Tuesday, 1 July 2025

भोलेनाथ सुनेंगे इस बार सीधे अपने भक्तों की पुकार!

भोलेनाथ सुनेंगे इस बार सीधे अपने भक्तों की पुकार! 

14 जुलाई को सावन का पहला सोमवार हैं. जबकि 11 जुलाई से सावन महीने की शुरुआत हो रही है, जो 9 अगस्त तक चलेगा. सावन का पहला सोमवार इस बार बेहद खास है. 500 साल बाद ग्रह-नक्षत्रों का ऐसा संयोग बन रहा है जब सावन के पहले सोमवार को प्रीति, आयुष्मान, सुकर्मा, शिव, सर्वार्थ सिद्धि और शोभन योग एक साथ भक्तों पर खुशियां बरसायेंगे. ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार ये छह योग सावन के पहले सोमवार का महत्व हजारों गुना बढ़ा देते हैं. इसलिए इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होगी. पंचांग के मुताबिक, सावन के पहले सोमवार पर सुबह 10 बजे से रात 1030 बजे तक प्रीति योग रहेगा. इसके अलावा दोपहर 1218 बजे से 151 बजे तक आयुष्मान योग का संयोग रहेगा. दोपहर 133 बजे से 233 बजे तक सुकर्मा योग बन रहा है. वहीं शाम 519 बजे से रात 715 बजे तक शिव योग का संयोग रहेगा. सावन में महादेव विशेष रूप से जागृत रहते हैं और भक्तों की हर पुकार को तुरंत सुनते हैं। इस समय सृष्टि में रुद्र तत्व का अधिक प्रभाव रहता है, जिससे शिव की शक्ति सृजन, पालन और संहार तीनों में सक्रिय हो जाती है। स्कंद पुराण और शिव महापुराण में उल्लेख मिलता है कि सावन में शिव आराधना से हजार गुना अधिक फल प्राप्त होता है, क्योंकि इस समय सृष्टि की संपूर्ण शक्ति शिवमय हो जाती है। भगवान विष्णु स्वयं शिव को प्रणाम कर इस कालखंड में विश्राम करते हैं। इसलिए शिव भक्तों के लिए यह महीना अत्यंत फलदायक और मनोकामना पूर्ति का होता है 

सुरेश गांधी

सावन मास के आगमन के साथ ही सृष्टि के संचालन में बड़ा आध्यात्मिक परिवर्तन होने जा रहा है। शास्त्रों के अनुसार, इस विशेष काल में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीनों तक सृष्टि की बागडोर पूरी तरह भगवान शिव के हाथों में जाती है। यह वही समय है जबअब होगी सृष्टि की कमान महादेव के हाथों में, विष्णु करेंगे विश्राम“, यह वाक्य शास्त्रों में जीवंत हो उठता है। हिंदू शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि सृष्टि का संचालन त्रिदेवों के सामंजस्य से होता है। भगवान ब्रह्मा सृष्टि के रचनाकार, भगवान विष्णु पालनकर्ता और भगवान शिव संहार तथा पुनर्निर्माण के अधिपति माने जाते हैं। लेकिन सावन का महीना वह कालखंड है, जब सृष्टि की बागडोर पूरी तरह महादेव के हाथों में जाती है। 

पुराणों के अनुसार, सावन में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संपूर्ण भार भगवान शिव संभालते हैं। इसीलिए इस महीने को शिव का मास कहा जाता है। इस दौरान महादेव ही पालनकर्ता, संहारकर्ता और सृजनकर्ता बन जाते हैं। इस दौरान चातुर्मास का प्रारंभ होता है, जो लगभग चार महीने तक चलता है। इस अवधि में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि के संचालन का भार महादेव संभालते हैं। यह काल सृष्टि के संचालन, पालन और न्याय की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। स्कंद पुराण, शिव महापुराण और पद्म पुराण में उल्लेख है कि सावन के दौरान भगवान शिव साक्षात सृष्टि के नियंता बन जाते हैं। इस काल में महादेव की पूजा से मनोकामनाएं तत्काल फलित होती हैं।

खास यह है कि इस बार सावन के पहले सोमवार को शनि और गुरु का स्वराशि में रहना, साथ में प्रीति योग, आयुष्मान योग, सुकर्मा योग, शिव योग, शोभन योग, सर्वार्थ सिद्धि योग का महा संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, ऐसा संयोग लगभग 500 वर्षों बाद आया है। ज्योतिषाचार्यो की मानें तो सावन का यह सोमवार शिवभक्तों के लिए विशेष सिद्धि का अवसर है। इस दिन शिव को जलाभिषेक करने से अनेक जन्मों के पापों का क्षय होता है। साथ ही

विष्णु विश्राम काल के कारण सृष्टि का सारा नियंत्रण महादेव के अधीन हो जाता है। यह वही काल है, जब सृष्टि की हर क्रिया सीधे शिव संकल्प से प्रभावित होती है। भगवान विष्णु के विश्राम काल में शिव अपने करुणामय स्वरूप में विशेष रूप से भक्तों की पुकार सुनते हैं। इसलिए सावन में की गई हर प्रार्थना सीधे महादेव के दरबार में सुनी जाती है। सावन हमें यह भी सिखाता है कि जब पालनकर्ता (विष्णु) विश्राम में होते हैं, तब भी सृष्टि रुकती नहीं। सृष्टि की गति तब शिव के हाथों में जाती है, जो सृजन, संरक्षण और संहार तीनों के परम अधिपति हैं। यह समय हमें बताता है कि जीवन में परिवर्तन अनिवार्य है और हर परिवर्तन शिव के संकल्प से होता है। ऐसे में सावन में प्रतिदिन गंगाजल और पंचामृत से शिव का जलाभिषेक करें। महामृत्युंजय मंत्र का जाप अवश्य करें :-

त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।

                                                उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात।।

सोमवार व्रत रखें, शिव चालीसा, रुद्राष्टक और शिव पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवायका जाप करें। बिल्वपत्र, आक, धतूरा, भस्म और शमी पत्र महादेव को अर्पित करें। गंगाजल से अभिषेक करने से पापों का क्षय होता है। रुद्राभिषेक : जीवन में स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। व्रत और उपवास : भगवान शिव प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। महामृत्युंजय जाप : सभी प्रकार की बाधाएं, रोग, और भय समाप्त होते हैं। यह समय केवल धार्मिक कर्मकांड का नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और शिव से एकात्म होने का सर्वोत्तम अवसर है। महादेव स्वयं सृष्टि की कमान अपने हाथ में लेकर हमें यह सिखाते हैं कि परिवर्तन और पुनर्निर्माण ही जीवन का सत्य है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस बार सावन में शनि अपनी स्वराशि कुंभ में और गुरु अपनी स्वराशि मीन में स्थित हैं। दोनों ही ग्रह अपनी उच्च ऊर्जा में होते हैं, और इस प्रकार का संयोग पांच शताब्दियों के बाद बना है। शनिः न्याय, कर्म और धैर्य के कारक हैं। शनि का स्वराशि में रहना शुभ फल देता है। गुरु : ज्ञान, धर्म, सुख और उन्नति के कारक हैं। गुरु का स्वराशि में रहना विशेष लाभकारी है। यह अद्वितीय संयोग शिवभक्तों के लिए अत्यंत फलदायी है। इस दिन भगवान शिव की उपासना, व्रत, और जलाभिषेक विशेष सिद्धि और पुण्य देने वाला माना गया है।

महा संयोग में बन रहे शुभ योगः

🔹 प्रीति योगः प्रेम और प्रसन्नता का प्रतीक।

🔹 आयुष्मान योगः लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य का कारक।

🔹 सुकर्मा योगः सभी कार्यों में सफलता का योग।

🔹 शिव योगः भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

🔹 शोभन योगः सौंदर्य, प्रतिष्ठा और यश बढ़ाने वाला योग।

🔹 सर्वार्थ सिद्धि योगः सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला योग।

क्यों है यह संयोग अत्यंत दुर्लभः

पांच सौ वर्षों बाद शनि-गुरु का स्वराशि संयोग। सावन के पहले सोमवार पर इतने शुभ योगों का एक साथ बनना। इस अद्भुत संयोग का अगला अवसर कई पीढ़ियों बाद ही आएगा।

भक्तों के लिए विशेष लाभः

इस दिन जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप, शिव चालीसा, बिल्वपत्र अर्पण करने से रोग, शोक, दरिद्रता और कष्ट समाप्त होते हैं। व्रत रखने से कुंडली के दोष शांत होते हैं और शनि-गुरु के विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। इस दिन की गई प्रार्थना और दान से अकल्पनीय पुण्य प्राप्त होता है।

सावन, शिव और सोमवार के पौराणिक तथ्य

सावन, शिव और सोमवार का संबंध केवल व्रत और पूजा तक सीमित नहीं है, यह गहरे पौराणिक रहस्यों, आस्था और सृष्टि के कल्याण से जुड़ा है। सावन है सृष्टि की शांति का समय। शिव हैं करुणा और न्याय के प्रतीक। सोमवार है उनके भक्तों के लिए वरदान का दिन। ये तीनों एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हैं जैसे जल, गंगा और शिवलिंग। जब सावन आता है तो आकाश से वर्षा की बूंदें धरती को शिवमय करने लगती हैं। इस मास का प्रत्येक सोमवार शिवभक्तों के लिए मुक्ति, कृपा और विशेष आशीर्वाद का अमूल्य अवसर बन जाता है। इसीलिए सावन मास को भगवान शिव का अत्यंत प्रिय समय कहा गया है। पुराणों के अनुसार, इसी मास में माता पार्वती ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। मान्यता है कि श्रावण मास में की गई पूजा हजार गुना फलदायी होती है क्योंकि इस समय महादेव विशेष रूप से जागृत रहते हैं। पौराणिक कथानुसार, समुद्र मंथन के समय जब अमृत और विष निकले तो सबसे पहले कालकूट विष प्रकट हुआ, जिसने सृष्टि के तीनों लोकों को जलाने लगा। देवता और दानव किसी उपाय में असमर्थ थे। तब भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए वह विष स्वयं पी लिया। विष गले में अटक गया और वे नीलकंठ कहलाए। विषपान के बाद भगवान शिव का शरीर अत्यंत गर्म हो गया, जिसे शीतल करने के लिए देवताओं ने गंगाजल अर्पित किया। यह गंगाजल चढ़ाने की परंपरा श्रावण मास से ही प्रारंभ मानी जाती है। गंगा, भगवान शिव की जटाओं में विराजमान हैं। विष के प्रभाव को शीतल करने के लिए गंगाजल ही सर्वोत्तम उपाय बताया गया। सावन में शिवलिंग पर जल अर्पित करने से शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं क्योंकि यह उनकी ग्रीष्म पीड़ा का शमन माना जाता है। जहां तक सोमवार का शिव से संबंध, का है तो सोमका अर्थ है चंद्रमा। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं। सोम का स्वामी भी भगवान शिव को माना जाता है। सोमवार शिव का अत्यंत प्रिय दिन है। श्रावण मास के सोमवार पर शिव आराधना से विशेष पुण्य और इच्छित फल की प्राप्ति होती है। शिव पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने श्रावण मास में भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन व्रत और तप किया था। उन्होंने लगातार सोमवार व्रत रखे और शिव की कठोर तपस्या की। भगवान शिव माता पार्वती की भक्ति से प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। तभी से कन्याओं में सोमवार व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार : सावन मास में रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप, रुद्राष्टक पाठ और शिव चालीसा का विशेष महत्व होता है। श्रावण में अभिषेक करने से सभी जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं।

कांवड़ यात्रा

सावन महीने में कावड़ यात्रा का विशेष महत्व है. कांवड़ यात्रा सावन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर कृष्ण चतुर्दशी तक यानी सावन शिवरात्रि तक चलती है. इस दौरान भगवान भोले के भक्त पवित्र नर्मदा और शिप्रा नदी से जलभरकर बाबा महाकाल को अर्पित करते हैं. भगवान शिव को जल अर्पित करने के लिए कांवड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन के बाद से चली रही है। कांवड़िये गंगाजल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि यह जल शिव के विष के ताप को शांत करता है और भक्तों को अनंत पुण्य प्राप्त होता है।

सावन का संकेत

वर्षा की फुहारें महादेव के जलाभिषेक का प्रतीक हैं। हर बूंद शिव को समर्पित मानी जाती है। धरती, गगन, जल, वायु सब शिवमय हो जाते हैं।

शिवः सृष्टि, विनाश और पुनर्निर्माण के अधिपति

भगवान शिव केवल संहारक हैं बल्कि सृष्टि के पालनकर्ता भी हैं। भोलेनाथ अपनी सहजता, सरलता और करुणा के लिए जाने जाते हैं। वे एक ऐसे देवता हैं जो केवल जल, बिल्वपत्र, और सच्ची भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं। शिव वह हैं जो भस्म धारण करते हैं, लेकिन भक्तों को अक्षय पुण्य का आशीर्वाद देते हैं।

क्यों है यह संयोग दुर्लभः

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, सावन के पहले सोमवार पर श्रवण नक्षत्र, शिव योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और त्रयोदशी तिथि का एक साथ आना कई वर्षों बाद हो रहा है। यह योग शिवभक्तों के लिए अत्यंत शुभ और दुर्लभ माना जा रहा है। अगली बार यह संयोग दशकों बाद ही बन पाएगा।

इन राशि के जातक होंगे मालामाल

सावन में कई छोटे-बड़े ग्रह राशि परिवर्तन करेंगे। इससे राशि चक्र की सभी राशियों पर भाव और ग्रहों की स्थिति के अनुसार प्रभाव पड़ेगा। इनमें कई राशि के जातक सावन के महीने में मालामाल होंगे। ज्योतिषियों की मानें तो सावन के महीने में कई राशि के जातकों पर देवों के देव महादेव की कृपा बरसेगी। उनकी कृपा से केवल आर्थिक  परेशानी दूर होगी, बल्कि करियर और कारोबार में भी सफलता मिलेगी।

कर्क राशि : मन के कारक चंद्र देव कर्क राशि के स्वामी हैं और आराध्य भगवान शिव हैं। इस राशि के जातकों पर महादेव की असीम कृपा रहती है। उनकी कृपा से जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती है। वर्तमान समय में शुक्र देव की भी कृपा बरस रही है। सावन के महीने में धर्मिक सक्रियता बढ़ेगी। साहसी और निडर बनेंगे। अपने फैसले से लोगों को अचंभित करने में सफल होंगे। धार्मिक कार्यों में रूचि बढ़ेगी। धन का व्यय हो सकता है। धार्मिक यात्रा के योग बनेंगे। यात्रा से लाभ होगा। साथ ही आपकी प्रसिद्धि भी बढ़ेगी। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों को सावन में अधिक फायदा होगा। घर में अन्न और धन की कमी नहीं रहेगी। गहने और कपड़ों की खरीदारी कर सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि आप गहने और महंगे कपड़े के शौकीन हो सकते हैं। पिता से भी धन लाभ होगा। 

सिंह राशि : सिंह राशि के जातकों के लिए सावन का महीना खास साबित हो सकता है। इस महीने भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुखों का आगमन होगा। धार्मिक यात्रा पर जाने का अवसर मिलेगा। मानसिक वेदना से मुक्ति मिलेगी। सावन महीने में महादेव की कृपा से कारोबार में धन लाभ होगा। आपके मान-सम्मान में बढ़ोतरी होगी। श्रेष्ठ और कुलीन लोगों से आपकी दोस्ती बढ़ेगी या होगी। भाग्य में वृद्धि होगी। आपके पास आमदनी के कई साधन होंगे। धन खर्चने में आप कंजूसी कर सकते हैं। शत्रुओं पर आपकी जीत होगी। घर-परिवार में मान-सम्मान बढ़ेगा। देवों के देव महादेव की कृपा पाने के लिए हर सोमवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद दूध या गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही भगवान शिव को सफेद फूल अर्पित करें। इस समय नमः शिवायमंत्र का जप करें।

कन्या राशि : कन्या राशि के जातकों के लिए सावन का महीना बेहद खास रहने वाला है। इस महीने आप प्रॉपर्टी के माध्यम से पैसा कमाने में सफल होंगे। ऐसा भी हो सकता है कि आप उम्मीद से अधिक धन कमाएंगे। शेयर मार्केट में इन्वेस्ट कर सकते हैं। धन-संपत्ति में बढ़ोतरी होगी। सेहत अच्छी रहेगी। परिवार में खुशियों का माहौल रहेगा। करियर और कारोबार में भी ऊंचा मुकाम हासिल होगा। सावन के महीने में आप भंडारे का आयोजन कर सकते हैं। किसी किसी माध्यम से पैसे कमाने में सफल होंगे। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए सावन महीने में रोजाना गंगाजल में काले तिल मिलाकर देवों के देव महादेव का अभिषेक करें।

बरतें सावधानी

सावन के महीने में मांस मदिरा सा सेवन नहीं करना चाहिए. साथ ही तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए. सावन का महीना भोलेनाथ का प्रिय माह है. इस माह में ऐसे कार्य करने चाहिए जिनसे भोलेनाथ प्रसन्न हो, उन कार्यों से दूरी बनाकर रखना चाहिए जो भोलेनाथ को ना पसंद हो, इस माह में क्रोध और अंहकार से दूरी बनाकर रखनी चाहिए साथ ही किसी को कटू शब्द नहीं बोलने चाहिए. सावन के महीने में बाल कटवाना, नाखून काटना और दाढ़ी बनवाने पर मनाही होती है. सावन माह को धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है इसीलिए इस माह में इन कार्यों को करने की मनाही होती है. सावन में गृह प्रवे, प्रॉपर्टी खरीदना, बेचना शुभ नहीं माना जाता इसीलिए इस माह में इन कार्यों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए. सावन में भोलेनाथ पर तुली अर्पित ना करें. तुलसी को विष्णु प्रिया हैं इसीलिए भगवान शिव पर तुलसी तढ़ना निषेध है. साथ ही केतकी के फूल,हल्दी, कुलकुम भी ना अर्पित करें. सावन के महीने में दही से बनने वाली सब्जी कढ़ी को ना बनाएं, कच्चा दूध ना पिएं, मूली, बैंगन और मसालेदास भोजन ना करें. सावन के महीने में दूध का अनादर ना करें. सावन के महीने से चातुर्मास आरंभ हो जाता है इसीलिए इस माह में शादी, ब्याह, मुंडन संस्कार जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते.

 

 

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