Monday, 4 August 2025

ट्रंप टैरिफ का तांडव : कालीन और वस्त्र उद्योग पर लगा ग्रहण

ट्रंप टैरिफ का तांडव : कालीन और वस्त्र उद्योग पर लगा ग्रहण

पूर्वांचल से लेकर पूरे भारत सहित अमेरिका तक, हस्तशिल्प की परंपरा पर संकट मंडरा रहा है. यह संकट केवल व्यापार का संकट नहीं है, यह भारत की हस्तकला, कारीगरी और संस्कारों की परंपरा पर संकट है। भारत का कालीन उद्योग दुनिया की सबसे पुरानी और विशिष्ट परंपराओं में से एक है, जो हाथों से, पीढ़ियों से, और विश्वास से बुना गया है। इसे बाजार की राजनीति के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता। सरकार को चाहिए कि वह इस चुनौती को अवसर में बदले, नए बाजारों की ओर बढ़े, उद्योगों को संरक्षण दे, और दुनिया को दिखा दे कि भारत केवल वैश्विक व्यापार का भागीदार है, बल्कि उसका संस्कृति वाहक भी है. मतलब साफ है भारत की कालीन, साड़ी और वस्त्र उद्योग सिर्फ निर्यात नहीं, संस्कृति, परंपरा और ग्रामीण रोज़गार का प्रतीक भी है। ऐसे में अमेरिकी टैरिफ के विरुद्ध भारत सरकार को कूटनीतिक, रणनीतिक और राहत पैकेज आधारित तीन स्तरों पर तत्काल हस्तक्षेप करना होगा, ताकि उद्योग, रोजगार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की यह नींव कमजोर होने पाए 

सुरेश गांधी

                भारतीय कालीन, बनारसी साड़ी और वस्त्र उद्योग को लेकर बीते कुछ वर्षों में जो सकारात्मक संकेत दिख रहे थे, उन पर अब वैश्विक व्यापार राजनीति का गहरा साया पड़ता दिख रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय हस्तनिर्मित उत्पादों पर 25 से 26 प्रतिशत तक टैरिफ लगाए जाने की हालिया घोषणा ने भारत के इस श्रमप्रधान, सांस्कृतिक और निर्यात-आधारित उद्योग को गहरी चिंता में डाल दिया है। विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र, भदोही, मिर्जापुर और वाराणसी जैसे परंपरागत कालीन केंद्रों में, यह संकट गहराता दिख रहा है, जहां हजारों कारीगरों की आजीविका पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। यह केवल व्यापारिक नुकसान की बात है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर, ग्रामीण रोजगार और पारंपरिक हस्तशिल्प के अस्तित्व पर सीधा प्रहार है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि भारत का सालाना कालीन निर्यात लगभग 17,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 60 प्रतिशत निर्यात अकेले अमेरिका को होता है। 

अमेरिका की भारतीय हस्तशिल्प और वस्त्रों की सबसे बड़ी ग्राहक होने की हैसियत अब एक चुनौती बन गई है। 9 अप्रैल को ट्रंप की घोषणा के बाद जिस तरह 25-26 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लागू किया गया, उसने पूरे उद्योग को अनिश्चितता की गर्त में डाल दिया है। यह बात अत्यंत चिंता की है कि इस निर्णय से पूरे भारत में तकरीबन दो करोड़ लोगों की आजीविका प्रभावित हो सकती है, जिनमें अधिकांश ग्रामीण, पिछड़े और पारंपरिक हस्तकला आधारित समुदायों से आते हैं। खास यह है कि अकेले कारपेट इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से करीब 25 लाख लोगों के समक्ष दो जून की रोटी के लाले पड़ जायेंगे. कारोबारियों की मानें तो इस उद्योग में 60 फीसदी श्रम और 40 फीसदी कच्चा माल लगता है। एक कालीन तैयार करने में 8 से 12 महीने तक का समय लगता है। ऐसे में तैयार उत्पादों को अब या तो भारी छूट में बेचना पड़ेगा, या फिर उन्हें गोदामों में सड़ने के लिए छोड़ देना पड़ेगा।

3500 करोड़ के ऑर्डर पर लगा

ग्रहण, 100 करोड़ के कैंसिल 

अमेरिका रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने से यूपी के पूर्वांचल की सबसे बड़ी हस्तशिल्प इंडस्ट्री कारपेट साडी कारोबार के निर्यातकों की नींद हराम हो गई है। इसके लागू होते ही अमेरिकी खरीदारों ने अभी से -मेल कर क्रिसमस डोमेटेक्स फेयर में दिए गए करोड़ों के आर्डर को होल्ड पर करवाना शुरु दिए है। ऐसे में निर्यातकों के गोदामों में रखे करोड़ों के कालीन अन्य उत्पाद सिर्फ डंप होने, बल्कि लाखों बुनकरों की आजीविका पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। बता दें, यूपी, दिल्ली, पानीपत, जम्मू-कश्मीर, जयपुर आदि शहरों से लगभग 11000 करोड़ का कालीन निर्यात होता है और इसकी बुनाई में लगभग 10 लाख से अधिक गरीब बुनकर मजदूर लगे हैं। इस वित्तिय वर्ष में केवल भदोही मिर्जापुर वाराणसी में ही करीब 1000 से अधिक व्यापारियों को अमेरिका से 2500 करोड़ रुपये के हैंड टफ्टेड और हैंडनॉटेड कालीनों के ऑर्डर मिले थे। इनमें से 1500 करोड़ का माल पहले ही तैयार हो चुका है, जिसे अमेरिका का सबसे बड़ा पर्व क्रिसमस से पहले निर्यात किया जाना था। लेकिन टैरिफ लागू होने के बाद अमेरिकी कंपनियों द्वारा 10 फीसदी कीमत घटाने की मांग से व्यापारी पसोपेश में हैं। निर्यातकों का कहना है कि अमेरिकी खरीदारों ने कहा है कि टैरिफ लगने से उत्पाद महंगा हो जाएगा और फिर खरीदना मुश्किल होगा। ऐसे में टैरिफ लगने से निर्यातकों को 1100 करोड रुपये से अधिक का नुकसान होने की आशंका है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पहले से ही प्रभावित चल रहे हस्तशिल्प उद्योग को इस घोषणा से गहरा झटका लगा है. सीईपीसी के पूर्व प्रशासनिक सदस्य उमेश गुप्ता का कहना है कि खरीदार दो एक महीने से टैरिफ लगने का इंतजार कर रहे थे, जो भी ऑर्डर हुए हैं, वह होल्ड पर थे. और अब ट्रंप के टैरिफ लगाने से ऑर्डर मिलना तो दूर कैंसिल होना शुरु हो गए है. यह हालत सिर्फ कालीन तक सीमित नहीं है। टेक्सटाइल सेक्टर में भी वही कहानी दोहराई जा रही है। जनवरी से मई 2025 तक भारत ने अमेरिका को 4.59 अरब डॉलर का टेक्सटाइल निर्यात किया, जो पिछले वर्ष से 13 फीसदी अधिक था। अब इसी व्यापार पर टैरिफ की तलवार लटक रही है।

कालीन निर्यातकों की पीड़ा : माल

तैयार, लेकिन बाजार ठप

पूर्वांचल के भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी आदि कालीन क्लस्टर में व्यापारी और कारीगर हताश हैं। जिन कालीनों की कीमत 1000 से 1500 रुपये प्रति वर्ग गज है, और हैंडनॉटेड जैसे उत्पादों की लागत 8000-9000 रुपये प्रति वर्ग गज पड़ती है, अब उन्हें डिस्काउंट पर बेचने की मजबूरी बन गई है। कंपनियों से रेट में कटौती की बातचीत चल रही है, लेकिन यदि रेट 10-15 फीसदी कम हुआ तो व्यापारियों का घाटा कई करोड़ रुपये में पहुंचेगा। परिणामस्वरूप, कई व्यापारी नए ऑर्डर लेने से बच रहे हैं और छोटे बुनकरों को काम देना भी बंद कर दिया गया है। इससे ग्रामीण बेरोजगारी बढ़ने की आशंका और प्रबल हो गई है।

वैकल्पिक बाजारों की तलाश

उद्योग विशेषज्ञों की राय है कि भारत को यूरोपीय संघ, जापान, मिडिल ईस्ट और आसियान देशों में निर्यात बढ़ाने पर फोकस करना चाहिए, ताकि अमेरिकी बाजार के टैरिफ प्रभाव को संतुलित किया जा सके।

प्रधानमंत्री से विशेष राहत पैकेज की मांग

कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन कुलदीप राज वट्ठल ने निर्यातकों और कारीगर संगठनों की तरफ से प्रधानमंत्री से अपील की है कि वह इस संकट में हस्तक्षेप करें और कालीन टेक्सटाइल उद्योग के लिए विशेष राहत पैकेज घोषित करें। साथ ही अमेरिका के साथ राजनयिक स्तर पर व्यापार संतुलन की पहल की जाए। उनका कहना है कि यह संकट केवल आर्थिक नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक हस्तकला विरासत और पारंपरिक रोजगार की रीढ़ पर चोट है। यदि समय रहते हस्तक्षेप नहीं हुआ तो आने वाले महीनों में बेरोजगारी और घाटे का बड़ा विस्फोट हो सकता है। उनका कहना है कि भारत के हैंडमेड कालीन उद्योग पर एक बार फिर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अमेरिका द्वारा भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों पर लगाए गए अतिरिक्त 5 फीसदी टैरिफ से यह परंपरागत और श्रम-प्रधान उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। देशभर के कालीन उत्पादक क्षेत्रों, भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, शाहजहांपुर, पानीपत, आगरा, जयपुर, और श्रीनगरकृमें काम करने वाले करीब दो करोड़ ग्रामीण बुनकरों और शिल्पकारों की आजीविका पर इसका सीधा असर पड़ा है. सीईपीसी के प्रशासनिक सदस्य वासिफ अंसारी असलम महबूब का कहना है कि अमेरिका के इस नए शुल्क के चलते अंतरराष्ट्रीय खरीदारों ने पुराने ऑर्डर या तो रद्द कर दिए हैं या कीमतों में भारी कटौती की मांग करने लगे हैं। कई ऑर्डर री-निगोशिएशन के कारण समय पर पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इससे भारत के परंपरागत कालीन क्लस्टर में 30 फी से अधिक कारोबार में गिरावट आई है। उनका कहना है कि टर्की, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से मशीन से बने सस्ते कालीनों का आयात पहले ही चुनौती बना हुआ है। अब अमेरिका द्वारा लगाया गया यह नया टैरिफ भारतीय कालीनों की प्रतिस्पर्धा-क्षमता को और कमजोर कर रहा है। चेयरमैन कुलदीप का कहना है कि अमेरिका भारत के हैंडमेड कारपेट एक्सपोर्ट का 60 फीसदी तक का बाजार है, इसका असर भी दिखने लगा है. उनका कहना है कि यह संकट केवल व्यापारिक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी है। कालीन बुनाई सिर्फ एक उद्योग नहीं, बल्कि भारत की हस्तकला विरासत और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ रही है। इस क्षेत्र में ज्यादातर कारीगर ग्रामीण, पिछड़े और कमजोर वर्ग से आते हैं। यह उद्योग लाखों लोगों के लिए आजीविका का एकमात्र साधन है. यही वजह है कि भारतीय हैंडमेड कारपेट इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस संकट पर तत्काल हस्तक्षेप करने और एक विशेष राहत पैकेज की घोषणा करने की अपील की है। उनका कहना है कि यदि सरकार तुरंत कदम नहीं उठाती, तो यह उद्योग अस्थायी नहीं, बल्कि स्थायी क्षति की ओर बढ़ जाएगा। भारतीय कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन कुलदीप राज वाटर ने कहा, यदि समय रहते नीति-निर्माण स्तर पर हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो भारत की एक ऐतिहासिक कला और लाखों परिवारों की आजीविका समाप्त हो सकती है।

क्यों खतरनाक है यह टैरिफ भारत के लिए?

भारत का अमेरिका से व्यापारिक रिश्ता एक व्यापक आधार पर खड़ा है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत और अमेरिका के बीच 131.84 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। भारत अमेरिका को : दवाइयां ($8.1 अरब), टेलीकॉम उपकरण ($6.5 अरब), कीमती धातुएं और पत्थर ($5.3 अरब), रेडीमेड गारमेंट्स ($2.8 अरब), पेट्रोलियम उत्पाद ($4.1 अरब) जैसे कई उत्पाद निर्यात करता है। वहीं अमेरिका से भारत : कच्चा तेल ($4.5 अरब), कोयला ($3.4 अरब), इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी, एयरक्राफ्ट पार्ट्स जैसे उत्पाद खरीदता है। ऐसे में अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाना केवल भारत के निर्यातकों पर ही नहीं, बल्कि पूरे भारत-अमेरिका व्यापार संतुलन पर झटका है। इसकी आंच फार्मा, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग और आईटी क्षेत्रों तक महसूस की जा रही है। विशेष रूप से टेक्सटाइल और गारमेंट सेक्टर पर इसका तत्काल प्रभाव पड़ा है।

क्या अमेरिका को भी होगा नुकसान?

अमेरिका भारत से जितना सामान खरीदता है, वह उसकी जरूरत भी है। टैरिफ से भारत से आयातित उत्पादों की कीमत बढ़ेगी, जिसका सीधा असर अमेरिकी ग्राहकों पर पड़ेगा। महंगे कालीन, महंगे वस्त्र, महंगी औषधिया, मंहगे कंपोनेंट्स, इन सबके चलते अमेरिका में महंगाई और मंदी की संभावना बढ़ सकती है। इसके अलावा अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को जिन कच्चे माल की जरूरत है, वे या तो महंगे मिलेंगे या उपलब्ध नहीं होंगे। इससे उनकी उत्पादन लागत बढ़ेगी और अमेरिकी उत्पादों की प्रतिस्पर्धा भी घटेगी।

भारत के पास क्या विकल्प हैं?

भारत एक 3.73 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है। मजबूत घरेलू मांग और वैश्विक बाजारों में विविधता लाने की क्षमता इसका बड़ा आधार है। अब आवश्यकता इस बात की है कि भारत : यूरोपीय यूनियन, जापान, आसियान देश, मिडिल ईस्ट जैसे विकल्पों पर रणनीतिक रूप से ध्यान केंद्रित करे। सरकार को इंडस्ट्री-विशेष राहत पैकेज, बैंक ऋण में छूट, ड्यूटी ड्रॉबैक बढ़ाना, प्रोत्साहन स्कीमों का विस्तार, और राजनयिक स्तर पर हस्तक्षेप जैसे कदम तत्काल उठाने चाहिए।

शेयर बाजार, कंपनियों और रोजगार पर सीधा असर

गारमेंट कंपनियों के मुनाफे पर असर, जिससे शेयर बाजार में गिरावट संभव। नए ऑर्डर मिलना कठिन, तैयार माल डिस्काउंट पर बेचना मजबूरी बन गया है। बेरोजगारी बढ़ने का खतरा, खासकर ग्रामीण और कारीगर वर्ग में।

भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों पर असर

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत और अमेरिका के बीच 131.84 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। भारत ने अमेरिका को 87.4 अरब डॉलर का सामान बेचा, जबकि 41.8 अरब डॉलर का माल खरीदा। अमेरिका भारत से फार्मा, कपड़े, टेलीकॉम, स्टील, ज्वेलरी आदि खरीदता है, जबकि भारत अमेरिका से कच्चा तेल, गैस, कोयला, हीरे और मशीनें आयात करता है। ऐसे में टैरिफ से दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी, लेकिन महंगाई और मंदी के संकट से जूझ रहा अमेरिका शायद इसका अधिक शिकार होगा।

भारत की अर्थव्यवस्था पर संभावित असर

जीडीपी में 0.19 फीसदी तक की गिरावट संभव, रुपये पर दबाव, विदेशी मुद्रा भंडार पर असर, निर्यात में कमी, लेकिन घरेलू मांग के सहारे भारत में रिकवरी की संभावना ज्यादा है.

द्विपक्षीय संबंधों को भी बड़ा झटका

ट्रंप टैरिफ द्विपक्षीय संबंधों को भी बड़ा झटका लगा है। वह भी ऐसे समय जब दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ताएं चल रही हैं। हालांकि, बातचीत के रास्ते बंद नहीं हुए हैं, लेकिन समझौतों के बारे में जो उम्मीद की जा रही थी वह कमजोर पड़ती जरूर दिख रही है। ट्रंप प्रशासन का यह कदम भारत के लिए सिर्फ आर्थिक दबाव नहीं, बल्कि कूटनीतिक चुनौती भी बनकर सामने आया है। खासकर तब जब वह पाकिस्तान के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है और भारत-रूस की दोस्ती का खुला विरोध करने लगा है। भारत पर टैरिफ के अतिरिक्त रूसी साझेदारी के कारण जुर्माना लगाने का फैसला केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव की एक कोशिश भी है। दूसरी ओर, इसकी छिपी हुई मंशा अमरीकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए भारत का बड़ा बाजार खोलना है, जो सिर्फ भारत के किसानों को तबाह करने वाला होगा बल्कि, लंबे समय में यहां के लोगों के स्वास्थ्य को भी बड़ा नुकसान पहुंचाएगा, जिसका अमरीकी फॉर्मा सिंडिकेट लाभ उठाएगा। अमरीका का यह नया टैरिफ अल्पकालिक आर्थिक निर्णय भर नहीं बल्कि, एक भू-राजनीतिक संकेत भी है। भारत भी यह भलीभांति समझता है कि अमरीका के साथ रिश्ते सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं हैं। रक्षा, तकनीक, निवेश और वैश्विक राजनीति में यह साझेदारी अहम है। फिर भी अब भारत को अपनी वैकल्पिक रणनीतियों पर गंभीरता से काम करना होगा। रूस, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के साथ संबंधों को और सुदृढ़ करना आज की जरूरत बनती जा रही है। भविष्य में वैश्विक मंच पर भारत तभी मजबूती से खड़ा हो सकता है जब वह स्पष्ट नीतियों और मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था के बल पर निर्णय लेने में सक्षम हो। दुनिया अब बहुधु्रवीय बन रही है और भारत को उसी अनुरूप अपने फैसले खुद तय करने होंगे- कि दबाव में आकर।

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