Saturday, 9 August 2025

कलाई पर तिरंगा, दिल में भारत , वादा सुरक्षा का

शहर से लेकर देहात तक में दिखी तिरंगे के रंगों में रंगी बहन की ममता

कलाई पर तिरंगा, दिल में भारत , वादा सुरक्षा का

जवानों, पुलिसकर्मियों और अनाथ बच्चों की कलाई पर भी सजी राखियां, गूंजा भाईचारे का संदेश

मिठाई कारोबार में 20 फीसदी की बढ़ोतरी, मिल्क केक और खोये की बर्फी सबसे आगे

देर रात तक गूंजता रहा राखी का उत्साह

सुरेश गांधी

वाराणसी। श्रावण पूर्णिमा पर रक्षाबंधन का पर्व शनिवार को पूरे जोश और उमंग के साथ मनाया गया। सुबह से ही शहर के चौक, लहुराबीर, मदनपुरा, गोदौलिया और ग्रामीण क्षेत्रों के हाट-बाजारों में चहल-पहल रही। रंग-बिरंगी राखियों से सजी दुकानों और मिठाई के ठिकानों पर भीड़ उमड़ी। मिठाइयों की दुकानों पर लड्डू, बर्फी और मिल्क केक की खुशबू से माहौल मीठा हो गया। सुबह से लेकर देर रात भाई-बहन के बीच स्नेह और वचन का आदान-प्रदान होता रहा। बहनों ने तिलक, आरती और मिठाई के साथ भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा, वहीं भाइयों ने उपहार और रक्षा के संकल्प से बहनों का मन जीता और बदले में भाइयों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि की कामना की गयी। भाइयों ने भी जीवनभर रक्षा का वचन देते हुए बहनों को उपहार और आशीर्वाद भेंट किए। 

कई बहनों ने सिर्फ अपने सगे भाइयों को ही नहीं, बल्कि सीमा पर तैनात जवानों, ड्यूटी में जुटे पुलिसकर्मियों और अनाथालय के बच्चों को भी राखी बांधकर यह संदेश दिया कि सच्चा भाईचारा खून के रिश्ते से परे होता है। इस बार पारंपरिक कुमकुम-चावल वाली राखियों के साथ बच्चों में कार्टून और सुपरहीरो राखियों का क्रेज सबसे ज्यादा दिखा। 

गिफ्ट की दुकानों पर चॉकलेट, कपड़े और पर्सनलाइज्ड उपहार की जमकर बिक्री हुई। ऑनलाइन गिफ्ट सर्विस के जरिये दूर बसे भाइयों-बहनों ने भी एक-दूसरे को सरप्राइज भेजा। गाँवों में भी बहनों ने मिट्टी के चूल्हे पर खीर-पूड़ी बनाकर भाइयों को परोसी। 

शहर के विभिन्न मोहल्लों में सामाजिक संगठनों और विद्यालयों ने भी रक्षाबंधन कार्यक्रम आयोजित किए। नन्हीं बच्चियों से लेकर बुजुर्ग माताओं तक, सभी ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर रिश्तों की डोर को और मजबूत किया।

स्नेह, सुरक्षा और परंपरा का संदेश लेकर आया रक्षाबंधन

रक्षाबंधन का संबंध सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है, यह संरक्षण, प्रेम और विश्वास का उत्सव है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के हाथ पर द्रौपदी ने चीर का टुकड़ा बांधा था, जिसे कृष्ण ने जीवनभर उसकी रक्षा का वचन माना। एक अन्य कथा में, रानी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट हुमायूं को रक्षा सूत्र भेजकर सहायता मांगी थी और हुमायूं ने धर्म निभाते हुए उसकी रक्षा की। आज रक्षाबंधन हमें यह सिखाता है कि रिश्ते सिर्फ रक्त के बंधन से नहीं, बल्कि प्रेम, जिम्मेदारी और विश्वास से बनते हैं। यह पर्व हमें एक-दूसरे की रक्षा, सम्मान और सहयोग का संकल्प देता हैकृचाहे वह परिवार हो, समाज हो या देश। रंग-बिरंगी राखियों, मिठास भरे रिश्तों और शुभकामनाओं के साथ रक्षाबंधन ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि सच्चा भाई-बहन का रिश्ता सिर्फ कलाई पर बंधी डोर में नहीं, बल्कि दिलों के अटूट स्नेह और आजीवन साथ निभाने के संकल्प में बसा होता है। रक्षाबंधन अब सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह त्योहार राष्ट्रप्रेम का संदेश भी बनता जा रहा है। देशभक्ति से ओतप्रोत राखियां इस बात का प्रतीक हैं कि हर बहन को अपने भाई से सिर्फ अपनी रक्षा की नहीं, बल्कि राष्ट्र रक्षा और सेवा की भी उम्मीद है। इस साल की राखियां हमें यह याद दिला रही हैं कि जब बहन का प्रेम और देश के प्रति सम्मान एक साथ जुड़ जाए, तो एक साधारण धागा भी राष्ट्र निर्माण का संकल्प बन सकता है। अब जब राखी के त्यौहार में केवल दो ही दिन रह गए हैं, ऐसे में दिल्ली सहित देश भर के बाजारों में राखी के त्यौहार की खरीदी को लेकर भारी भीड़ दिखाई दे रही है, जिससे चारों तरफ़ उत्साह और ऊर्जा का माहौल है. कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के एक अनुमान के मुताबिक़ इस वर्ष देश भर में राखी त्यौहार पर लगभग 17 हज़ार करोड़ रुपए के व्यापार की उम्मीद है. जबकि मिठाई, फल एवं गिफ्ट आदि के रूप में लगभग 4 हजार करोड़ रुपए का भी व्यापार होने की संभावना है. चीन की बनी हुई कोई भी रखी अथवा त्यौहारों का सामान बाज़ार से पूरी तरह नदारद है

खास यह है कि हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए हमारी सेनाओं ने अपनी अनूठी वीरता एवं शौर्य का प्रदर्शन किया है और राखी वाले दिन 9 अगस्त को ही भारत छोड़ो आंदोलन की तिथि भी है. इसलिए इस बार राखी त्यौहार पर भावनाओं की डोर और देशभक्ति की थालियों से बाजार सजे हुए हैं और उपभोक्ताओं के लिए खरीदी के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. दुकानदारों का कहना है कि इस बार रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के प्रेम का उत्सव नहीं रहेगा, बल्कि यह राष्ट्रप्रेम और आत्मनिर्भर भारत की भावना से भी ओत-प्रोत होगा

मतलब साफ है आज की बहन केवल अपने भाई की व्यक्तिगत सुरक्षा की आकांक्षा नहीं करती, वह यह भी चाहती है कि उसका भाई देश और समाज की रक्षा में भी योगदान दे। यही कारण है किसेना राखी’, ’तिरंगा राखी’, ’शहीद समर्पित राखीजैसी भावनात्मक राखियां भाई-बहन के रिश्ते को एक व्यापक अर्थ प्रदान कर रही हैं। यह बदलाव केवल हमारे सांस्कृतिक विकास का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि देशप्रेम अब केवल भाषणों और नारों तक सीमित नहीं, बल्कि त्योहारों की आत्मा में भी समाहित हो रहा है। 

इस पहलू का एक और प्रेरणास्पद पक्ष यह है कि अनेक महिलाएं और छात्राएंएक राखी सीमा के नामअभियान के तहत देश की सरहदों पर तैनात जवानों को राखियां भेज रही हैं। यह भावना उस अदृश्य लेकिन अटूट बंधन की परिचायक है, जो हर नागरिक को अपने सैनिकों से जोड़ता है। यह पर्व अब भाई की कलाई तक सीमित नहीं, बल्कि सीमा पर खड़े हर उस वीर के नाम है, जो देश की रक्षा में रात-दिन एक किए हुए है। सरकार और समाज द्वारावोकल फॉर लोकलका आह्वान भी इस दिशा में एक सकारात्मक ऊर्जा बनकर उभरा है। अब राखियां चीन से नहीं, देश के स्वयं सहायता समूहों, महिला कारीगरों और ग्राम उद्योगों से बनकर रही हैं। खासकर राष्ट्रभक्ति राखियों के निर्माण में स्वदेशी सामग्री और देशी डिज़ाइन को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता को बल मिला है, बल्कि सांस्कृतिक गौरव भी जागृत हुआ है। रक्षाबंधन का यह स्वरूप प्रेरणादायक है। 

यह केवल पर्व नहीं, एक दृष्टिकोण है, जिसमें रक्षा का भाव केवल व्यक्तिगत होकर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित हो रहा है। यह पर्व बहनों को यह अवसर दे रहा है कि वे अपने भाइयों को केवल प्रेम, बल्कि कर्तव्य, सेवा और राष्ट्रनिष्ठा का भाव भी अर्पित करें। जरुरत है इस पहल को और अधिक व्यापक बनाया जाए। 

स्कूलों, कॉलेजों, सामाजिक संगठनों और स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वे ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा दें, जो रक्षाबंधन को देशभक्ति और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ जोड़ें। राखी केवल एक धागा नहीं, वह चेतना है जो एक पीढ़ी को राष्ट्रनिर्माण की ओर प्रेरित कर सकती है। आज जब भारत एक नए युग की ओर अग्रसर है, तब ऐसे पर्वों का राष्ट्रमूल्य और भी अधिक हो जाता है। रक्षाबंधन अब केवल एक पारंपरिक परंपरा नहीं, भारत की आत्मा से जुड़े भावों की अभिव्यक्ति बन चुका है, जहाँ एक डोरी, एक श्रद्धा, एक बहन का स्नेह, पूरे राष्ट्र को एकता की माला में पिरो सकता है। या यूं कहे रक्षाबंधन अब बना राष्ट्रबंधन में परिवर्तित हो गया है। यह डोरी अब बंधा राष्ट्रप्रेम में बंध चुकी है। मतलब साफ है रक्षाबंधन अब देशभक्ति का उत्सव बन गया है. अब सिर्फ भाई नहीं, भारत की रक्षा का भी संकल्प है। रक्षाबंधन के इस डोरी में देशभक्ति का धागा लिपटा है, जो एक राखी, एक राष्ट्र, एक संकल्प को साकार कर रहा है। भाई-बहन का यह रिश्ता अब देशभक्ति की डोर से जुड़ गया है, जो रक्षा सूत्र से राष्ट्र सेवा का संदेश दे रहा है।

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