Tuesday, 20 March 2018


सिद्धपीठ मां कालिका धाम: जहां  मां देती है पुत्र रत्न का वरदान
भगवान शिव की नगरी काशी में आदि श्क्ति जगत जननी मां भगवती अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रुपों में विराजमान है। लेकिन जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर वरुणा तट पर सेवापुरी स्थित सिद्धपीठ मां कालिका धाम ऐसा अद्भूत अनोखा मंदिर है जहां मां काली के दर्शन मात्र से भक्तों को मिल जाता मुसीबतों से छुटकारा। देवी मां करती है भक्तों की हर मन्नते पूरी। नवरात्र में यहां रेला उमड़ पड़ता है
                                   सुरेश गांधी
भगवान भोलेनाथ की त्रिशूल पर टिकी काशी के सेवापुरी-कपसेठी के बीच कालिका धाम है। यहां मां काली का मंदिर है, जिसे कालिका धाम के नाम से जाना जाता है। चैत वासंतिक नवरात्रि के दौरान यहां विशाल मेला तो लगता ही है बाकी के दिनों में भी भक्तों का जमावड़ा होता है। रामनवमी के दिन यहां विशाल मेला लगता है। मेले में काशी के ही नहीं दूर-दराज से भी श्रद्धालुओं का आना होता है। पूरे नौ दिन तक भक्त शक्ति आराधना में लीन रहता है। ऐसा माना जाता है कि लगभग 400 साल पहले मां काली चैरी-बिछिया के पंडित अलखनाथ के सपने में आयी। उनसे मां ने कहा कालिकाबारा में मैं एक गड्ढे में हूं। पंडित सुबह वहां पहुंचकर गड्ढे खुदवाया, लेकिन मां का दर्शन नहीं हुआ। निराश पंडित घर लौट गया। दुसरे दिन उसे फिर स्वप्न आया कि गड्ढे में दूध भरों। दूध भरते ही मां की अद्भूत अनोखी प्रतिमा मिली। इसके बाद से वहां पूजन-अर्चन शुरु हो गया। देखते ही देखते वहां भव्य मंदिर बन गया।
मंदिर के पुजारी शिव प्रसाद गिरी बताते है कि अंग्रेजी हुकूमत में एक तहसीलदार ने मां के दरबार में संतान की मनौती की, कुछ दिनों बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। मान्यता है देवी संवत् एक में प्रकट हुईं। यहां मुगलकाल में अंग्रेजों से युद्ध की रणनीति बनाते थे। बाबा अलखनाथ ने खोदाई कराई। गड्ढे में दूध डालते ही मां कालिका ऊपर गईं। मंदिर निर्माण शुरू हुआ तो औरंगजेब ने चढ़ाई कर दी। सिपहसालार छत्तरपुर सिंह को बंदी बना लिया। उनके हाथ में मां की कृपा से तलवार गई। इसे देख औरंगजेब लौट गया। इसके बाद उन्होंने ही मंदिर को भव्य रूप दिया। यहां दर्शनमात्र से ही भक्तों की हर मुरादें पूरी हो जाती है। भक्तों की पूजा से प्रसंन होने पर मां पुत्र कल्याण का वरदान देती है। काली माता मंदिर में साल में दो बार नवरात्रि त्योहार (मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर) मेंमेलाका आयोजन किया जाता है। यह मंदिर बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। मंदिर हर रोज विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। वैसे भी हिन्दू धर्म में सबसे जागृत देवी है मां कालिका। काली शब्द का अर्थ काल और काले रंग से है। काल का अर्थ समय। मां काली को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। मां काली के चार रूप है- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली। कालिका के दरबार में जो एक बार चला जाता है उसका नाम-पता दर्ज हो जाता है। यहां यदि दान मिलता है तो दंड भी। माता के नाम से एक अलग ही पुराण है, जिसमें उनकी महिमा का वर्णन है।
मां किसी को भी अपने दरबार से खाली हाथ नहीं लौटाती, तभी तो मां अपने भक्तों की चिंता तो दूर करती ही है, यहां वही भक्त पहुंच पाता है, जिसे मां का बुलावा होता है। मां का ये धाम अनोखा अद्भूत इसलिए भी है कि भक्तों को यहां मां का दर्शन होता है गुफा के एक छोटे झरोखे में। मां के आशीर्वाद से बिगड़े काम भी तो बन जाते ही हैं, सफलता की राह में रही बाधाएं भी दूर हो जाती है। मुश्किलों को हरने वाली मां के शरण में आने वाला राजा हो या रंक मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते है। मां की कृपा से असंभव कार्य भी पूरे हो जाते है। मां के चमत्कारों की कहानी लंबी है और महिमा अनंत। मां के द्वार पर एक बार जो गया, वो फिर कहीं और नहीं जाता। कहते है दरबार में नित्य होने वाली मां के चारों रुपों की आरती का दर्शन कर लेने मात्र से हजार अश्वमेघ यज्ञ के फलों की प्राप्ति होती है। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की लंबे समय से योजना लंबित है। मुख्यमंत्री रहने के दौरान राजनाथ सिंह ने इसकी पहल भी की। तालाब का घाट समेत सुंदरीकरण, फव्वारा, मंदिर तक रोड चहारदीवारी बनाने की योजना थी। इसके लिए पर्यटन विभाग की टीम ने प्रस्ताव भी बनाया लेकिन बात अब तक नहीं बनी। 




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