने का आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि जो भी इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान पर आयेंगा उस को संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा। मां जानकी द्वारा सिन्दूर से जीवन देने की वजह से ही बजरंग बली को सिन्दूर चढाये जाने की यहां परम्परा है।  

कहते है जो भक्त नियमित बजरंगबलि को सवा पाव लड्डू, तेल सिंदूर चढ़ाते है उन्हें मिल जाता है रक्षा कवच, डाक्टर-इंजिनियर, गीत-संगीत कलाकार से लेकर परीक्षा में उर्त्तीण होने का वरदान। हर मंगलवार और शनिवार को हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं का लगा रहता है तांता। पूरी आन-बान-शान से स्थापित मूर्ति को देख भक्तों के मन में सवाल उठ खड़ा होता है कि भला संकट मोचन का यह कैसा रुप। यही वजह है कि बजरंगबली का मंदिर अपनी विशालता और उंचाई के लिए तो जाना ही जाता है, साथ अपनी चमत्कारी और मान्यताओं के चलते देश-विदेश के भक्तों को अपनी ओर खीचता है। यहां आने वाले भक्तों की अधूरी इच्छा तो पूरी होती ही है हनुमान जी के बारे में करीब से दर्शन का मौका मिलता है। मंदिर में हनुमान जी की पूजा नियत समय पर प्रतिदिन आयोजित होती है। पट खुलने के साथ ही आरती सुबह साढ़े 5 बजे घण्ट-घडियाल नगाड़ों और हनुमान चालीसा के साथ होती है जबकि संध्या आरती रात नौ बजे सम्पन्न होती है।  मौसम के अनुसार आरती के समय में आमूलचूल परिवर्तन भी हो जाता है। दिन में 12 से 3 बजे तक मंदिर का कपाट बंद रहता है। 

आरती के दौरान पूरा मंदिर परिसर हनुमान चालीसा से गूंज उठता है। हनुमान जी के प्रति श्रद्धा से ओत-प्रोत भक्त जमकर जयकारे लगाते हैं। वहीं मंगलवार और शनिवार को तो मंदिर दर्शनार्थियों से पट जाता है। इस दिन शहर के अलावा दूर-दूर से दर्शनार्थी दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। माहौल पूरी तरह से हनुमानमय हो जाता है। कोई हाथ में हनुमान चालीसा की किताब लेकर उसका वाचन करता है तो कुछ लोग मंडली में ढोल-मजीरे के साथ सस्वर सुन्दरकांड का पाठ करते नजर आते हैं। बहुत से भक्त साथ में सिन्दूर और तिल का तेल भी हनुमान जी को चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं। परंपराओं की मानें तो कहा जाता है कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती है। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि ग्रह के क्रोध से बचाते हैं अथवा जिन लोगों की कुंडलियों में शनि गलत स्थान पर स्तिथ होता है, वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं। हनुमान जी की इस प्रतिमा के बारे मे कहा जाता है कि 1400 में जब भारत में औरंगजेब का शासन काल था तब उसने इस प्रतिमा को यहां से हटाने का प्रयास किया था। करीब 100 सैनिकों को इस प्रतिमा को यहां स्तिथ किले के पास के मन्दिर से हटाने के काम मे लगा दिया था। कई दिनों तक प्रयास करने के बाद भी प्रतिमा टस से मस हो सकी। सैनिक गंभीर बिमारी से ग्रस्त हो गये। मजबूरी में औरंगजेब को प्रतिमा को वहीं छोड़ दिया। संगम आने वाल हर एक श्रद्धालु यहां सिंदूर चढ़ाने और हनुमान जी के दर्शन को जरुर पहुंचता है। 

बजरंग बली के लेटे हुए मन्दिर मे पूजा-अर्चना के लिए यूं तो हर रोज ही देश के कोने-कोने से हजारों भक्त आते हैं लेकिन मंदिर के महंत के अनुसार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ साथ पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार बल्लब भाई पटेल और चन्द्र शेखर आजाद जैसे तमाम विभूतियों ने अपने सिर को यहां झुकाया, पूजन किया और अपने लिए और अपने देश के लिए मनोकामन मांगी। कहा जाता है कि यहां मांगी गई मनोकामना अक्सर पूरी होती है। आरोग्य अन्य कामनाओं के पूरा होने पर हर मंगलवार और शनिवार को यहां मन्नत पूरी होने का झंडा निशान चढ़ने के लिए लोग जुलूस की शक्ल मे गाजे-बाजे के साथ आते हैं। मन्दिर में कदम रखते ही श्रद्धालुओं को अजीब सी सुखद अनुभूति होती है। भक्तों का मानना है कि ऐसे प्रतिमा पूरे विश्व मे कहीं मौजूद नहीं है। इलाहाबाद के कुंभ मेले में सभी शाही स्नान पूरे होने के बाद जब देश और दुनिया भर से आये श्रद्धालु वापस लौटते हैं तो वह बड़े हनुमान जी के मंदिर में जाना नहीं भूलते। क्योंकि मान्यता है कि संगम तट पर लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन के बिना संगम स्नान का पुण्य नहीं मिलता जिन्हें नगर कोतवाल भी कहा जाता है। इस मंदिर में विराजमान बजरंगबलि सारे आभूषण धारण किये हैं। बगल में गदा भी रखी हैं। जनेऊ भी पहने हैं। रामजी के परम भक्तों में हनुमान जी पहले ऐसे सेवक हैं जो देवताओं के साथ विराजते हैं। भोले इतने हैं कि उन्हें खुद की खबर नहीं होती। हर साल गंगा मां उन्हें नहलाने के लिए स्वयं चलकर आती है। लेटे हंनुमान जी लोकप्रियता के शिखर पर है। सिर्फ लड्डू खाते हैं और वह भी बेसन के। आप इलाहाबाद आएं और लेटे हंनुमान जी के दर्शन करें तो पछताते रहेंगे। ये वह देवता है जिनकी धमक पूरी दनिया में सुनाई देती है। अमेरिकी राष्टपति बराक ओबामा अपनी जेब में बजरंगबली की फोटो लेकर चलते है। कहते है वर्ष 2014 में जिस वक्त लोग रक्षाबंधन मनाने में जुटे हुए थे, उसी दौरान उफनाती हुईं लहरें बंधवा के लेटे हुए बजरंगबली को स्नान कराने पहुंच गईं। यह अद्भुत नजारा देखकर वहां मौजूद भक्तों ने गंगा और बजरंगबली के जयकारे लगाए। भक्तों ने मां से रौद्र रूप धारण करने की कामना की। पुजारियों ने शंख बजाए। लहरें उफान पर थीं और पूरा मंदिर परिसर पानी में डूब गया। मंदिर के सामने तक नावें चलने लगीं थी। 

मंदिर को अपने किले में लेना चाहता था अकबर

बादशाह अकबर कभी इस मंदिर को अपने किले में लेना चाहता था, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सका था. दरअसल, बात 1582 की है. तब प्रयागराज में बादशाह अकबर किला बनाना चाहता था. बंगाल, अवध, मगध सहित पूर्वी भारत में अक्सर होने वाले विद्रोह पर सशक्त दबिश रखने की गरज से प्रयाग सबसे सटीक जगह थी, जहां किला बनाकर सेना की पलटन रखी जा सकती थी. किला चूंकि संगम तट पर था, लिहाजा अकसर गंगा-यमुना के मनमाने कटाव की वजह से संगम की जगह बदलती रहती थी. लिहाज़ा नक्शे के मुताबिक निर्माण नहीं हो पा रहा था. इतिहास बताता है कि फिर अकबर ने संगम पर यमुना किनारे की ऊंची भूमि और लेटे हनुमानजी के स्थान को भी किले के घेरे में लेने की योजना बनाई, तब संन्यासियों ने इसका विरोध किया. तब बादशाह ने प्रस्ताव दिया कि लेटे हनुमानजी को गंगाजी के पास शिफ्ट कर दिया जाए. अकबर के विशेषज्ञों ने पूरा जोर लगा लिया, सब तिकड़म भिड़ा ली लेकिन लेटे हनुमानजी टस से मस नहीं हुए. जब सब थक हार गए तो अकबर ने भी हनुमानजी के आगे हाथ खड़े कर किले की दीवार पीछे ही बनाई.

मंदिर को अब मिल रहा भव्य एवं दिव्य रुप 

महाकुंभ 2025 के महाआयोजन को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रयागराज को सजाने-संवारने में जुटे है। सीएम योगी की मंशा के अनुरूप सभी अफसर महाकुंभ को ऐतिहासिक बनाने में जुटे हैं. तमाम तैयारियों के बीच सीएम योगी ने संगम तट की शोभा और प्रयागराज के कोतवाल माने जाने वाले बड़े हनुमान मंदिर के सौंदर्यीकरण के साथ ही कॉरिडोर बनाने का आदेश दिया है। निर्माण कार्य अतिम दौर में है। करीब 700 वर्ष पुराने इस मंदिर को भव्य रूप देने का इससे पहले किसी के मन में विचार नहीं आया. पहली बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर ध्यान दिया और अब उनकी पहल रंग ला रही है. मंदिर के गर्भगृह को भी बड़ा जा रहा है। इसी के साथ परिक्रमा पथ, दुकानें, पार्किंग, प्रवेश द्वार और रैन बसेरा हवन कुंड आदि बनाए जा रहे हैं. महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को पहली बार संगम स्नान के बाद बड़े हनुमान जी का मंदिर अभूतपूर्व ढंग से अपनी ओर आकर्षित करेगा.

पौराणिक मान्यताएं

मंदिर कम से कम 700 वर्ष पुराना है। कहते है कि कन्नौज के राजा के कोई संतान नहीं थी। उनके गुरु ने उपाय के रूप में बताया, ‘हनुमानजी की ऐसी प्रतिका निर्माण करवाइए जो राम लक्ष्मण को नाग पाश से छुड़ाने के लिए पाताल में गए थे। हनुमानजी का यह विग्रह विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाया जाना चाहिए।जब कन्नौज के राजा ने ऐसा ही किया और वह विंध्याचल से हनुमानजी की प्रतिमा नाव से लेकर आए। तभी अचानक से नाव टूट गई और यह प्रतिका जलमग्न हो गई। राजा को यह देखकर बेहद दुख हुआ और वह अपने राज्य वापस लौट गए। इस घटना के कई वर्षों बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो वहां धूनी जमाने का प्रयास कर रहे राम भक्त बाबा बालगिरी महाराज को यह प्रतिमा मिली। फिर उसके बाद वहां के राजा द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया।

दक्षिणाभिमुखी है प्रतिमा

कहा जाता है कि हनुमान जी इस प्रतिमा के पीछे उनके पुनर्जन्म की कहानी जुड़ी हुई है. जानकारी के अनुसार जब लंका जीतने के बाद बजरंग बलि अपार कष्ट से पीड़ित होकर मरणा सन्न अवस्था मे पहुंच गए थे, तब मां जानकी ने इसी जगह पर उन्हें अपना सिन्दूर देकर नया जीवन और हमेशा आरोअग्य और चिरायु रहने का आशीर्वाद दिया था. इसके साथ ही मां जानकी उन्हें आर्शीवाद दते हए कहा, जो भी इस त्रिवेणी तट पर संगम स्नान पर आयेंगा उस को संगम स्नान का असली फल तभी मिलेगा जब वह हनुमान जी के दर्शन करेगा. मां जानकी के सिंदूर दिए जाने के बाद से ही इस मंदिर में आने वाले भक्त बजरिंग बली को सिंदूर दान करते हैं. इसे बहुत ही शुभ माना जाता है. मान्यता है कि गंगा का पानी, भगवान हनुमान जी का स्पर्श करता है और उसके बाद गंगा का पानी उतर जाता है

ये हनुमान जी का सिद्ध मंदिर है. इस मूर्ति के दाहिने हाथ में गदा है। इससे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य आदि छह विकारों के चूर्ण-विचूर्ण करने का भाव लिया जाता है। मूर्ति के बाएं कंधे पर राम-लक्ष्मण हैं, जिससे हृदय में उनकी दृढ़ धारणा करने का भाव लिया जाता है। मूर्ति के दोनों नेत्र विशेष रूप से खुले हुए हैं, इससे जाग्रत होने और अधोगामी विचारों प्रवृत्तियों से दूर रहने का भाव लिया जाता है। दाएं पैर के पास उनके पुत्र मकर ध्वज की मूर्ति है, जिन्हें अधोपाताल लोक का रक्षक बताया गया है। मकर ध्वज के दर्शन एवं धारणा से अधोगामी विचारों से रक्षा होती है। बड़े हनुमान जी का बायां पैर उठा हुआ है, इससे अधोलोक से ऊर्ध्व लोक में जाने और अधोगामी विचारों के शमन अथवा दमन की प्रेरणा प्राप्त होती है।

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