एआई 171 हादसा : “सिस्टम नहीं बदला, तो हादसे रूटीन बन जाएंगे“
12 जून 2025, दोपहर 1ः38 बजे। अहमदाबाद के मेघानी नगर की गर्म दोपहरी अचानक एक जलते हुए धातु के पहाड़ की चीत्कार से कांप उठी। एयर इंडिया की लंदन जा रही फ्लाइट एआई171, बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर, टेकऑफ के चंद मिनट बाद ही ज़मीन से सिर्फ 825 फीट ऊपर जाकर गिर पड़ी। 232 यात्रियों और 10 क्रू मेंबर्स के साथ एक भरा-पूरा विमान लाशों में बदल गया। मगर क्या ये महज एक तकनीकी विफलता थी? या एक और मानवीय लापरवाही, जो अब “जांच की प्रतीक्षा में“ इतिहास के पन्नों में दबा दी जाएगी? यह हादसा किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक संपूर्ण ऑपरेशन सिस्टम की असफलता की तस्वीर है। जब दुनिया में तकनीक 6जी और एआई पर पहुंच चुकी है, तब हमारे एयरपोर्ट पर अभी भी थ्रस्ट कन्फ़िगरेशन और फ्लैप्स की चूक क्यों हो रही है? क्या हर बार हादसा होने के बाद ही “संभव कारणों की सूची” बनाई जाएगी? या हम जिम्मेदारी और सुधार की ओर बढ़ेंगे? क्योंकि ये हादसा सिर्फ एक फ्लाइट का नहीं था. एआई 171 में बैठे लोग सिर्फ यात्री नहीं थे, वो 242 सपने थे, कहानियां थीं, परिवार थे। और जब एक विमान गिरता है, तो सिर्फ लोहे की चादरें नहीं टूटतीं, भरोसे भी चूर हो जाते हैं। “जब तक यह देश विमानन को केवल यात्रा और आंकड़े समझता रहेगा, हादसे आंकड़े नहीं, ज़िंदगियां निगलते रहेंगे।“
सुरेश गांधी
अहमदाबाद में 12 जून बुधवार दोपहर 12ः47 पर जब एआई171 उड़ान भरने को तैयार थी, तब किसी को अंदाज़ा नहीं था कि चंद मिनटों में यह उड़ान इतिहास की सबसे दर्दनाक त्रासदियों में बदल जाएगी। 43° सी तापमान, फुल लोडेड बोइंग 787 ड्रीमलाइनर, और 10 क्रू व 232 यात्री, लेकिन टेकऑफ के 5 मिनट बाद ही, विमान महज़ 825 फीट की ऊंचाई पर रह गया और मेघानी नगर की बस्तियों पर आ गिरा। अब सवाल है : किसकी गलती थी? तकनीक की या इंसान की? जबकि गति : सिर्फ 174 नॉट्स (787 के लिए न्यूनतम), ऊंचाईः केवल 825 फीट. लैंडिंग गियर ऊपर नहीं हुआ, मेडे कॉल रिकॉर्ड हुई, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.
मतलब साफ है या तो पायलट भूल गए, या इमरजेंसी के कारण जानबूझकर ऊपर नहीं किया। इन तीनों संकेतों से यह साफ़ झलकता है कि टेकऑफ सेटिंग, जिसमें फ्लैप्स, इंजन थ्रस्ट, रोटेशन स्पीड और गियर शामिल होते हैं, में कहीं न कहीं कॉन्फिगरेशन एरर हुई। यही त्रासदी की सबसे बड़ी संभावना मानी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, ये सभी संकेत एक कॉन्फ़िगरेशन एरर यानी टेकऑफ से पहले सेटिंग में गड़बड़ी की ओर इशारा करते हैं। बता दें, टेकऑफ के समय पायलट्स को कई चीज़ें एकदम सटीक तरीके से करनी होती हैं, फ्लैप सेटिंग : लिफ्ट पाने के लिए ज़रूरी. थ्रस्ट सेटिंग : ज़्यादा तापमान में ज़्यादा ताकत चाहिए, रोटेशन स्पीड : यदि समय से पहले नोज उठाया गया, तो विमान अस्थिर हो सकता है. गियर अप : उड़ान के तुरंत बाद गियर ऊपर न करना घातक हो सकता है. इनमें ज़रा सी चूक पूरे विमान को नीचे खींच सकती है।
फिरहाल, हादसे की प्रारंभिक जांच और उपलब्ध डेटा से जो तस्वीर उभरती है, वह चौंकाने वाली है. विमान टेकऑफ के 5 से 9 मिनट के भीतर ही 174 नॉट्स (320 किमी/घंटा) की गति पर था, जबकि इस वजन पर उसे कम से कम 200 से 250 नॉट्स चाहिए होती है। ऊँचाई मात्र 825 फीट तक पहुंच पाई। लैंडिंग गियर नीचे ही था, हालांकि अहमदाबाद उस दिन 43° की गर्मी में झुलस रहा था। गर्म हवा पतली होती है, जिससे न तो लिफ्ट बनती है, न इंजन को पूरा जोर मिलता है। ऐसी स्थिति में टेकऑफ सेटिंग्स का सटीक होना ज़रूरी होता है. छोटी-सी चूक भी घातक साबित हो सकती है।
संभावना है कि पायलट्स ने या तो फ्लैप्स की गलत सेटिंग ली, या इंजन की ताकत (थ्रस्ट) को कम (डीराटेड थ्रस्ट) रखा। अगर टेकऑफ रनवे का पूरा हिस्सा नहीं लिया गया हो (जैसे इंटरसेक्शन टेकऑफ), तो स्थिति और बिगड़ जाती है। खास यह है कि इस विमान को उड़ा रहे थे कैप्टन सुमीत सभरवाल और फर्स्ट ऑफिसर क्लाइव कुंदर. दोनों ही अनुभवी पायलट्स। फिर भी ऐसा क्यों हुआ? ये बड़ा सवाल है. विशेषज्ञ मानते हैं कि हो सकता है किसी चेतावनी (वारनिंग), एटीसी कम्युनिकेशन या इलेक्ट्रॉनिक चेकलिस्ट की जल्दबाज़ी में मानव त्रुटि हो गई हो। क्या वीआर यानी रोटेशन स्पीड का आंकलन गलत था? क्या किसी स्टॉल अलर्ट के कारण ध्यान भटका? क्या क्रू रिसोर्स मैनेजमेंट (सीआरएम) में कमी थी? क्या चेकलिस्ट फॉलो नहीं की गई? क्या गलत डेटा एफएमएस में डाला गया? क्या थकान या प्रेशर था? ऐ ऐसे सवाल है जो आज की उड़ानों में क्रू रिसोर्स मैनेजमेंट (सीआरएम) बेहद जरूरी है।
यदि कोई एक पायलट
गलती करे और दूसरा
विरोध न करे, तो
हादसा तय है। जो
भी हो, यह साफ़
है कि पायलट्स का
फोकस या तो बंटा
हुआ था या उन्हें
पूरी परफॉर्मेंस नहीं मिल रही
थी। हालांकि हादसे से पहले एक
मेडे कॉल भी की
गई थी। मतलब साफ
है पायलट्स को स्थिति की
गंभीरता का एहसास हो
गया था। लेकिन सिर्फ
5-9 मिनट में, वह कुछ
कर नहीं सके। विमान
गिर पड़ा।
दुसरा बड़ा सवाल है इंजन फेल? बर्ड स्ट्राइक? या कुछ और? जहां तक इंजन फेलियर का सवाल है तो मेडे कॉल और धीमी गति इस पर संकेत देते हैं, पर दोनों इंजन साथ फेल होना असंभव नहीं तो दुर्लभ ज़रूर है। बर्ड स्ट्राइक : अहमदाबाद एयरपोर्ट के पास यह खतरा मौजूद रहता है, लेकिन अभी तक पुष्टि नहीं हुई। तकनीकी फेलियर : अभी तक कोई साक्ष्य नहीं मिला है, जांच के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है। संभावित कारणों में मानवीय चूक/कन्फ़िगरेशन गलती 70 से 80 फीसदी, इंजन फेल या पावर लॉस 10 से 15 फीसदी, मौसम/गर्मी से प्रदर्शन में गिरावट 5 से 10 फीसदी तकनीकी खामी 2 से 3 फीसदी व आतंकी हमला/साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
यदि टेकऑफ कन्फ़िगरेशन
में गलती हुई, तो
यह केवल पायलट्स की
नहीं, बल्कि सिस्टम की असफलता है.
जहाँ चेकलिस्ट, और ट्रेनिंग को
दोहराने की बजाए, ‘रूटीन’
बना लिया गया। “यह
महज तकनीकी मामला नहीं. यह उस प्रणाली
पर सवाल है जो
अनुभव, प्रशिक्षण और सुरक्षा को
फॉर्मेलिटी मान बैठी है।“
जब तक यह देश
विमानन को केवल यात्रा
और आंकड़े समझता रहेगा, हादसे आँकड़े नहीं, ज़िंदगियां निगलते रहेंगे। हर विमान हादसे
के बाद वही सवाल
उठते हैं, “क्यों हुआ?”, “कौन जिम्मेदार?”, और
सबसे बड़ा सवाल “आखिर
कब तक?” तकनीकी प्रगति,
अंतरराष्ट्रीय मानक, और सुरक्षा प्रणालियों
के बावजूद भी भारत समेत
दुनियाभर में विमान हादसे
थम नहीं रहे। बीते
वर्षों में हुई घटनाएं
बताती हैं कि समस्या
कहीं न कहीं प्रणालीगत
और मानवीय चूक से जुड़ी
है। यह रिपोर्ट न
केवल भारत, बल्कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी विमान
सुरक्षा की मौजूदा हालत
को उजागर करती है।
दुतीसरा बड़ा सवाल है क्या हम हर उड़ान के साथ अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं? क्या सरकार और एजेंसियां सिर्फ हादसे के बाद ही जागती हैं?
अगर कनाडा में 1985 में हुआ आतंकी बमकांड अब तक नहीं भुलाया गया, तो क्या अहमदाबाद को भी हम सिर्फ आंकड़ों में गिनेंगे? फिरहाल, इस भीषण विमान हादसे ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है. इस हादसे की खबर सुनकर हर कोई स्तब्ध रह गया है. विमान में सवार यात्रियों और चालक दल के सदस्यों के परिवारों के लिए यह खबर किसी बड़े झटके से कम नहीं है. देशभर के लोग इस हादसे के बारे में सुनकर दुख और चिंता में हैं. बता दें, लंदन जा रही एयर इंडिया की एक फ्लाइट क्रैश हो गई. इस विमान में 242 लोग सवार थे, जिनमें 2 पायलट और 10 केबिन क्रू सदस्य शामिल हैं. हादसा अहमदाबाद के मेघानीनगर में हुआ है. देखा जाएं तो यह पहला मामला नहीं है जब बोइंग के विमान क्रैश हुए हों. इससे पहले कई बार बोइंग के विमान क्रैश हो चुके हैं. इससे ठीक पहले साल 2024 में साउथ कोरिया में बोइंग का विमान क्रैश हुआ था, जिसमें लगभग 180 लोगों की जान चली गई. इसमें बोइंग का 737-800 एयरक्राफ्ट शामिल था, जो 737 मैक्स का एक नया वर्जन है.वहीं पिछले साल जनवरी में एक अलग घटना में उड़ान के दौरान एक 737 मैक्स के दरवाजे का प्लग उड़ गया था. इसके अलावा, 2018 और 2019 में भी बोइंग 737 मैक्स का विमान क्रैश हुआ था, जिनमें लायन एयर फ्लाइट 610 और इथियोपियन एयरलाइंस फ्लाइट 302 शामिल थीं, जिसके कारण विमान को बोइंग के इस विमान को रोकना पड़ा था और कंपनी को 30 अरब डॉलर तक का नुकसान हुआ था. 2018 और 2019 की दुर्घटना के दौरान 189 और 157 लोगों की जान गई थी.
हालांकि अभी यह बोइंग
737- 800 से परिचालन में है. अहमदाबाद
की उड़ती मौत ने
फिर दिखा दिया कि
आसमान में उड़ान अब
महज विकास की निशानी नहीं,
बल्कि चुनौतीपूर्ण जोखिम बन चुकी है।
तकनीक, सुरक्षा और जिम्मेदारी : इन
तीनों के तालमेल के
बिना कोई भी उड़ान
“उड़ता ताबूत“ बन सकती है।
क्या हमारा आसमान अब सुरक्षित नहीं
रहा? क्या हर उड़ान
एक जुआ बन चुकी
है? विमान दुर्घटना होने के बाद
जाँच समिति तो बनती है,
पर क्या उसके सुझाव
लागू होते हैं? डीजीसीए
(नागर विमानन महानिदेशालय) की निरीक्षण प्रणाली
कितनी प्रभावशाली है? विमानन कंपनियां
सुरक्षा की बजाय मुनाफे
को तरजीह क्यों देती हैं? पायलटों
की ट्रेनिंग और कार्य घंटे
को लेकर क्या वाकई
सख्ती है? अहमदाबाद की
इस ‘उड़ती मौत’ ने
एक बार फिर देश
को सोचने पर मजबूर कर
दिया है, क्या हम
आधुनिकता की दौड़ में
सुरक्षा को भूल चुके
हैं? जब तक हादसे
नहीं होते, तब तक सुधार
क्यों नहीं होते? अब
वक्त आ गया है
कि भारत अपनी एविएशन
सुरक्षा को सिर्फ कागजों
में नहीं, रनवे और कॉकपिट
तक गंभीरता से ले।
जब आसमान टूटा ज़मीन पर…"
एक हादसा जो सिर्फ़ शरीर नहीं, सपनों और भविष्य को भी जला गया. इस त्रासदी की गहराई केवल यहां तक सीमित नहीं थी। जहां विमान गिरा, वह कोई सुनसान ज़मीन नहीं थी। वह स्थान था S.G. मेडिकल यूनिवर्सिटी के MBBS स्टूडेंट्स हॉस्टल का परिसर – एक ऐसी जगह, जहाँ भारत का भविष्य किताबों और उम्मीदों के पन्नों में रचा जा रहा था। एक ओर वे यात्री थे, जो सपनों के साथ लंदन रवाना हुए थे – नौकरी, पढ़ाई, या अपनों से मिलने की आस लेकर। दूसरी ओर वे छात्र थे, जो डॉक्टर बनने का सपना लिए MBBS के पहले, दूसरे और तीसरे वर्ष की पढ़ाई में डूबे थे। एक ही क्षण ने दोनों दिशाओं को उजाड़ दिया। करीब 180 से
अधिक लोगों की तत्काल मृत्यु की पुष्टि की जा चुकी है, जिनमें हॉस्टल में रह रहे 41 मेडिकल छात्र भी शामिल हैं। कई अब भी मलबे में दबे हैं। "अब लौटेगा तो सिर्फ़ सामान… बेटा नहीं"
घटनास्थल पर मौजूद रहे
60 वर्षीय रामस्वरूप सिंह, जो अपने बेटे
से मिलने आए थे, टूटे
शब्दों में कहते हैं
– “मैंने तो कहा था
बेटा आज छुट्टी ले
लो… लेकिन उसने कहा – पापा,
आज लैब क्लास है,
मिस नहीं कर सकता…
अब कभी मिस नहीं
करेगा, क्योंकि अब वो… है
ही नहीं। मौके पर राहत
व बचाव, लेकिन बहुत देर हो
चुकी थी. दमकल और
एनडीआरएफ की टीम ने
20 मिनट के भीतर पहुंचकर
बचाव अभियान शुरू किया। हालांकि
जिस गति से विमान
हॉस्टल भवन से टकराया,
वह किसी को भी
पल भर में लीलने
के लिए काफ़ी थी।अब
तक 198 शव बरामद किए
जा चुके हैं, जिनमें
कई की शिनाख़्त तक
संभव नहीं हो पा
रही है।
"आज किताबें नहीं खुलेंगी…"
S.G. मेडिकल यूनिवर्सिटी ने तीन दिन के शोक की घोषणा की है। हॉस्टल के बचे छात्र अभी भी सदमे में हैं। कॉरिडोर में बिखरे किताबों के पन्ने, जली हुई मेडिकल किट्स, और दीवार पर टंगी तस्वीरें – यह सब गवाही दे रही हैं कि मौत सिर्फ़ शरीर नहीं ले गई, सपने भी जलाकर चली गई। अंत में बस यही सोच कर रुक जाती है कलम “उन माओं की क्या गलती थी, जिन्होंने बच्चों को डॉक्टर बनते देखने का सपना देखा था?” “उन बेटियों की क्या कसूर था, जो पहली बार फ्लाइट में बैठी थीं?” शायद जवाब कभी न मिले… लेकिन सवाल हमेशा रहेंगे।bईश्वर सभी दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करे। और हम सभी को ये सीख दे — कि
जीवन कभी स्थायी नहीं होता, इसलिए हर दिन को आखिरी की तरह जियो… और अपनों को गले लगाओ, जब तक वो हैं।आखिर बोइंग के विमानों में क्या है खराबी?
जब बोइंग के विमान लगातार क्रैश हो रहे थे तो बोइंग 73.7 मैक्स की जांच की गई. जांच से मैन्युवरिंग कैरेक्टरिस्टिक्स ऑग्मेंटेशन सिस्टम (एमसीएएस) से जुड़ी एक समस्या सामने आई. इस सिस्टम ने मैनुअली लैंडिंग पर निर्भरता कम कर दी थी, लेकिन पायलटों को इसके बारे में ज्यादा ब्रीफिंग नहीं की गई थी. आलम ये हुआ कि 2018 और 2019 में 346 यात्री और क्रू मेंबर्स की जान चली गई. इस हादसे के बाद इस विमान का संचालन रोक दिया गया था. बाद में इसे अपडेट करके बोइंग 737-800 के नाम से परिचालन में लाया गया. खास यह है कि बोइंग का विमानय बम का गोला बनकर उड़ता है. अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश में बोइंग का 787 ड्रीमलाइनर इसका ताजा उदाहरण है. जिसकी पहले कभी क्रैश होने की कहानी नहीं रही है. ब्लैक बॉक्स मिलने के बाद अहमदाबाद हादसे का खुलासा हो सकेगा.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी आंकड़ों के अनुसार बोइंग विमान दुनिया भर में लगभग 6,000 दुर्घटनाओं और घटनाओं में शामिल रहे हैं, जिनमें से 415 घातक थीं और 9,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है. दुनियाभर में फ्लाइट वाले हजारों यात्री विमानों में से कम से कम 4000 से ज्यादा विमान बोइंग 737-800 हैं. एनवाईटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका कुछ प्रमुख .महाद्वीप हैं, जहां बोइंग विमानों का इस्तेमाल किया जाता है. 2023 में भी एक उड़ान के दौरान 737 मैक्स विमान के दरवाजे का प्लग उड़ गया था. इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि तकनीकी खामियां अभी भी बोइंग के विमानों में लगातार सामने आ रही हैं.
क्या हम सबक नहीं ले रहे?
भारत में इससे पहले भी कई भयावह विमान हादसे हो चुके हैं, जो या तो तकनीकी लापरवाही के कारण हुए या सुरक्षा तंत्र की चूक का नतीजा रहे : 1985 एयर इंडिया कनिष्क (अटलांटिक) बम विस्फोट में 329 लोग मारे गए। 1988 इंडियन एयरलाइंस 113 (अहमदाबाद) में रनवे से पहले गिरे विमान में 133 लोग मारे गए। 2010 एयर इंडिया एक्सप्रेस (मंगलौर) रनवे से फिसलकर खाई में गिरे विमान से 158 लोग मारे गए। 2020 में कोझिकोड हादसा में रनवे पर क्रैश विमान में 21 लोग मारे गए। 2021 में सेना का एमआई-17 चॉपर, सीडीएस जनरल बिपिन रावत की मृत्यु सहित तमिलनाडु के 13 लोग मारे गए। 1978 मुंबई इंडियन एयरलाइंस 213 मृत रनवे से फिसला, 1996 चर्खी दादरी, हरियाणा सऊदी व कज़ाख विमान हादसा 349 मृत हवा में टकराव, 2000 में पटना में इंडियन एयरलाइंस में 60 मृत, कारण खराब मौसम, पायलट त्रुटि, 2010 मैंगलोर एयर इंडिया एक्सप्रेस 158 मृत रनवे से फिसलना, पायलट की गलती, देखा जाएं तो भारत में हर साल औसतन 15 से अधिक एविएशन घटनाएं होती हैं।
17 जुलाई 2000 को एलायंस एयर की फ्लाइट नंबर 7412 पटना में दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. यह विमान कोलकाता से दिल्ली जा रहा था और पटना इसका स्टॉपेज था. जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने के दौरान विमान पटना के गर्दनीबाग इलाके में गिर गया था. 2021 से 2024 के बीच 62 सुरक्षा संबंधित चेतावनियां जारी की गईं, लेकिन कार्रवाई नगण्य। अधिकांश निजी व चार्टर्ड विमानों के मेंटेनेंस रिकॉर्ड अपूर्ण हैं। पायलट थकान, एयर ट्रैफिक ओवरलोड, और हवाई अड्डों की सीमित क्षमता दृ यह त्रिकोण हादसों की बड़ी वजहें हैं।
आंकड़े बताते हैं चिंता की हकीकत
आइसीएओं (अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन)
के मुताबिक, भारत में 2023 में
43 गंभीर विमानन घटनाएं हुईं। एयर इंडिया, इंडिगो,
और स्पाइसजेट जैसी प्रमुख एयरलाइनों
के खिलाफ सुरक्षा मानकों को लेकर 32 बार
नोटिस जारी हुए। डीजीसीए
की रिपोर्ट (2024)ः 73 फीसदी घटनाओं
में पायलट या तकनीकी स्टाफ
की त्रुटि प्रमुख कारण। सुरक्षा विशेषज्ञों की मानें तो
“हमारे पास आधुनिक तकनीक
है लेकिन उसे चलाने वाले
लोग या तो अंडरट्रेंड
हैं या अत्यधिक दबाव
में“। “कई बार
कंपनियां पायलट से लगातार ड्यूटी
करवा कर सुरक्षा के
साथ खिलवाड़ करती हैं।“ लोकसभा
में 2023 में दिए गए
बयान में सरकार ने
माना कि “भारत के
छोटे हवाईअड्डों पर सुरक्षा मानकों
में लगातार सुधार की जरूरत है।”
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