सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगा अक्षय तृतीया, बरसेगा धन

सुरेश
गांधी


इस दिन को
संपूर्ण रूप में
शुद्ध और शुभ
माना गया है
लेकिन अगर इस
दिन और भी
पवित्र संयोग बन जाए
तो शुभता में
श्री वृद्धि हो
जाती है। नियमित
केसर और हल्दी
से इसकी पूजा
देवी लक्ष्मी के
साथ करने से
आर्थकि परेशानियों में लाभ
मिलता है। मान्यता
है कि स्वर्ण
धातु पर लक्ष्मी
व विष्णु का
आधिपत्य है और
जीवन में सुख-समृद्धि के कारक
देवी-देवता भी
यही हैं। खरीदी
गई वस्तु खरीदार
के पास स्थाई
रुप से बनी
रहे, इसलिए अक्षय
तृतीया पर खरीद-फरोख्त का अधिक
चलन है। सोना
खरीदने की दूसरी
वजह यह मानी
जाती है कि
वैशाख माह की
तृतीया से ही
पुनः विवाह मुहूर्त
प्रारंभ होते हैं।
वर-वधु के
लिए स्वर्ण आभूषण
की आवश्यकता होती
है। प्राचीन समय
में लोग स्थाई
संपति के रूप
में सोना व
भूमि ही मानते
थे। तभी से
अक्षय तृतीया पर
इनकी खरीदी का
चलन बना हुआ
है। सोने पर
माता लक्ष्मी, विष्णु
व सूर्य का
आधिपत्य है। ये
तीनों देव धन,
यश, सुख, समृद्धि
प्रदान करने वाले
देव हैं। सोने
को शुद्ध मानते
हुए मंदिरों के
शिखर पर स्वर्ण
कलश लगाने की
परंपरा भी इन्हीं
कारणों से है।
अक्षय तृतीया वैशाख
मास में शुक्ल
पक्ष की तृतीया
तिथि को कहते
हैं। इस दिन
जो भी शुभ
कार्य किए जाते
हैं, उनका अक्षय
फल मिलता है।
अक्षय मतलब जो
जिसका क्षय नहीं
हो सकता। इसे
ईश्वर की तिथि
माना जाता है।
इसी दिन से
सतयुग और त्रेता
युग का प्रारंभ
हुआ है। भगवान
विष्णु ने नर-नारायण, हृयग्रीव और
परशुराम का अवतरण
भी इसी तिथि
को हुआ था।
जो सदैव चिरंजीवी
हैं। इस दिन
बद्रीनाथ की प्रतिमा
स्थापित कर पूजा
की जाती है।
श्री लक्ष्मी नारायण
के दर्शन किए
जाते हैं। प्रसिद्ध
तीर्थ स्थल बद्रीनारायण
के कपाट भी
इसी तिथि से
ही पुनः खुलते
हैं। इस दिन
सभी विवाहित और
अविवाहित लड़कियां पूजा में
भाग लेती हैं।
इस दिन लोग
भगवान गणेश और
देवी लक्ष्मी की
पूजा भी करते
हैं। कई लोग
इस दिन महालक्ष्मी
मंदिर जाकर सभी
दिशाओं में सिक्के
उछालते हैं। सभी
दिशाओं में सिक्के
उछालने का कारण
यह माना जाता
है कि इससे
सभी दिशाओं से
धन की प्राप्ति
होती है। इस
दिन भगवान विष्णु
के चरणों से
धरती पर गंगा
अवतरित हुई। भविष्य
पुराणनुसार शाकल नगर
में रहने वाले
एक वणिक नामक
धर्मात्मा अक्षय तृतीया के
दिन पूर्ण श्रद्धा
भाव से स्नान
ध्यान और दान
कर्म किया करता
था। जबकि उसकी
भार्या उसको मना
करती थी, मृत्यू
के बाद किये
गये दान पुण्य
के प्रभाव से
वणिक द्वारकानगरी में
सर्वसुख सम्पन्न राजा के
रुप में अवतरित
हुआ। मान्यता है
कि महाभारत के
दौरान पांडवों के
भगवान श्रीकृष्ण से
अक्षय पात्र प्राप्त
किया था। इसी
दिन सुदामा और
कुलेचा भगवान श्री कृष्ण
को मुट्ठीभर भुने
चावल दिए थे।
वृंदावन के बांके
बिहारी के चरण
दर्शन केवल अक्षय
तृतीया को होते
हैं। “न माधव
समो मासो न
कृतेन युगं समं।
न च वेद
समं शास्त्रं न
तीर्थ गङग्या समं।।”
यानी वैशाख के
समान कोई मास
नहीं है, सत्ययुग
के समान कोई
युग नहीं हैं,
वेद के समान
कोई शास्त्र नहीं
है और गंगाजी
के समान कोई
तीर्थ नहीं है।
एक आंख
वाली
नारियल
पूजा
से
प्रसंन
होगी
माता
लक्ष्मी
प्रकृति में आमतौर
पर तीन आंखों
वाले नारियल मिलते
हैं। लेकिन हजारों
में कभी-कभी
ऐसा नारियल भी
मिल जाता है
जिसकी एक आंख
होती है। ऐसे
नारियल को लक्ष्मी
का स्वरूप माना
जाता है। अक्षय
तृतीय के दिन
इसे घर में
पूजा स्थान में
स्थापति करने से
देवी लक्ष्मी की
कृपा प्राप्त होती
है। इस दिन
पारद की देवी
लक्ष्मी घर लाएं
और नियमित इनकी
पूजा करें। शास्त्रों
में बताया गया
है कि पारद
की देवी लक्ष्मी
की प्रतमिा जहां
होती है वहां
कभी अभाव नहीं
रहता है। पारद
या स्फटिक का
बना कछुआ अपने
घर लाएं। इस
दिन घर में
श्री यंत्र की
स्थापना भी धन
की परेशानी दूर
करने के लिए
कारगर माना गया
है। लक्ष्मी के
हाथ में स्थित
दक्षिणवर्ती शंख भी
धन दायक माना
गया है। आप
इसे अक्षय तृतीया
पर घर ला
सकते हैं। श्वेतार्क
गणपति की स्थापना
भी शुभ फलदायी
होती है। किसी
भी शुभ कार्य
की शुरुआत लोग
उसके सफल होने
की उम्मीद के
साथ ही करते
हैं। ऐसे में
एक ऐसा शुभ
दिन आ रहा
है, जब आप
अपने हर शुभ
कार्य की शुरुआत
कर सकते हैं।
अक्षय पुण्य
की
प्राप्ति
के
लिए
उपाय
अक्षय तृतीया के
दिन ब्रह्म मुहूर्त
में उठकर स्नान
करने के बाद
भगवान विष्णु की
शांत चित्त होकर
विधि विधान से
पूजा करने करें।
प्रसाद में जौ
या गेहूं का
सत्तू, ककड़ी और
चने की दाल
अर्पित करें। गरीबों को
पानी का पात्र
( घड़ा, पानी वाला
जग) चावल, नमक
और घी का
दान करें। चंदनस्य
महत्पूण्यम् पवित्रं नामशनम् आपदां
हरते नित्यम् लक्ष्मी
तिष्ठतु सर्वदा, के जाप
से जहां धन
की प्राप्ति होती
है वहीं आनीतांस्तव
पूजार्थम् गृहाण, के जप
से बल-बुद्धि
मिलता है। उं
कलशस्य मुखे विष्णुः
कण्ठे रुद्रः समाश्रितः
के जप से
खर्राटा जैसी बीमारी
तो यादृशी भावना
यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी
के जप से
सभी कार्याे की
सिद्धि होती है।
यानि कानि च
पापानि जन्मांतर कृतानि च
तानि स्वाणि नश्यन्तु
प्रदक्षिणा पदे पदे
के जप से
घर में आयेगी
शांति आती है।
जबकि तेन त्वां
प्रतिबध्नामि रक्षे माचल माचल
के जप से
घर के सभी
सदस्यों की सुरक्षा
होती है। यावत
कर्म समाप्तिः स्यात्
तावत् त्वं स्थिरोभव
के जप से
दुर्घटनाएं टलती है।
उं ऐं ह्ीं
क्लीं आंतनेयाय नमः
व तमहं सर्वदा
वन्दे श्रीमद् वल्लभ
नन्दनम् के जप
से डिप्रेशन व
मानसिक क्लेश दूर से
मुक्ति मिलती है। भवानी
शंकरौ वन्द्र श्रद्ध
विश्वासरुपिणौ के जप
से आत्मविश्वास बढ़ता
है तो एलालवंग
संयुक्तम् ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् के
जप से अधिकारी
प्रसंन होते हैं।
वारि परिपूर्ण लोचनम्
मारुति नमत रक्षसान्तकम्
के जप से
बुरी आदतें छूटती
है तो उं
महालक्ष्म्यै च विद्महे
विष्णुपत्न्यै च धीमहि
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्
के जाप से
घर आएं धन
की बर्बादी नहीं
होगी। धरणी गर्भ
सम्भूतम् विद्युत कान्ति समप्रभम्
कुमारं शक्ति हस्तं तं
मंगलं प्रणमाम्यहम् के
जाप से मंगली
दोष का निवारण
होता है।
सिक्का उछालना
फलदायक
इस दिन
सभी विवाहित और
अविवाहित लड़कियां पूजा में
भाग लेती हैं।
इस दिन लोग
भगवान गणेश और
देवी लक्ष्मी की
पूजा भी करते
हैं। कई लोग
इस दिन महालक्ष्मी
मंदिर जाकर सभी
दिशाओं में सिक्के
उछालते हैं। सभी
दिशाओं में सिक्के
उछालने का कारण
यह माना जाता
है कि इससे
सभी दिशाओं से
धन की प्राप्ति
होती है। अंकों
में विषम अंकों
को विशेष रूप
से ’3′ को अविभाज्य
यानी ‘अक्षय’ माना
जाता है। सामन्यतया
अक्षय तृतीया में
42 घरी और 21 पल होते
हैं। पद्म पुराण
अपराह्म काल को
व्यापक फल देने
वाला मानता है।
मां गंगा
का
अवतरण
इस पर्व
से अनेक पौराणिक
कथाएं जुड़ी हुई
हैं। इसके साथ
महाभारत के दौरान
पांडवों के भगवान
श्रीकृष्ण से अक्षय
पात्र लेने का
उल्लेख है। इस
दिन सुदामा और
कुलेचा भगवान श्री कृष्ण
के पास मुठ्ठी
भर भुने चावल
प्राप्त करते हैं।
इसी दिन कुबेर
को धन के
भंडार की जिम्मेवारी
मिली थी। इसी
दिन महाभारत का
युद्ध समाप्त हुआ
था और द्वापर
युग का समापन
भी इसी दिन
हुआ था। इस
दिन भगवान विष्णु
के चरणों से
धरती पर गंगा
अवतरित हुई। भविष्य
पुराणनुसार शाकल नगर
में रहने वाले
एक वणिक नामक
धर्मात्मा अक्षय तृतीया के
दिन पूर्ण श्रद्धा
भाव से स्नान
ध्यान और दान
कर्म किया करता
था। जबकि उसकी
भार्या उसको मना
करती थी। मृत्यु
के बाद किये
गये दान पुण्य
के प्रभाव से
वणिक द्वारकानगरी में
सर्वसुख सम्पन्न राजा के
रुप में अवतरित
हुआ। मां अन्नपूर्णा
का जन्म व
द्रोपदी को चीरहरण
से कृष्ण ने
आज के ही
दिन बचाया था।
ब्रह्माजी के पुत्र
अक्षय कुमार का
अवतरण भी इसी
दिन हुआ था।
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