Saturday, 8 February 2025

बिहार में भी गूंजेगा, ‘मोदी की गारंटी’ व ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा

बिहार में भी गूंजेगा, ‘मोदी की गारंटीबटेंगे तो कटेंगेका नारा 

दिल्ली में बीजेपी की दमदार एंट्री हो चुकी है. 27 साल का वनवास समाप्त करते हुए भाजपा ने दिल्ली में भगवा लहरा दिया हैआम आदमी ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल के मुगालते को भी खत्म कर दिया कि उनके जीवनकाल में भाजपा को कभी दिल्ली की सत्ता नसीब नहीं होगी। जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने सटीक प्रतिक्रिया दी, और लड़ों आपस में। राष्ट्रीय स्तर पर इंडि गठबंधन के सदस्य कांग्रेस और आप हरियाणा के बाद दिल्ली में एक-दुसरे के लिए कब्र खोदते रहे हैं। उसी का परिणाम है कि दिल्ली वालों ने आम आदमी पार्टी (आप) को ऐसे नकारा कि पार्टी के नंबर-1 नेता अरविंद केजरीवाल, नंबर-2 नेता मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज तक चुनाव हार गएया यूं कहे इससे सिर्फ आप की कुर्सी गयी, कांग्रेस ने भी दो फीसदी ज्यादा वोट लेने के बावजूद तीन चुनाव में शून्य पर आउट होने की हैट्रिक बनायी है। हो जो भी सच तो यही है कि दिल्ली में भाजपा को मिली प्रचंड जीत के पीछे पीएम मोदी की गारंटी, आयकर छूट और वेतन आयोग का असर  सीएम योगी की बटेंगे तो कटेंगे के नारा, बड़ी वजह है। हालांकि इसमें अरविन्द केजरीवाल की झूठ उनके अनर्गल आरोपों के अलावा शीश महल शराबकरांड से हुई धूमिल छबि तड़का लगाने का काम किया है। मतलब साफ है बीजेपी उस दिल्ल्ी को जीत ली है, जो उसे पिछले ढाई दशक से चिढ़ा रही थी। कहा जा सकता है इस जीत से भाजपा के लिए सिर्फ मोदी ब्रांड मजबूत हुआ है, बल्कि आगामी महीनों में होने वाले बिहार के चुनाव में भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त भी मिलेगी। जबकि इंडि गठबंधन के नेतृत्व की क्षमता को ऐसा करंट लगा है, जिसके आईसीयू से निकलने में नाकों चने चबाने पड़ेंगे। कहा जा सकता है मोदी की गारंटी, बटेंगे तो कटेंगे का शोर अब बिहार में भी सुनाई देगा  

सुरेश गांधी

फिरहाल, महाराष्ट्र हरियाणा के बाद भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी प्रचंड बहुमत से विजय का सिलसिला जारी रखा। दिल्ली की जीत इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि 27 साल से सत्ता का सूखा खत्म करने में पार्टी सिर्फ सफल रही,, बल्कि आप के कई महारथियों धूल चटा दी है. आप के मुखिया अरविन्द केजरीवाल के हर नहले पर पीएम के नेतृत्व में भाजपा ने दहला चलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मसलन, केजरीवाल ने कहा, हम हारे तो मुफ्त बिजली पानी बंद हो जायेगा, तो भाजपा बोली- सभी फ्री योजनाएं चलती रहेगी। केजरीवाल ने कहा, महिलाओं को 2100 देंगे, तो भाजपा ने कहा हम 2500 देंगे। मतलब साफ है भाजपा ने जनता के मन से यह डर हटा दिया कि उसके सत्ता में आने से सब्सिडी वाली योजनाएं बंद होंगी, बल्कि यह भी संदेश दिया ि कवह कुछ और भी बढ़-चढ़कर देंगी, साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करेगी। दिल्ली के अंदर और बाहर 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के प्रोजेक्ट भाजपा ने खूब गिनाएं। दुसरी ओर 10 साल की एंटी इनकंबेंसी से जूझ रही आप के पास पुराने वादों के अलावा कुछ नया नहीं था। चूकि महिलाओं को पैसे सहित कुछ वादे पिछले चुनाव के अधुरे थे, तो इस बार फार्म भराने के बावजूद जनता ने एतबार नहीं किया। हाल यह रहा कि अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, अवध ओझा सहित कद्दावर नेता हार गए. जबकि भाजपा की जीत में एम फैक्टर- महिला, मध्यम वर्ग और मोदी गारंटी योगी का कटेंगे तो बटेंगे का नारा अहम रोल रहा। हालांकि कालकाजी सीट पर लगातार पिछड़ने के बाद भी आतिशी चुनाव जीत गई. परिणाम यह है कि भाजपा 48 सीटों के सासथ दिल्ली में बहुमत की सरकार बनायेंगी, जबकि आप 22 सीटों पर ही सिमट गयी।

मतलब साफ है दिल्ली में प्रचंड जीत का श्रेय सिर्फ और सिर्फ मोदी की गारंटी, योगी की बटेंगे तो कटेंगे, के नारे को जाता है। और सबसे बड़ी वजह केजरीवाल का दिल्लीवासियों की उपेक्षा रही। या यूं कहे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार रहते लोगों को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा तो वो दिल्ली की टूटी-फूटी सड़कें और गलियां है। दिल्ली की सड़कों यानी मुहल्ले की गलियां गैस और पानी की पाइप लाइन बिछाने से खोद दी गईं और उन्हें फिर सही नहीं किया गया। बारिश के दिनों में लोगों को इन टूटी गलियों से निकलना मुश्किल हो जाता था। इसके साथ ही दिल्ली की सड़कों और नुक्कड़ों में कूढ़ों का ढेर भी जमा रहता है। नगर निगम की गाड़ियां हर रोज घरों से कूड़ा नहीं लेती थी। इस कारण दिल्ली की घरेलू महिलाएं केजरीवाल से खासा नाराज दिख रहीं थी। आम आदमी पार्टी की सरकार में लोग सप्लाई वाले पानी की खराब व्यवस्था से भी नाराज दिखे। घरों में समय पर सप्लाई वाला पानी नहीं आता था। टाइम बेटाइम पानी आता भी था तो वह पीने और कपड़े धोने के लायक भी नहीं होता था। दिल्ली सरकार के सप्लाई वाले पानी से घरेलू औरतें काफी नाराज थीं। गर्मी के दिनों में पानी के टैंकर के लिए मारामारी रहती थी। लोग घंटों टैंकर के इंतजार में खड़े रहते थे। आम आदमी पार्टी की हार का प्रमुख कारण पानी की समस्या भी रही है। राजधानी दिल्ली में पॉल्यूशन की समस्या सर्दियों शुरु होते ही बढ़ जाती है। इस समस्या से आम आदमी से लेकर खास आदमी तक खासा परेशान होता है। केजरीवाल सरकार की तरफ से दिल्ली के पॉल्यूशन के लिए कुछ खास इंतजाम नहीं किए गए। केजरीवाल सरकार ने इस समस्या के लिए हमेशा केंद्र को जिम्मेदार ठहरा और अपनी जवाबदेही से हमेशा बचते रहे।  

दिल्ली सरकार में मुख्यमंत्री रहते अरविंद केजरीवाल किसी भी सरकारी काम के पूरा होने पर सीधे तौर पर उप राज्यपाल को दोषी ठहराते थे। इसके लिए वह उप राज्यपाल को पत्र लिखकर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते थे। अरविंद केजरीवाल की हर किसी मुद्दे पर उपराज्यपाल से तू तू मैं मैं होती थी। उप राज्यपाल के साथ ही अरविंद केजरीवाल पीएम मोदी की भी जमकर आलोचना करते थे। पीएम मोदी और केंद्र सरकार के कामों को अरविंद केजरीवाल ने कभी नहीं सराहा। दिल्ली में केजरीवाल के हार का ये भी बड़ा कारण बना है। तो दूसरी तरफ दिल्ली चुनाव में बिहार समेत पूर्वांचल के वोटरों का दम दिखा. बिहार के रहने वाले कई उम्मीदवारों ने भी जीत दर्ज की है. दिल्ली की कुल 70 सीटों में 20 से अधिक सीटों पर बिहार समेत पूर्वांचल के वोटरों का दबदबा रहा है. जिसके कारण करीब दो दर्जन सीटों पर पूर्वांचल के वोटरों ने अपनी ताकत दिखाकर चुनाव में जीत-हार तय किया.चुनाव दिल्ली का हो रहा था लेकिन केंद्र बिंदु बिहार समेत पूर्वांचल बना हुआ था. वजह साफ थी कि सत्ता की कमान किसके हाथों में होगी, यह तय करने में पूर्वांचल निवासी दिल्ली के वोटरों की बड़ी भूमिका होगी. लगभग दो दर्जन सीटों पर जीत-हार तय करने में इन वोटरों की भूमिका रही. बता दें कि कई सीटों पर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी जबकि कई सीटों पर भाजपा को इन वोटरों ने साथ दिया. बीजेपी के साथ ये वोटर अधिक दिखे, जिसका असर चुनाव परिणाम में साफ दिखा है. 

वैसे भी बीजेपी उस राज्य में तब तक लगी रहती है कि जब तक की उसे जीत मिल जाए. कई राज्यों में उसका उदाहरण देखने को मिला है. हार की समीक्षा, फिर नई ताकत के साथ चुनाव में जुट जाना, ये बीजेपी की कामयाबी का मंत्र है. अब तो दिल्ली भी जीत ली, वो दिल्ली जो बीजेपी को पिछले करीब ढ़ाई दशक से चिढ़ा रही थी. साल 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की लहर उठी, राज्य-दर-राज्य कमल खिलता गया. इस बीच 2015 में दिल्ली का विधानसभा चुनाव हुआ और अरविंद केजरीवाल की आंधी के आगे भाजपा कहीं टिक नहीं पाई. 70 में से 67 सीटों पर झाड़ू चल गई, बीजेपी के लिए ये बड़ी हार थी. क्योंकि ठीक एक साल पहले यानी 2015 में पार्टी को इसी दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. 2015 में आप को दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिली थी. इस जीत से केजरीवाल का कद इतना बढ़ गया था कि वो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का विस्तार करने लगे. वहीं, केजरीवाल की ये कामयाबी सीधे-सीधे पीएम मोदी के लिए एक चुनौती थी, क्योंकि बीजपी का विजय रथ दिल्ली में आकर थम गया था. साल 2015 में देश के कई राज्यों में चुनाव हुए और बीजेपी को शानदार जीत मिली.   

साल 2018 में बीजेपी की देश के 15 राज्यों में पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी. लेकिन दिल्ली में बीजेपी जमीन पर पकड़ नहीं बना सकी थी. पीएम मोदी की अगुवाई में 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर बीजेपी को बंपर जीत मिली, 303 सीटों पर कमल खिला. पीएम मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी. क्योंकि 2014 के मुकाबले 2019 में बीजेपी को ज्यादा सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में भी दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर बीजेपी की जीत हुई. लगा कि अब बीजेपी के लिए दिल्ली की राह थोड़ी आसान होगी, क्योंकि पीएम मोदी बंपर जीत के साथ दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे, लेकिन एक कसक थी कि दिल्ली में आखिर जिस बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिलते हैं, वो विधानसभा चुनाव में कोई करिश्मा क्यों नहीं कर पाती है

मजबूत रणनीति के साथ 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उतरी, सामने फिर अरविंद केजरीवाल थे. बीजेपी ने कोई बडा चेहरा नहीं दिया, क्योंकि पीएम मोदी के चेहरे पर राज्य-दर-राज्य कमल खिल रहा था. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कुछ नहीं बदला, पीएम मोदी का विजय रथ एक बार फिर दिल्ली में रुक गया. अरविंद के आगे बीजेपी की रणनीति पूरी तरह से फेल हो गई. एक मोर्चे पर केजरीवाल थे, तो दूसरा मोर्चा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभाले हुए थे. इस चुनाव में बीजेपी बुरी तरह से हारी. आप को 70 में से 62 सीटों पर बंपर जीत मिली. केजरीवाल के लिए ये जितनी बड़ी जीत थी, बीजेपी के लिए उतनी बड़ी हार. खुद पीएम मोदी के लिए एक झटका था कि आखिर कब जाकर दिल्ली में बीजेपी का सूखा खत्म होगा. क्योंकि आखिरी बार दिल्ली में साल 1993-1998 में बीजेपी की सरकार थी. 2020 में प्रचंड जीत के साथ केजरीवाल पीएम मोदी को सीधी चुनौती देने तैयारी में जुटे. गुजरात, गोवा, हिमाचल, उत्तराखंड और पंजाब में अरविंद केजरीवाल चुनावी ताल ठोकने लगे, सामने फिर बीजेपी थी

इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब रही. केजरीवाल का कद लगातार बढ़ता जा रहा था, राष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी और अरविंद केजरीवाल आमने-सामने नजर आने लगे. क्योंकि लगातार तीसरी बाद दिल्ली की कुर्सी पर केजरीवाल काबिज हो चुके थे. साल 2015 और 2020 में दिल्ली में आप की जीत ने बीजेपी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया था कि आखिर पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी दिल्ली फतह क्यों नहीं कर पा रही है? ओडिशा में इसी तरह से बीजेपी को जीत मिली. पश्चिम बंगाल में भी लगातार बढ़ता जनाधार एक उदाहरण है, इसके अलावा दक्षिण भारत के कई राज्यों में भी बीजेपी अपनी मौजूदगी चुनाव-दर-चुनाव बढ़ा रही है. हालांकि, दक्षिण भारत के कई राज्यों में बीजेपी ने शून्य से सफर की शुरुआत की है, और धीरे-धीरे कामयाबी की सीढ़ी चढ़ रही है. इस कामयाबी का सबसे बड़ा श्रेय पीएम मोदी को जाता है, क्योंकि वो देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा हैं. लेकिन कहा जाता था, कि जिस पीएम मोदी ने पूरे देश में भगवा लहरा दिया. वो दिल्ली में केजरीवाल की तोड़ क्यों नहीं निकाल पाते. खुद पीएम मोदी को भी ये अहसास होता होगा कि आखिर कहां कसर रह जाती है. क्योंकि विधानसभा चुनाव में दिल्ली की जनता केजरीवाल को गले लगा लेती थी और बीजेपी का ठुकरा देती. लेकिन उदाहरण ये भी दिया जाता है कि दिलवालों की दिल्ली है, और जब दिल्लीवाले जिसे जिताते हैं तो दिल खोलकर जिताते हैं. साल 2015 और 2020 में दिल खोलकर झाड़ू का साथ दिया, और अब दिल खोलकर बीजेपी की झोली भर दी है. करीब 27 साल के बाद दिल्ली की

सत्ता पर बीजेपी की वापसी हुई है।

मतलब साफ है इस जीत का सेहरा पीएम मोदी के ही सिर सजा है। इधर, उत्तर प्रदेश के मिल्कीपुर उपचुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की है. बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान 60 हजार से अधिक वोटों से विजयी हुए हैं. भला क्यों नहीं, ये सीट सीएम योगी की प्रतिष्ठा से जुड़ा था। जीत के बाद योगी ने कहा कि ये नतीजे झूठ और लूट की राजनीति पर जनता का स्पष्ट संकेत हैं. योगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों से चल रहे सेवा, सुरक्षा, सुशासन और लोक कल्याणकारी कार्यों की सराहना करते हुए कहा, बिहार भी जीतेंगे। केजरीवाल और अखिलेश ने जो गंदी राजनीति शुरू की थी, उसका अंत हो गया है। केजरीवाल सभी मॉडलों में धराशायी हो गए हैं. अब यह तय है कि केजरीवाल तिहाड़ जाएंगे। वह सीएम बनना चाहते थे, लेकिन अब वह विधायक भी नहीं रहेंगे. हाल यह था कि केजरीवाल के अनर्गल आरोप और झूठ से उनके समर्थक

भी नाराज हो गए थे। कई बार इसके चलते ही उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी है. उनकी छवि एक ऐसे नेता की बनती चली गई जिसकी बात पर कोई भरोसा नहीं होता
हद
तो तब हो गई जब उन्होंने हरियाणा सरकार पर जानबूझकर जहरीला पानी भेजने का आरोप लगाते हुए कहा कि हरियाणा सरकार दिल्ली में नरसंहार करना चाहती है. जिससे दिल्ली में अफरातफरी मच जाए. गनीमत रही कि दिल्ली जल बोर्ड के इंजीनियरों ने हरियाणा का पानी बॉर्डर पर ही रोक लिया इसके कारण हजारों की जान बच गई. शीशमहल से भी उनकी छवि को बहुत धक्का लगा। क्योंकि अरविंद केजरीवाल राजनीति में आने से पहले कहा था कि वो वीवीआईपी कल्चर को खत्म करेंगे. गाड़ी, बंगला और सुरक्षा लेने की बात से भी उन्होंने इनकार किया था. पर सत्ता मिलने के बाद उन्होंने केवल लग्जरी गाड़ियां लीं बल्कि केंद्र से जेड प्लस सुरक्षा मिलने के बावजूद पंजाब सरकार की टॉप सिक्युरिटी भी उन्होंने ली. पर मुख्यमंत्री होने के नाते उन्होंने जो अपने लिए उन्होंने जो एक्स्ट्रा लग्जुरियस आवास बनावाया उससे उनकी छवि काफी डेंट हुई. सीएजी रिपोर्ट में भी सीएम आवास पर हुए खर्च पर सवाल उठाया गया. दिल्ली सरकार पर सीएजी की कई रिपोर्ट को विधानसभा में रखने का आरोप लगाया. हाईकोर्ट ने भी दिल्ली सरकार की इसके लिए निंदा की. खास यह रहा कि योगी के नारे से उन्होंने सीख नहीं ली, कांग्रेस और आप बंटें इसलिए कटे। बता दें, मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र चुनावों के दौरान बंटे तो कटे का नारा दिया था. हालांकि उनका नारा बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचार के संदर्भ में भारत के हिंदुओं को एक बने रहने के लिए था. पर इससे सीख लेकर बहुत से दूसरे लोग भी एक हो गए. पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक साथ नहीं हो सके. जबकि दोनों ही पार्टियों ने अलग लड़ने का नतीजा हरियाणा विधानसभा चुनावों में दिख चुका था.

हरियाणा में कांग्रेस बहुत कम मार्जिन से सरकार बनाने से चूक गई. इसके बावजूद दिल्ली में आप और कांग्रेस ने बंटेंगे तो कटेंगे नारे से सीख नहीं लिया. इसके अलावा महिलाओं के 2100 रुपये देने की शुरूआत भी केजरीवाल नहीं कर पाएं। देखा जाएं झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के लिए विधानसभा चुनावों में एक जैसे मुद्दे थे. पर अरविंद केजरीवाल दिल्ली में अपनी पार्टी को जीत नहीं दिला सके. झारखंड में झामूमो की जीत का कारण महिलाओं को हर महीने वाली एक निश्चित रकम मिलने वाली योजना को माना गया. दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल पिछले एक साल से इस योजना को लागू करना चाहते थे पर कर नहीं सके. आम लोगों में यह संदेश गया कि जब अरविंद केजरीवाल इस बार नहीं कर सके तो अगली बार सीएम बनने के बाद कैसे कर लेंगे. दिल्ली सरकार ने महिला को हर महीने निश्चित आर्थिक मदद वाली योजना को एक महीने पहले भी लागू कर दिया होता तो शायद ये हाल नहीं हुआ होता. इसके अलावा दिल्ली में फ्री बिजली की शुरूआत करके ही अरविंद केजरीवाल ने लगातार जीत पर जीत दर्ज किया. पर मूलभूत सुविधाओं के अभाव के चलते जनता त्रस्त हो गई थी. सबसे बड़ा मुद्दा था साफ पीने की पानी की सप्लाई का. गरमियों में लोग पानी के लिए त्राहि त्राहि कर रहे थे. सरकार के ऊपर टैंकर माफिया हावी था. दिल्ली सरकार ने टैंकर माफिया के सामने इस तरह घुटने टेक दिए थे. अरविंद केजरीवाल ने 24 घंटे साफ पानी सप्लाई का वादा किया था. पर यहां तो गंदा पानी भी कुछ घंटे नहीं मिल रहा था. इसके साथ ही पूरी दिल्ली में सफाई व्यवस्था कोलेप्स हो चुकी थी. चूंकि एमसीडी पर भी आम आदमी पार्टी का ही राज है, इसलिए पार्टी के पास कोई बहाना नहीं बचता था. इस तरह धीरे-धीरे लोगों का आम आदम.पार्टी पर से भरोसा उठ गया.

कोर्ट के जिन आदेशों के चलते अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था वो अभी भी उनके साथ थे. पार्टी ने आतिशी को खड़ाऊ सीएम बना दिया. जनता यह बात भली भांति समझ रही थी कि पार्टी जीत भी जाती है तो अरविंद केजरीवाल सीएम नहीं बन सकेंगे. और अगर सीएम बन भी गए तो कुछ काम नहीं कर पाएंगे. दिल्ली की समस्याएं जस की तस ही रह जाएंगी. अगर आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल की जगह किसी दूसरे को सीएम कैंडिडेट बनाया होता तो हो सकता था कि तस्वीर कुछ और होती. बता दें कि बीजेपी पिछले 27 सालों से दिल्ली की सत्ता से बाहर है. अंतिम बार बीजेपी की मुख्यमंत्री सुषमा स्वराज रही थी. वह केवल 52 दिन हीं गद्दी पर रहीं थीं. जहां तक इस प्रचंड जीत के बाद नए सीएम का सवाल है तो बिहार चुनाव को देखते हुए भाजपा मनोज तिवारी को सीएम बना सकती है. तिवारी को पूर्वांचल का बड़ा चेहरा बताया जाता है. वह दिल्ली प्रदेश की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. दो बार से सांसद भी हैं. पूर्वांचल वोट को बंटने से बचाने में इनकी खास भूमिका रही है. इसके अलावा दिल्ली के रोहिणी विधानसभा से बीजेपी प्रत्याशी और विधायक विजेंदर गुप्ता एक बार फिर से इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. विजेंदर गुप्ता की गिनती दिल्ली में धाकड़ नेता के रूप में होती है. आम आदमी पार्टी के खिलाफ लगातार विपक्ष की भूमिका उन्होंने बखूबी निभाई है. गुप्ता की पकड़ पार्टी के कैडर और संगठन में भी मजबूत बताई जाती है. बीजेपी उन पर भी विश्वास कर सकती है. दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने इस चुनाव में काफी मेहनत की. उनका नाम भी दिल्ली बीजेपी के बड़े नामों में शामिल है. इस जीत में भी उनका योगदान अहम माना जा रहा है। ऐसे में अगर पार्टी उनको भी सीएम का चेहरा बना सकती है. नई दिल्ली से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे प्रवेश वर्मा लगातार आगे चल रहे हैं। अगर वे चुनाव जीत जाते हैं तो बीजेपी उनके नाम पर भी विचार कर सकती है। प्रवेश वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा भी दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। प्रवेश वर्मा दिल्ली से सांसद भी रह चुके हैं। दुष्यंत कुमार गौतम को बीजेपी मुख्यमंत्री बना सकती है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वह दलित समाज से आते हैं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं। बीजेपी आलाकमान भी उन पर भरोसा करता है। वह बीजेपी के नेशनल जरनल सेक्रेटरी भी हैं। दुष्यंत आम तौर शांत स्वभाव के माने जाते हैं। दुष्यंत कुमार गौतम को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी दलित समाज को बड़ा संदेश दे सकती है।

 

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