ऊपर ट्रेन की रफ्तार और नीचे ऊर्जा का उत्पादन, यह है नए भारत की नई सोच
रेल पटरियों के नीचे सौर ऊर्जा : नए भारत की तस्वीर
रेल पटरियों
पर
सौर
ऊर्जा
का
नवाचार,
बरेका
ने
रचा
इतिहास
भारत में
पहली
बार
सक्रिय
ट्रैक
के
बीच
लगाए
गए
हटाने
योग्य
सोलर
पैनल,
महाप्रबंधक
नरेश
पाल
सिंह
ने
किया
उद्घाटन
70 मीटर ट्रैक पर
लगाए
गए
इन
पैनलों
से
प्रतिदिन
67 यूनिट
बिजली
का
उत्पादन
होगा
सुरेश गांधी
वाराणसी। भारतीय रेलवे ने हरित ऊर्जा की दिशा में एक और ऐतिहासिक कदम बढ़ाया है। बनारस रेल इंजन कारखाना (बरेका) ने देश में पहली बार सक्रिय रेलवे पटरियों के बीच हटाने योग्य सौर पैनल प्रणाली स्थापित कर इतिहास रच दिया। बरेका के महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह ने फीता काटकर इस अनूठे नवाचार का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना रहा है कि भारत हरित ऊर्जा में आत्मनिर्भर बने। रेलवे का यह प्रयोग उसी विजन का जीवंत उदाहरण है।
खास यह है कि इससे न सिर्फ कार्बन उत्सर्जन में कमी, रेलवे का खर्च घटेगा बल्कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर यह बड़ा कदम है, जो दुनिया के लिए मिसाल बनेगा. जहां विकसित देश भी इस प्रयोग से दूर हैं, भारत ने इसे हकीकत में बदल दिया। यह बताता है कि भारत सतत विकास का नेतृत्व करने को तैयार है।
बता दें, बरेका की कार्यशाला की लाइन संख्या 19 पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत 70 मीटर लंबाई में 28 सोलर पैनल लगाए गए हैं।
इस विशेष इंस्टॉलेशन में स्वदेशी डिजाइन का उपयोग किया गया है, जिससे ट्रेन यातायात पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और आवश्यकता पड़ने पर पैनलों को आसानी से हटाया भी जा सकता है। बरसात, धूल-मिट्टी और रखरखाव कठिनाइयाँ पैदा करेंगे। लेकिन भारत ने बीते दशक में जिस तेजी से सौर ऊर्जा को अपनाया है, उससे उम्मीद है कि ये चुनौतियां पार होंगी।
महाप्रबंधक ने इस परियोजना को सफल बनाने के लिए मुख्य विद्युत सर्विस इंजीनियर श्री भारद्वाज चौधरी और उनकी पूरी टीम की सराहना की।
ऊपर विकास की रफ्तार, नीचे हरित ऊर्जा का प्रवाह, यही है नए भारत का असली विजन। 70 मीटर ट्रैक पर लगाए गए इन पैनलों से प्रतिदिन 67 यूनिट बिजली का उत्पादन होगा।
बरेका का यह नवाचार
बताता है कि भारत
विकास और हरित ऊर्जा
को साथ लेकर चलने
के लिए तैयार है।
ऊपर दौड़ती ट्रेन और नीचे बहती
सौर ऊर्जाकृयही है नए भारत
की वह तस्वीर जो
पर्यावरण और प्रगति का
संतुलन रचती है।
तकनीकी बिंदु
ट्रैक लंबाईः 70 मीटर
कुल क्षमताः 15 केडब्ल्यूपी
पावर डेंसिटीः 220 केडब्ल्यूपी/किमी
अनुमानित उत्पादनः 880 यूनिट/किमी/दिन
पैनल दक्षता : 21.31 प्रतिशत
संरचना : 144 हाफ कट मोनो
क्रिस्टलाइन पीईआरसी बाइफेसियल सेल्स
चुनौतियाँ और समाधान
परियोजना के क्रियान्वयन से
पहले कई तकनीकी चुनौतियाँ
सामने आईं।
ट्रेन गुजरने से उत्पन्न कंपन
को रोकने के लिए रबर
माउंटिंग पैड का प्रयोग।
पैनलों को मजबूती से
चिपकाने के लिए एपॉक्सी
एडहेसिव का उपयोग।
धूल और मलबे
से बचाव हेतु आसान
सफाई व्यवस्था।
रखरखाव के समय पैनलों
को जल्दी हटाने के लिए सिर्फ
चार एस.एस. एलन
बोल्ट की सुविधा।
भविष्य की संभावनाएँ
भारतीय रेलवे के 1.2 लाख किमी लंबे
नेटवर्क में, विशेषकर यार्ड
लाइनों पर, इस तकनीक
को बड़े पैमाने पर
अपनाया जा सकता है।
भूमि अधिग्रहण की जरूरत नहीं
होगी क्योंकि पटरियों के बीच की
खाली जगह का ही
उपयोग होगा। अनुमान है कि प्रति
किमी प्रतिवर्ष 3.21 लाख यूनिट बिजली
का उत्पादन किया जा सकता
है।
बरेका की प्रतिबद्धता
महाप्रबंधक नरेश पाल सिंह
ने कहा, यह परियोजना
न केवल सौर ऊर्जा
के उपयोग का नया आयाम
है, बल्कि यह भविष्य में
भारतीय रेलवे के लिए हरित
ऊर्जा का सशक्त मॉडल
बनेगा। बरेका की यह पहल
रेलवे को नेट ज़ीरो
कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की
ओर एक बड़ा कदम
है।
पटरियों के नीचे सौर ऊर्जा : नए भारत की तस्वीर
भारतीय रेलवे के इतिहास में
नया अध्याय जुड़ गया है।
पहली बार ट्रेन की
पटरियों के बीच सौर
पैनल लगाए गए हैं।
ऊपर रफ्तार से दौड़ती ट्रेन
और नीचे ऊर्जा का
उत्पादन, यह दृश्य सिर्फ
तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि नए भारत की
सोच है। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी लंबे समय से
हरित ऊर्जा और आत्मनिर्भर भारत
की बात करते रहे
हैं। यह कदम उसी
विजन की झलक है।
रेलवे देश की सबसे
बड़ी ऊर्जा उपभोक्ता इकाई है। पटरियों
के बीच सौर पैनल
लगाने से न केवल
कार्बन उत्सर्जन घटेगा, बल्कि रेलवे का संचालन खर्च
भी कम होगा। यह
प्रयोग दुनिया के लिए भी
मिसाल है। विकसित देश
भी जहां इस तरह
की कल्पना तक नहीं पहुँचे,
वहां भारत ने इसे
हकीकत बना दिया। यह
बताता है कि भारत
अब तकनीकी आत्मनिर्भरता के साथ सतत
विकास की राह पर
नेतृत्व करने को तैयार
है।
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