Tuesday, 17 June 2025

मोक्षभूमि या मस्ती का मैदान? मणिकर्णिका घाट का मौन विलाप

मोक्षभूमि या मस्ती का मैदान? मणिकर्णिका घाट का मौन विलाप 

धर्म अध्यात्म की नगरी काशी को यूं ही मोक्षदाययिनी नहीं कहा जाता, बल्कि इसके पीछे मान्यता है कि कभी ना बुझने वाली महाशमशान मणकर्णिका घाट पर औघड़ रूप में स्वयं भगवान भोलेनाथ हर क्षण विराजते हैं। और मृत्यु को प्राप्त लोगों को कान में तारक मंत्र देकर मुक्ति का मार्ग देते हैं। मणिकर्णिका घाट, वह नाम जिसे सुनकर साधक रोमांचित हो जाते हैं, और मृत्यु जिसे छूकर भी डरती है। यह कोई साधारण श्मशान नहीं, मोक्ष का वह सिंहद्वार है जहां हर क्षण आत्मा और परमात्मा के मिलन की अग्नि प्रज्वलित रहती है। परंतु आज यह मोक्षभूमि अपने ही अपवित्र होते स्वरूप पर मौन विलाप कर रही है। वो घाट जहां हर क्षणराम नाम सत्य हैकी गूंज होती थी, वहां अब शराब की बोतलों की झंकार और गांजे की धुंध दिखती है। श्रद्धा से सजी इस भूमि को अबडार्क टूरिज्मका हिस्सा बना दिया गया है, जहां विदेशी पर्यटक चिता की आग कोस्पेकटेबल शोमानकर कैमरा लहराते हैं और स्थानीय तथाकथित गाइड इसेएक्सपीरियंसबनाकर बेचते हैं

सुरेश गांधी

कहते है जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो प्रकाश की प्रथम किरण काशी की धरती पर ही पड़ी। तभी से काशी ज्ञान तथा आध्यात्म का केंद्र माना जाता है। वैसे भी काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है। मणिकर्णिका घाट की स्थापना अनादी काल में हुई है। श्रृष्टि की रचना के बाद भगवान शिव ने अपने वास के लिए इसे बसाया था और भगवान विष्णु को उन्होंने यहां धर्म कार्य के लिए भेजा था। इसकी प्रमाणिकता यह है कि महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर सैकड़ों वर्षों से चिताएं जलती रही हैं। यह आज तक नहीं बुझी है। शिव औघड़ रूप में मृत्यु को प्राप्त लोगों को कान में तारक मंत्र देकर मुक्ति का मार्ग देते हैं। मणिकर्णिका पर चिताओं की अग्नि इसी कारण हमेशा जलती रहती है। यहां मोक्ष प्राप्त करने वाला कभी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता है। 

महाश्मशान मणिकर्णिका घाट महादेव का पसंदीदा स्थल था। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती अन्नपूर्णा के रूप में भक्तों का कल्याण करते हैं। लेकिन हाल के दिनों में यह पवित्र स्थल, शराबियों, गजेड़ियों नशाखोरों का अड्डा बनता जा रहा है। घाट की सीढ़ियों पर दारू की बोतलें, गांजे की पुड़िया और फूहड़ हंसी आम हो चली हैं। घाट किनारे रातों को अय्याशी के दृश्य अब किसी रहस्य नहीं, खुले यथार्थ बन चुके हैं। स्त्रियां, विशेषकर श्रद्धालु, अब वहां जाने से कतराती हैं, क्योंकि पवित्रता की जगह अब भद्दी टिप्पणियां और नशेड़ियों की मंडली ले चुकी है। आस-पास की गलियों में नशे का कारोबार, शराब की बोतलें, गांजे के धुएं और अय्याशी के किस्से सुनाई देने लगे हैं। घाट पर वीडियो बनाने वाले, “मृत्यु की सेल्फीलेने वाले, और विदेशी पर्यटकों कोथ्रिलदिखाने वाले गाइड, सब मिलकर इस पुण्य भूमि की गरिमा को चोट पहुंचा रहे हैं। 

बता दें, पंच पल्लव आम, नीम, पीपल, बरगद और पाकड़ की लकड़ियों से चिता जलती है। ऊपर से चंदन की लकड़ी भी रखी जाती है। दुनिया का एक मात्र ऐसा स्थल है जहां मनुष्य के मृत्यु को भी मंगल माना जाता है। शव यात्रा में मंगल वाद यंत्रों को बजाया जाता है। शव यात्री श्मशान में भी नाचते हैं। मणिकर्णिका महाश्मशान बाबा का निवास स्थान है। यहां श्रृष्टि के तीनों गुण सत्व, रज और तम समाहित हैं। महादेव के प्रकट होने पर विष्णु ने अपने चक्र से चक्र पुष्कर्णी तालाब (कुंड) का निर्माण किया था। तकरीबन 4000 किलो लकड़ियां रोज तीर्थ पर जलती हैं। रंग भरी एकादशी के दूसरे दिन यहां नागा और सन्यासी चिता भष्म की होली खेलते हैं। नवरात्री के सप्तमी के दिन सैकड़ों वर्षों से महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर पूरी रात मशान नाथ बाबा के सामने नगर वधुएं डांस करती हैं। मतलब साफ है मणिकर्णिका घाट को श्मशान समझने की भूल मत कीजिए, यह सनातन धर्म की आत्मा है। यहां केवल शरीर जलता है, आत्मा को मुक्ति मिलती है। यदि इसे अय्याशी और नशे का अड्डा बनने दिया गया, तो हमारा अगला मोक्ष कौन सा होगा? क्योंकि अगर मणिकर्णिका मर गई, तो हमारे धर्म का पुनर्जन्म कौन करेगा

घाट पर ही है सतुआ बाबा का आश्रम

कहते है राजा हरीश चंद्र के समय से यहां अग्नि खरीदने की परंपरा चली रही है। डोम राजा परिवार चिता कि अग्नि को आज भी कर लेकर देता है। परिवार के सदस्यों की अलग-अलग पारी होती है। इनके अग्नि दिए बिना मुक्ति नहीं मिलती और दाह संस्कार करने वाला घाट नहीं छोड़ता। सतुआ बाबा का आश्रम घाट के पास ही है। इस पवित्र स्थली पर शिव ने वृद्ध बनकर बाबा को दर्शन दिया था। मान्यता है कि जगत गुरु आदि शंकराचार्य जब काशी आए थे तब इसी जगह उन्हें चांडाल वेशधारी महादेव ने दर्शन दिया था। शंकराचार्य ने तपस्या से पहचान लिया था कि चांडाल के कपाल से जो तेज निकल रहा है वह ब्रह्मांड भर में कही नहीं है।

शास्त्र कहां गए? धर्माचार्य मौन क्यों हैं?

इस घाट को महाकाल ने स्वयं तप से तपाया था। यहां भगवान विष्णु के चरणचिह्न हैं, मां पार्वती की करुणा, और भगवान शिव का आदेश है कि यहां मृत्यु पाने वाला सीधे मोक्ष को प्राप्त करे। परंतु आज धर्माचार्य मंचों पर ज्ञान देते हैं, पर घाटों पर जाने से परहेज़ करते हैं। शास्त्रों की व्याख्या होती है, पर धर्म की रक्षा नहीं। खासकर धर्म के ठेकेदार कहे जाने वाले लोग भी घाटों की सुध नहीं लेते। संन्यासी अब सेवा की बजाय सेल्फी में व्यस्त हैं।

प्रशासन का पर्यटन प्रेम या धर्म विमुखता?

प्रशासनिक तंत्र भी घाटों को पर्यटन स्थल की तरह देखता है, तपोभूमि की तरह नहीं। विदेशी पर्यटकों को सुविधा देने के नाम पर स्थानीय संस्कृति को गिरवी रखा जा रहा है। सीसीटीवी कैमरे तो हैं, पर नशेड़ियों की गिरफ्तारी नहीं। पुलिस चौकी है, पर नफरत और अपराध की खबर नहीं सुनती।

क्या है समाधान

1. धार्मिक अनुशासन लागू हो, मणिकर्णिका पर विशेष तीर्थ क्षेत्र कानून लागू किया जाए।

2. संन्यासी और संत आगे आएं, केवल प्रवचन नहीं, घाटों पर उपस्थिति और शुद्धिकरण अभियान चलाएं।

3. स्थानीय युवाओं को जोड़ें, “मणिकर्णिका सेवा दलजैसे समूह बनाकर युवाओं को घाट की गरिमा रक्षण में लगाएं।

4. नशे और अराजकता पर पूर्ण प्रतिबंध, पुलिस, नगर निगम और घाट सेवाओं का समन्वय हो।

5. मीडिया को आईना दिखाना होगा, मौत की थ्रिल स्टोरी बेचने वालों पर नकेल कसी जाए।

6. गंगा सेवा निधियों, मंदिर ट्रस्टों और तीर्थ पुरोहितों को संगठित रूप से कार्य करना होगा।

7. स्थानीय प्रशासन को सख्ती दिखानी होगी, खुलेआम नशा करने वालों, अश्लीलता फैलाने वालों और ठगी करने वालों पर कठोर कार्रवाई हो।

8. श्रद्धालुओं और नागरिकों को जागरूक होना होगा,घाट को केवल देखने की वस्तु नहीं, श्रद्धा और साधना की भूमि मानना होगा।

9. धार्मिक नेतृत्व मौन तोड़े, संत समाज और शास्त्रविदों को अब केवल व्याख्यान नहीं, व्यावहारिक संरक्षण की ओर कदम बढ़ाना होगा।

10. मणिकर्णिका घाट केवल चिता का धुआँ नहीं, संस्कृति की मशाल रहा है। इसे जलने दें, जगाएं।

मणिकर्णिका घाट का महत्व 

यह केवल एक श्मशान नहीं, मोक्ष भूमि है। यहां हर दिन सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार होता है। और मान्यता है कि यहां मृत्यु मात्र से आत्मा को मोक्ष मिलता है। यह स्थान कर्म, भक्ति और वैराग्य का प्रतीक रहा है।

मणिकर्णिका घाट अब आस्था की नहीं, अराजकता

की आग में जल रहा है : सतुआ बाबा

वाराणसी के प्रमुख संत और सामाजिक-धार्मिक सुधार के अग्रदूत सतुआ बाबा ने मणिकर्णिका घाट की दुर्दशा पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने हाल ही में घाट पर जाकर स्वयं निरीक्षण किया और स्थानीय प्रशासन, साधु समाज तथा आम जनता से जागने की अपील की। बाबा ने स्पष्ट शब्दों में कहा : “मणिकर्णिका घाट कोई आम श्मशान नहीं है। यह वह भूमि है जहां जीवन के मोह से मुक्त होकर आत्मा शिव की गोद में विश्राम करती है। लेकिन आज यहां चिता की अग्नि से ज़्यादा, नशे और लापरवाही की आग जल रही है। दारू, गांजा, अश्लीलता, मोबाइल कैमरों की चमक औरडेड बॉडी टूरिज्म’, ये सब मणिकर्णिका की मर्यादा के खिलाफ हैं। ये सिर्फ घाट को नहीं, हमारे धर्म और सनातन परंपरा को अपवित्र कर रहे हैं। उनका कहना है कि मणिकर्णिका को विशेष धार्मिक संरक्षण क्षेत्र घोषित किया जाए। सीसीटीवी कैमरे की निगरानी के साथ-साथ धार्मिक अनुशासन दल गठित हो। अराजक तत्वों पर त्वरित कार्रवाई हो और घाट पर श्रद्धा का वातावरण लौटाया जाए। सतुआ

बाबा ने आत्मचिंतन करते हुए कहा : अगर घाट अपवित्र हो रहा है, तो दोष केवल प्रशासन का नहीं, हम संतों का भी है। हमें अब आश्रमों, गुफाओं से निकलकर घाटों पर उतरना होगा, सिर्फ प्रवचन के लिए, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए भी। घाट पर जो हो रहा है, वह केवल एक घाट की गिरावट नहीं है, यह पूरे सनातन धर्म की आत्मा पर प्रहार है। मणिकर्णिका घाट वह स्थान है जहां चिता जलती है और आत्मा मुक्त होती है, लेकिन अब वहाँ दारू की बोतलें, गांजे की गंध, और मोबाइल से लाइव स्ट्रीमिंग दिखाई दे रही है। श्रद्धा की जगह अब अश्रद्धा ने ले ली है। पहले घाटों पर साधु बैठते थे, अबब्लॉगरबैठते हैं। पहले लोग गंगाजल लेकर आते थे, अब लोगव्लॉगबनाने आते हैं। हमने घाटों को मोक्ष का द्वार मानना छोड़ दिया, अब वे मस्ती का अड्डा बनते जा रहे हैं। बदलाव तकनीक से नहीं, दृष्टिकोण से हुआ है कृ हमने धर्म को प्रदर्शन बना दिया। समाज ने श्रद्धा खो दी, अब मृत्यु भी मनोरंजन लगती है। और हम संत, हम मौन रहे जब धर्म को बाज़ार बनाया गया। हम सिर्फ टीवी पर दिखाई दिए, जमीन पर नहीं। हमनेमणिकर्णिका शुद्धि अभियानशुरू किया है। हर सप्ताह घाट की सफाई, भजन, राम नाम संकीर्तन और श्रद्धालुओं को जागरूक करने का कार्य हो रहा है। मैंने कई वरिष्ठ संतों को पत्र भेजा है, अब या तो मोक्ष बचाओ, या मौन रहो। हम चुप नहीं बैठेंगे। उन्होंने कहा कि हर चिता से पहले चेतावनी होती है। मणिकर्णिका अब केवल मृत शरीर नहीं जला रहा, यह हमारी चेतना जला रहा है। अगर हम नहीं जगे, तो अगली चिता आस्था की होगी। लेकिन अगर संत, समाज और शासन साथ आएं, तो मोक्षभूमि फिर से पूज्य बन सकती है। सतुआ बाबा की आंखों में दर्द था, पर स्वर में साहस। काशी का यह संत अब केवल प्रवचन नहीं कर रहा, प्रतिकार कर रहा है। मणिकर्णिका घाट की रक्षा की यह लड़ाई अब अकेले किसी बाबा की नहीं, हम सबकी है।

आज भी खोजते है माता पार्वती

के कान की मणिकर्णिका

इस घाट से जुड़ी दो कथाएं काफी प्रचलित हैं। पहला भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या करते हुए अपने सुदर्शन चक्र से यहां एक कुण्ड खोदा था। उसमें तपस्या के समय आया हुआ उनका स्वेद भर गया। जब शिव वहां प्रसन्न हो कर आये तब विष्णु के कान की मणिकर्णिका उस कुंड में गिर गई थी। इस कुंड का इतिहास, पृथ्वी पर गंगा अवतरण से भी पहले का माना जाता है। दूसरी कथा के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी। देवी पार्वती इससे परेशान हुईं, शिवजी को रोके रखने हेतु अपने कान की मणिकर्णिका वहीं छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कहा। शिवजी उसे ढूंढ नहीं पाये और आज तक जिसकी भी अन्त्येष्टि इस घाट पर की जाती है, वे उससे पूछते हैं कि क्या उसने देखी है? प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। उसने राजा को अपना दास बना कर उस घाट पर अन्त्येष्टि करने आने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दे दिया था। इस घाट की विशेषता है, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है, कभी भी बुझने नहीं पाती।

चिता की भस्म से होता है महादेव का श्रृंगार

कहते है महादेव यहां की चिता की भस्म से श्रृंगार करते हैं। इसीलिए यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती है। औसतन 50 से 100 चिताएं रोज जलती हैं। दाह संस्कार के लिए केवल बनारस से ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। इसे मुक्तिधाम भी कहा जाता है। मान्यता है कि देवी पार्वती खुद मृत आत्मा को आंचल में लेती है और भगवान शंकर तारक मंत्र देकर मोक्ष प्रदान करते हैं। खास बात यह है कि इन्हीं चमत्कारों के चलते ही यह विश्व का एकमात्र श्मशान घाट है, जिसे तीर्थ स्थली कहा जाता है। दाह संस्कार 9, 5, 7, 11 मन लकड़ी से किया जाता है। एक मन में चालीस किलो होता है। विषम अंक को शुभ माना जाता है। मणिकर्णिका घाट पर अग्नि ठंडी करने के लिए 94 लिखते हैं। यह वह मुक्ति मंत्र है, जिसे शंकर खुद ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि व्यक्ति में 100 गुण हो तो वह सर्व गुण संपन्न हो जाता है। उसके अंदर 94 गुण ही होते हैं।

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