प्रतिभाओं को सशक्त करने की जरूरत
देश
को
स्वर्ण
पदक
दिलाने
वाली
पूनम
यादव
को
भारोत्तलन
की
तैयारी
के
लिए
उसके
पिता
को
अपनी
भैंस
बेचनी
पड़ी।
पिछले
राष्ट्रमंडल
खेल
में
पूनम
ने
कांस्य
पदक
जीता
तो
मिठाई
खिलाने
के
लिए
उसके
पास
पैसे
नहीं
थे।
कई
बार
ट्रेनिंग
के
दौरान
पूनम
को
भूखा
सोना
पड़ा।
यह
रामकहानी
अकेले
पूनम
की
ही
नहीं
है
बल्कि
साठ
फीसदी
से
अधिक
हर
उस
युवा
प्रतिभा
की
है
जो
अभावों
में
राष्ट्रीय
स्तर
पर
अपना
हूनर
नहीं
दिखा
पा
रहे
है।
ज
बकि
खेल
हो
या
शिक्षा
समेत
अन्य
क्षेत्र
बढ़ावा
देने
के
लिए
केन्द्र
व
राज्य
सरकारें
अरबो-खरबों
रुपये
प्रतिभाओं
को
उभारने
के
लिए
खर्च
कर
रही
है।
लेकिन
इस
पैसे
का
कितना
सदुपयोग
किया
जा
रहा
है
इसकी
गवाही
खुद
पूनम
ही
नहीं
बल्कि
उसके
सरीके
लाखों
के
अभावग्रस्त
जिंदगी
बया
कर
रहे
हैं।
मतलब
साफ
है
सरकार
अगर
प्रतिभाओं
को
उभारने
के
नाम
पर
चलाया
जा
रही
योजनाओं
को
वास्तविकता
के
धरातल
पर
लाएं
तो
पदक
क्या
मोदी
के
सपनों
का
भारत
बनने
में
रंचमात्र
भी
देर
नहीं
लगेगी
सुरेश
गांधी
फिरहाल, पूनम ही
नहीं भारतीय महिलाएं
जिंदगी के सभी
क्षेत्रों में सक्रिय
हैं। चाहे वह
राजनीति का क्षेत्र
हो या फिर
शिक्षा, कला-संस्कृति
अथवा आइटी या
फिर मीडिया का
क्षेत्र, सभी क्षेत्रों
में महिलाओं ने
सफलता के झंडे
गाड़े हैं। इंदिरा
गांधी जैसी सशक्त
महिला देश की
प्रधानमंत्री रही हैं।
भारत का संविधान
भी सभी महिलाओं
को बिना किसी
भेदभाव के सामान
अधिकार की गारंटी
देता है। संविधान
में राज्यों को
महिलाओं और बच्चों
के हित में
विशेष प्रावधान बनाये
जाने का अधिकार
भी दिया है
ताकि महिलाओं को
किसी भी क्षेत्र
में बाधा न
हो। खासकर प्रतिभाओं
की खोज के
नाम पर एक-दो नहीं
कई योजनाएं चलाई
जा रही हैं।
अनके समाजसेवी संस्थाएं
व औद्योगिक घराने
खेल सहित अन्य
क्षेत्र के प्रतिभाओ
को बढ़ावा देने
के लिए लाखों
करोड़ों पानी की
बहा रही है।
इन सबके बावजूद
अगर पूनम जैसी
प्रतिभा के पिता
को प्रैक्टिस के
लिए भैंस बेचना
पड़े, घर मकान
गिरवी करना पड़े
तो इससे बड़ा
शर्मनाक बात और
क्या हो सकती
है। खासकर उस
दौर में जब
प्रधानमंत्री स्वयं बेटी बचाओं
बेटी पढ़ाओं से
लेकर प्रतिभाओं को
आगे आने का
न्यौता अपने हर
मंच से देते
हो। लेकिन अफसोस
है कि चाहे
वह खेल हो,
रंगमंच हो या
अन्य क्षेत्र कुछ
को छोड़ दिया
जाएं तो हमारे
देश की हजारों
लाखों प्रतिभाएं आज
भी गांवों की
पगडंडियों पर दम
तोड़ रही है,
जरुरत है उन्हें
खोज निकालने की।
माना कि
पूनम यादव के
गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ
गेम्स में स्वर्ण
पदक जीतने पर
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
ने उन्हें 50 लाख
रुपये का पुरस्कार
देने की घोषणा
की है। इसके
साथ ही पूनम
को राज्य सरकार
की सेवा में
राजपत्रित अधिकारी का पद
भी दिया जाएगा।
वहीं खेल राज्यमंत्री
डा. नीलकंठ तिवारी
ने पूनम सहित
सूबे के अन्य
खिलाड़ियों को पुरस्कृत
करने के लिए
विशेष समारोह आयोजित
करने की बात
कहीं है। लेकिन
बड़ा सवाल तो
यही है क्या
यह सब पहले
नहीं हो सकता
था? अगर सरकारें
पहले ही पूनम
जैसे प्रतिभाओं की
तरफ ध्यान दिया
होता तो कम
से कम उसके
पिता को भैंस
नहीं बेचनी पड़ती।
पूनम का कहना
है कि कामनवेल्थ
में जीता स्वर्ण
पदक अपने परिवार
को समर्पित करती
हूं, क्योंकि बिना
परिवार के सहयोग
के यह संभव
नहीं था। मैंने
बिल्कुल निचले स्तर से
भारोत्तोलन शुरू किया
था, मेरे पास
संसाधन नहीं के
बराबर थे। लेकिन
घर वालों ने
केवल एक ही
बात कही तुम
केवल खेल पर
ध्यान दो, बाकी
सब हम लोगों
पर छोड़ दो।
एक बार तो
मैं बहुत निराश
हो गई थी,
जब ग्लासगो कामनवेल्थ
गेम्स के लिए
मेरे घर वालों
ने दो भैंस
बेच दी थी।
पदक जीतने के
बाद घर वालों
से कहा कि
देखिए आप लोगों
की मेहनत सफल
हो गई और
मैंने देश के
लिए स्वर्ण पदक
जीत लिया। मै
एक ऐसी चीज
लेकर आ रही
हूं जिसे देखकर
उनकी आंखें खुशी
से चमक उठेंगी।
पूनम बनारस
के दांदूपुर गांव
की है। इससे
पहले स्कॉटलैंड के
ग्लासगो में हुए
कामनवेल्थ गेम्स में पूनम
ने 6 किग्रा भार
वर्ग में कांस्य
पदक जीता था।
ग्लासगो में कांस्य
पदक जीतने के
कुछ समय बाद
पूर्वोत्तर रेलवे ने पूनम
को नौकरी दी।
वर्तमान समय में
पूनम पूर्वोत्तर रेलवे
के वाराणसी मंडल
में टीटीई पद
पर कार्यरत हैं।
पूनम की पांच
बहनें हैं। जिसमें
से पूनम के
अलावा शशि और
पूजा राष्ट्रीय स्तर
की भारोत्तोलक हैं।
एक भाई आशुतोष
एथलीट और एक
भाई हॉकी खिलाड़ी
हैं। हॉकी खेलने
वाला भाई अभिषेक
जूनियर नेशनल के शिविर
में था। ग्लासगो
कामनवेल्थ गेम्स में पदक
जीतने पर मिली
धनराशि, रानी लक्ष्मीबाई
और यश भारती
पुरस्कार से मिले
रुपयों से उसने
गांव में ही
घर बनवाने का
फैसला किया। पहले
टिनशेड का मकान
था। आज दोमंजिला
मकान बनकर तैयार
हो गया है।
उसके चाचा गुलाब
यादव ने बताया
कि उसको शुरू
से ही खेती
करने का शौक
था। समय मिलने
पर वह खेत
में फावड़ा चलाती
थी। इसी वजह
से वह शारीरिक
रूप से तगड़ी
भी है। उसकी
लगन व खेल
के प्रति जिद
को देखते हुए
हम लोगों को
उम्मीद है हमारी
भतीजी ओलंपिक में
भी पदक जीतेगी।
फिरहाल, कामनवेल्थ गेम्स
की भारोत्तोलन स्पर्धा
में पूनम के
स्वर्ण पदक जीतने
के बाद देश
प्रदेश की बालिकाओं
में नया उत्साह
आएगा। अभी देश
में उतनी संख्या
में भारोत्तोलन में
बालिकाएं नहीं हैं,
जितनी होनी चाहिए।
पूनम के स्वर्ण
पदक जीतने से
इस खेल की
ओर बालिकाओं का
रूझान निश्चित ही
बढ़ेगा। यह बनारस
ही नहीं पूरे
देश के लिए
गौरव की बात
है। अंतरराष्ट्रीय मास्टर्स
एथलीट नीलू मिश्रा
का कहना है
कि पूनम तुमने
बनारस का नाम
ऑस्ट्रेलिया में रोशन
किया। इसके लिए
तुम्हें बहुत बहुत
बधाई। भविष्य में
भी तुमसे ऐसे
ही प्रदर्शन की
तमन्ना है। तुमने
साबित कर दिया
कि बनारस की
बेटियां किसी से
कम नहीं होती
है। पूनम ने
स्वर्ण पदक जीत
कर महिलाओं का
सिर गर्व से
ऊंचा कर दिया।
महिला अब किसी
भी खेल में
पुरुषों से कम
नहीं है। पूनम
ने बनारस को
खुशियां दी जो
काफी दिनों तक
याद रहेगी। ईश्वर
से प्रार्थना है
कि वह ओलंपिक
में भारत के
लिए भारोत्तोलन में
पदक जीत कर
बनारस का नाम
रोशन करे।
बतातें है मुफलिसी
के दिनों में
पूनम यादव घर
में सीमेंट के
बने वेट से
अभ्यास करतीं थीं। इसी
सीमेंट के वेट
ने पूनम की
कॉमनवेल्थ गेम में
स्वर्ण पदक की
राह तैयार की।
अब उनकी छोटी
बहन पूजा यादव
इस वेट से
प्रैक्टिस करती है।
पूनम ने स्कॉटलैंड
के ग्लास्गो में
63 किलोग्राम भार वर्ग
में कांस्य पदक
जीता था, परिवार
की माली हालत
ठीक नहीं थी।
वर्ष 2014 तक परिवार
खपरैल के मकान
में रहता था।
लेकिन अब सब
ठीक हो जायेगा।
पूनम ने लखनऊ
के स्पोर्ट्स कॉलेज
में संचालित साई
के वेट लिफ्टिग
सेंटर में 2012 में
दाखिला लिया था।
इसके बाद तो
पूनम कड़ी मेहनत
कर नित नई
ऊंचाइयां छूने लगीं।
पूनम के कोच
रहे जीपी शर्मा
ने बताया कि
पूनम बेहद प्रतिभाशाली
वेट लिफ्टर है।
वह अपने लक्ष्य
को लेकर ईमानदारी
से और पूरी
लगन से ट्रेनिंग
करती है। इसी
का नतीजा है
कि उसने स्वर्ण
पदक जीता। वर्ष
2014 में पूनम ने
स्कॉटलैंड के ग्लास्गो
में 63 किलोग्राम भार वर्ग
में कांस्य पदक
जीता था।
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