निजीकरण के विरोध में बनारस के सभी बिजली उपकेंद्रों के कर्मचारियों ने काली पट्टी बांधकर किया विरोध
आज भी
काली
पट्टी
बांधकर
करेंगे
विरोध,
शाम
को
हरोगी
सभा
बिजली का
निजीकरण
कतई
बर्दाश्त
नहीं
होगा
आरएफपी डॉक्यूमेंट
से
बड़े
घोटाले
की
आशंका
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। बिजली के निजीकरण के विरोध में मंगलवार को भी बनारस के सभी उपकेंद्रों के कर्मचारियों ने काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज कराया। इस दौरान संघर्ष समिति के लोगों ने कहा कि उनका यह अभियान मांग पूरी होने तक जारी रहेगा। बुधवार को भी काली पट्टी बांधकर कार्य का बहिष्कार करेंगे। इसके बाद सायंकाल विरोध सभा होगा। उनका कहना है कि बिजली का निजीकरण कतई बर्दाश्त नहीं होगा। निजीकरण हेतु जारी किए गए आरएफपी डॉक्यूमेंट से बड़े घोटाले की आशंका है। संघर्ष समिति के साथ आमजनमानस को बताना होगा, हजारों करोड़ के उपभोक्ताओं के सिक्योरिटी डिपॉजिट और बकाये की राशि का क्या हुआ?
संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी
अंकुर पांडेय ने बताया कि
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र के आवाहन
पर बिजली के निजीकरण के
विरोध में सभी विधुत
उपकेंद्रों आदि पर काली
पट्टी बांधने का अभियान आज
भी जारी रहा। 15 जनवरी
को भी पूरे दिन
बिजली कर्मी काली पट्टी बांधकर
काम करने और भोजनावकाश
या कार्यालय समय के उपरान्त
सभी जनपदों और परियोजनाओं पर
विरोध सभाएं करने का निर्णय
लिया है, जिसके तारतम्य
में बनारस में भी भिखारीपुर
स्थित हनुमानजी मन्दिर पर शाम 5 बजे
से विरोध सभा होगी। जिसमें
बनारस के तमाम कर्मचारी
और अभियंता उपस्थित होकर निजीकरण के
विरोध में अपना आक्रोश
व्यक्त करेंगे। उन्होंने कहा कि बिजली
का निजीकरण कतई बर्दाश्त नही
होगा क्योंकि ये बार-बार
ऊर्जा प्रबन्धन समझौता करने के बाद
मुकर जाता है और
बिजलिकर्मियो के साथ आम
जनमानस के साथ भी
छलावा कर रहे है।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने
बताया कि पूरे प्रदेश
के करोड़ो उपभोक्ताओं के लगभग 2000 करोड़
से ज्यादा पैसा सेक्युरिटी के
रूप में जमा है
जबकि अकेले पूर्वांचल विधुत वितरण निगम के पास
लगभग 500 करोड़ से ज्यादा
पैसा सेक्यूरिटी के रूप में
जमा है। लाखों करोड़ों
का विधुत उपकेंद्रों की जमीन, मशीनरी,
कार्यालय, लाइन आदि का
एसेट है। साथ ही
लगभग 40 हजार करोड़ रुपये
का उपभोक्तओं पर बकाया है,
जो आगरा की टोरेंट
पावर की तरह वसूलकर
अपना जेब गर्म करेंगी।
ऊर्जा प्रबन्धन इन निजी कम्पनियों
को 1 रुपये के लीज यानी
कौड़ियों के भाव इसको
बेचने पर आमादा है,
जो इस पूरे प्रदेश
की जनता के साथ
धोखा है। क्योंकि ये
निजीकरण हेतु पावर कार्पोरेशन
प्रबंधन द्वारा जारी बिडर के
चयन के आर एफ
पी डॉक्यूमेंट को पढ़ने पर
साफ हो जाता है
की बिजली के निजीकरण को
लेकर बड़े घोटाले की
तैयारी है।
उन्होंने कहा कि निजीकरण
हेतु समय सीमा पर
बहुत स्ट्रिक्ट रहने की बात
बार बार लिखी गई
है जिससे यह स्पष्ट है
कि पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन
का उद्देश्य सुधार नहीं अपितु कैसे
भी जल्दी से जल्दी निजीकरण
करना है। बिजली व्यवस्था
में सुधार का पूरे आर
एफ पी डॉक्यूमेंट में
एक बार भी उल्लेख
नहीं किया गया है।
संघर्ष समिति ने कहा कि
पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन विगत दो माह
से कह रहा है
कि कोई निजीकरण नहीं
किया जा रहा है।
सुधार हेतु केवल
निजी क्षेत्र की भागीदारी का
निर्णय है किन्तु आर
एफ पी डॉक्यूमेंट में
साफ लिखा है कि
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम एवं पूर्वांचल
विद्युत वितरण निगम का पीपीपी
मॉडल पर निजीकरण किया
जाना है। जिसमें निजी
कम्पनी की बहुसंख्यक इक्विटी
और प्रबंधन नियंत्रण होगा। यह साफ तौर
पर 42 जनपदों की बिजली व्यवस्था
का पूरी तरह निजीकरण
है।
संघर्ष समिति ने कहा कि
बिडर का चयन क्वालिटी
एंड कॉस्ट बेस्ड सिलेक्शन के आधार पर
किया जा रहा है
जिसमें चयन का अधिकार
लगभग प्रबंधन के पास होता
है ।ऐसा लगता है
प्रबंधन ने पहले से
ही नाम तय कर
रखा है और टेंडर
एक औपचारिकता मात्र है। संघर्ष समिति
ने कहा कि पी
पी पी मॉडल पर
दिल्ली और उड़ीसा में
बिजली वितरण का निजीकरण किया
गया जो प्रयोग विफल
साबित हुआ है। उड़ीसा
में 1999 में बिजली का
निजीकरण किया गया था
और निजी कंपनी रिलायंस
का लाइसेंस पूरी तरह विफल
रहने के बाद 2015 में
रद्द किया गया 2020 में
फिर टाटा पावर को
उड़ीसा की विद्युत वितरण
का काम सोपा गया
है और आए दिन
कर्मचारियों का उत्पीड़न हो
रहा है । यह
सब जानकारी उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों
को अच्छी तरह से और
वह किसी झांसे में
आनेवाले नहीं है।
संघर्ष
समिति ने कहा कि
ऊर्जा जैसे अति महत्वपूर्ण
क्षेत्र में निजीकरण की
जिद करके निजीकरण थोपना
किसी भी प्रकार प्रदेश
के और पावर सेक्टर
के हित में नहीं
है। यदि जबरिया निजीकरण
थोपा गया तो इसके
इतने भयानक दुष्परिणाम होंगे जिसकी प्रबंधन में बैठे हुए
आईएएस अधिकारियों को कोई कल्पना
नहीं है। आम जनता
के और बिजली कर्मचारियों
के हित में संघर्ष
समिति निजीकरण वापस होने तक
अपना संघर्ष जारी रखेगी।
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