कुंभ : ‘शाही स्नान’ से कट जाते है सभी ‘पाप’
कुंभ
के
आयोजन
को
अमृत
वर्षा
के
संदर्भ
में
देखा
जाता
है।
जिन
जगहों
पर
अमृत
वर्षा
हुई
वहां
कुंभ
का
आयोजन
किया
जाता
है।
इस
साल
प्रयागराज
में
कुंभ
स्नान
के
लिए
आस्थावानों
का
जमघट
है।
जिसे
देखने
के
लिए
न
सिर्फ
भारत
बल्कि
सात
समंदर
पार
से
सैलानी
पहुंच
चुके
है।
रेत
पर
बसी
पंडालों
की
नगरी
पूरी
तरह
रोशनी
से
नहाई
हुई
है।
घंटा-घड़ियालों
के
साथ
गूंजते
वैदिक
मंत्र
और
धूप-दीप
की
सुगंध
से
पूरा
प्रयागराज
महक
रहा
है।
15 जनवरी
दिन
मंगलवार
को
पहला
शाही
स्नान
है।
मान्यता
है
कि
शाही
स्नान
करने
वाले
व्यक्ति
के
सभी
पापों
का
नाश
हो
जाता
है
ज्योतिषी कहते हैं
कि मौनी अमावस्या
पर गंगा में
डुबकी लगाने का
फल कई गुणा
अधिक होता है।
इसकी शुरुआत मकर
संक्रांति से हो
रही है। मकर
संक्रांति पर इस
बार कई ऐसे
दुर्लभ संयोग बन रहे
हैं जो कई
हजारों वर्षों बाद आए
हैं। मकर संक्रांति
पर शाकंभरी नवरात्र
की शुरुआत हो
रही है। इसके
अलावा दुर्गाष्टमी और
ग्रह-नक्षत्रों के
कई शुभ संयोग
मकर संक्रांति को
खास बना रहे
हैं। पौष कृष्ण
पक्ष की अष्टमी
से पौष पूर्णिमा
तक मां शाकम्भरी
नवरात्रि पर्व मनाया
जाएगा। पौष पूर्णिमा
21 जनवरी को माता
की जयंती है।
पुष्य नक्षत्र है
और खग्रास चंद्रग्रहण
भी है। शाकंभरी
को वनस्पति की
देवी माना जाता
है। सब्जियों से
पूजा की जाती
है। इन्हें मां
अन्नपूर्णा माना जाता
है। पांडवों ने
परिजन हत्या दोष
मुक्ति के लिए
मां की पूजा
आराधना की थी।
कुंभ में
सभी अखाड़े पूरी
ताकत के साथ
शाही अंदाज, हाथी-घोड़े, ऊंट और
बैंड-बाजों के
साथ प्रयागराज के
प्रमुख हिस्सों में घूमते
हुए संगम पहुंचते
हैं। कई अखाड़ों
का जुलुस का
कई-कई किमी
लंबा होता है.। ये
एक तरह से
अखाड़ों का वैभव
प्रदर्शन होता है।
कुंभ का ये
सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण
होता है। इस
बार कुंभ में
तीन शाही स्नान
है। शाही स्नान
में अखाड़े जुलूस
की शक्ल में
स्नान के लिए
जाते हैं। अखाड़ों
के लिए खास
तौर पर घाट
तैयार किया जाता
है, जहां सिर्फ
अखाड़ों के साधु
ही स्नान करते
हैं। 15 जनवरी से कुंभ
की शुरुआत हो
रही है। पहला
शाही स्नान भी
15 जनवरी को है।
इसके बाद 4 फरवरी
दूसरा और 10 फरवरी
को तीसरा शाही
स्नान है। कुंभ
में मौनी अमावस्या
(4 फरवरी) सबसे महत्वपूर्ण
माना जाता है।
इस समय सभी
अखाड़े, साधु और
कल्पवासी मौजूद रहेंगे। जहां
तक शाही स्नान
के महत्व का
सवाल है तो
इसमें 13 अखाड़े शामिल होते
हैं।
इसकी शुरुआत
14वीं से 16वां
सदी के बीच
उस वक्त हुई
जब देश पर
मुगल शासकों के
आक्रमण की शुरुआत
हो गई थी।
धर्म और परंपरा
को मुगल आक्रांताओं
से बचाने के
लिए हिंदू शासकों
ने अखाड़े के
साधुओं और खासकर
नागा साधुओं से
मदद ली। नागा
साधु धीरे-धीरे
आक्रामक होने लगे
और धर्म को
राष्ट्र से ऊपर
देखने लगे। ऐसे
में शासकों ने
नागा साधुओं के
प्रतिनिधि मंडल के
साथ बैठक कर
राष्ट्र और धर्म
के झंडे और
साधुओं और शासकों
से काम का
बंटवारा किया। साधु खुद
को खास महसूस
कर सकें, इसके
लिए कुंभ स्नान
का सबसे पहले
लाभ उन्हें देने
की व्यवस्था हुई।
इसमें साधुओं का
वैभव राजाओं जैसा
होता था, जिसकी
वजह से इसे
शाही स्नान कहा
गया। इसके बाद
से शाही स्नान
की परंपरा चली
आ रही है।
वक्त के साथ
शाही स्नान को
लेकर विभिन्न अखाड़ों
में संघर्ष होने
लगा। साधु इसे
अपने सम्मान से
जोड़ने लगे। साल
1310 में महानिर्वाणी अखाड़े और
रामानंद वैष्णव अखाड़े के
बीच खूनी संघर्ष
हुआ। दोनों ओर
से हथियार निकल
गए और पूरी
नदी ने खूनी
रंग ले लिया।
साल 1760 में शैव
और वैष्णवों के
बीच स्नान को
लेकर ठन गई।
ब्रिटिश इंडिया में स्नान
के लिए विभिन्न
अखाड़ों का एक
क्रम तय हुआ
जो अब तक
चला आ रहा
है।
शाही स्नान
के दौरा विभिन्न
अखाड़ों से ताल्लुक
रखने वाले साधु-संत सोने-चांदी की पालकियों,
हाथी-घोड़े पर
बैठकर स्नान के
लिए पहुंचते हैं।
सब अपनी-अपनी
शक्ति और वैभव
का प्रदर्शन करते
हैं। इसे राजयोग
स्नान भी कहा
जाता है, जिसमें
साधु और उनके
अनुयायी पवित्र नदी में
तय वक्त पर
डुबकी लगाते हैं।
माना जाता है
कि शुभ मुहूर्त
में डुबकी लगाने
से अमरता का
वरदान मिल जाता
है। यही वजह
है कि ये
कुंभ मेले का
अहम हिस्सा है
और सुर्खियों में
रहता है। शाही
स्नान के बाद
ही आम लोगों
को नदी में
डुबकी लगाने की
इजाजत होती है।
ये स्नान तय
वक्त पर सुबह
4 बजे से शुरू
हो जाता है।
इस वक्त से
पहले अखाड़ों के
साध-संतों का
जमावड़ा घाट पर
हो जाता है।
वे अपने हाथों
में पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र लिए होते
हैं, शरीर पर
भभूत होती है।
वे लगातार नारे
लगाते रहते हैं।
मुहूर्त में साधु
न्यूनतम कपड़ों में या
फिर निर्वस्त्र ही
डुबकी लगाते हैं।
इसके बाद ही
आम जनता को
स्नान की इजाजत
मिलती है। कई
देशी और विदेशी
फोटोग्राफर शाही स्नान
के लिए नागाओं
और सोने चांदी
के सिंघासन पर
सवार साधुओं की
यात्रा को तस्वीरों
में भी कैद
करते हैं ताकि
कुंभ के यादगार
पलों की एक
झलक दुनिया के
सामने पेश कर
सकें।
प्रयागराज में कुंभ
14 जनवरी 2019 से शुरू
होकर मार्च 2019 तक
चलेगा। कुंभ में
8 प्रमुख स्नान तिथियां पड़ेंगी।
कुम्भ की शुरुआत
मकर संक्रान्ति से
शुरू हो कर
4 मार्च महा शिवरात्रि
तक चलेगा। अर्धकुम्भ
करीब 50 दिन चलेगा
और इस दौरान
होने वाले 6 महत्वपूर्ण
तिथियां पड़ेगी। मकर संक्रांति
इन्हीं मेंसे एक है।
कुंभ की शुरुआत
मकर संक्रांति के
दिन पहले स्नान
से होगी। इसे
शाही स्नान और
राजयोगी स्नान के नाम
से भी जानते
हैं। पौष पूर्णिमा
21 जनवरी को है
और इस दिन
कुम्भ में दूसरा
बड़ा आयोजन होगा।
पौष पूर्णिमा के
दिन से ही
माघ महीने की
शुरुआत होती है।
कहा जाता है
आज के दिन
स्नान ध्यान के
बाद दान पुण्य
करेने से मोक्ष
की प्राप्ति होती
है। इस दिन
से सभी शुभ
कार्यों की शुरुआत
होती है। इस
दिन संगम पर
सुबह स्नान के
बाद कुंभ की
अनौपचारिक शुरुआत हो जाती
है। इस दिन
से कल्पवास भी
आरंभ हो जाता
है। पौष एकादशी
को कुम्भ में
तीसरा बड़े शाही
स्नान का आयोजन
होगा। 31 जनवरी को स्नान
के बाद दान
पुण्य किया जाता
है। चौथा शाही
स्नान मौनी अमावस्या
यानि 4 फरवरी को होगा।
इसी दिन कुंभ
के पहले तीर्थाकर
ऋषभ देव ने
अपनी लंबी तपस्या
का मौन व्रत
तोड़ा था और
संगम के पवित्र
जल में स्नान
किया था। इसलिये
मौनी अमावस्या के
दिन कुंभ मेले
में बहुत बड़ा
मेला लगता है,
जिसमें लाखों की संख्या
में भीड़ उमड़ती
है।
10 फरवरी को बसंत
पंचमी यानि माघ
महीने की पंचमी
तिथि को मनाई
जायेगी। बसंत पंचमी
के दिन से
ही बसंत ऋतु
शुरू हो जाती
है। कड़कड़ाती ठंड
के सुस्त मौसम
के बाद बसंत
पंचमी से ही
प्रकृति की छटा
देखते ही बनती
है। इस दिन
देवी सरस्वती का
जन्म हुआ था।
इस दिन पवित्र
नदियों में स्नान
का वशिष महत्व
है। पवित्र नदियों
के तट और
तीर्थ स्थानों पर
बसंत मेला भी
लगता है। 19 फरवरी
को छठां शाही
स्नान माघी पूर्णिमा
को होगा। माघ
पूर्णिमा पर किए
गए दान-धर्म
और स्नान का
विशेष महत्व होता
है। ब्रह्मवैवर्त पुराण
में कहा गया
है कि माघी
पूर्णिमा पर खुद
भगवान विष्णु गंगा
जल में निवास
करते हैं। माघ
मास स्वयं भगवान
विष्णु का स्वरूप
बताया गया है।
पूरे महीने स्नान-दान नहीं
करने की स्थिति
में केवल माघी
पूर्णिमा के दिन
तीर्थ में स्नान
किया जाए तो
संपूर्ण माघ मास
के स्नान का
पूर्ण फल मिलता
है। 16 फरवरी को सातवां
शाही स्नान माघी
एकादशी को होगा।
इसदिन का पुराणों
में बहुत महत्व
है। इस दिन
दान देना कई
पापों को क्षम्य
बना देता है।
आखिरी शाही स्नान
4 मार्च को महा
शिवरात्रि के दिन
होगा। इस दिन
सभी कल्पवासियों अंतिम
स्नान कर अपने
घरों को लौट
जाते हैं। भगवान
शिव और माता
पार्वती के इस
पावन पर्व पर
कुंभ में आए
सभी भक्त संगम
में डुबकी जरूर
लगाते हैं। मान्यता
है कि इस
पर्व का देवलोक
में भी इंतजार
रहता है।
पुराणों के अनुसार
दानवों के अत्याचार
से भीषण अकाल
से पीड़ित धरा
को बचाने माता
ने अवतार लिया।
वे हजारों नेत्रों
से इन नौ
दिनों तक रोती
रहीं। इससे हरियाली
पुनः स्थापित हुई।
दुर्गाष्टमी- मकर संक्रांति
इस बार अष्टमी
को है। अष्टमी
तिथि न सिर्फ
दुर्गा मां की
साधना-आराधना की
होती है बल्कि
ग्रहगोचर में सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा के
बीच 90 डिग्री का कोण
बनाती है। यह
समय प्रकृति के
नजरिए से समत्व
का होता है।
शक्ति अर्जन और
ध्यान योग का
होता है। कारण,
इस तिथि के
आसपास प्राकृतिक आपदाओं
की आशंका से
सबसे कम होती
है। समुद्र भी
ज्वार-भाटा मुक्त
रहता है। महत्वपूर्ण
संकल्पों को ऐसे
समय में बल
मिलता है। अश्विनी
नक्षत्र- मकर संक्रांति
अश्विनी नक्षत्र में है।
यह राशि चक्र
का पहला नक्षत्र
है। अर्थात् 27-28 नक्षत्रों
का नवचक्र भी
संक्रांति से शुरू
हो रहा है।
अश्व से अश्विनी
शब्द बना है।
अश्व सूर्य के
रथ को खींच
रहे हैं। अर्थात्
सूर्य की गत्यात्मकता
में सहायक हैं।
सूर्य के औरस
पुत्र अश्विनी कुमार
हैं। इन्हें चिकित्सकीय
योग्यता के लिए
जाना जाता है।
पांडवों में दो
भाई नकुल-सहदेव
इन्हीं के मानसपुत्र
माने जाते हैं।
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