Tuesday, 14 October 2025

निजीकरण में बड़े घोटाले की आशंका : बिजली कर्मियों ने उठाए 5 गंभीर सवाल

निजीकरण में बड़े घोटाले की आशंका : बिजली कर्मियों ने उठाए 5 गंभीर सवाल 

321वें दिन भी निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन, मुख्यमंत्री से सीबीआई जांच निजीकरण रद्द करने की मांग

सुरेश गांधी

वाराणसी. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले चल रहा बिजली कर्मियों का निजीकरण विरोधी आंदोलन सोमवार को 321वें दिन में प्रवेश कर गया। बनारस सहित पूरे प्रदेश में बिजली कर्मचारियों ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया मेंबड़े घोटालेकी आशंका जताई और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से तत्काल हस्तक्षेप कर इस पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच कराने तथा निजीकरण का निर्णय निरस्त करने की मांग की। वक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा दीपावली से पूर्व राज्य कर्मचारियों को बोनस देने की घोषणा का स्वागत है, लेकिन दीपावली पर रिकॉर्ड बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने में जुटे बिजली कर्मियों को भी बोनस का लाभ दिया जाना चाहिए। 

संघर्ष समिति के पाँच गंभीर सवाल

1. डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटी मीट 2024 में निजी कंपनियों की भूमिकाः लखनऊ में हुई इस मीटिंग में कई निजी घरानों की भागीदारी रही, जिन्होंने कार्यक्रम को स्पॉन्सर किया। समिति ने आरोप लगाया कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल निगमों के निजीकरण की पृष्ठभूमि इसी बैठक में तैयार की गई। इस मीट में ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन का गठन किया गया, जिसमें यूपी पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल को महासचिव और ग्रेटर नोएडा की निजी कंपनी एनपीसीएल के सीईओ पी.आर. कुमार को कोषाध्यक्ष बनाया गया।

2. ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति में हितों का टकरावः समिति ने कहा कि झूठा शपथपत्र देने और अमेरिका में पेनल्टी लगने के बावजूद ग्रांट थॉर्टन नामक कंपनी को नहीं हटाया गया। इसी कंपनी से निजीकरण के दस्तावेज तैयार कराए गए, जिससे भ्रष्टाचार की आशंका और गहरी हो गई।

3. गुपचुप तरीके से जारी ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट 2025यह डॉक्यूमेंट आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया, जबकि 2020 में जारी दस्तावेज पर आईं आपत्तियों का निस्तारण भी नहीं हुआ। समिति ने आरोप लगाया कि बिना सार्वजनिक परामर्श के गोपनीय ढंग से निजीकरण का रास्ता साफ किया जा रहा है।

4. कॉर्पोरेट घरानों के साथ मिलीभगत का आरोप: समिति ने कहा कि पूरी प्रक्रिया निजी कंपनियों को भरोसे में लेकर चलाई जा रही है। टाटा पावर के सीईओ प्रवीर सिन्हा के बयानों का हवाला देते हुए संघर्ष समिति ने कहा कि आरएफपी डॉक्यूमेंट उनके सुझाव से तैयार किए गए हैं। यह स्थिति कॉर्पोरेट कार्टेल बनने की ओर संकेत करती है।

5. कौड़ियों के भाव बेची जा रही है बिजली संपत्ति : संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि निगमों की संपत्तियों को इक्विटी के आधार पर निजी घरानों को सौंपने की कोशिश हो रही है। इक्विटी को लॉन्ग टर्म लोन में बदलने के बाद 42 जनपदों की बिजली व्यवस्था कॉर्पोरेट कंपनियों को बेहद कम दामों पर मिल जाएगी।

सीबीआई जांच और बोनस की मांग

समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि प्रदेश की करोड़ों की विद्युत परिसंपत्तियों कोलूटसे बचाने के लिए मुख्यमंत्री को तत्काल हस्तक्षेप कर प्रक्रिया रोकनी चाहिए और पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय सीबीआई जांच करानी चाहिए। संघर्ष समिति ने चेतावनी दी कि बिजली कर्मचारी, किसान, उपभोक्ता, सरकारी कर्मचारी और ट्रेड यूनियन मिलकर निजीकरण के खिलाफ आंदोलन जारी रखेंगे, जब तक यह फैसला वापस नहीं लिया जाता। सभा को . मायाशंकर तिवारी, . एस.के. सिंह, . राजेंद्र सिंह, अंकुर पांडेय, कृष्णा सिंह, अशोक कुमार, संजय गौतम, बंशीलाल, ओमप्रकाश विश्वकर्मा, धनपाल सिंह, कमलेश यादव, अनुराग मौर्य, प्रवीण सिंह समेत कई पदाधिकारियों ने संबोधित किया।

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