लखनऊ में विरासत के भरोसे राजनाथ
गोमती तट पर
बसे लखनऊ को
नवाबों का शहर
कहा जाता है।
यहां की गंगा
जमुनी तहजीब की
चर्चा देश ही
नहीं दुनिया भर
में होती है।
मतलब साफ है
लखनऊ तब भी
चर्चा में रहा,
आज भी है।
चुनाव के लिहाज
देश की हाई
प्रोफाइल लोकसभा सीटों में
से एक यूपी
की राजधानी लखनऊ
भी है। और
जब बात लखनऊ
की हो तो
प्रधानमंत्री रहे अटल
बिहारी वाजपेयी की चर्चा
किए बिना सबकुछ
अधूरा लगता है।
क्योंकि लखनऊ बाजेपीयी
की राजनीतिक कर्मभूमि
रही है। इस
सीट को भाजपा
का गढ़ भी
कहा जाता है।
इसका अंदाजा इस
बात से लगाया
जा सकता है
कि यूपी कर
सत्ता पर बारी
बारी भले ही
सपा और बसपा
ने राज किया
है लेकिन आज
तक उनका कोई
सांसद नहीं चुना
जा सका। यह
अलग बात है
कि इस बार
हो रहे लोकसभा
चुनाव में लड़ाई
में आ गयी
है। उसका मुकाबला
केन्द्रीय गृहराजय मंत्री राजनाथ
सिंह से है।
सपा बसपा गठबंधन
से पूनम सिन्हा
प्रत्याशी है
सुरेश गांधी
कहते लखनऊ
को भगवान राम
छोटे भाई लक्ष्मण
ने बसाया था।
यहां की दशहरी
आम और चिकन
की कढ़ाई और
लखनऊ का गलावटी
कबाब मशहूर है।
बीजेपी की ओर
से पहले प्रधानमंत्री
बने अटल बिहारी
वाजपेयी की भी
राजनीतिक कर्मभूमि रही है।
सपा और बसपा
इस सीट पर
आज तक अपना
खाता भी नहीं
खोल सकी हैं।
यहां पर 1991 से
लगातार बीजेपी का कब्जा
है। मौजूदा समय
में केंद्रीय गृहमंत्री
राजनाथ सिंह लखनऊ
से सासंद है।
इस बार भी
वे चुनाव मैदान
में हैं। उनका
मुकाबला खामोश स्टाइल वाले
शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी
पूनम सिन्हा से
है। वे सपा
बसपा गठबध्ंान की
ओर से प्रत्याशी
है। जबकि कांग्रेस
ने प्रमोद कृष्णम
पर दांव आजमाया
है। बाजी किसके
हाथ लगेगी ये
तो 23 मई को
पता चलेगा। लेकिन
मुकाबला केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ
सिंह व पूनम
सिन्हा के बीच
ही है। खास
बात यह है
कि चर्चा के
केन्द्र में अब
भी अटल बिहारी
बाजपेयी ही है।
राजनाथ को भरोसा
है कि अटल
की राजनीतिक विरासत
लखनऊ वाले इस
बार भी उन्हें
ही सौंपेगं। जबकि
पूनम सिन्हां को
उम्मींद है कि
सपा बसपा के
परंपरागत वोट उन्हें
सांसद जरुर बनायेंगे।
लखनऊ सीट
पर सवर्ण मतदाता
निर्णायक भूमिका में हंै।
यहां एससी-एसटी
लगभग 10 फीसदी हैं। यहां
की लगभग 20 फीसदी
आबादी मुसलमानों की
है। कांग्रेस ने
ब्राह्मण और मुस्लिम
समीकरण के जरिए
राजनाथ को चुनौती
देने के लिए
आचार्य प्रमोद कृष्णम् पर
भरोसा जताया है।
मौजूदा सांसद राजनाथ सिंह
के चुनाव प्रचार
की कमान उनके
बेटे नीरज सिंह
ने संभाली है,
तो गठबंधन प्रत्याशी
पूनम सिन्हा के
प्रचार के लिए
उनके बेटे कुश
सिन्हा लखनऊ में
ही डेरा डाले
हुए हैं। हजरतगंज
के दिवाकर दुबे
कहते हैं, जीएसटी
और नोटबंदी से
हम परेशान जरूर
हुए। हमारा समय
अब कागजी कामों
में भी जाता
है। इसके बावजूद
हमारा वोट देश
की बेहतरी के
लिए होगा,
छोटी-मोटी दिक्कतों
से क्या घबराना।
यहां से थोड़ा
आगे बढ़ने सनवारुल
कहते हैं, हम
गरीब जरूर हैं
लेकिन जब हमारे
देश ने पुलवामा
का बदला लिया
तो हमें भी
बहुत अच्छा लगा।
अरे, देश पहले
है। जबकि दुर्गा
यादव ने कहा,
गरीबों के लिए
जो सोचेगा, हम
उसी को वोट
देंगे। वहीं मो.
इस्लाम ने कहा
कि पुराने लखनऊ
में विकास के
नाम पर कुछ
नहीं हुआ। सीवर
लाइन जैसी बुनियादी
सुविधा नहीं मिल
पाई। लेकिन कमलनाथ
ने कहा, मेट्रो
चली, पूरे शहर
में सुलभ शौचालय
खुले, सड़कें ठीक
हुईं, लखनऊ स्वच्छ
हुआ। कटिया से
मुक्ति मिली। अब क्या
चाहिए।



जहां तक
विकास का सवाल
है कि राजनाथ
सिंह ने पांच
साल में काफी
कुछ काम कराएं
हैं। सांसद निधि
के 25 करोड़ में
से 17.42 करोड़ रुपये
विकास कार्यों पर
खर्च किया है।
इस तरह से
वह करीब 70 फीसदी
सांसद निधि खर्च
कर सके हैं।
उनके मुकाबले मैदान
में उतरी जोधा
अकबर जैसी फ़िल्म
में काम कर
चुकीं पूनम सिन्हा
ने इससे पहले
कभी कोई चुनाव
नहीं लड़ा है।
उन्हें उम्मींद है कि
लखनऊ की आबादी
में दस फीसदी
कायस्थ उन्हें जीत दिलायेंगे।
लेकिन सर्वजीत सोनकर
की मानें तो
पूनम सिन्हा को
उम्मीदवार बनाकर सपा-बसपा
गठबंधन ने एक
तरह से राजनाथ
सिंह की मदद
की है। क्योंकि
दस फीसदी मतों
के लिए किसी
को बाहर से
लाकर उम्मीदवार बना
देना एक तरह
से चुनावी जंग
से पहले ही
हार मान लेने
जैसा है। कांग्रेस
इस सीट में
प्रमोद कृष्णम की धर्मगुरू
वाली पहचान की
बदौलत ब्राह्मण मतदाताओं
को लुभाने की
कोशिश करना चाहती
है। लेकिन इसके
साथ ही ये
भी साफ़ है
कि लखनऊ में
कृष्णम ने कुछ
काम नहीं किया
है। लखनऊ लोकसभा
सीट पर आने
वाली 6 मई को
मतदान के बाद
ही पता चलेगा
कि किस चुनावी
पार्टी की रणनीति
काम आई और
किसकी रणनीति बेकार
साबित हुई।
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