Monday, 1 September 2025

कारपेट इंडस्ट्री को चीन-रूस से मिल सकती है नई उड़ान

कारपेट इंडस्ट्री को चीन-रूस से मिल सकती है नई उड़ान 

अमेरिकी टैरिफ से टूटी कमर, अब चीन-रूस के बाजारों से उद्यमियों को उम्मीद 

ठंड मुल्क होने से रूस में भारतीय कालीनों की भारी डिमांड

सरकार टैक्स घटाएं तो रुस चाइना बन सकता है बड़ा बाजार : कुलदीपराज वट्ठल  

चीन और रूस जैसे बड़े बाजार खुलने से भारत अमेरिका पर निर्भरता सिर्फ घटा सकता हैबल्कि हमारी सांसें फिर से चलने लगेंगी। अब उम्मीद है कि चीन और रूस में रास्ते खुलें तो हम फिर से दुनिया में अपनी पहचान मजबूत कर पाएंगे।

सुरेश गांधी 

वाराणसी. भारत का कालीन उद्योग, जो कभी देश की पहचान और निर्यात का अहम जरिया था, आज अमेरिकी टैरिफ और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की वजह से संकट से गुजर रहा है। भदोही और वाराणसी जैसे कालीन हब में लाखों बुनकर और कारीगर अब चीन और रूस से बेहतर होते रिश्तों को नई उम्मीद के तौर पर देख रहे हैं। खास यह है कि टीवी में पीएम मोदी, शी जिनपिंग पुतीन के मुस्कान के बीच मिलते गले को देखकर भदोही और वाराणसी जैसे कालीन उद्योग के केंद्रों में लाखों बुनकर कारीगर सरकार की नीतिगत पहल की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन कुलदीप राज वट्ठल का कहना है कि अगर सरकार कस्टम ड्यूटी में राहत दिलाने की पहल करे तो यह उद्योग दोबारा चमक सकता है। 

चूंकि रूस ठंडा देश है और वहां हर घर, होटल और दफ्तर में कालीन का इस्तेमाल आम है। भारतीय हैंडमेड कारपेट अपनी खूबसूरती और गर्माहट के लिए वहां बेहद लोकप्रिय हैं। लेकिन मौजूदा समय में वहां भारतीय कालीनों पर 45 से 50 प्रतिशत तक कस्टम ड्यूटी लगती है, जिसकी वजह से कीमतें बढ़ जाती हैं। चेयरमैन का कहना है कि रूस से आए खरीदार हमारे बनाए कालीन देखकर खुश हो जाते हैं, लेकिन टैक्स इतना ज्यादा है कि सौदा कम हो जाता है। अगर सरकार राहत दिला दे तो वहां का बाजार हमारे लिए सिर्फ वरदान साबित होगा, बल्कि सबसे बड़ा बाजार बन सकता है। बता दें, भारतीय कालीन केवल सजावटी वस्तुएं नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और शिल्पकला का जीवंत उदाहरण हैं। अगर सरकार चीन और रूस से व्यापार समझौते कर कस्टम ड्यूटी घटाने में सफल होती है, तो यह उद्योग केवल अरबों डॉलर का निर्यात कर पाएगा बल्कि पूर्वांचल के लाखों बुनकर परिवारों की जिंदगी में खुशहाली का सेतु भी बनेगा।

चीन में हैंडमेड कालीनों की खास जगह

चीन कभी हैंडमेड कालीन निर्माण में अग्रणी था, मगर अब वहां सिर्फ मशीन मेड कालीन बनते हैं। इसके बावजूद वहां के लोग आज भी हस्तनिर्मित कालीनों को कला और परंपरा का प्रतीक मानते हैं। फिलहाल चीन भारतीय कालीनों पर 33 से 35 फीसदी कस्टम ड्यूटी वसूलता है। सीईपीसी के पूर्व प्रशासनिक सदस्य उमेश गुप्ता का कहना है, चीन के खरीदार हमसे बार-बार हैंडमेड कालीन मंगाने की बात करते हैं, लेकिन टैक्स के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। अगर यह कम हुआ तो सिर्फ हमारी रोजी-रोटी और मजबूत होगी, बल्कि विदेशी मुद्रा अर्जित होने के साथ ही लाखों बुनकर परिवारों को स्थायी रोजगार और आर्थिक मजबूती भी मिलेगी। साथ ही भारत की हस्तशिल्प परंपरा को विश्व पटल पर नई मजबूती मिलेगी

आंकड़े बोलते हैं

भारत हर साल करीब 16,000 करोड़ रुपये मूल्य के कालीन निर्यात करता है। जिसमें अमेरिका अकेले इसका 60 फीसदी बाजार है। जबकि यूरोप करीब 30 फीसदी हिस्सा लेता है। रूस का कालीन बाजार सालाना लगभग 2,000 करोड़ रुपये का है, पर भारत की हिस्सेदारी अभी सिर्फ 10 फीसदी से कम है। चीन का हैंडमेड कालीन बाजार करीब 2,500 करोड़ रुपये सालाना है, लेकिन भारत का हिस्सा 8-10 फीसदी ही है। उद्यमियों को अनुमान है कि कस्टम ड्यूटी घटने पर भारत अगले पांच साल में रूस-चीन में दोगुना निर्यात कर सकता है।

अमेरिकी टैरिफ से मिली चोट, अब नई उम्मीद

अमेरिका भारतीय कालीनों का सबसे बड़ा खरीदार रहा है। लेकिन ट्रंप प्रशासन के टैरिफ ने उद्योग की कमर तोड़ दी। इस टैरिफ से उद्योग को गहरी चोट पहुंची। हालात यह है कि अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा अब कठिन है। भदोही के उद्योगपति एवं सीईपीसी के सीनियर प्रशासनिक सदस्य वासिफ अंसारी कहते हैं, अमेरिकी टैरिफ के बाद हमारे लिए वहां का बाजार संभालना मुश्किल हो गया है। उनका कहना है कि चीन और रूस जैसे बड़े बाजार खुलने से भारत अमेरिका पर निर्भरता सिर्फ घटा सकता है, बल्कि हमारी सांसें फिर से चलने लगेंगी। अब उम्मीद है कि चीन और रूस में रास्ते खुलें तो हम फिर से दुनिया में अपनी पहचान मजबूत कर पाएंगे। 

क्या है वाणिज्य मंत्रालय

वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, भारत और रूस के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है। कालीन उद्योग को इसमें विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। वहीं, वस्त्र मंत्रालय के सूत्र बताते हैं, बुनकरों और निर्यातकों की समस्याओं को देखते हुए सरकार कस्टम ड्यूटी कम कराने की दिशा में कूटनीतिक स्तर पर पहल कर रही है।

चुनौतियां

स्थानीय बाजार में बुनकर रोजमर्रा की चुनौतियों से भी जूझ रहे हैं। मजदूरी बढ़ी नहीं, जबकि ऊन और धागे जैसी कच्चे माल की कीमतें लगातार ऊपर जा रही हैं। इसके अलावा बिचौलियों की लंबी श्रृंखला के कारण असली मुनाफा बुनकरों तक नहीं पहुंच पाता। वाराणसी के बुनकर झुन्ना लाल कहते हैं, हम हफ्तों मेहनत करके कालीन बुनते हैं, लेकिन हमें बिचौलियों के कारण सही दाम नहीं मिलता। अगर निर्यात का सीधा रास्ता खुले तो हम भी अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा पाएंगे।

क्यों अहम है यह मौका?

रूस में कालीनों की भारी डिमांड, पर 50 फीसदी तक कस्टम ड्यूटी रोड़ा।

चीन में मशीन मेड कालीन का बोलबाला, लेकिन हैंडमेड कालीनों की चाहत बरकरार।

अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित उद्योग को मिलेगा वैकल्पिक बाजार।

भदोही-वाराणसी जैसे हब में लाखों बुनकर परिवारों को राहत।

कूटनीतिक पहल से अरबों डॉलर का अतिरिक्त निर्यात संभव।

कालीन उद्योग ने मांगा विशेष बेलआउट पैकेज

अमेरिकी सरकार द्वारा भारतीय कालीनों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने के फैसले ने कालीन उद्योग की रीढ़ कहे जाने वाले भदोही समेत पूरे पूर्वांचल में चिंता बढ़ा दी है। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) और अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (एआईसीएमए) ने केंद्र सरकार से विशेष बेलआउट पैकेज की मांग की है ताकि निर्यातकों और बुनकरों की आजीविका बचाई जा सके। उमेश गुप्ता का कहना है कि पिछले वित्तीय वर्ष में भारत का कुल कालीन निर्यात 16,800 करोड़ रहा, जिसमें से 60 फीसदी हिस्सा अमेरिका और 40 फीसदी यूरोपीय देशों में गया। खास बात यह है कि अकेले भदोही का योगदान इसमें 60 फीसदी है। ऐसे में अमेरिकी टैरिफ का सबसे बड़ा असर यहीं के निर्यातकों और बुनकरों पर पड़ना तय है।

चीन, तुर्की और पाकिस्तान से प्रतिस्पर्धा

सीईपीसी के प्रशासनिक सदस्य असलम महबूब का कहना है कि अगर अमेरिकी आयातक वैकल्पिक रूप से चीन, तुर्की या पाकिस्तान से कालीन आयात करने लगे तो उन्हें वापस भारतीय बाजार से जोड़ना बेहद मुश्किल होगा। यही वजह है कि भारतीय निर्यातकों की प्राथमिकता अपने अमेरिकी खरीदारों को किसी भी हाल में बनाए रखना है। हालांकि सरकार राहत दें तो रुस चाइना उसका विकल्प बन सकता है।

30 लाख बुनकरों की आजीविका दांव पर

कालीन निर्माता संघ के अध्यक्ष रजा खां ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा कि कालीन उद्योग एक कुटीर उद्योग है जिसमें करीब 30 लाख लोग कार्यरत हैं। इनमें 25 फीसदी महिलाएं हैं, जो घरों में बैठकर अपने हुनर से कालीन बुनकर आत्मनिर्भर बनी हुई हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि निर्यात घटने से सबसे बड़ा झटका इन्हीं गरीब बुनकरों और मजदूरों को लगेगा।

800 निर्यात इकाइयों पर संकट

उत्तर प्रदेश की 800 निर्यात इकाइयां इस सीधे झटके से प्रभावित होंगी। ऐसे में राज्य सरकार 10 फीसदी विशेष बेलआउट पैकेज की घोषणा करें तो उद्यमियों को राहत मिलें।

टैरिफ का संकट और भारत की चुनौती

भारत का कालीन उद्योग केवल व्यापार का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और कारीगरी की जीवित धरोहर है। भदोही, मिर्जापुर और वाराणसी जैसे क्षेत्र सदियों से हस्तनिर्मित कालीनों के लिए विश्वविख्यात रहे हैं। यहाँ की बुनाई केवल धंधा नहीं बल्कि कला है, जो पीढ़ियों से घर-घर में हस्तांतरित होती आई है। ऐसे में अमेरिका द्वारा अचानक 50 फीसदी टैरिफ थोपना केवल एक आर्थिक झटका नहीं, बल्कि करोड़ों परिवारों की आजीविका और आत्मसम्मान पर भी प्रहार है।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति और आर्थिक दबाव

अमेरिका का यह कदम वैश्विक आर्थिक राजनीति का हिस्सा है। मेक इन इंडियाकी तर्ज पर अमेरिका भी अपनी घरेलू उद्योगों की रक्षा करने में जुटा है। भारतीय कालीनों की गुणवत्ता और सस्ती दरें अमेरिकी बाजार में वर्षों से छाई हुई थीं। ऐसे में अमेरिकी उद्योगों का दबाव और चुनावी राजनीति ने भारत के खिलाफ यह निर्णय करवा दिया। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका को अपनी पुरानी आर्थिक साझेदारी और भारत के साथ भरोसेमंद रिश्तों को ठेस पहुँचानी चाहिए थी?

भारत के लिए चेतावनी

यह संकट भारत को आगाह करता है कि केवल एक बाजार पर निर्भर रहना कितना खतरनाक हो सकता है। कालीन निर्यात का 60 फीसदी अमेरिका पर केंद्रित होना इस समय सबसे बड़ी कमजोरी बन गया है। भारत को अब यूरोप, खाड़ी देशों, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में नए बाजार तलाशने होंगे। साथ ही डिजिटल प्लेटफॉर्म और -कॉमर्स को भी मजबूत करना होगा।

सरकार की जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश के 30 लाख बुनकर और 800 निर्यात इकाइयां इस समय अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं। सरकार केवल आश्वासन देकर नहीं बच सकती। केंद्र सरकार को तुरंत निर्यात सब्सिडी, विशेष प्रोत्साहन पैकेज और ब्याज दरों में छूट जैसी घोषणाएं करनी होंगी। वहीं राज्य सरकार को 10 फीसदी विशेष राहत पैकेज और बुनकरों के लिए प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता सुनिश्चित करनी चाहिए।

भविष्य की राह

भारतीय कालीन की सबसे बड़ी ताकत है उसकीहस्तनिर्मित गुणवत्ताऔरसांस्कृतिक विशिष्टता यही कारण है कि मशीन से बने कालीन भी हमारे हस्तनिर्मित कालीनों की बराबरी नहीं कर पाते। इस विशेषता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक ब्रांडिंग की जरूरत है। भारत कोहैंडमेड इन इंडियाअभियान शुरू करना चाहिए ताकि वैश्विक स्तर पर हमारे कारीगरों की पहचान और मजबूत हो सके। अमेरिका का यह टैरिफ फैसला भारत के कालीन उद्योग के लिए संकट जरूर है, लेकिन यदि इस अवसर को हम विविधीकरण, नवाचार और आत्मनिर्भरता के रूप में देखें, तो यही चुनौती हमारे लिए नए अवसर भी बन सकती है। सरकार, निर्यातक और बुनकर, यदि तीनों मिलकर रणनीति बनाते हैं, तो भारतीय कालीन उद्योग केवल संकट से उबर ही नहीं पाएगा, बल्कि आने वाले वर्षों में विश्व बाजार में और मजबूत पहचान बना सकेगा।

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