Monday, 13 October 2025

दीपावली : आत्मजागरण का उत्सव

दीपावली : आत्मजागरण का उत्सव 

दीपावली केवल रोशनी का उत्सव नहीं है, यह आत्मा की जागृति का पर्व है। यह वह क्षण है जब मनुष्य अपने भीतर झांकता है और अपने जीवन में फैले अंधकार को दूर करने का संकल्प लेता है। दीपावली हमें केवल घरों को सजाने का नहीं, अपने अंतरमन को प्रकाशित करने का संदेश देती है। यह अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक बनकर हर वर्ष हमारे द्वार पर दस्तक देती है। दीपावली का उत्सव जीवन के उस आदर्श का प्रतीक है जिसमें मनुष्य स्वयं को पहचानने, सुधारने और प्रकाशित करने की प्रक्रिया से गुजरता है। यह केवल आनंद का पर्व नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार का आह्वान है। जब हम दीप जलाते हैं, तो वह दीप हमारे भीतर छाए तमस, अवसाद और भ्रम के अंधकार को मिटाकर नई ऊर्जा, नई दृष्टि और नई प्रेरणा देता है 

सुरेश गांधी

तमसो मा ज्योतिर्गमय, अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर. यह वैदिक वाक्य केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का दर्शन है। अर्थात्, हे प्रभु, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। यह अंधकार केवल बाहरी नहीं, बल्कि मन, बुद्धि और आत्मा में फैले अज्ञान का भी है। दीपावली का हर दीप इस श्लोक का जीवंत प्रतीक है। जब हम दीप जलाते हैं, तो यह केवल घी या तेल से नहीं, बल्कि आस्था और विवेक के ईंधन से जलता है। उसकी लौ हमें यह सिखाती है कि छोटी-सी रोशनी भी बड़े से बड़े अंधकार को मिटा सकती है।दीपावलीशब्द दो भागों से बना है, दीप और आवली।दीपका अर्थ है प्रकाश, औरआवलीका अर्थ है श्रृंखला या पंक्ति। अर्थात्प्रकाश की पंक्ति”, परंतु यह प्रकाश केवल दीवारों पर टँगे दीयों का नहीं, बल्कि मनुष्य के भीतर जलती चेतना की पंक्ति का प्रतीक है। भारतीय परंपरा में दीप का अर्थ ज्ञान से है। जैसे दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति स्वयं का त्याग कर समाज को दिशा देता है। इसलिए दीपावली का सच्चा संदेश है, “स्वयं को जलाओ, ताकि दुनिया प्रकाशित हो सके।” 

राम और सीता : मर्यादा और लक्ष्मी का प्रतीक

दीपावली का धार्मिक आधार अयोध्या से जुड़ा है। भगवान श्रीराम जब चौदह वर्ष के वनवास के बाद रावण का वध कर माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया। वह केवल एक राजा की विजय नहीं थी, बल्कि धर्म, मर्यादा और सत्य की विजय थी। 

राम का जीवन हमें यह सिखाता है कि कर्तव्य और संयम का पालन ही सच्चा धर्म है। माता सीता लक्ष्मी का अवतार मानी गईं, जो केवल भौतिक संपदा, बल्कि पवित्रता, शालीनता और सहनशीलता की अधिष्ठात्री देवी हैं। 

राम और सीता की अयोध्या वापसी केवल ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि यह संकेत है कि जब जीवन में मर्यादा, भक्ति और करुणा लौटती है, तो घर-घर में प्रकाश फैल जाता है। दीपावली इसीलिए आत्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन जाती है।

प्रकाश और छाया का संवाद

हर प्रकाश के साथ एक छाया चलती है। जैसे दिन के साथ रात, सुख के साथ दुःख, और ज्ञान के साथ भ्रम जुड़ा रहता है। 

जीवन का यह द्वंद्व, अंधकार और प्रकाश की आँख-मिचौली, मनुष्य की सबसे पुरानी यात्रा है। हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति इसी संघर्ष की गाथा है, जहाँ मनुष्य ने बार-बार अंधकार पर विजय पाई है। 

कभी यह अंधकार अज्ञान का था, कभी अन्याय का, और कभी स्वार्थ का। परंतु हर बार किसी किसी ने दीप जलाया, कभी ऋषि ने, कभी संत ने, कभी किसी सामान्य मानव ने, और मानवता को दिशा दी। 

आज भी जब समाज में असमानता, हिंसा, भ्रष्टाचार और अविश्वास का अंधेरा फैला है, तो दीपावली हमें याद दिलाती है कि अंधकार से भागना नहीं, उसमें दीप जलाना ही समाधान है।

आधुनिक युग का तमस और आत्मा का दीप

आज हम उस युग में जी रहे हैं जहाँ बाहर का प्रकाश बढ़ा है, पर भीतर का अंधकार गहराता जा रहा है। विज्ञान ने हमें चाँद-तारों तक पहुँचा दिया, पर हम अपने भीतर के आकाश को भूल गए। भौतिकता की चमक में आध्यात्मिकता का आलोक धुँधला पड़ गया है। 

हमारे घर जगमगाते हैं, पर मनों में थकान, असंतोष और असुरक्षा का अंधेरा पसरा है। यही वह समय है जब दीपावली का वास्तविक संदेश समझना आवश्यक है, प्रकाश केवल बिजली का नहीं, आत्मा का होना चाहिए। दीपावली हमें यह भी सिखाती है कि धन, शक्ति और ज्ञान, तीनों तभी पवित्र हैं जब उनका उपयोग लोककल्याण में हो। जिस धन से दूसरों की सेवा हो, वही महालक्ष्मी का रूप है। जिस ज्ञान से मानवता का उत्थान हो, वही संतेंंजप का वरदान है। और जिस शक्ति से समाज की रक्षा हो, वही काली का आशीर्वाद है।

पंचदिवसीय दीपोत्सव, 5 संदेश, 5 संकल्प

दीपावली केवल एक दिन का पर्व नहीं, बल्कि पाँच दिनों की आध्यात्मिक यात्रा है, जो हमें धन, शक्ति, प्रकाश, विनम्रता और प्रेम कृ इन पाँच तत्वों का संतुलन सिखाती है।

1. धनतेरस : समृद्धि का नहीं, सद्गुणों का उत्सव, धनतेरस केवल धन की पूजा का दिन नहीं है, बल्कि यह सद्गुणों, परिश्रम और उदारता की आराधना का प्रतीक है। वैदिक दृष्टि में धन का अर्थ केवल भौतिक संपदा नहीं, बल्कि ज्ञान, सेवा और नैतिकता से है। जो धन लोककल्याण में लगाया जाए, वही दिव्य बनता है। पर जो धन केवल स्वार्थ में बंध जाए, वही तमस का कारण बनता है। धनतेरस हमें सिखाता है कि धन तभी शुभ है जब वह समाज के हित में बहता है।

2. काली चौदस : शक्ति का संतुलन, काली चौदस या नरक चतुर्दशी का दिन शक्ति के सही उपयोग की याद दिलाता है। यह देवी काली की आराधना का दिन है, जो हमें सिखाती हैं कि शक्ति का प्रयोग केवल रक्षा के लिए हो, विनाश के लिए नहीं। यह दिन महिलाओं के सम्मान, उनकी सुरक्षा और आत्मबल के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है। शक्ति तभी पवित्र होती है जब उसमें करुणा का समावेश हो।

3. दीपावली : प्रकाश का उत्सव, दीपावली का मुख्य दिन प्रकाश और ज्ञान का उत्सव है। यह वह दिन है जब हर घर में दीपक जलते हैं, जो हमें स्मरण कराते हैं कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों हो, एक दीपक उसे मिटाने के लिए पर्याप्त है। दीप जलाना केवल एक परंपरा नहीं, एक संस्कार है, जो हमें आत्मावलोकन के लिए प्रेरित करता है। हर दीप हमें यह संदेश देता है किस्वयं जलो, ताकि दूसरों का मार्ग प्रकाशित हो।

4. गोवर्धन पूजा / बली प्रतिपदा : विनम्रता का संदेश, गोवर्धन पूजा का दिन प्रकृति के संरक्षण और अहंकार पर विनम्रता की विजय का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर यह बताया कि प्रकृति का सम्मान ही सच्ची भक्ति है। बली प्रतिपदा हमें यह भी सिखाती है कि अच्छाई हर व्यक्ति में खोजी जा सकती है, यहाँ तक कि विरोधी में भी। बलि जैसे असुर भी त्याग और दान के प्रतीक बन गए।

5. भाई दूज : स्नेह और सुरक्षा का उत्सव, भाई दूज भाई-बहन के प्रेम का पर्व है, जो परिवार और समाज में स्त्री-सम्मान की भावना को पुष्ट करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि संबंधों की आत्मीयता ही समाज की वास्तविक पूँजी है। भाई दूज का संस्कार केवल रक्षा का नहीं, बल्कि आदर और समानता का भी प्रतीक है। 

दीपावली का संदेश

आज जब शिक्षा, न्याय और प्रशासनिक व्यवस्था कई बार अंधकार में डूबी प्रतीत होती है, जब भ्रष्टाचार, अन्याय और स्वार्थ ने पारदर्शिता और सेवा के मूल्यों को निगल लिया है, तो दीपावली का आह्वान और भी अर्थपूर्ण हो जाता है। हमें केवल घरों की सफाई नहीं, बल्कि विचारों की सफाई करनी होगी। असत्य, लोभ और दिखावे की धूल को हटाना होगा। दीपावली का सार यही है कि अंधकार से भागो मत, अपने भीतर दीप जलाओ। 

भारत और भारतीयता का पुनः जागरण

औपनिवेशिक मानसिकता ने हमें अपनी जड़ों से दूर कर दिया। हमने पश्चिमी भौतिकता को आदर्श समझ लिया, और अपनी अध्यात्म-प्रधान सभ्यता को पिछड़ा मान लिया। परंतु सच्चाई यह है कि भारत की आत्मा कभी भौतिक नहीं, आध्यात्मिक रही है। दीपावली हमें उसी आत्मा से जोड़ती है, जो प्रेम, सेवा, सहिष्णुता और एकता का संदेश देती है। जब तक हम अपने भीतर केभारतीयको नहीं जगाएँगे, तब तक यह प्रकाश अधूरा रहेगा।

दीपक : आत्मा का प्रतीक

दीपक का अर्थ केवल लौ नहीं है। दीप का तात्पर्य है संकल्प, तप और त्याग। यह हमें सिखाता है कि जीवन में प्रकाश तभी मिलेगा जब हम स्वयं जलना सीखेंगे। घी और वात की तरह ही जीवन में ईंधन और संकल्प चाहिए। जिस प्रकार दीपक बिना वात के नहीं जलता, उसी प्रकार जीवन बिना लक्ष्य के नहीं चमकता। दीपावली हमें सिखाती है, जीवन की हर अंधेरी राह में स्वयं दीप बनना है। प्रकाश के परे भी एक अर्थ जब हम दीप जलाते हैं, तब केवल रोशनी नहीं फैलाते, बल्कि आशा, विश्वास और एकता की भावना को भी प्रज्वलित करते हैं। यह त्योहार सभी धर्मों, सभी वर्गों को जोड़ता है। हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध कृ सभी इसे अपने-अपने अर्थों में मनाते हैं, पर भावना एक ही रहती है, अंधकार से प्रकाश की ओर। जैन मत में यह भगवान महावीर के निर्वाण का दिन है, सिख परंपरा में यह गुरु हरगोविंद जी की स्वतंत्रता का प्रतीक। इसलिए दीपावली केवल एक धर्म का नहीं, मानवता का उत्सव है। दीपावली हर वर्ष हमें याद दिलाती है, अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों हो, प्रकाश का एक दीप उसे मिटाने के लिए पर्याप्त है। इस दीपोत्सव पर अपने घर ही नहीं, अपने हृदय के आंगन को भी प्रकाशित करें। अहंकार के तमस को त्यागें, करुणा, विवेक और प्रेम की ज्योति जलाएं। क्योंकि सच्ची दीपावली तब होगी, जब हर घर में दीप जले, और हर हृदय में प्रकाश उतरे।

रामायण से मिली प्रेरणाएं

मर्यादा का पालन ही सच्चा धर्म। भक्ति और सेवा से ही मुक्ति। सत्य की विजय सदैव निश्चित है। विनम्रता ही सबसे बड़ी शक्ति है। प्रेम और करुणा से ही समाज प्रकाशित होता है। मतलब साफ है, दीप जलाइए...पर पहले अपने भीतर। क्योंकि बाहर का प्रकाश तभी टिकता है, जब भीतर ज्योति जागृत हो।

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