शहर से
लेकर
देहात
तक
में
दिखी
तिरंगे
के
रंगों
में
रंगी
बहन
की
ममता
कलाई पर तिरंगा, दिल में भारत , वादा सुरक्षा का
जवानों, पुलिसकर्मियों
और
अनाथ
बच्चों
की
कलाई
पर
भी
सजी
राखियां,
गूंजा
भाईचारे
का
संदेश
मिठाई कारोबार
में
20 फीसदी
की
बढ़ोतरी,
मिल्क
केक
और
खोये
की
बर्फी
सबसे
आगे
देर रात
तक
गूंजता
रहा
राखी
का
उत्साह
सुरेश गांधी
वाराणसी। श्रावण पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का
पर्व शनिवार को पूरे जोश
और उमंग के साथ
मनाया गया। सुबह से
ही शहर के चौक,
लहुराबीर, मदनपुरा, गोदौलिया और ग्रामीण क्षेत्रों
के हाट-बाजारों में
चहल-पहल रही। रंग-बिरंगी राखियों से सजी दुकानों
और मिठाई के ठिकानों पर
भीड़ उमड़ी। मिठाइयों की दुकानों पर
लड्डू, बर्फी और मिल्क केक की खुशबू से माहौल मीठा
हो गया। सुबह से
लेकर देर रात भाई-बहन के बीच
स्नेह और वचन का
आदान-प्रदान होता रहा। बहनों
ने तिलक, आरती और मिठाई
के साथ भाइयों की
कलाई पर रक्षा सूत्र
बांधा, वहीं भाइयों ने
उपहार और रक्षा के
संकल्प से बहनों का
मन जीता और बदले
में भाइयों की लंबी उम्र,
सुख-समृद्धि की कामना की
गयी। भाइयों ने भी जीवनभर
रक्षा का वचन देते
हुए बहनों को उपहार और
आशीर्वाद भेंट किए।
गिफ्ट की दुकानों पर चॉकलेट, कपड़े और पर्सनलाइज्ड उपहार की जमकर बिक्री हुई। ऑनलाइन गिफ्ट सर्विस के जरिये दूर बसे भाइयों-बहनों ने भी एक-दूसरे को सरप्राइज भेजा। गाँवों में भी बहनों ने मिट्टी के चूल्हे पर खीर-पूड़ी बनाकर भाइयों को परोसी।
शहर के विभिन्न मोहल्लों में सामाजिक संगठनों और विद्यालयों ने भी रक्षाबंधन कार्यक्रम आयोजित किए। नन्हीं बच्चियों से लेकर बुजुर्ग माताओं तक, सभी ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर रिश्तों की डोर को और मजबूत किया।
स्नेह, सुरक्षा और परंपरा का संदेश लेकर आया रक्षाबंधन
इस पहलू का एक और प्रेरणास्पद पक्ष यह है कि अनेक महिलाएं और छात्राएं ‘एक राखी सीमा के नाम’ अभियान के तहत देश की सरहदों पर तैनात जवानों को राखियां भेज रही हैं। यह भावना उस अदृश्य लेकिन अटूट बंधन की परिचायक है, जो हर नागरिक को अपने सैनिकों से जोड़ता है। यह पर्व अब भाई की कलाई तक सीमित नहीं, बल्कि सीमा पर खड़े हर उस वीर के नाम है, जो देश की रक्षा में रात-दिन एक किए हुए है। सरकार और समाज द्वारा ’वोकल फॉर लोकल’ का आह्वान भी इस दिशा में एक सकारात्मक ऊर्जा बनकर उभरा है। अब राखियां चीन से नहीं, देश के स्वयं सहायता समूहों, महिला कारीगरों और ग्राम उद्योगों से बनकर आ रही हैं। खासकर राष्ट्रभक्ति राखियों के निर्माण में स्वदेशी सामग्री और देशी डिज़ाइन को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता को बल मिला है, बल्कि सांस्कृतिक गौरव भी जागृत हुआ है। रक्षाबंधन का यह स्वरूप प्रेरणादायक है।
यह केवल पर्व नहीं, एक दृष्टिकोण है, जिसमें रक्षा का भाव केवल व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित हो रहा है। यह पर्व बहनों को यह अवसर दे रहा है कि वे अपने भाइयों को न केवल प्रेम, बल्कि कर्तव्य, सेवा और राष्ट्रनिष्ठा का भाव भी अर्पित करें। जरुरत है इस पहल को और अधिक व्यापक बनाया जाए।स्कूलों, कॉलेजों,
सामाजिक संगठनों और स्थानीय प्रशासन
को चाहिए कि वे ऐसे
कार्यक्रमों को बढ़ावा दें,
जो रक्षाबंधन को देशभक्ति और
सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ जोड़ें।
राखी केवल एक धागा
नहीं, वह चेतना है
जो एक पीढ़ी को
राष्ट्रनिर्माण की ओर प्रेरित
कर सकती है। आज
जब भारत एक नए
युग की ओर अग्रसर
है, तब ऐसे पर्वों
का राष्ट्रमूल्य और भी अधिक
हो जाता है। रक्षाबंधन
अब केवल एक पारंपरिक
परंपरा नहीं, भारत की आत्मा
से जुड़े भावों की
अभिव्यक्ति बन चुका है,
जहाँ एक डोरी, एक
श्रद्धा, एक बहन का
स्नेह, पूरे राष्ट्र को
एकता की माला में
पिरो सकता है। या
यूं कहे रक्षाबंधन अब
बना राष्ट्रबंधन में परिवर्तित हो
गया है। यह डोरी
अब बंधा राष्ट्रप्रेम में
बंध चुकी है। मतलब
साफ है रक्षाबंधन अब
देशभक्ति का उत्सव बन
गया है. अब सिर्फ
भाई नहीं, भारत की रक्षा
का भी संकल्प है।
रक्षाबंधन के इस डोरी
में देशभक्ति का धागा लिपटा
है, जो एक राखी,
एक राष्ट्र, एक संकल्प को
साकार कर रहा है।
भाई-बहन का यह
रिश्ता अब देशभक्ति की
डोर से जुड़ गया
है, जो रक्षा सूत्र
से राष्ट्र सेवा का संदेश
दे रहा है।
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