Monday, 7 July 2025

अभाव से उपलब्धि तक : शशांक जायसवाल बने चार्टर्ड अकाउंटेंट

अभाव से उपलब्धि तक : शशांक जायसवाल बने चार्टर्ड अकाउंटेंट 

संघर्ष की मिसाल बने वाराणसी अटेसुआ-मुरर्दहाबाजार के लाल

ट्यूशन पढ़ाकर खुद की पढ़ाई का खर्च उठाया, दिन-रात की मेहनत से रचा सफलता का इतिहास

सुरेश गांधी

वाराणसी. अथक मेहनत, अटूट धैर्य और रुकने वाली जिद की मिसाल बने अटेसुआ मुर्दाहा बाजार, वाराणसी निवासी शशांक जायसवाल पुत्र राजेश जायसवाल ने वह कर दिखाया जो कई युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है। शशांक ने कड़े आर्थिक संघर्षों, सीमित संसाधनों और सामाजिक दबावों के बावजूद चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) की कठिन परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। उनकी यह उपलब्धि केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गर्व का विषय बन गई है। साधारण परिवार से आने वाले शशांक के लिए यह सफर आसान नहीं था।

आर्थिक तंगी के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाना पड़ा। इसके लिए उन्होंने स्कूल के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। दिन में आर्टिकलशिप का व्यस्त ऑफिस शेड्यूल और शाम को ट्यूशन, इसके बाद देर रात खुद की पढ़ाई, यह उनकी दिनचर्या बन गई थी। शशांक की सफलता केवल एक अकादमिक उपलब्धि नहीं है, यह संघर्ष, समर्पण और आत्म-विश्वास की एक गहरी कहानी है। शशांक ने अपने पिता का वो सपना पूरा कर दिखाया है, जो उन्होंने देखा था। इस सफलता की कहानी सिर्फ मेहनत की नहीं, बल्कि एक पिता के सपने और एक मां की मजबूत हिम्मत की भी है। इस परीक्षा में कुल 1,42,402 छात्रों ने भाग लिया था, जिनमें से मात्र 14,247 ही इसे पास कर सके, जो इस परीक्षा की कठिनता को दर्शाता है।

दसवीं के बाद शशांक ने कॉमर्स विषय को चुना और तभी से चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का लक्ष्य तय कर लिया था। 12वीं के बाद उन्होंने सीपटी (कामन प्रोफिएंसी टेस्ट) को पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक पास किया, और आगे की पढ़ाई के लिए गांव से शहर चले गए। उन्होंने लॉकडाउन के कठिन दौर में भी इंटरशिप जारी रखी, जब अधिकांश छात्र मानसिक दबाव में आकर पढ़ाई से भटक गए थे। लगभग दो महीने तक शशाक को गांव शहर के बीच रोज़ आना-जाना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। इस बीच इग्नू से बीकाम की भी डिग्री हासिल की. शंशांक ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हुए कहा, “मेरे हर निर्णय में मां-पापा ने मेरा पूरा समर्थन किया। पापा ने मुझे कभी किसी और ज़िम्मेदारी में नहीं डाला, और मां ने मानसिक रूप से मुझे हमेशा मज़बूत बनाए रखा।अब शशांक का सपना है कि वह किसी प्रतिष्ठित सीए फर्म में अनुभव हासिल कर भविष्य में अपनी खुद की चार्टर्ड अकाउंटेंसी फर्म स्थापित करें। उनकी इस सफलता पर परिवार, शिक्षक, मित्र और गांववासी उन्हें बधाई दे रहे हैं।

नींद छोड़ दी, लेकिन सपना नहीं छोड़ा

शशांक कहते हैं, “नींद मेरे लिए विलासिता थी, लेकिन सपना बड़ा था। मैंने हर कठिनाई को पार करने का संकल्प लिया था।उनका मानना है कि शॉर्टकट का कोई स्थान नहीं है, केवल लगातार मेहनत, अनुशासन और गिरने के बाद उठने का हौसला ही सफलता दिला सकता है।

असफलताओं से डिगे नहीं, आत्म-संदेह से लड़े

अपने संघर्ष के दौरान शशांक को कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ा। कई बार ऐसा भी लगा कि आगे बढ़ना असंभव है। लेकिन उन्होंने कभी हार मानने का विकल्प नहीं चुना।मैं अपने परिवार और उनके सपनों के लिए लड़ा। मुझे यकीन था कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती,“ शशांक भावुक होकर कहते हैं। 

अनुशासन और संघर्ष से बना चैंपियन

आज शशांक अपने नाम के आगे सीए लिखते हुए गर्व महसूस करते हैं। उनका कहना है, “मैं अपने अनुशासन, कड़ी मेहनत और कठिन परिस्थितियों के लिए आभारी हूं। इन्हीं ने मुझे मजबूत बनाया। कठिन समय ही असली चैंपियन बनाते हैं।

युवाओं के लिए प्रेरणा

शशांक की यह कहानी उन युवाओं के लिए प्रकाश स्तंभ है जो सीमित संसाधनों और विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सपनों का पीछा कर रहे हैं। उनकी सफलता यह बताती है कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मंजिल दूर नहीं। वे कहते हैं, “मैं उन कठिनाइयों के लिए आभारी हूँ, जिन्होंने मुझे मजबूत बनाया, अनुशासन सिखाया और मुझे मेरी क्षमता का एहसास कराया। कठिन समय ही असली चैंपियन बनाते हैं।उनका कहना है कि नियमित रूप से स्कूल में शिक्षकों द्वारा कराई गई पढ़ाई को घर पर अपनी समय सारणी बनाकर की गई तैयारी से संभव हुआ है। अब वह चार्टर्ड अकाउंटेंट बनकर देश की अर्थव्यवस्था बनाने और सुधारने का सपना देख रहे है। बहन रश्मि जायसवाल ने कहा कि शशांक के जुनून और जज्बे का ही नतीजा है, जिसने घर के काम काज एवं परिवार को देखते हुए कभी एहसास ही नही होने दिया कि वह पढ़ाई भी कर रहा है। रात-दिन एक करते हुए कड़ी मेहनत की। उसका शानदार कामयाबी पर पूरे परिवार को गर्व है।

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